मैं भी एक चोर हूँ । एक-दो दिन पहले हमारे इलाक़े के दादा ने कहीं तगड़ा हाथ मारा । उसी की ख़ुशी में आज रात दादा ने हम सब को खिलाने-पिलाने का वादा किया है । दादा चोर ज़रूर है लेकिन है दरियादिल आदमी ।
एक चोरी अजीब-सी
यह कहानी सुनने के लिए आपको अपना काम छोड़ कर मेरे साथ रात के नौ बजे नुक्कड़ के ढाबे के भीतरी केबिन में चलना होगा जहाँ इलाक़े के चार-पाँच चोर और पॉकेटमार जमा हैं । जी हाँ , आपने सही पहचाना । मैं भी एक चोर हूँ । एक-दो दिन पहले हमारे इलाक़े के दादा ने कहीं तगड़ा हाथ मारा । उसी की ख़ुशी में आज रात दादा ने हम सब को खिलाने-पिलाने का वादा किया है । दादा चोर ज़रूर है लेकिन है दरियादिल आदमी ।
चोर |
मैं केबिन का दरवाज़ा खोलकर भीतर पहुँचता हूँ ।
" आ जा , राजू ! तू भी आ जा । कहाँ रह गया था ? " दादा सिगरेट का गहरा कश लेकर धुआँ ऊपर की ओर छोड़ता हुआ कहता है ।
पम्मा , काले , छोटू और मुच्छड़ -- सब जमा हैं । मेज़ पर दारू की बोतल खुली है । प्लेट में कुछ नमकीन पड़ा है । बग़ल में ताश के पत्ते बिखरे हुए हैं । सब के हाथों में गिलास हैं । कुछ भरे हुए । कुछ आधा ख़ाली ।
मैं दादा को सलाम करके कोने वाली ख़ाली स्टूल पर बैठ जाता हूँ ।
दादा की आँखें सुर्ख़ हो गई हैं ।
" ले , तू भू ले । " दादा कहता है ।
मैं भी गिलास में दारू डालकर गला तर करता हूँ । मज़ा आता है ।
" दादा , कुछ सुनाओ । अब तो राजू भी आ गया है । " प्लेट में से नमकीन उठा कर पम्मा कहता है ।
दादा सिगरेट का एक गहरा कश लेकर मुस्कुराता है । फिर उसकी आँखें दूर कहीं खो जाती हैं ।
" लो , सुनो ! बात तब की है जब मैं पंद्रह-सोलह साल का था । इस पेशे में नया-नया आया था । " एक ही घूँट में गिलास की बची हुई दारू पी कर दादा बोलना शुरू करता है । उसकी आँखें अतीत की किसी कन्दरा में से हमारे लिए कुछ उठा लाई हैं । लीजिए , अब दादा की आवाज़ में ही उसकी कहानी सुनिए ।
" एक बार मैं किसी घर में चोरी के इरादे से घुसा । रात का एक बज रहा था । अमावस की रात थी । चारों ओर झींगुर बोल रहे थे । पूरा घर घुप्प अँधेरें में डूबा था । मैंने बरामदा पार किया और दरवाज़े तक पहुँचा ।
" ज़रा-सा धक्का देते ही दरवाज़ा खुल गया और मैंने ख़ुद को कमरे के भीतर पाया । अँधेरें में कुछ भी नहीं सूझ रहा था । मैं जेब से टॉर्च निकालता इससे पहले ही कमरे की बत्ती अचानक जल गई । दरवाज़े के पास चालीस-पैंतालीस साल का एक छह फ़ुट का हट्टा-कट्टा आदमी खड़ा था । मैं सकपका गया । " कौन हो तुम ? चोरी करने आए हो ? " रोबीली आवाज़ में उसने पूछा ।
मैं इस पेशे में नया-नया आया था । कुछ समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूँ ।
" साहब , ग़लती हो गई है । मुझे जाने दीजिए । " मेरे मुँह से निकला ।
" सच-सच बता । चोरी करने आया है न ? " उस आदमी ने कड़कती आवाज़ में फिर पूछा ।
मुझे काटो तो ख़ून नहीं । और कुछ नहीं सूझा तो फिर बोला , " साहब , ग़लती हो गई । माफ़ कर दीजिए । जाने दीजिए । "
लेकिन उस आदमी ने डपट कर मुझे कहा , " चोरी करने आया है तो चोरी करके जा । "
यह सुनकर मैंने उसकी ओर हैरानी से देखा । कहीं वह पागल तो नहीं ? देखने से तो ऐसा नहीं लग रहा था ।
" यह आप क्या कह रहे हैं , साहब ? ग़रीब आदमी से मज़ाक़ मत कीजिए । मुझे जाने दीजिए । " मैं बोला ।
" स्साले ! चोरी नहीं की तो बहुत मारूँगा और पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दूँगा । " एक-एक शब्द पर ज़ोर देते हुए उसने कहा ।
मैं हैरान-सा कमरे के बीचोंबीच खड़ा था । दिमाग़ काम नहीं कर रहा था । कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है ।
" मुझे जाने दीजिए , साहब । माफ़ कर दीजिए । " मैंने एक बार फिर कोशिश की ।
" तुझे समझ नहीं आ रहा , मैं क्या कह रहा हूँ ? तू चोरी करने आया है न । तो जो भी चीज़ तुझे पसंद है , चुरा और चला जा । " आदमी अपनी बात पर अड़ा रहा ।
सुशांत सुप्रिय |
" मुझे क्या है । " मैंने सोचा । जब यह इतनी ज़िद कर रहा है तो कुछ उठा कर यहाँ से खिसक लेता हूँ । कहीं इसका इरादा बदल गया और इसने पुलिस बुला ली तो ?
" मैंने कमरे में इधर-उधर निगाह दौड़ाई । मेज़ पर एक सुनहरा लाइटर पड़ा था । मैंने उस आदमी की ओर देखा । उसने ऐसा जताया जैसे उसे लाइटर चुराए जाने पर कोई ऐतराज़ नहीं हो । मैंने लपक कर लाइटर उठाया और जेब में डाल लिया । वह दरवाज़े से हट कर कमरे के बीचोंबीच आ गया और मैं खिसकता हुआ दरवाज़े तक पहुँच गया । जो कुछ हो रहा था उस पर मुझे अब भी यक़ीन नहीं आ रहा था ।
" दरवाज़े पर पहुँच कर मुझसे रहा नहीं गया और आख़िर मैंने उस आदमी से पूछ ही लिया , "साहब , एक बात तो बताइए । अगर लोग किसी चोर को पकड़ते हैं तो उसे मारते-पीटते हैं । शोर मचाते हैं । पुलिस को बुलाते हैं । पर आप पहले आदमी होंगे जो अपने ही घर में चोर से चोरी करने के लिए कह रहे हैं । यह बात कुछ समझ नहीं आई । "
" यह सुनकर वह आदमी थोड़ा भावुक हो गया । कहने लगा , " तुम नहीं जानते , पिछले बीस सालों से मैंने अपने ख़ून-पसीने की गाढ़ी कमाई से घर की एक-एक क़ीमती चीज़ ख़रीदी है । फ़्रिज , टी. वी. , सोफ़ा , डाइनिंग-टेबल ...। मैंने इस घर के लिए , अपनी बीवी के लिए क्या नहीं किया । लेकिन वह है कि रात-दिन मेरे हर काम में खोट निकालती रहती है । उसकी बातें सुन-सुन कर मेरे कान पक गए हैं । दिन-रात कहती रहती है , " इस चीज़ में यह ख़राबी है । यह सामान तुम घटिया उठा लाए हो । तुम्हें सामान ख़रीदना आता ही नहीं । तुम किसी लायक हो ही नहीं । बेकार सामान उठा लाते हो । ऐसे कबाड़ को तो कोई चोर भी नहीं चुराएगा ...। "
" यह सुनते ही सारी बात मेरी समझ में आ गई । मैं मुस्कुराया और उस आदमी को कमरे के बीचोंबीच खड़ा छोड़कर मैं धीरे से मकान से बाहर खिसक लिया । रास्ते में देर तक मैं हँसता रहा । " यह कह कर दादा ने ठहाका लगाया और कुर्ते की जेब से एक लाइटर निकाल कर मेज़ पर रख दिया । पम्मा , काले , छोटू और मुच्छड़ एक आवाज़ में बोले , " क्या यह वही लाइटर है , दादा ? "
दादा ने मुस्कुरा कर हाँ में सिर हिलाया ।
मेज़ से लाइटर उठा कर मैंने उसे उलटा-पलटा । उसका सुनहरा रंग अब फीका पड़ चुका था । मैंने जेब से सिगरेट निकाल कर लाइटर की मदद से सुलगा ली । लाइटर अब भी काम कर रहा था ।
" दादा , हमें भी उस घर का पता बताओ न । हम तुम्हारी तरह सिर्फ़ लाइटर नहीं चुराएँगे । " काले ने हँस कर कहा ।
" हाँ , हाँ , दादा । बताओ न । तुम तो हमारी अपनी बिरादरी के हो । तुम्हारे बहाने हमारा भी कुछ भला हो जाएगा । " पम्मा और छोटू भी बोले ।
दादा की आँखें दोबारा दूर कहीं खो गईं । उनमें कई परछाइयाँ तैरने लगीं ।
" लड़को , यह बात सही है कि हम सब एक ही बिरादरी के हैं , पर हमारे धंधे के भी कुछ उसूल होते हैं । जिस आदमी ने मेरे साथ ऐसा भला बर्ताव किया , मैं उसका और नुक़सान नहीं कर सकता । तुम सब कुछ भी कह लो , उसका पता तो मैं किसी को नहीं बताऊँगा । " दादा ने एक-एक शब्द पर बल देते हुए कहा ।
हम सब एक-दूसरे का मुँह देखने लगे ।
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प्रेषक : सुशांत सुप्रिय
A-5001 ,
गौड़ ग्रीन सिटी ,
वैभव खंड ,
इंदिरापुरम् ,
ग़ाज़ियाबाद - 201014
( उ. प्र. )
मो : 8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail.com
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