हरतालिका तीज व्रत कथा एवं पूजन विधि

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हरतालिका तीज व्रत कथा एवं पूजन विधि Hartalika Teej Vrat Katha Puja Vidhi Mahatva Importance in Hindi हरतालिका तीज व्रत, कथा एवं पूजा विधी हरतालिका तीज व्रत कथा एवं पूजन विधि Hartalika Teej Vrat Katha Puja Vidhi Mahatva Importance in Hindi हरतालिका तीज व्रत, कथा एवं पूजा विधी Hartalika Teej Puja Vidhi in Hindi हरतालिका तीज 2018 हरतालिका तीज २०१८ हरतालिका तीज कब है हरतालिका तीज 2018 हरतालिका तीज व्रत कथा हरतालिका तीज व्रत 2018 हरितालिका व्रत कब है 2018 हरतालिका तीज उद्यापन

हरतालिका तीज व्रत कथा एवं पूजन विधि 
Hartalika Teej Vrat Katha Puja


हरतालिका तीज का यह प्रसिद्ध व्रत भादों मास के शुक्लपक्ष में तृतीया को किया जाता है . तृतीया तिथि को किये जाने के कारण स्त्रित्यों में यह व्रत अधिकतर तीजों नाम से जाना जाता है .कुंवारी लड़कियों में यह व्रत इच्छितवर पाने की आशा से तथा विवाहित स्त्रियाँ सुहाग की रक्षा और पति सुख की कामना करके करती है .प्राचीन काल से चली आ रही है मान्यता है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियाँ पार्वती के समान सुखपूर्वक जीवनयापन करके शिवलोक को प्राप्त करती है .


हरतालिका तीज व्रत का विधान - 

व्रत करने वाला व्यक्ति सूर्योदय के पहले उठे और भगवान् शंकर जी का स्मरण करें .फिर नित्य कर्मों से निवृत होकर शिवालय में जाएँ जहाँ पूजन करना हो और कथा पढ़नी अथवा सुननी हो .यदि हो सके तो शिव मंदिर में शिव पार्वती पूजन के लिए केले के बंदरवार इत्यादि अनेक पुष्पमालाओं से सुसज्जित एक सुन्दर मंडप तैयार कर लें .सुहाग चाहने वाली स्त्रियाँ को शंकर पार्वती की बालू रेत की प्रतिमा बनाकर उसे इस मंडप में स्थापित कर पूजा करनी चाहिए .पूजा में शिव पार्वती से सम्बंधित कोई भी स्त्रोत अथवा शिव चालीसा का पाठ कर सकते हैं .तत्पच्शत एकाग्र चित्त से नीचे लिखी कथा पढ़ें -


हरतालिका तीज व्रत की कथा - 

जिसके पास केशों पर मंदार के पुष्पों की माला शोभा देती है और जिन भगवान् शंकर के मस्तक पर चन्द्र और कंठ में मुंडों की माला पड़ी हुई है ,जो माता पार्वती दिव्य वस्त्रों से तथा भगवान् शंकर दिगंबर वेश धारण किये हैं ,उन दोनों भवानी शंकर को नमस्कार करता हूँ .

कैलाश पर्वत के सुन्दर शिखर पर माता पार्वती जी ने श्री महादेव जी से पूछा - हे महेश्वर ! मुझ से आप वह गुप्त से वार्ता कहिये जो सबके लिए सब धर्मों से भी सरल तथा महान फल देने वाली हो .हे नाथ ! यदि आप भली भाँती प्रसन्न है ,तो आप उसे मेरे सम्मुख प्रकट कीजिये .हे जगत नाथ ! आप यदि मध्य और अंत रहित हैं ,आपकी माया का कोई पार नहीं हैं .आपको मैंने किस भाँती प्राप्त किया है ? कौन से व्रत ,तप या दान के पुण्य फल से आप मुझको वर रूप में मिले ?

श्री महादेव जी बोले-हे देवी! यह सुन,मैं तेरे सम्मुख उस व्रत को कहता हूँ, जो परम गुप्त है, जैसे तारागणों में
हरतालिका तीज
हरतालिका तीज
चन्द्रमा और ग्रहों में सूर्य, वर्गों में ब्राह्मण, देवताओं में गंगा, पुराणों में महाभारत, वेदों में साम और इन्द्रियों में मन श्रेष्ठ है। वैसे ही पुराण और वेद सबमें इसका वर्णन आया है। जिसके प्रभाव से तुमको मेरा आधा आसन प्राप्त हुआ है। हे प्रिये! उसी का मैं तुमसे वर्णन करता हूँ, सुनो-भाद्रपद ( भादों ) मास के शुक्लपक्ष की हस्त नक्षत्र संयुक्त तृतीया (तीज) के दिन इस व्रत का अनुष्ठान मात्र करने से सब पापों का नाश हो जाता है। तुमने पहले हिमालय पर्वत पर इसी महान व्रत को किया था, जो मैं तुम्हें सुनाता हूँ। पार्वती जी बोलीं- हे प्रभु इस व्रत को मैंने किसलिए किया था, यह मुझे सुनने की इच्छा है सो, कृपा करके कहिये। | शंकर जी बोले-आर्यावर्त में हिमालय नामक एक महान पर्वत है, जहाँ अनेक प्रकार की भूमि अनेक प्रकार के वृक्षों से सुशोभित है, जो सदैव बर्फ से ढके हुए तथा गंगा की कल-कल ध्वनि से शब्दायमान रहता है। हे पार्वती जी! तुमने बाल्यकाल में उसी स्थान पर परम तप किया था और बारह वर्ष तक के महीने में जल में रहकर तथा बैशाख मास में अग्नि में प्रवेश करके तप किया। श्रावण के महीने में बाहर खुले में निवास कर अन्न त्याग कर तप करती रहीं। तुम्हारे उस कष्ट को देखकर तुम्हारे पिता को बड़ी चिन्ता हुई। वे चिन्तातुर होकर सोचने लगे कि मैं इस कन्या की किससे शादी करें? इस अवसर पर दैवयोग से ब्रह्मा जी के पुत्र नारद जी वहाँ आये। देवर्षि नारद ने तुम शैलपुत्री को देखा। तुम्हारे पिता हिमालय ने देवर्षि को अर्घ्य, पाद्य, आसन देकर सम्मान सहित बिठाया और कहा-हे मुनीश्वर! आपने यहाँ तक आने का कष्ट कैसे किया, कहिये क्या आज्ञा है? नारद जी बोले-हे गिरिराज! मैं विष्णु भगवान का भेजा हुआ यहाँ आया हूँ। तुम मेरी बात सुनो। आप अपनी कन्या को उत्तम वर को दान करें। ब्रह्मा, इन्द्र, शिव आदि देवताओं में विष्णु भगवान के समान कोई भी उत्तम नहीं है। इसलिए मेरे मत से आप अपनी कन्या का दान भगवान
|
विष्णुको ही दें। हिमालय बोले-यदि भगवान वासुदेव स्वयं ही कन्या को ग्रहण करना चाहते हैं और इस कार्य के लिए ही आपका आगमन हुआ है तो वह मेरे लिए गौरव की बात है। मैं अवश्य उन्हें ही हूँगा। हिमालय का यह आश्वासन सुनते ही देवर्षि नारद जी आकाश में अन्तर्धान हो गये और शंख, चक्र, गदा, पद्म एवं पीताम्बरधारी भगवान विष्णु के पास पहुँचे। | नारद जी ने हाथ जोड़कर भगवान विष्णु से कहा-प्रभु! आपका विवाह कार्य निश्चित हो गया है। इधर हिमालय ने पार्वती जी से प्रसन्नता पूर्वक कहा-हे पुत्री मैंने तुमको गरुड़ध्वज भगवान विष्णु को अर्पण कर दिया है। पिता के इन वाक्यों को सुनते ही पार्वती जी अपनी सहेली के घर गईं और पृथ्वी पर गिरकर अत्यन्त दुखित होकर विलाप करने लगीं। । उनको विलाप करते हुए देखकर सखी बोली-हे देवी! तुम किस कारण से दुःख पाती हो, मुझे बताओ। मैं अवश्य ही तुम्हारी इच्छा पूर्ण करेंगी। पार्वती बोली-हे सखी! सुन, मेरी जो मन की अभिलाषा है, सुनाती हूँ। मैं श्री महादेव जी को वरण करना चाहती हूँ, मेरे इस कार्य को पिताजी ने बिगाड़ना चाहा है। इसलिये मैं निःसन्देह इस शरीर का त्याग करूँगी। पार्वती के इन वचनों को सुनकर सखी ने कहा-हे देवी! जिस वन को तुम्हारे पिताजी ने न देखा हो तुम वहाँ चली जाओ। तब हे देवी पार्वती! तुम अपनी सखी का यह वचन सुन ऐसे ही वन को चली गईं। पिता हिमालय ने तुमको घर पर न पाकर सोचा कि मेरी पुत्री को कोई देव, दानव अथवा किन्नर हरण करके ले गया है। मैंने नारद जी को वचन दिया था कि मैं पुत्री का गरुड़ध्वज भगवान के साथ वरण करूंगा। हाय, अब यह कैसे पूरा होगा? ऐसा सोचकर वे बहुत चिंतातुर हो मूर्छित हो गये। तब सब लोग हाहाकार करते हुए दौड़े और मूर्छा दूर होने पर गिरिराज से बोले कि हमें आप अपनी मूर्छा को कारण बताओ। हिमालय बोले-मेरे दु:ख का कारण यह है कि मेरी रत्नरूपी कन्या को कोई हरण कर ले गया या सर्प डस गया या किसी सिंह या व्याघ्र ने मार डाला है। वह ने जाने कहाँ चली गई या उसे किसी राक्षस ने मार डाला है।

इस प्रकार कहकर गिरिराज दुःखित होकर ऐसे कांपने लगे जैसे तीव्र वायु के चलने पर कोई वृक्ष कांपता है। तत्पश्चात हे पार्वती, तुम्हें गिरिराज साथियों सहित घने जंगल में ढूंढने निकले। सिंह, व्याघ्र, रीछ आदि हिंसक जन्तुओं के कारण वन महाभयानक प्रतीत होता था। तुम भी सखी के साथ भयानक जंगल में घूमती हुई वन में एक नदी के तट पर एक गुफा में पहुँची। उस गुफा में तुम आनी सखी के साथ प्रवेश कर गईं। जहाँ तुम अन्न जल का त्याग करके बालू का लिंग बनाकर मेरी आराधना करती रहीं। उस समय पर भाद्रपद मास की हस्त नक्षत्र युक्त तृतीया के दिन तुमने मेरा विधि विधान से पूजन किया तथा रात्रि को गीत गायन करते हुए जागरण किया। तुम्हारे उसे महाव्रत के प्रभाव से मेरा आसन डोलने लगा। मैं उसी स्थान पर आ गया; जहाँ तुम और तुम्हारी सखी दोनों थीं। मैंने आकर तुमसे कहा हे वरानने, मैं तुमसे प्रसन्न हूँ, तू मुझसे वरदान मांग। तब तुमने कहा कि हे देव, यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो आप महादेव जी ही मेरे पति हों . मैं तथास्तु ऐसा कहकर कैलाश पर्वत को चला गया और तुमने प्रभात होते ही मेरी उस बालू की प्रतिमा को नदी में विसर्जित कर दिया .हे शुभे ! तुमने वहाँ अपनी सखी सहित व्रत का परायण किया .इतने में तुम्हारे पिता हिमवान भी तुम्झे खोजते - खोजते उसी घने बन में आ पहुंचे .उस समय उन्होंने नदी के तट के दो कन्याओं को देखा तो वे तुम्हारे पास आ गए और तुम्हारे ह्रदय से लगाकर रोने लगे .और बोले - बेटी तुम इस सिंह व्याघ्री युक्त जंगल में क्यों चली आई ? तुमने कहा हे पिता ,मैंने पहले ही अपना शरीर शंकर जी को समर्पित कर दिया था ,किन्तु आपने इसके विपरीत कार्य किया .इसीलिए मैं वन में चली गयी .ऐसा सुनकर हिमवान ने तुमसे कहा कि मैंने तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध यह कार्य नहीं करूँगा .तब वे तुम्हे लेकर घर को आये और तुम्हारा विवाह मेरे साथ कर दिया गया .हे प्रिये ,उसी व्रत के प्रभाव से तुमको मेरा अर्धसान प्राप्त हुआ .इस व्रतराज को मैंने भी अभी तक किसी के सम्मुख वर्ण नहीं किया है . 

हे देवी ! अब मैंने तुम्हे यह बताता हूँ कि इस व्रत का यह नाम क्यों पड़ा ? तुमको सखी हरण करके ले गयी थी ,इसीलिए हरतालिका नाम पड़ा.


हरतालिका व्रत विधि - 

पार्वती जी बोली - हे स्वामी ! आपने इस व्रतराज का नाम तो बता दिया किन्तु मुझे इसकी विधि एवं फल भी बताईये कि इसके करने से किस फल की प्राप्ति होती है .तब भगवान शंकर जी बोले - इस स्त्री जाती के अतियुत्तम व्रत की विधि सुनिए .सौभाग्य की इच्छा रखने वाली स्त्रियाँ इस व्रत को विधि पूर्वक करें .उसमें विविध रंगों के उत्तम रेशमी वस्त्र की चाँदनी ऊपर तान दें .चन्दन आदि सुगन्धित द्वव्यों को लेपन करके स्त्रियाँ एकत्र हों . शंख ,भेरी ,मृदंग आदि बजाओ .विधि पूर्वक मंगलाचार करके श्री गौरी शंकर की बालू प्रतिमा को स्थापित करें .फिर भगवान् शंकर पार्वती जी का गंध ,धूप ,पुष्प आदि से विधिपूर्वक पूजन करें .अनेक नैवेद्यों का भोग लगावों और रात्रि का जागरण करें .नारियल ,सुपारी ,जंवारी ,नीबूं ,लौंग ,अनार ,नारंगी आदि ऋतूफलों तथा फूलों को एकत्रित करके धूप ,दीप आदि से पूजन करके कहें - हे कल्याण स्वरुप शिव ! हे मंगलरूप शिव ,हे मंगल रूप महेश्वरी ,हे शिवे ! सब कामनाओं को देने वाली देवी कल्याण रूप तुम्हे नमस्कार है .कल्याण स्वरुप माता पार्वती ,हम तुम्हे नमस्कार करते हैं .भगवन शंकर जी को सदैव नमस्क्कार करते हैं .हे ब्रह्म रूपिणी जगत का पालन करने वाली माँ आपको नमस्कार है .हे सिंहवाहिनी ! मैं सांसारिक भय से व्याकुल हूँ ,तुम मेरी रक्षा करो .हे महेश्वरी ! मैंने इसी अभिलाषा से आपका पूजन किया है .हे पार्वती माता आप मेरे ऊपर प्रसन्न होकर मुझे सुख और सौभाग्य प्रदान कीजिये .इस प्रकार के शब्दों द्वारा उमा सहित शंकर जी का पूजन करें .विधिपूर्वक कथा सुनकर गौ ,वस्त्र ,आभूषण आदि ब्राह्मणों को दान करें .इस प्रकार व्रत करने वाले के सब पाप नष्ट हो जाते हैं . 


भगवान् शिव जी की आरती 

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
भगवान् शंकर जी
भगवान् शंकर जी

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥


विडियो के रूप में देखें - 





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हरतालिका तीज व्रत कथा एवं पूजन विधि Hartalika Teej Vrat Katha Puja Vidhi Mahatva Importance in Hindi हरतालिका तीज व्रत, कथा एवं पूजा विधी हरतालिका तीज व्रत कथा एवं पूजन विधि Hartalika Teej Vrat Katha Puja Vidhi Mahatva Importance in Hindi हरतालिका तीज व्रत, कथा एवं पूजा विधी Hartalika Teej Puja Vidhi in Hindi हरतालिका तीज 2018 हरतालिका तीज २०१८ हरतालिका तीज कब है हरतालिका तीज 2018 हरतालिका तीज व्रत कथा हरतालिका तीज व्रत 2018 हरितालिका व्रत कब है 2018 हरतालिका तीज उद्यापन
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