शुक्लाजी ने यह समाचार भी ग्रहण किया । उन्होंने पूछना चाहा कि अगर ऐसा है तो उनके खाँसने पर अब भी बलगम में ख़ून क्यों आता है । पर जब उन्होंने बेटे-बहू को चहकता हुआ पाया तो अपनी शंका मन में ही दबा ली । किसी की ख़ुशी पर पानी फेरने की ग़लती वे नहीं करना चाहते थे ।
ग़लती
शुक्लाजी ने चश्मा लगाया , थैला उठाया , छड़ी ली और बाज़ार से दूध , सब्ज़ी और अन्य सामान लाने के लिए धीमी चाल से घर से बाहर निकल पड़े । सुबह बेटा आज के काम की लिस्ट पकड़ा गया था । जाते समय कह गया था , " पिताजी , सब ज़रूरी काम हैं । कुछ भूलिएगा नहीं । "
बेटा-बहू सुबह नौ बजे नौकरी पर चले जाते थे । दोनों शाम सात बजे तक अलग-अलग लौटते थे । बिजली-पानी का बिल देना , टेलिफ़ोन का बिल अदा करना , राशन का सामान लाना , दूध लाना , सब्ज़ी लाना जैसे काम शुक्ला जी के ज़िम्मे थे । वे अपनी ओर से पूरी कोशिश करते थे कि सारा काम कर लें । पर सत्तर साल का बूढ़ा शरीर था । थक जाते थे । एकाध बार उन्होंने दबी ज़ुबान से बेटे से कहा भी कि अब इस उम्र में इतना सारा काम उनसे नहीं हो पाता । रिटायर्ड आदमी थे । पूरी उम्र भाग-दौड़ की थी । अब यह शरीर कुछ आराम चाहता था । पर बेटे ने साफ़ कह दिया , " पिताजी , यहाँ रहिएगा तो घर के काम-काज में हाथ तो बँटाना ही पड़ेगा । "
कई बार शुक्लाजी ने सोचा भी कि किसी ' ओल्ड-एज होम ' में चले जाएँ । वहाँ कुछ तो आराम मिलेगा । पत्नी पहले ही चल बसी थी । पर बेटे का मोह मन से जाता ही नहीं था । जैसा भी है , है तो मेरा बेटा ही -- वे सोचते । अपना ख़ून है । अगर आज वह मेरी मुश्किल नहीं समझता है तो शायद उसे पालने-पोसने में मुझ ही से कोई ग़लती हुई होगी । शायद मैं ही उसे सही संस्कार नहीं दे पाया -- यह सोचकर वे अपने मन को समझा लेते ।
शुक्लाजी |
शाम को बेटा-बहू एक्स-रे की रिपोर्ट ले कर घर लौटे तो दोनों बड़े चुप-चुप थे । आख़िर बेटे ने उन्हें बुला कर बहू के सामने कहा , " पिताजी , आपको टी. बी. निकली है । फेफड़े ख़राब हो गए हैं । लम्बा इलाज चलेगा । आप छिप-छिप कर सिगरेट तो नहीं पीते ? " यह सुनकर शुक्लाजी को बहुत ग़ुस्सा आया । क्या बेटे को नहीं पता कि उन्हें सिगरेट से कितनी एलर्जी है ? बचपन में जब उन्होंने एक बार बेटे को छिप कर सिगरेट पीते हुए पकड़ा था तो उसे कितना डाँटा था । और अब बेटा उन्हें यह सब सुना रहा है । पर वे कुछ नहीं बोले । निर्विकार भाव से सब सुन लिया । और उसी रात बहू ने उनके खाने के बर्तन अलग कर दिए ।
पर उस रात एक और घटना घटी । ग्यारह बज रहे थे । वे प्रार्थना ख़त्म करके सोने जा रहे थे कि उन्होंने कमरे के बाहर क़दमों की आहट सुनी । नाइट-गाउन में बेटा उनसे मिलने आया था । उन्हें अचरज हुआ । पर असली आश्चर्य तो अभी बाक़ी था ।
" पिताजी , हम यहाँ आपको कोई आराम नहीं दे पाए । इस उम्र में आपको इतनी भाग-दौड़ करनी पड़ी , इसका मुझे अफ़सोस है । हम से ग़लती हो गई , हमें माफ़ कर दीजिए । कल से बाहर के काम-काज हम ही लोग देख लेंगे । आप समय से दवाइयाँ खाइए और आराम कीजिए । " बेटे ने उनके पैर दबाते हुए कहा । उन्हें यक़ीन नहीं हो रहा था । क्या वे कोई सपना देख रहे थे ? चलो , सुबह का भूला यदि शाम को भी घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते । उन्होंने बेटे को मन से आशीर्वाद दिया ।
अगले दिन शुक्लाजी को काम की कोई लिस्ट नहीं दी गई । काफ़ी सालों बाद उन्होंने दिन भर आराम किया । टी. वी. पर कुछ मनपसंद कार्यक्रम देखे । योगासन पर एक किताब पढ़ी । दिन भर उनका मन बड़ा खिला-खिला रहा । उन्हें लग ही नहीं रहा था कि वे बीमार हैं ।
अगले दो-तीन दिनों तक शुक्लाजी की यही दिनचर्या रही । इस बीच एक शाम उन्होंने बेटे को बहू से यह कहते सुना , " पिताजी का ख़्याल रखो । बेचारे अब न जाने कितने दिनों के मेहमान हैं । वैसे भी जब बचपन में मैं बीमार होता था तो वह रात-रात भर जाग कर मेरी देख-रेख करते थे । अब जब वे बीमार हैं तो उनकी देख-रेख में हमसे कोई ग़लती न हो । कल को हमारा भी बेटा होगा । भगवान न करे , हमें भी ऐसे दिन देखने पड़े तो ? "
इसके बाद एक-दो दिनों तक बहू ने भी शुक्लाजी का पूरा ख़्याल रखा । उन्हें सुबह-शाम दूध और फल आदि मिलने लगे ।
दो-तीन दिनों बाद एक शाम बेटा-बहू दफ़्तर से घर लौटे तो उन्होंने चहकते हुए अचानक शुक्लाजी को बताया कि उन्हें टी.बी.-वी.बी. नहीं हुई है । वे बिल्कुल भले-चंगे हैं । असल में उनके एक्स-रे की रिपोर्ट अस्पताल में ग़लती से किसी दूसरे मरीज़ की एक्स-रे रिपोर्ट से ' मिक्स ' हो गई थी । उनकी एक्स-रे रिपोर्ट आज आई है और उन्हें कुछ नहीं हुआ है ।
" पिताजी , सारी दवाइयाँ बंद कर दीजिए । आप बिल्कुल तंदरुस्त हैं । " बेटे ने हँसते हुए कहा ।
शुक्लाजी ने यह समाचार भी ग्रहण किया । उन्होंने पूछना चाहा कि अगर ऐसा है तो उनके खाँसने पर अब भी बलगम में ख़ून क्यों आता है । पर जब उन्होंने बेटे-बहू को चहकता हुआ पाया तो अपनी शंका मन में ही दबा ली । किसी की ख़ुशी पर पानी फेरने की ग़लती वे नहीं करना चाहते थे ।
अगली सुबह दफ़्तर जाते हुए बेटा उन्हें दिन के काम की लिस्ट पकड़ा गया । चलते-चलते कह गया , " पिताजी , सब ज़रूरी काम हैं । कुछ भूलिएगा नहीं । " शुक्लाजी ने लिस्ट पर निगाह डाली । लम्बी लिस्ट थी । अचानक उन्हें लिखे हुए अक्षर धुँधले लगने लगे ।
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प्रेषक : सुशांत सुप्रिय
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इंदिरापुरम् ,
ग़ाज़ियाबाद - 201014
( उ. प्र. )
मो : 8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail
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मर रही संवेदनाओं पर सटीक टिप्पणी करती कहानी !
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