सत्य की रक्षा Satya Ki Raksha हिरण पशु होकर भी अपनी बात के कितने सच्चे हैं .ये प्राण का मोह छोड़कर सत्य की रक्षा के लिए मेरे पास आये हैं.मनुष्य होकर भी मैं कितना नीच और पापी हूँ कि अपना पेट भरने और चार पैसे कमाने के लिए निपराध पशुओं की हत्या करता हूँ .अब से मैं किसी पशु को नहीं मारूंगा .
सत्य की रक्षा
Satya Ki Raksha
पुराण में एक बहुत सुन्दर कथा आती है .एक जंगल में एक तालाब था . उस जंगल के पशु उसी तालाब में पानी पीने आया करते थे .एक दी एक शिकारी उस तालाब के पास आया .उसने तालाब में हाथ - मुँह धोकर पानी पिया .शिकारी बहुत थका था और कई दिन का भूखा था .उसने सोचा - जंगल के पशु उस तालाब के पास पानी पीने अवश्य आयेंगे .यहाँ मुझे सरलता से शिकार मिल जाएगा .तालाब के पास एक बेल के पेड़ में चढ़कर वह बैठ गया .
हिरण और हिरणी |
एक हिरणी थोड़ी देर में तालाब में पानी पीने आई .शिकारी ने हिरणी को मारने के लिए धनुष बाण चढाते देख लिया . वह बोली - भाई शिकारी ! मैं जानती हूँ कि अब मैं भागकर तुम्हारे बाण से बच नहीं सकती , किन्तु तुम मुझ पर दया करो .मेरे दो छोटे - छोटे बच्चे मेरा रास्ता देखते होंगे .तुम मुझे थोड़ी देर की छुट्टी दे दो .मैं तुम्हे वचन देती हूँ कि अपने बच्चों को दूध पिलाकर और उन्हें अपनी सहेली हिरनी को सौंपकर तुम्हारे पास लौट आऊँगी.
शिकारी हँसा . उसे यह विश्वास नहीं हुआ कि यह हिरणी प्राण देने फिर उसके पास लौटेगी .लेकिन उसने सोचा - जब इस प्रकार कहती है तो इसे छोड़ देना चाहिए .मेरे भाग्य में होगा तो मुझे दूसरा शिकार मिल जाएगा .उसने हिरणी को चले जाने दिया .
थोड़ी देर में वहाँ बड़ी सींघों वाला सुन्दर काला किरण पानी पीने आया .शिकारी ने जब उसे मारने के लिए धनुष पर बाण चढ़ाया तो हिरण ने देख लिया और बोला - भाई शिकारी ! अपनी हिरणी और बच्चों से अलग हुए मुझे देर हो गयी है .वे सब घबरा रहे होंगे .मैं उनके पास जाकर उनसे मिल लूँ और उन्हें समझा दूं ,तब तुम्हारे पास अवश्य आऊँगा .इस समय दया करके तुम मुझे चले जाने दो . "
शिकारी बहुत झल्लाया .उसे बहुत भूख लगी थी लेकिन हिरण को उसने यह सोचकर चले जाने दिया कि मेरे भाग्य में भूखा ही रहना होगा तो आज और भूखा रहूँगा.
हिरणी अपने बच्चों के पास गयी .उसने बच्चों को दूध पिलाया ,प्यार किया .फिर अपने सहेली हिरणी को सब बातें बताकर उसने अपने बच्चे सौंपने चाहे .इतने में वहाँ हिरण भी आ गया .उसने भी बच्चों को प्यार किया .बच्चे अपने माता - पिता से अलग होने को तैयार नहीं होते थे .अंत में उनका हठ देखकर हिरण और हिरणी ने उन्हें भी साथ ले लिया .
तालाब के पास आकर हिरण ने शिकारी से कहा - भाई शिकारी ! अब हम आ गए हैं .तुम अब हमें अपने बाणों से मारों और हमारे मांस से अपनी भूख मिटाओ .
हिरण और हिरणी की सच्चाई देखकर शिकारी को बड़ा आश्चर्य हुआ .वह पेड़ पर से नीचे उतर आया और बोला - देखो ! ये हिरण पशु होकर भी अपनी बात के कितने सच्चे हैं .ये प्राण का मोह छोड़कर सत्य की रक्षा के लिए मेरे पास आये हैं.मनुष्य होकर भी मैं कितना नीच और पापी हूँ कि अपना पेट भरने और चार पैसे कमाने के लिए निपराध पशुओं की हत्या करता हूँ .अब से मैं किसी पशु को नहीं मारूंगा .
शिकारी ने अपना धनुष तोड़कर फ़ेंक दिया .उसी समय वहाँ स्वर्ग से एक विमान उतरा .उस विमान को लाने वाले देवदूत ने कहा - शिकारी ! ये हिरण सत्य की रक्षा करने के कारण निष्पाप हो गए हैं ,ये अब स्वर्ग को जायेंगे .तुमने भी आज इन जीवों पर दया की ,इसीलिए तुम भी इनके साथ स्वर्ग चलो .
हिरण - हिरणी और दोनों बच्चों का रूप देवताओं के समान हो गया .वह शिकारी भी देवता बन गया .सत्य और दया की प्रभाव से विमान में बैठकर वे सब स्वर्ग चले गए .
कहानी से शिक्षा -
- सत्य की रक्षा करनी चाहिए .
- निपराध पशुओं की हत्या नहीं करनी चाहिए .
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