बातन हाथी पाइए विश्वविद्यालयों में “प्रयोजन मूलक हिन्दी“ विषय पाठ्यक्रमों में शामिल जरूर किया गया है परंतु यह अपर्याप्त और विशद नहीं हैं | संसार पर , अपने शब्दों के जरिए , राजा या विद्वान- लेखक, दो ही राज करते हैं |वाल्टर पेटर ने तो कह ही दिया कि भाषा ही व्यक्ति है |भाषा के बिना , इस दोहे मे सटीक भाव कुछ इस प्रकार व्यक्त किए हैं अनपढ़ अनगढ़ सोइ जौ मानस मति ते दूर | जग में पाप बढ़ाई के होत जात सो क्रूर || ( नीतू सिंघल जी )
बातन हाथी पाइए
विश्वविद्यालयों में “प्रयोजन मूलक हिन्दी“ विषय पाठ्यक्रमों में शामिल जरूर किया गया है परंतु यह अपर्याप्त और विशद नहीं हैं | संसार पर , अपने शब्दों के जरिए , राजा या विद्वान- लेखक, दो ही राज करते हैं |वाल्टर पेटर ने तो कह ही दिया कि भाषा ही व्यक्ति है |भाषा के बिना , इस दोहे मे सटीक भाव कुछ इस प्रकार व्यक्त किए हैं
अनपढ़ अनगढ़ सोइ जौ मानस मति ते दूर |
जग में पाप बढ़ाई के होत जात सो क्रूर || (नीतू सिंघल जी )
भावार्थ : - वह मनुष्य असभ्य व् अशिक्षित है जो बुद्धिहीन है | बुद्धिहीनता संसार में पापों का संवर्द्धन करती हैं
इस संवर्द्धन से संसार पापी तथा वह स्वयं क्रूर= (पशु) होता चला जाता है |
आप में समझदारी ( परिपक्वता ) और संस्कार ( जीवन के आवश्यक नियम , रस ) के विकास, भाषा ही करती है |बच्चों के लिए रेन रेन गो अवे , भारत में अर्थपूर्ण नहीं यह ब्रिटेन में होगी, यहां के लिए अरविन्द गुप्ता जी ने ( जागरण , झनकार , पृष्ठ 3 , 02.09.18 ) पर एक गीत इस तरह सुझाया है :
“ बरसो राम धडाके से , बुढिया मर गई फाके से ,
गरमी पडी कडाके की , नानी मर गई नाके की ,
घबराए मछली रानी, देख नदी में कम पानी ,
पेडो के पत्ते सूखे , धोबी के लत्ते सूखे ,
तब सब मिलकर चिल्लाए , उमड घुमड बादल आए
ओले बरसे टप टप टप ,
सब ने खाए गप , गप , गप |
संक्षेप में , मैं आप को बता दूं कि संस्कृत जो प्राचीन भाषा है , हर एक शब्द अर्थवाही है , जैसे अ= प्रारंभ, ख = आकाश , ग= गमन , च = और , ज = जामाता , और यह सर्वाधिक शरीर की एनाटोमी और शब्दाघात के कारण परम वैग्यानिक है | इसी फार्मूला को संगणित्र की भाषा के सूत्रों में अपनाया गया है| अब तो नेनो तकनीक , रोबो और सेंसर से आर्टीफीसियल इंटेलीजेंस का अनुप्रयोग तेजी से हो रहा है |
अभी कुछ दिन पहले में उद्योग भवन से जनपथ पर राष्ट्रीय कला केन्द्र जा रहा था तो एक पंडित जी का श्लोक जो पेड की नीचे खुले में कथा वाचन प्रारंभ कर रहे थे का प्रथम श्लोक सुनाई दिया कि “ संसार में अनेक ग्रंथ हैं और अनेक विद्यायें हैं , ...” आप जितने से प्रयोजन पूर्ण हो जाए उतना रखिए, ....भाषा का कृषि और संस्कारों से बहुत ताल्लुक है |कल्चर की जनक भी एग्री कल्चर मानी गई है | है न ?
धूमिल ने जब कहा कि :
“ आत्मीयता एक छलावा है , जिसके जरिए आदमी,
दूसरे के पेट में घुस जाता है ,
फिर फाड कर बाहर आता है ,” ( पट्कथा )
टेगोर मोशाय ने जब आचार्य हज़ारी प्रसाद दिवेदी जी से पूचा था कि परशुराम को अवतार क्यों मान लिया और इच्छा मृत्यु प्राप्त भीष्म को नहीं . क्यों ? लोक कल्याण शब्दों के सोच जब सामर्थ्यवान हो जाते हैं तब वे मंत्र , तंत्र और यंत्र बन जाते हैं और वे संजीवनी भी ले आते हैं और जब वे शब्द घटिया सोच के हो जाते हैं तो परिश्रम की पढाई की जगह नकल से प्राप्त प्रथम श्रेणी डिग्री का दिखावा हो जाता है , यही आगे , एक दूसरे के नोचने खोंसने, नीचा दिखाने और और अस्वास्थ्यकर प्रतियोगिता नहीं वरन प्रतिद्व्नितक़ में बदल लेते है , और पतन को पुश्पित और पल्लवित करके , घाव देने व झपटमारी करने लगते हैं, अगर पढकर यदि कुशल मनोरोगी , काबिल पागल और प्रबुद्ध राक्षस बनना है तो इससे न पढना बेहतर है , कहते हैं कि कमान से निकला हुआ तीर औए ज़बान से निकली हुई बात कभी भी वापस लौट कर नहीं आता कौटिल्य ने तो यहां तक कहा था कि कुल्हाडी का घाव तो भर जाता है लेकिन जो घाव बातों से होता है वह कभी भरता नहीं |
धन और बल के एसे अनियमित संग्रह को ही हम माफिया कहते हैं, एसे लोग ही अभिमन्यु को खोटे प्रयोजन से चक्रव्यूह भेदन के लिए ले आते हैं और इन्द्र-नुमा बनकर ,अहिल्या से छल करते हैं , पर चरवाहे की भाषा वह सुरीली तान ( दर्शन) है जो सामाजिक समरसता का उद्घोष करती है और निर्बलों के रक्षार्थ प्रकट हो जाती है |
संस्कार की भाषा , व्यवहार की ,अलग अलग ही रहेंगी जैसे अस्थि का अर्थ हड्डी है ,अस्थि कलश को आप अस्थि कलश ही बोलेंगे |यह मुहावरा तो आपने सुना ही होगा , बात न हाथी पाइए
तेरा ( बडे और छोटे के संदर्भ में ) और सुपुत्र और कुपुत्र ,( अमुक नाम के सुपुत्र् अमुक नाम आगरा के नजदीक 5 किलो चरस व गांजे के साथ पकडे गए हैं, चरस के साथ सुपुत्र हो नहीं सकते ? सुपुत्र वह होता है जो बाप के नाम में यश , संपत्ति , मान , धन में वृद्धि करे, और भाषा में तर्क शास्त्र के नियम का महत्व कि एक वचन को यदि सम्मानजनक् बनाना है तो बहु वचन की क्रिया प्रयोग करेंगे |अरे ( कारक) संबोधन कारक हे ,अरे ओ टंकण के यंत्र , उपयंत्र और एप्स को अपनाइए |डिजिटल सेवी बनिए जैसे डिजी लोकर , डिजी बटुआ , भीम एप आदि |
हिन्दी से इतर भाषी अगर हिन्दी सीखने में पडोसी से वार्ता में यह गलती करते है जैसे “ एक आप जैसा कुत्ता हमें भी चाहिए “ एसी हिन्दी प्रयोग न करें जो नीचे दी गई है :
मैं रविवार के दिन को यहाँ पहुंच जाऊंगा
आप इसके लिए पातृ हैं
वह मेरे शब्दों पर ध्यान नहीं देता
मेरी हिन्दी मात्र भाषा है ,
विद्या ददाति विनियम.
अब तो बहुतों को यह पता नहीं हैं कि काका हाथरसी की जीवनी का क्या नाम हैं और “ अन्य भाषा भाषियो मिलेगा मनमाना सुख हिन्दी के हिंडोले में जरा तो बैठ जाइए , किसने लिखा है |
हिंदी कार्यशाला |
बेंजामिन डिजराइली , आपने बेंजामिन डिज़्राइली का नाम सुना होगा. उन्होंने कहा था- I will not go down to posterity talking bad grammar , यानी वह अपनी आने वाली नस्ल को ख़राब या ग़लत भाषा नहीं देना चाहते. लेकिन आजकल का मिज़ाज कुछ ऐसा हो गया है जिसमें सब कुछ चलता है...
मीर तकी मीर उर्दू के मशहूर शायर मीर तक़ी मीर के बारे में. एक बार वह दिल्ली से लखनऊ जा रहे थे और वह रास्ते भर कुछ नहीं बोले. लखनऊ पहुंचने पर किसी ने पूछा कि आप ने किसी भी सहयात्री से कोई बात नहीं की तो उन्होंने कहा. भई मुझे अपनी ज़बान ख़राब नहीं करनी थी.हिन्दी न सबसे पुरानी भाषा है और बहुत विपुल साहित्य भी नहीं, लेकिन ब्रज भाषा ,और अन्य भाषाओं के मिश्रण से 1857 के आसपास इसे खडी बोली के नाम से हिन्दी जाना गया | इसके बोलने वालों की संख्या ज़्यादा है ,
संस्कृत की व्याकरण की पुस्तक पाणिनी कृत् अष्टाध्यायी हिन्दी का भी आधार है लेकिन क्रिया संक्रमित हुई है| हिन्दी के 2 वयाकरणाचार्य :1 कामता प्रसाद गुरू 2 किशोरीदास वाजपेयी डा हरदेव बाहरी का शब्द कोश प्रयोग करें टाटा मेक्ग्रा हिल्स की वस्तु निष्ठ हिन्दीका भी अध्ययन करें |
यह विषय तो संक्षेप में हैं पर आप अकेले केबिनेट के लिए टिप्पणी और मसौदा लेखन में केवल तभी काम कर सकेंगे जब अच्छा अनुभव होगा| यही स्थिति अनुवाद की दफ्तर और महा विद्यालयों में हैं |सार बात यह है कि सरल हिन्दी जो बोलचाल के हो , जो शब्द चश्मा , चश्मदीद , आदि प्रचलित हैं उंको अपनाते हुए जारी रखें चाहे वे किसी भी भाषा के हों , हिन्दी फिल्मों के योगदान को याद रखना यहां समीचीन रहेगा |इस तरह भाषा के फलक और शब्द भंडार में बढत होगी |
दफ्तरों में जब काम के आंकडे दिए जाते हैं तो बहुत सारे लोग जो आंकडे दे देते हैं , वे बाद में सही नहीं पाए जाते हैं और भ्रमित करने वाले होते हैं |आप चार्ल्स डिकेंस के उपन्यास “ हार्ड टाइम्स “ के पहले अध्याय के वाक्य , “ नथिंग बट फैक्ट्स “ का तब ध्यान रखना |और ओलिवर गोल्ड्स्मिथ के दी विलेज स्कूल मास्टर की तरह न रहकर समय सापेक्ष रहना( मांग के खाना , या “ और न को धन चाहिए बावरि , ब्राह्मण को धन केवल भिक्षा ( वृत्ति नहीं , पेट भरने तक , अपवाद छोड दें तो सनाड्ढ्य आयाचक होते हैं , और जैसा केशव दास की रामचंद्रिका ( दंडक 7 से 14 ) में कहा गया है कि कवि और विद्वानों को श्रीफल ( तालियों ) की अभिलाष होती है ,और जडों को छोडकर सब की ऊर्ध्व गति होती है , याद आया “ अद्य धारा ,सदा नीरा , ........” , कालिदास |
राहत इन्दोरी , कवि के इस छंद के साथ बात,भाषा के सदैव सधे हुए प्रयोग के साथ व्यवहार करने की सीख सहित,अब विराम लूंगा कि ,
भीड में अलग पहचान बनाए रखना ,
घर में खुशियों का दालान बनाए रखना ,
होटों पे मुस्कान बनाए रखना
दिल में हिन्दुस्तान बनाए रखना ||
अर्थात
“ पश्येत शरद: शतम III( अथर्व वेद , कांड 19 , सूक्त 67 ).
जय भारत || जय हिन्द ||
संपर्क - क्षेत्रपाल शर्मा
म.सं 19/117 शांतिपुरम, सासनी गेट ,आगरा रोड अलीगढ 202001
मो 9411858774 ( kpsharma05@gmail.com )
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