आज भी यादों में बसी हैं वो चिपटी चोटी बांधे , ढाई मीटर दुपट्टे में लिपटी सयानी होती लडकियाँ जो सारा दिन चूल्हे चौके में समय खपाने के बाद अपना बचा खुचा समय चादर ,मेजपोश ,तकिया के गिलाफ पर स्वीट ड्रीम बुनकर बिताती है ,, वो घर के,बाहर के,खेत खलिहान के सारे काम सम्भालती हैं ,पड़ोसियों की ,राहगीरो की फब्तियाँ झेलती हैं ,खेतों से घर की और आते हुए और घर से खेतो को जाते हुए दोनों हाथो से सर पर बोझ सम्भालते हुए शोह्दों ,मनचलों की गन्दी नजरो से तार-तार होती हुई सहमी सी ,सकुचाई सी अपने काम निपटाती रहती हैं .
वो स्वीट ड्रीम्स बुनती लडकियाँ
मैंने किताबों में गाँव का बड़ा ही मनोहारी वर्णन पढ़ा था ,मैंने बुजुर्गों से गाँव का बड़ा हरा-भरा रुप सुना था गाँव शहर की चकाचौंध से दूर ,शहर के प्रदूषण से दूर,हरे भरे लहलहाते खेत-खलिहान ,बाग-बगीचे,कुऎ,तालाब ,नहर,तरह तरह के पशु-पक्षी,फूल-फल से सजा हुआ "गाँव" कितना प्यारा कितना शांत होता होगा यही सब
मीनाक्षी वशिष्ठ |
हरियाली वहाँ बस खेतों तक ही सीमित रहती थी लोगो की जिन्दगी में तो सूखा ही रहता था ।बिलकुल उदास नीरस जिन्दगी. . . . .!!
वहाँ के पुरुष समाज का तो नही जानती लेकिन जितना महिला समाज को जाना वो स्मृतियाँ यादों में आज भी ताजा हैं ।मैंने करीब से देखा था टूटे सपनों के दर्द से कसकती आँखों को . स्मृतियों में आज भी बसी हुई हैं वो स्वीट ड्रीम बुनती लडकियाँ .
आज भी यादों में बसी हैं वो चिपटी चोटी बांधे , ढाई मीटर दुपट्टे में लिपटी सयानी होती लडकियाँ जो सारा दिन चूल्हे चौके में समय खपाने के बाद अपना बचा खुचा समय चादर ,मेजपोश ,तकिया के गिलाफ पर स्वीट ड्रीम बुनकर बिताती है .
वो घर के,बाहर के,खेत खलिहान के सारे काम सम्भालती हैं ,पड़ोसियों की ,राहगीरो की फब्तियाँ झेलती हैं ,खेतों से घर की और आते हुए और घर से खेतो को जाते हुए दोनों हाथो से सर पर बोझ सम्भालते हुए शोह्दों ,मनचलों की गन्दी नजरो से तार-तार होती हुई सहमी सी ,सकुचाई सी अपने काम निपटाती रहती हैं . . .!
वो बाहर के सारे काम करती है बस शिक्षा के लिये उनका बाहर निकलना संस्कारों के खिलाफ है !
"हाय चार लोग क्या कहेंगे ? फलाने की लड़की कॉलेज जा रही है"""! नौकरी कर रही है ,,कुछ ऊँच नीच हो गई तो . . . .??
बस अनहोनी की आशंका की भेंट चढ़ जाता है उनका जीवन ,,,उनकी आजादी """उनके सपने सब कुछ ....!!
उनके जीवन में कोई रंग हो न हो उनके ड्रीम्स स्वीट हो ना हो पर उनकी कशीदाकारी के धागों में लगभग सारे रंग होते हैं और उनके भावी जीवन के भावी सपनों के स्वीट होने की उम्मीदें भी . . . !
मायके की बंदिशों के बीच पली बढ़ी ये लडकियाँ बड़े अरमानो के साथ ससुराल आती है ! इनकी छोटी-छोटी इच्छाये भी मार दी जाती है ये कहकर कि "जो भी करना हो अपने घर जाकर करना " और ये अपना घर कितना अपना होता है सब जानते हैं यहाँ एक गलती काफी होती है घर वापसी के लिए !! भाग्यशाली होती हैं वो लडकियाँ जिन्हें सच में कोई "अपना घर" नसीब होता है !
खैर. . . . . ,,,
अभाव में पली ये लडकियाँ ढेरों अधूरे सपने लेकर स्वयं को हर कसौटी पर खरा सिद्ध करने की प्रतिज्ञा के साथ ससुराल जाती है ऐसे में जब नया परिवार उनकी सोच के विपरीत मिलता है तो उनके "स्वीट ड्रीम्स" की कसीदाकारी के सारे रंग-बिरंगे धागे एक-एक कर उनकी आँखों के आगे ही उधड़ने लगते हैं ......
और फिर उनके मन का काल्पनिक स्वीट ड्रीम्स से सजा कोना उधड़ी हुई कसीदाकारी की तरह ही बदरंग और बेतरतीव हो जाता है..........!
मीनाक्षी वशिष्ठ
जन्म स्थान ->भरतपुर (राजस्थान )
वर्तमान निवासी टूंडला (फिरोजाबाद)
शिक्षा->बी.ए,एम.ए(अर्थशास्त्र) बी.एड
विधा-गद्य ,गीत ,प्रयोगवादी कविता आदि ।
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