मूर्ख गिम्पेल

SHARE:

मूर्ख गिम्पेल Gimpel the Fool मैं मूर्ख गिम्पेल हूँ । मैं खुद को मूर्ख नहीं समझता , बल्कि मैं तो खुद को इसके ठीक उलट ही मानता हूँ । किंतु लोग मुझे मूर्ख कहते हैं । उन्होंने तब मुझे यह नाम दे दिया जब मैं स्कूल में ही पढ़ता था ।

मूर्ख गिम्पेल
Gimpel the Fool


मैं मूर्ख गिम्पेल हूँ। मैं खुद को मूर्ख नहीं समझता , बल्कि मैं तो खुद को इसके ठीक उलट ही मानता हूँ । किंतु लोग मुझे मूर्ख कहते हैं । उन्होंने तब मुझे यह नाम दे दिया जब मैं स्कूल में ही पढ़ता था । वे मुझे सात नामों से छेड़ते थे : उल्लू , गधा , मंदबुद्धि , लल्लू , बेवक़ूफ़ , बुद्धू और मूर्ख । इनमें से अंतिम नाम चल निकला ।
मेरी मूर्खता यह मानी जाती थी कि मैं लोगों की कही बातों पर जल्दी भरोसा कर लेता था । वे कहते , " गिम्पेल , क्या तुम्हें पता है ? पुजारी की पत्नी को बच्चा होने वाला है । " यह सुनकर मैं स्कूल जाने की बजाए पुजारी की पत्नी को देखने चला जाता । किंतु लोगों की बात झूठ साबित होती । मुझे यह बात पहले से कैसे पता हो सकती थी ? मैंने तो कभी पुजारी की पत्नी के पेट की ओर देखा ही नहीं था । क्या यह मूर्खता की निशानी थी ? फिर भी मुझे छेड़ने वाले सब लोग मिल कर मेरा मज़ाक उड़ाते और नाचते-गाते । हमारे यहाँ के रिवाज के मुताबिक बच्चे के जन्म के समय दी जाने वाली किशमिश की बजाए वे सब मेरे हाथों में बकरी का मल रख देते ।
मैं कमज़ोर नहीं था । यदि मैं किसी को थप्पड़ मार देता तो तो उसे दिन में तारे नज़र आ जाते । लेकिन मेरा स्वभाव ऐसा नहीं था । मैं सोचता -- ' जाने दो , यार । ' इसी बात का वे सब फ़ायदा उठाते ।
एक बार मैं स्कूल से घर आ रहा था जब मैंने एक कुत्ते का भौंकना सुना । मैं कुत्तों से डरता-वारता नहीं हूँ लेकिन बेकार में उन्हें छेड़ता भी नहीं हूँ । हो सकता
है , कोई कुत्ता पागल हो गया हो । यदि उसने काट लिया तो आप गए काम से । इसलिए जहाँ से कुत्ते के भौंकने की आवाज़ आ रही थी , मैं उस ओर से दबे पाँव बच कर निकलने की कोशिश करने लगा । लेकिन जब मैंने अपनी निगाह उठाई तो देखा कि सब लोग मुझे देख कर मुस्करा रहे थे । फिर वे सब ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे । दरअसल वहाँ कोई कुत्ता था ही नहीं । कुत्ते की आवाज़ तो एक शैतान बच्चा निकाल रहा था । लेकिन इसमें मेरा क्या क़सूर था ? मुझे कैसे पता चलता कि वह आवाज़ उस बच्चे की थी ? वह आवाज़ तो किसी पागल कुतिया के गुर्राने और भौंकने जैसी थी ।
जब मुझे छेड़ने और मेरा मज़ाक उड़ाने वालों ने यह पाया कि मुझे मूर्ख बनाना आसान था तो सभी इस काम में अपनी किस्मत आज़माने लगे :
--- " गिम्पेल , स्वयं ज़ार ( बादशाह ) इस शहर फ़्रैम्पोल में आ रहे हैं । "
--- " गिम्पेल , चाँद पड़ोस के शहर तुर्बीन में आसमान से नीचे गिर गया । "
--- " गिम्पेल , होडेल फ़रपीस को उसके गुसलखाने के पीछे गड़ा हुआ ख़ज़ाना मिला है । "
और मैं एक सीधे-सादे व्यक्ति की तरह सब की कही बातों पर भरोसा कर लेता । पहली बात यह है कि कुछ भी सम्भव है , ऐसा तो हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी लिखा हुआ है । दूसरी बात यह है कि जब शहर के सभी लोग मुझसे कोई बात कहते तो मेरा उनकी बात पर यक़ीन कर लेना स्वाभाविक था । यदि मैं कभी लोगों से यह कह देता कि तुम लोग मज़ाक कर रहे हो , तो हंगामा हो जाता । वे नाराज़ हो कर कहते , " क्या मतलब है तुम्हारा ? क्या तुम हम सब को झूठा बता रहे हो ? " ऐसी विकट स्थिति में मैं कर ही क्या सकता था ? इसलिए मैं उन सब की कही बातों पर भरोसा कर लेता था । इस से कम-से-कम उन सब का तो कुछ भला होता था ।
मैं एक अनाथ था । मेरा पालन-पोषण करने वाले बुज़ुर्ग बीमार हो कर मृत्यु-शय्या पर पड़ गए । इसलिए लोगों ने मुझे एक नानबाई के यहाँ काम पर लगा दिया । पर वहाँ लोग मुझे तंग करने का कोई मौक़ा हाथ से नहीं जाने देते । वहाँ आने वाली हर महिला या लड़की मुझे एक बार मूर्ख बनाना अपना अधिकार समझती :
--- " गिम्पेल , स्वर्ग में एक मेला लगा है । "
--- " गिम्पेल , पुजारी ने सातवें महीने में ही एक बछड़े को जन्म दिया है । "
--- " गिम्पेल , एक गाय उड़ कर छत पर चली गई है और वहाँ उसने पीतल के अंडे दिए हैं । "
एक बार किसी धार्मिक संस्थान का एक छात्र दुकान पर कुछ ख़रीदने आया । वह बोला -- " गिम्पेल , तुम यहाँ खड़े हो कर अपना सिर खुजला रहे हो जबकि बाहर स्वयं मसीहा अवतरित हो गए हैं । यहाँ तक कि मुर्दे भी अपनी क़ब्रों से उठ खड़े हुए हैं । "
मैंने कहा , " तुम्हारा क्या मतलब है ? मैंने तो ऐसी कोई घोषणा नहीं सुनी । "
इस पर वह कहने लगा , " क्या तुम बहरे हो गए हो ? "
और पास खड़े सभी लोग चिल्लाने लगे , " हमने घोषणा सुनी है । हमने घोषणा सुनी है । "
तभी वहाँ मोमबत्ती बनाने वाला रित्ज़े आ पहुँचा । वह भी कहने लगा ,
" अरे गिम्पेल , तुम्हारे माता-पिता अपनी क़ब्रों से उठ खड़े हुए हैं । वे तुम्हें ढूँढ़ रहे हैं । "
सच्ची बात कहूँ तो मुझे पक्का पता था कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ होगा । लेकिन क्योंकि सभी लोग ऐसा कह रहे थे इसलिए मैंने अपना स्वेटर पहना और देखने के लिए बाहर चला 
मूर्ख गिम्पेल
मूर्ख गिम्पेल
गया । शायद वाकई कुछ हुआ हो । देखने जाने से मेरा क्या नुक़सान होगा ? लेकिन क्या बताऊँ , लोगों ने मेरा कितना मज़ाक उड़ाया ! और तब मैंने क़सम खाई कि मैं किसी बात पर यक़ीन नहीं करूँगा । लेकिन इससे भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ । अलग-अलग तरह की बातें करके लोग मुझे भ्रम में डाल देते । और तब मुझे पता ही नहीं चलता कि उनकी कौन-सी बात सच्ची है और कौन-सी झूठी ।
हार कर मैं सलाह लेने के लिए पुजारी जी के पास पहुँचा । उन्होंने कहा , " धर्म-ग्रंथों में यह लिखा है कि एक घंटे के लिए भी दुष्ट बनने की बजाए सदा के लिए मूर्ख बने रहना कहीं बेहतर है । तुम मूर्ख नहीं हो । दरअसल वे सब मूर्ख हैं क्योंकि उस व्यक्ति से स्वर्ग छिन जाता है जो अपने पड़ोसी को शर्मिंदा करता है । " इसके बावजूद पुजारी जी की बेटी ने मुझे मूर्ख बना दिया । जब मैं पुजारी जी से मिल कर कमरे से बाहर निकला तो उसने पूछा , " क्या तुमने अब तक दीवार को चूमा या नहीं ? "
" नहीं , पर क्यों ? " मैंने कहा ।
" यही रिवाज़ है । पुजारी जी से मिलने के बाद हर बार तुम्हें ऐसा करना है । " वह बोली ।
ख़ैर । ऐसा करने में क्या बुराई थी -- मैंने सोचा । किंतु मेरे ऐसा करते ही वह बेतहाशा हँसने लगी । ज़ाहिर है , उसने मुझे बेवक़ूफ़ बना दिया था ।
अंत में मैं इस सब से इतना तंग आ गया कि मैं यह शहर छोड़ कर कहीं और चला जाना चाहता था । लेकिन वे सब मेरी शादी करवा देने पर तुल गए । वे सब हाथ धो कर मेरे पीछे ही पड़ गए । उनकी बातें सुन-सुन कर मेरे कान पक गए । मुझे पता चला कि जिस महिला से वे मेरी शादी करवाना चाहते थे वह कुँवारी नहीं थी , किंतु उन्होंने दावा किया कि वह एक पवित्र अक्षता है । वह लँगड़ा कर चलती थी किंतु उन्होंने कहा कि वह शर्म के मारे जानबूझ कर ऐसे चलने का नाटक कर रही है । वह एक बिन-ब्याही माँ थी लेकिन उन्होंने कहा कि दरअसल वह बच्चा उसकी हराम की औलाद नहीं था बल्कि उसका भाई था ।
मैंने प्रतिरोध किया , " तुम लोग अपना समय बर्बाद कर रहे हो । मैं उस वेश्या से कभी शादी नहीं करूँगा । " इस पर वे रोष से भर कर बोले , " बात करने का यह कौन-सा तरीका है ? उसे बदनाम करने के आरोप में हम तुम्हें पुजारी से दंडित करवा सकते हैं । " तब मैं समझ गया कि मैं इतनी आसानी से इनसे नहीं बच सकूँगा । मैंने सोचा , ये सब मुझे उपहास का पात्र बनाने पर तुले हुए हैं । लेकिन जब शादी हो जाती है तब पति ही स्वामी होता है । यदि उस महिला को इस शादी से कोई ऐतराज़ नहीं है तो मुझे भी नहीं होना चाहिए । इसके अलावा पूरा जीवन बेदाग़ रह कर नहीं जिया जा सकता , न ही ऐसी उम्मीद करनी चाहिए ।
जब मैं उस महिला से मिलने रेत पर बने उसके मिट्टी के झोंपड़े पर पहुँचा , तब शोर मचाता हुआ वह सारा गिरोह मेरे पीछे था । ऐसा लग रहा था जैसे वे किसी जानवर को सता रहे हों । कुएँ के पास आ कर वे सब रुक गए । वे एल्का से ' पंगा ' लेने से डरते थे । उसका मुँह कभी भी किवाड़ की तरह खुल जाता था और उसकी कड़वी ज़ुबान से सब ख़ौफ़ खाते थे ।
मैं उसके मकान में दाख़िल हुआ । इधर से उधर लटके हुए तारों पर गीले कपड़े सूख रहे थे । वह टब के बगल में बैठ कर नंगे पाँव कपड़े धो रही थी । उसने मख़मल का एक घिसा हुआ गाउन पहन रखा था और अपने बालों का जूड़ा बनाया हुआ था । गंदे कपड़े बदबू से भरे थे ।
ज़ाहिर है , वह मेरे बारे में जानती थी । उसने मुझ पर एक निगाह डाली और कहा , " देखो तो कौन आया है । आ गया वह । बैठो । "
मैंने उसे सब कुछ बता दिया । किसी बात से इंकार नहीं किया ।
" मुझे सच-सच बताओ , " मैंने पूछा , " क्या तुम कुँवारी हो ? क्या वह शैतान लड़का येचिएल वाकई तुम्हारा भाई है ? मुझे धोखे में मत रखना क्योंकि मैं एक अनाथ हूँ । "
" मैं खुद भी अनाथ हूँ , " उसने कहा , " और जो तुम्हें सताने की कोशिश करे उसका अपना बेड़ा ग़र्क हो जाए लेकिन कोई भी मेरी स्थिति का फ़ायदा नहीं उठा सकता । मुझे अन्य चीज़ों के साथ पचास दीनार दहेज़ में चाहिए । नहीं तो वे सब भाड़ में जा सकते हैं । " वह कड़वी बात कहने से भी परहेज़ नहीं करती थी ।
" दहेज़ तो वधू पक्ष की ओर से दिया जाता है , वर पक्ष की ओर से नहीं । " मैंने कहा ।
इस पर वह बोली , " मेरे साथ सौदेबाज़ी मत करो । या तो ' हाँ ' कहो या ' ना ' -- यदि ' ना ' कहा , तो तुम जहाँ से आए हो वहीं लौट जाओ । "
मैंने सोचा , यह नहीं मानेगी । लेकिन हमारा शहर केवल ग़रीबों से भरा हुआ नहीं है । वे सब लोग एल्का की सभी शर्तें मान गए और शादी की तैयारी होने लगी । उस समय इलाक़े में पेचिश महामारी-सी फैली हुई थी । ब्याह की रस्म क़ब्रिस्तान के दरवाज़े पर मुर्दों को स्नान कराने वाली झोंपड़ी के पास सम्पन्न हुई । सब शराब पी कर धुत्त हो गए । ब्याह की रस्मों के दौरान मैंने धर्म-गुरु को यह पूछते हुए सुना -- " वधू विधवा है या तलाकशुदा महिला है ? " और छोटे पादरी की पत्नी ने वधू की ओर से उत्तर दिया -- " विधवा और तलाकशुदा , दोनों ही । " यह मेरे लिए एक दुखद पल था । किंतु मैं कर ही क्या सकता था ? क्या मैं शादी के मंडप से भाग जाता ?
वहाँ खूब नाच-गाना हुआ । दादी की उम्र की एक वृद्धा एक हाथ में पेस्ट्री पकड़े मेरे साथ नाचती रही। पुजारी ने वधू के गुज़रे हुए माता-पिता की स्मृति में प्रार्थना की । स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों ने हवा में कुरंड उछाले । धर्म-गुरु के उपदेश के बाद हमें ढेर सारे उपहार दिए गए : आटा गूँधने का परात , नूडल्स बनाने का बोर्ड , बालटी , झाड़ू और घर में काम आने वाली अनेक चीज़ें । फिर मैंने देखा कि दो तगड़े युवक बच्चे का ' पालना ' उठा कर ला रहे थे । " अभी इसकी क्या ज़रूरत है ? " मैंने पूछा ।
वे बोले , " तुम इसके बारे में अपना दिमाग़ ख़र्च नहीं करो । इसकी ज़रूरत भी पड़ेगी । "
मुझे लगा जैसे मुझे ठगा जा रहा है । किंतु फिर मैंने सोचा , कोई बात नहीं । जो होगा , देखा जाएगा । पूरा का पूरा शहर तो पागल नहीं हो सकता ।

( दो )

रात में मैं अपनी पत्नी के पास अपने घर आया । लेकिन वह मुझे घर में घुसने ही न दे ।
" सुनो , क्या इसीलिए उन्होंने हमारी शादी करवाई है ? " मैंने पूछा ।
" मेरी माहवारी शुरू हो गई है । " उसने कहा ।
" लेकिन कल ही तो तुम्हें पारम्परिक धार्मिक स्नान के लिए ले जाया गया था । और ऐसी अवस्था में तो यह सम्भव नहीं है । " मैं बोला ।
" आज और कल में अंतर है । कल कल था और आज आज है । यह बात तुम्हारी समझ में नहीं आती तो न सही । " उसका जवाब था ।
संक्षेप में कहूँ तो मैं इंतज़ार करता रहा । चार महीने बीत गए । और अचानक एक दिन पता चला कि कि मेरी पत्नी गर्भवती हो गई थी । शहर के लोग मुँह छिपा कर हँसते थे । लेकिन मैं कर ही क्या सकता था ?
इस अवस्था में मेरी पत्नी को असह्य दर्द होता और वह अपने नाखूनों से दीवारों को खरोंचती ।
एक दिन वह चिल्लाई , " गिम्पेल , मेरा समय आ गया है । मैं जा रही हूँ । मुझे माफ़ कर 
देना । "
घर महिलाओं से भर गया । वे पतीलों में बहुत-सा पानी उबालने लगीं । मेरी पत्नी की कराहें और चीख़ें दूर तक सुनी जा सकती थीं ।
प्रार्थना-गृह में जा कर प्रार्थना करने के अलावा और कोई चारा न था । मैंने वही किया ।
शहर के लोगों को भी शायद मेरा ऐसा करना पसंद आया । मैं एक कोने में प्रार्थना करता रहता और वे सब मुझे देखकर सिर हिलाते । उनमें से कुछ ने यह भी कहा , " ठीक है , ठीक है । प्रार्थना करते रहो । प्रार्थना करने मात्र से कोई स्त्री गर्भवती नहीं होती ! "
मेरी पत्नी ने लड़के को जन्म दिया । शुक्रवार के दिन प्रार्थना-गृह में पुजारी जी ने मेज पर हाथ मारते हुए घोषणा की : " धनाढ्य श्री गिम्पेल अपने पुत्र के जन्म की खुशी में सभी लोगों को भोज पर आमंत्रित करते हैं । " प्रार्थना -गृह में मौजूद सभी लोगों में हँसी की लहर दौड़ गई । मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया , किंतु मैं कुछ भी नहीं कर सकता था । आख़िर पुत्र के ख़तना-सम्मान और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों को पूरा करने की ज़िम्मेदारी मुझ पर ही तो थी ।
लगभग पूरा शहर ही भोज के लिए उमड़ पड़ा । भीड़ देखते ही बनती थी । महिलाएँ अपने साथ खाने का चटपटा सामान भी लाईं । धर्मशाला से बीयर का बंदोबस्त भी कर लिया गया था । मैंने भी सब लोगों के साथ मिल कर खाने-पीने का भरपूर आनंद लिया । सब ने मुझे बधाई दी । उसके बाद ख़तना-समारोह सम्पन्न हुआ । फिर मैंने लड़के का नाम अपने पिता के नाम पर रखा । ईश्वर मेरे पिता की आत्मा को शांति दे ।
जब सभी अतिथि चले गए और मैं अपनी पत्नी के साथ अकेला रह गया , तब उसने मुझे बुलाया ।
" गिम्पेल , तुम्हें साँप क्यों सूँघ गया है ? " वह बोली ।
" मैं क्या बोलूँ ? " मैंने जवाब दिया । " तुमने मेरे साथ अच्छा मज़ाक किया है ! यदि मेरी माँ को पता चलता तो वह दूसरी बार मर जाती । "
" क्या तुम पागल हो गए हो ? " वह बोली ।
" तुम मुझे इस तरह मूर्ख कैसे बना सकती हो , " मैंने पूछा । " अपने पति को तुम इतना बड़ा धोखा कैसे दे सकती हो ? "
" बात क्या है ? " उसने कहा । " तुमने कौन-सी ऊटपटाँग कल्पना कर ली है ? "
मैं समझ गया कि अब मुझे खुल कर बात करनी पड़ेगी ।
" क्या एक अनाथ व्यक्ति के साथ तुम्हें ऐसा व्यवहार करना
चाहिए ? " मैं बोला । " यह मेरा लड़का नहीं है । यह हराम की औलाद है । "
" यह तुम्हारा ही लड़का है । इस बेवक़ूफ़ी को अपने ज़हन से निकाल दो । " उसने शांतिपूर्वक कहा ।
" यह मेरा लड़का कैसे हो सकता है ? " मैंने दलील दी । " यह हमारे ब्याह के सत्रह हफ़्ते बाद ही पैदा हो गया । "
तब उसने मुझसे कहा कि वह समय से पहले पैदा हो गया बच्चा था ।
मैं बोला , " यह बच्चा समय से कुछ ज़्यादा ही पहले पैदा नहीं हो गया ? "
इस पर उसने कहा कि उसकी नानी ने भी उसकी एक मौसी को समय से इतना पहले ही जन्म दे दिया था । उसने दावा किया कि वह स्वयं ठीक अपनी नानी पर गई थी । उसने अपनी बात के पक्ष में इतनी क़समें खाईं कि मैं चुप हो गया । हालाँकि मुझे उसकी बातों पर यक़ीन नहीं था पर अगले दिन जब मैंने स्कूल के एक शिक्षक से इसके बारे में बात की तो उस शिक्षक ने मुझे बताया कि आदम और हव्वा के साथ भी यही हुआ था । जब वे सोने गए तो वे दो थे । लेकिन जब वे सो कर उठे तो उनके साथ उनके दो बच्चे भी थे ।
इस तरह की दलीलें दे कर उन्होंने मुझे चुप कर दिया । लेकिन कौन जाने , ऐसी चीज़ों की वास्तविकता क्या होती है ?
धीरे-धीरे मैं अपना दुख भूलने लगा । मैं बच्चे से खूब प्यार करने लगा और वह भी मुझसे प्यार करता था । वह जैसे ही मुझे देखता , मेरी ओर अपने नन्हें-नन्हें हाथ हिलाता और चाहता कि मैं उसे गोद में उठा लूँ । जब उसके पेट में दर्द होता तो केवल मैं ही उसे सम्भाल पाता । जब उसके दाँत निकलने लगे तो मैंने उसके काटने के लिए प्लास्टिक का एक छल्ला और एक टोपी ला दी । उसे हर किसी की नज़र लग जाती थी और तब मुझे उसकी नज़र उतारने के लिए कई टोटके करने पड़ते थे । मैं एक बैल की तरह काम में जुता रहता । आप तो जानते ही हैं कि जिस घर में छोटा बच्चा होता है , वहाँ ख़र्चे भी बढ़ जाते हैं ।
मैं आपसे झूठ नहीं बोलना चाहता ; मैं अपनी पत्नी एल्का से नफ़रत नहीं करता था , हालाँकि वह मुझे भला-बुरा कहती रहती । उसके बारे में क्या कहूँ ! जब वह घूर कर देखती थी तो मेरी बोलती बंद हो जाती थी । और अकसर उसके मुँह से ऐसी गालियाँ निकलतीं कि कान शर्मा जाएँ । किंतु फिर भी मैं उसे चाहता
था । उसके शब्द मुझे गहरे घाव दे जाते लेकिन फिर भी मुझे उसकी वाणी से स्नेह था ।
शाम में मैंने उसे सफ़ेद और भूरी डबलरोटी ख़रीद कर दी । साथ ही मैंने उसे पोस्त के बीजों से बना व्यंजन भी दिया जिसे मैंने बेकरी में खुद बनाया था । यहाँ तक कि एल्का के लिए मैंने चोरी भी की और जब जो भी मिला , उस पर मैंने हाथ साफ़ किया -- फ़्रांसीसी बिस्किट , किशमिश , बादाम , केक आदि । मुझे उम्मीद है कि मुझे ऐसे काम के लिए माफ़ कर दिया जाएगा । मैंने महिलाओं के उन बर्तनों में से भी सामान चुराया जिन्हें वे शनिवार को बेकर के चूल्हे में गरम करने के लिए वहाँ छोड़ जाती थीं । मैं उन बर्तनों में से मांस के टुकड़े , पुडिंग , मुर्ग़ी की टाँग या सिर , अँतड़ियों का टुकड़ा आदि जल्दी से चुरा लेता था । एल्का यह सब खाती और तंदरुस्त और रूपवती होती जाती ।
मुझे पूरे हफ़्ते अपने घर से दूर नानबाई की दुकान पर ही सोना पड़ता । शुक्रवार की रात में जब मैं अपने घर पहुँचता तो एल्का हमेशा किसी-न-किसी चीज़ का बहाना बना देती । कभी उसके सीने में जलन हो रही होती , या पेट में टीसें उठ रही होतीं या लगातार हिचकियाँ आ रही होतीं या उसे असह्य सिर-दर्द हो रहा होता । महिलाओं के बहानों के बारे में तो आप जानते ही हैं । मैं इन बहानों से पीड़ित रहता । यह मेरे लिए मुश्किल समय था । ऊपर से हराम की औलाद उसका वह भाई बड़ा होता जा रहा था । वह मुझे तंग करता रहता और जब मैं उसे पीटना चाहता तो एल्का मुझे इतनी विष-बुझी बातें कहती कि मेरी आँखों के सामने एक हरी धुँध तैरने लगती । दिन में दस बार वह मुझे तलाक़ दे देने की धमकी देती रहती । मेरी जगह कोई और आदमी होता तो वह बिना बताए वहाँ से हमेशा के लिए खिसक जाता । पर मैं उस क़िस्म का आदमी हूँ जो बिना कुछ बोले सब कुछ सह लेता है । आदमी क्या कर सकता है ? ईश्वर ने ही कंधे भी दिए हैं और बोझ भी ।
एक रात बेकरी में दुर्घटना हो गई । वहाँ रखा चूल्हा फट गया और वहाँ आग लगते-लगते बची । वापस घर जाने के सिवाय करने के लिए और कुछ नहीं था , इसलिए मैं घर चला गया । मैंने सोचा , क्यों न हफ़्ते के बीच में अपने घर के बिस्तर पर सोने का मज़ा लिया जाए । मैं किसी को भी जगाना नहीं चाहता था , इसलिए मैं दबे पाँव घर में दाखिल हुआ । अंदर आने पर मुझे एक व्यक्ति की नहीं बल्कि दो लोगों के खर्राटों की आवाज़ें सुनाई दी । एक खर्राटे की आवाज़ पतली-सी थी जबकि दूसरी खर्राटे की आवाज़ किसी बैल की आवाज़ जैसी थी । क्या बताऊँ , मुझे यह सब पसंद नहीं आया । बिल्कुल पसंद नहीं आया ।
मैं चल कर बिस्तर के पास गया किंतु अचानक मैं पीछे मुड़ गया , जैसे मुझे किसी बिच्छू ने काट लिया हो । एल्का के बगल में एक आदमी सोया हुआ था । मेरी जगह कोई और होता तो वहाँ क़हर टूट पड़ता और इतना शोर-शराबा होता कि पूरा शहर जग जाता । पर मुझे लगा कि यदि मैंने हंगामा किया तो शिशु जग जाएगा । ऐसी बात के लिए बेकार में किसी बच्चे को क्यों जगाया जाए , मैंने सोचा । तो ठीक है । मैं वापस बेकरी पर चला गया और आटे की एक बोरी पर लेट कर मैंने अपनी टाँगें सीधी कीं । पर सुबह होने तक मैं जगा रहा । मेरी देह में कँपकँपी होने लगी जैसे मुझे मलेरिया हो गया हो । " मूर्ख बनाए जाने की भी हद होती है , " मैंने खुद से कहा । " गिम्पेल सारा जीवन मूर्ख नहीं बना रहेगा । गिम्पेल जैसे मूर्ख व्यक्ति की मूर्खता की भी एक सीमा है । "
सुबह मैं सलाह लेने के लिए धर्म-गुरु के पास गया । पूरे शहर में इस बात का शोर मच गया । उन्होंने एल्का को बुलाया । वह अपने बच्चे को गोद में लिए हुए आई । और आपको क्या लगता है , उसने क्या किया होगा ? उसने इस आरोप को सिरे से नकार दिया , पूरा ख़ारिज कर दिया । " इस आदमी का दिमाग़ ख़राब हो गया है , " उसने कहा । " मुझे सपनों और भविष्यवाणियों के बारे में कुछ नहीं पता है । " वे उस पर चीखे , उन्होंने उसे चेतावनी दी और मेज पर हथौड़े मारे लेकिन वह अपनी बात पर अड़ी रही : यह एक झूठा आरोप था , उसने कहा ।
कसाइयों और घोड़ों के व्यापारियों ने एल्का का पक्ष लिया । बूचड़खाने में काम करने वाला एक लड़का मेरे पास आ कर बोला , " तुम हमारी निगाह में हो , हमारे निशाने पर हो ! " इस बीच बच्चा रोने लगा और उसने अपना जांघिया गंदा कर लिया । धर्म-गुरु की अदालत एक पवित्र जगह थी जहाँ धार्मिक महत्व का सोने से जड़ा वह लकड़ी का बक्सा मौजूद था जिसमें दो शिलाओं पर दस आज्ञाएँ लिखी थीं । इसलिए उन्होंने एल्का को वापस भेज दिया ।
मैंने धर्म-गुरु से पूछा , " मैं क्या करूँ ? "
" तुम्हें अभी उसे तलाक़ देना होगा , " उन्होंने कहा ।
" और यदि वह इंकार कर देती है , तो ? " मैंने पूछा ।
उन्होंने कहा , " तुम तलाक़ देने के दस्तावेज़ एल्का को भेजो । तुम्हें बस यही करना है । "
मैंने कहा , " ठीक है , धर्म-गुरु । मुझे इसके बारे में सोचने दें । "
" इसमें सोचने की कोई बात नहीं , " उन्होंने कहा । " तुम उसके साथ एक ही छत के नीचे नहीं रह सकते । "
" और यदि मैं बच्चे से मिलना चाहूँ , तो ? " मैंने पूछा ।
" उसे जाने दो , वह वेश्या है , " उन्होंने कहा , " उसके साथ ही उसकी हराम की औलादों को भी जाने दो । "
धर्म-गुरु ने जो निर्णय दिया उसके मुताबिक मुझे कभी भी उसके घर की चौखट नहीं लाँघनी थी । जब तक मैं जीवित था , कभी नहीं ।
दिन में तो मुझे इस निर्णय से कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ा । मैंने सोचा : यह तो होना ही था । इस फोड़े को फूटना ही था । लेकिन रात में जब मैं बोरियों पर कमर सीधी करने लगा तो यह सब याद करके मेरा मुँह कसैला हो गया । मुझे बहुत शिद्दत से एल्का और बच्चे की याद आने लगी । मैं नाराज होना चाहता था , पर मेरा दुर्भाग्य देखिए कि मुझमें वह चीज़ है ही नहीं जो मुझे वाकई नाराज करती ।
मेरे विचार इस तरह से आए -- पहली बात यह है कि कभी-कभार चूक तो हो ही जाती है । ग़लतियाँ किए बिना आप जीवन नहीं जी सकते । शायद एल्का के साथ लेटे लड़के ने उसे तोहफ़े वग़ैरह देकर उसे फुसलाया हो । फिर स्त्रियाँ जल्दी बहल जाती हैं और उनमें सोचने-समझने की कमी होती है । इसलिए वह लड़के की बातों में आ गई होगी । और क्योंकि एल्का इस इल्ज़ाम को पूरी तरह नकार रही है , इसलिए यह भी सम्भव है कि मैं काल्पनिक चीज़ें देख रहा था । हम कभी-कभार काल्पनिक चीज़ें भी देखते हैं । कई बार आपको लगता है कि आपने एक छवि या पुतला या कुछ और देखा , पर पास आने पर आप पाते हैं कि वहाँ कुछ भी नहीं था । वहाँ कोई भी चीज़ मौजूद नहीं थी । यदि ऐसी बात हुई है तो मैं एल्का के साथ ज़्यादती कर रहा हूँ । यह सोच कर मैं रोने लगा । मैं सुबकने लगा जिससे मेरे बगल में रखी आटे की बोरी गीली हो गई ।
सुबह मैं धर्म-गुरु के पास गया और मैंने उन्हें बताया कि मुझसे ग़लती हो गई थी । धर्म-गुरु अपनी क़लम से कुछ लिखते हुए बोले कि यदि ऐसा है तो उन्हें पूरे मामले पर पुनर्विचार करना पड़ेगा । जब तक वे ऐसा नहीं कर लेते , मुझे अपनी पत्नी एल्का के पास जाने की अनुमति नहीं थी । किंतु मैं उसे किसी संदेशवाहक के माध्यम से डबलरोटी और रुपए-पैसे भेज सकता था ।

( तीन )

नौ महीने बीत गए । तब जा कर सभी धर्म-गुरु इस मुद्दे पर सहमत
हुए । उनमें बहुत सारा पत्राचार हुआ । मुझे इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि ऐसे किसी मामले में इतनी ज़्यादा विद्वत्ता की ज़रूरत होगी ।
इस बीच एल्का ने एक बच्ची को जन्म दिया । रविवार के दिन मैं यहूदी प्रार्थना-भवन में गया और बच्ची को आशीर्वाद देने की रस्म अदा की । उन्होंने मुझे मूसा-संहिता के पास बुलाया और मैंने उस बच्ची का नाम अपनी सास के नाम पर रखा । ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे ।
शहर के बदमाश और बड़बोले लोग बेकरी में आ कर मुझे छेड़ते
रहते । मेरी मुश्किल और मेरा दुख सारे फ़्रैम्पोल शहर के लिए चुटकला बन गया । किंतु मैंने यह प्रतिज्ञा कर ली कि मैं हमेशा बताई गई बात के प्रति आस्था रखूँगा । आस्था नहीं रखने का क्या फ़ायदा ? आज आप अपनी पत्नी में आस्था नहीं रखेंगे ; कल आप स्वयं ईश्वर पर भरोसा नहीं करेंगे ।
एल्का का एक पड़ोसी मेरे यहाँ काम सीख रहा था । उसके माध्यम से मैं एल्का को हर रोज़ मक्की या गेहूँ की डबलरोटी , पेस्ट्री का टुकड़ा आदि भेज
देता । यदि कभी मौक़ा मिलता तो पुडिंग या खाने की जो भी अन्य अच्छी चीज़ें मेरे हाथ लगतीं , मैं उन्हें एल्का के लिए भेज देता । वह एक अच्छा लड़का था , और अकसर वह मेरी दी गई चीज़ों के अलावा एल्का को खुद से भी कुछ-न-कुछ दे आता । पहले तो उसने मुझे खिझा दिया था जब वह मेरी नाक पर चिकोटी काट लेता या छाती की उँगलियों में हड्डियाँ चुभा देता । लेकिन जब वह मेरे घर में मेरी बीवी को खाने का सामान देने जाने लगा तो वह दयालु और मित्रवत् हो गया । वह मुझसे कहता , " अरे गिम्पेल , तुम्हें बहुत शरीफ़ पत्नी और दो प्यारे बच्चे मिले हैं । तुम उनके योग्य नहीं हो । "
" लेकिन लोग तो मेरी पत्नी के बारे में तरह-तरह की बातें करते हैं ।" मैंने कहा ।
" अरे , उन सब की ज़ुबान लम्बी है , " उसने कहा , " वे सब बकवास करते हैं । उनकी बातों की वैसे ही अनदेखी कर दो जैसे तुम पिछली सर्दियों की ठंड की उपेक्षा कर देते हो । "
एक दिन धर्म-गुरु ने मुझे बुलाया और पूछा , " क्या तुम निश्चित रूप से यह कह सकते हो कि अपनी पत्नी पर तुम्हारा शक ग़लत था ? "
मैंने कहा , " हाँ , मैं निश्चित रूप से यह कह सकता हूँ । "
" लेकिन तुमने कहा था कि तुमने स्वयं अपनी आँखों से किसी ग़ैर-मर्द को उसके बगल में बिस्तर पर लेटे हुए देखा था । "
" वह ज़रूर परछाईं रही होगी , " मैंने कहा ।
" किस चीज़ की परछाईं ? "
" मुझे लगता है , वह किसी शहतीर की परछाईं रही होगी । "
" तब तुम अपने घर जा सकते हो । तुम धर्म-गुरु यनोवर को धन्यवाद दो । उन्होंने धर्म-ग्रंथ मैमोनाइड्स में एक गूढ़ उल्लेख ढूँढ़ निकाला जो तुम्हारे पक्ष में था । " यह सुनकर मैंने धर्म-गुरु का हाथ पकड़ा और उसे चूम लिया ।
मैं उसी समय घर की ओर भाग जाना चाहता था । अपनी पत्नी और बच्चों से इतने समय तक दूर रहना कोई छोटी बात नहीं थी । फिर मैंने सोचा , क्यों न मैं इस समय काम पर चला जाऊँ , और शाम के समय घर जाऊँ । मैंने किसी से कुछ नहीं कहा , हालाँकि जहाँ तक मेरे हृदय का सम्बन्ध था , वह किसी पुण्य-दिवस-सा महसूस कर रहा था । स्त्रियाँ मुझे रोज़ की तरह छेड़ती रहीं , पर मेरे मन ने उन्हें कहा -- अपनी ओछी बातें करती रहो ! सच्चाई बाहर आ चुकी है , जैसे पानी पर तेल की परत । धर्म-ग्रंथ मैमोनाइड्स में मेरे जैसे मामले को सही बताया गया है , इसलिए जो मैं कर रहा हूँ , वह सही है ।
रात में मैंने आटा गूँधा और उसमें ख़मीर उठने के लिए उसे ढँक
दिया । फिर मैंने अपने हिस्से की डबलरोटी और आटे की एक छोटी बोरी ली और घर की ओर चल पड़ा । वह पूर्णिमा की रात थी और चाँद पूरा गोल था । सितारे भी आकाश में चमक रहे थे । वीराने में यह ऐसा दृश्य था जो आत्मा को भयभीत कर रहा था । मैंने अपनी चाल तेज़ की । तभी मेरे सामने से एक लम्बी छाया तेज़ी से गुज़री । वह जाड़े का समय था और रास्ते में ताज़ा बर्फ़ गिरी हुई थी । मेरी इच्छा एक गीत गुनगुनाने की हुई , लेकिन मैं रात में आस-पास घरों में रहने वाले लोगों को नींद से जगाना नहीं चाहता था । फिर मुझे सीटी बजाने की इच्छा हुई , लेकिन मुझे याद आया कि रात में सीटी बजाने से भूत-प्रेत जग जाते हैं । इसलिए मैं चुपचाप जितनी तेज़ी से हो सकता था , अागे चलता गया ।
खेत-खलिहानों और आँगनों में मौजूद कुत्ते मुझे वहाँ से गुज़रता देख कर भौंकने लगे , किंतु मैंने सोचा : भाड़ में जाओ ! तुम सब केवल कुत्ते हो । पर मैं एक आदमी हूँ । एक अच्छी पत्नी का पति हूँ । होनहार बच्चों का पिता हूँ ।
जैसे-जैसे मैं अपने घर के करीब पहुँचता गया , मेरा दिल ऐसे तेज़ी से धड़कने लगा जैसे मैं कोई अपराधी हूँ । मुझे किसी प्रकार का डर नहीं लग रहा था लेकिन मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था ! ख़ैर , अब पीछे नहीं लौटा जा सकता था । मैंने मुख्य द्वार का कुंडा खोला और भीतर चला गया । एल्का सोई हुई थी । मैंने शिशु के पालने की ओर देखा । खिड़की बंद थी किंतु चाँदनी झिर्रियों में से भीतर आ रही थी । मैंने शिशु का सलोना चेहरा देखा और उसे देखते ही मुझे एक सुखद अहसास हुआ -- मुझे उसी समय उसके अंग-अंग से स्नेह हो गया ।
फिर मैं बिस्तर के करीब आया । और मैंने पाया कि मेरी बेकरी में काम सीखने वाला लड़का एल्का के बगल में सोया हुआ था । चाँद उसी समय जैसे बुझ गया । चारों ओर कालिमा छा गई और मैं काँपने लगा । मेरे दाँत आपस में बजने लगे । डबलरोटी मेरे हाथों से नीचे गिर गई । तभी मेरी पत्नी जग गई और उसने पूछा , " वहाँ कौन है ? "
" मैं हूँ । " मैंने धीरे से कहा ।
" गिम्पेल ? " उसने पूछा । " तुम यहाँ कैसे आए ? मुझे लगा , तुम्हारे यहाँ आने पर पाबंदी है ? "
" धर्म-गुरु ने इजाज़त दे दी है । , " मैंने जवाब दिया और ऐसे काँपा जैसे मुझे बुखार हो गया हो ।
" देखो गिम्पेल , " वह बोली , " जल्दी से बाहर छप्पर वाली जगह पर चले जाओ और बकरी को देखो कि वह ठीक है या नहीं । लगता है जैसे वह बीमार है । " मैं आपको बताना भूल गया कि हमारे पास एक बकरी थी । जब मुझे पता चला कि वह बीमार थी , मैं उसे देखने अहाते में गया । वह एक बहुत प्यारी बकरी थी । मैं तो उसे इंसान जैसा समझता था ।
झिझकते क़दमों से मैं बाड़े तक गया और उसका दरवाज़ा खोला । बकरी अपने चारों पैरों पर ठीक-ठाक खड़ी थी । मैंने उसे चारों ओर से टटोल कर देखा , उसके सींगों और थनों की जाँच की और सब कुछ दुरुस्त पाया । शायद उसने पौधों की बहुत ज़्यादा खाल खा ली थी । " शुभ रात्रि , प्यारी बकरी , " मैंने कहा । " ठीक से रहना । " और बकरी ने जवाब में ' में ऽऽऽ' कहा , जैसे मेरी शुभकामनाओं के लिए वह मुझे ' शुक्रिया ' कह रही हो ।
मैं एल्का के पास वापस लौटा । मेरी बेकरी में काम करने वाला प्रशिक्षु अब बिस्तर से ग़ायब हो चुका था ।
" वह लड़का कहाँ है ? " मैंने पूछा ।
" कौन-सा लड़का ? " मेरी बीवी ने कहा ।
" तुम्हारा मतलब क्या है ? " मैंने कहा । " वही लड़का जो मेरे यहाँ प्रशिक्षु है । तुम उसके साथ सो रही थी । "
" जो भी भयावह चीज़ें आज रात और इससे पहले की रातों में मेरे सपनों में आई हैं , वे सब सच हो जाएँ और तुम्हारी देह और आत्मा को नोच खाएँ ! तुम्हें किसी पिशाच ने अपने वश में कर लिया है , इसीलिए तुम्हें उल्टी-सीधी चीज़ें दिखाई देती हैं । " एल्का चिल्लाते हुए बोली , " ओ घृणित प्राणी ! ओ मूढ़ व्यक्ति ! ओ डरावने आदमी ! ओ जाहिल-गँवार ! दफ़ा हो जाओ यहाँ से नहीं तो मैं चीख़ कर सारे फ़्रैम्पोल को जगा दूँगी ! "
इससे पहले कि मैं हिल पाता , उसका भाई चूल्हे के पीछे से कूद कर आया और उसने न जाने किस चीज़ से मेरे सिर के पीछे एक तगड़ा प्रहार किया । मैं लड़खड़ा गया और मुझे लगा जैसे उसने मेरी गर्दन तोड़ दी हो । मुझे लगा जैसे मेरे भीतर कहीं कुछ गड़बड़ हो गई है , और मैंने कहा , " मेरी बदनामी मत करो । क्या अब यही कसर रह गई है कि लोग मुझे बीच रात में भूतों और जिन्नों को जगाने वाला कह कर बुलाएँ ? "
ख़ैर ! मैंने किसी तरह एल्का को शांत किया ।
अगली सुबह, मैंने उस प्रशिक्षु को अलग बुलाया । " देखो , भाई ! "
मैंने उसे बता दिया कि कल रात मैंने उसे किस स्थिति में देखा था । " अब तुम क्या कहते हो , " मैंने पूछा । वह मुझे ऐसे घूरता रहा जैसे मैं छत के किसी छेद से टपक पड़ा हूँ ।
" मैं क़सम खाता हूँ , " उसने कहा , " तुम खुद को किसी जड़ी-बूटी से इलाज करने वाले या किसी डॉक्टर को दिखाओ । मुझे लगता है , तुम्हारा दिमाग़ खिसक गया है , लेकिन मैं लोगों को यह बात नहीं बताऊँगा , समझे ? " और सारा मामला वहीं-का-वहीं पड़ा रहा ।
संक्षेप में कहूँ तो मैं इसी तरह अपनी पत्नी के साथ बीस बरस तक रहा । उसने मुझे छह बच्चे दिए -- चार लड़कियाँ और दो लड़के । हर तरह की घटनाएँ घटती रहीं , लेकिन मैं जैसे अंधा-बहरा बना रहा । मैंने केवल भरोसा किया , सिर्फ़ भरोसा । धर्म-गुरु ने हाल ही में मुझसे कहा , " भरोसा अपने-आप में बहुत फ़ायदेमंद है । यह धर्म-शास्त्रों में लिखा है कि एक अच्छा आदमी अपने विश्वास और भरोसे के सहारे जीता है । "
अचानक मेरी बीवी बीमार पड़ गई । यह एक छोटी-सी चीज़ से शुरु हुआ । उसके स्तन पर उग आई फुंसी से । किंतु जैसा कि ज़ाहिर है , वह अधिक दिनों तक नहीं जीने वाली थी । उसके जीवन की घड़ी ख़त्म हो गई थी । मैंने उसके इलाज में पानी की तरह रुपया-पैसा बहाया । मैं आपको यह बताना भूल गया हूँ कि इस समय तक फ़्रैम्पोल में मेरी अपनी बेकरी हो गई थी और अब मुझे वहाँ एक अमीर आदमी माना जाता था । प्रतिदिन उसे स्वस्थ करने का दावा करने वाले व्यक्ति आ कर उसे देखते । आस-पड़ोस के झाड़-फूँक करने वाले ओझा भी आ कर उसका इलाज कर रहे थे । उन्होंने इलाज में जोंकों की मदद भी ली । कई अन्य विधियाँ भी इस्तेमाल की गईं । यहाँ तक कि उन्होंने लुब्लिन से एक चिकित्सक को भी बुलाया , किंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी । अपनी मृत्यु से पहले मेरी पत्नी ने मुझे अपने बिस्तर के नज़दीक बुलाया और कहा , " मुझे माफ़ कर देना गिम्पेल ! "
मैंने कहा , " माफ़ी माँगने की कौन-सी बात है ? तुम एक अच्छी और वफ़ादार पत्नी रही हो । "
" आह , गिम्पेल ! " उसने कहा , " इतने साल जिस तरह से मैं तुम्हें धोखा देती रही , वह एक बुरी बात थी । मैं ईश्वर के पास सच्चे मन से जाना चाहती हूँ । इसलिए मुझे तुम्हें बताना होगा कि ये बच्चे तुम्हारे नहीं हैं । "
यदि मुझे मेरे सिर पर लकड़ी के टुकड़े से मारा गया होता तो भी मैं इससे ज़्यादा हक्का-बक्का नहीं होता ।
" तो फिर ये बच्चे किसके हैं ? " मैंने पूछा ।
" मुझे नहीं पता ," उसने कहा , " बहुत सारे लोग थे ... पर यह बात पक्की है कि ये बच्चे तुम्हारे नहीं हैं । " यह बोलते-बोलते उसका सिर एक ओर झुक गया , उसकी आँखें भावशून्य हो गईं और उसकी इहलीला समाप्त हो गई । चल बसने के बाद भी उसके सफ़ेद होठों पर एक मुस्कान बची रह गई थी ।
मुझे लगा जैसे मर कर भी वह कह रही हो , " मैंने गिम्पेल को मूर्ख बनाया । मेरे लघु जीवन का यही अर्थ था । "

( चार )

एक रात , जब शोक की अवधि पूरी हो चुकी थी , मैं आटे की बोरियों पर लेटा हुआ था । तभी शैतान की छवि स्वयं मेरे पास आई और उसने मुझसे कहा , " गिम्पेल , तुम सो क्यों रहे हो ? "
मैंने कहा , " मुझे क्या करना चाहिए ? क्या मैं ' क्रेपलाश ' जैसे यहूदी व्यंजन खाऊँ ? "
" पूरा विश्व तुम्हें मूर्ख बनाता है , " उसने कहा । " बदले में तुम्हें उन्हें मूर्ख बनाना चाहिए । "
" मैं पूरे विश्व को धोखा कैसे दे सकता हूँ ? "
उसने कहा , " तुम रोज़ एक बाल्टी पेशाब इकट्ठा कर लो और रात में उसे आटे में डाल दो । फ़्रैम्पोल के महानुभावों को यह गंदी चीज़ खाने दो । "
" किंतु मृत्यु के बाद जब दूसरी दुनिया में न्याय का दिन आएगा तब क्या होगा ? " मैंने पूछा ।
" कहीं कोई दूसरी दुनिया नहीं है , " उसने कहा । " उन्होंने तुमसे केवल झूठ बोला है और तुम्हें धोखे में रखा है । "
" लेकिन , " मैंने कहा , " ईश्वर तो मौजूद है , " मैंने पूछा ।
वह बोला , " कहीं कोई ईश्वर नहीं है । "
" तो फिर क्या मौजूद है ? " मैंने पूछा ।
" केवल एक गाढ़ा कीचड़ है । "
वह भेड़ की दाढ़ी और सींगें लिए मेरे सामने मौजूद था । उसके दाँत बड़े-बड़े थे और उसकी एक पूँछ भी थी । ऐसे शब्द सुनकर मैं उसे पूँछ से पकड़ लेना चाहता था । पर मैं आटे की बोरियों पर से लुढ़क कर गिर गया और मेरी छाती की एक पसली लगभग टूट ही जाती । तब ऐसा हुआ कि मुझे पेशाब लग गई और वहाँ से गुज़रते समय मैंने आटे में ख़मीर उठता हुआ देखा जो मुझे यह कहता हुआ प्रतीत
हुआ , " कर डालो । " संक्षेप में कहूँ तो मैं यह बात मान गया ।
सुबह प्रशिक्षु मेरे पास आया । हमने आटा माड़ लिया , उस पर कुछ काला ज़ीरा छिड़का और उसे पकने के लिए रख दिया । फिर प्रशिक्षु चला गया , और मैं वहाँ चूल्हे बगल में रखे फटे कपड़ों के ढेर पर बैठा रहा । गिम्पेल , मैंने सोचा , तुमने आज उन सभी से अपना बदला ले लिया है जिन्होंने तुम्हें आजीवन शर्मिंदा किया । बाहर ठंड में पाला चमक रहा था , पर चूल्हे के बगल में सब कुछ गरम था । लपटें मेरे चेहरे को ऊष्मा दे रही थीं । मैं सिर झुका कर बैठा और झपकियाँ लेने लगा ।
मैंने उसी समय सपने में अपनी पत्नी एल्का को देखा जिसने कफ़न का कपड़ा लपेटा हुआ था । उसने मुझे आवाज़ दी , " यह तुमने क्या किया ,
गिम्पेल ? "
मैंने उससे कहा , " सब तुम्हारी ग़लती है , " और मैं रोने लगा ।
" अरे मूर्ख ! " उसने कहा । " अरे मूर्ख ! क्योंकि मैं एक छलावा थी , बेवफ़ा थी , क्या इसका मतलब यह है कि यह सब कुछ एक छलावा है ? मैंने किसी और को नहीं , खुद को धोखा दिया । इसकी सजा मुझे मिल गई है , गिम्पेल । यहाँ तुम्हें किसी भी दुष्कार्य के लिए बख़्शा नहीं जाता । "
मैंने उसके चेहरे की ओर देखा । वह पूरा काला था । मैं चौंक कर उठ गया और किसी गूँगे-सा बैठा रहा । मुझे लगा कि हर चीज़ का संतुलन अब मुझ पर निर्भर करता था । यदि अब मैंने कोई ग़लत क़दम उठाया तो मैं मृत्यु के बाद के जीवन को खो दूँगा । किंतु ईश्वर ने मेरी मदद की । मैंने लम्बा बेलचा उठाया और चूल्हे में से सारी ब्रेड निकाल ली -- उन्हें लेकर मैं आँगन में आ गया । फिर जमी हुई मिट्टी में मैं एक गड्ढा खोदने लगा ।
उसी समय मेरा प्रशिक्षु वहाँ आ गया । " यह आप क्या कर रहे
हैं ? " उसने पूछा और किसी शव की तरह निस्तेज पड़ गया ।
" मैं जानता हूँ , मैं क्या कर रहा हूँ , " मैंने कहा , और मैंने सारी गंदी डबलरोटी उसकी आँखों के सामने ही गड्ढे में डाल दी और उस गड्ढे को भर दिया ।
फिर मैं घर गया । मैंने अपना सारा छिपाया हुआ धन निकाल कर सभी बच्चों में बराबर-बराबर बाँट दिया । " मैंने आज रात सपने में तुम्हारी माँ को देखा , " मैंने कहा । " वह बेचारी काली पड़ती जा रही है । "
वे सब इतने भौंचक्के हो गए कि उनके मुँह से एक शब्द भी नहीं निकला ।
" खुश रहो , " मैंने कहा , " और भूल जाओ कि गिम्पेल नाम का कोई आदमी कभी तुम्हारे जीवन में रहा भी था । " फिर मैंने अपना छोटा-सा कोट और अपने जूते निकाले । मैंने उस थैले को लिया जिसमें प्रार्थना के समय पहनने वाली शॉल पड़ी थी । फिर मैंने अपनी छड़ी उठाई और धार्मिक-ग्रंथ को चूमा । जब लोगों ने मुझे गली में देखा तो वे बहुत हैरान हुए ।
" तुम कहाँ जा रहे हो ? " उन्होंने पूछा ।
मैंने उत्तर दिया , " दुनिया में जा रहा हूँ । " और इस तरह मैंने फ़्रैम्पोल शहर से विदा ली ।
मैं दुनिया में बहुत घूमा और अच्छे लोगों ने मेरी उपेक्षा नहीं की । बहुत बरसों के बाद मैं बूढ़ा हो गया और मेरे बाल सफ़ेद हो गए । मैंने बहुत सारी बातें सुनीं । बहुत सारी झूठी और भ्रामक बातों से मेरा सामना हुआ , किंतु जितना ज़्यादा मेरे अनुभव का दायरा बढ़ता गया , उतना ही मैं समझता गया कि दरअसल झूठ कुछ नहीं होता । जो वास्तव में नहीं घटा होता है , वह रात में सपनों में घटता
है । यदि कोई बात ' क ' के साथ नहीं घटी होती तो वह ' ख ' के साथ घटी होती
है । यदि वह कल नहीं घटी होती है तो वह आज घटी होती है । या यदि वह अगले वर्ष नहीं घटेगी तो वह सौ साल बाद घटेगी । क्या फ़र्क पड़ता है ? मैंने ऐसी-ऐसी कहानियाँ सुनीं जिनके बारे में मैंने कहा , " इसका घटना तो असम्भव है । " किंतु साल बीतने से पहले ही मुझे पता चलता कि ऐसी ही घटना वास्तव में कहीं घट चुकी है ।
मैं जगह-जगह भटकता रहा , अजीब लोगों के बीच अपना पेट भरता रहा । अक्सर मैं लोगों को कहानियाँ सुनाता हूँ -- असम्भव लगने वाली ऐसी
घटनाएँ जो कभी नहीं घट सकती हैं -- नरपिशाचों , जादूगरों आदि की
कहानियाँ । बच्चे मुझे बुलाते हुए मेरे पीछे दौड़ते हैं -- " दादाजी , हमें कहानी सुनाइए । " कई बार वे किसी ख़ास कहानी के लिए अनुरोध करते हैं , और मैं उन्हें खुश करने की कोशिश करता रहता हूँ । एक मोटे-से बच्चे ने एक बार मुझसे कहा , " दादाजी , यह तो वही कहानी है जो आपने हमें पिछली बार भी सुनाई थी । " वह छोटा-सा शैतान बच्चा सही कहता है ।
सपनों के साथ भी यही होता है । फ़्रैम्पोल शहर छोड़े हुए भी मुझे बहुत बरस बीत गए , लेकिन जैसे ही मैं अपनी आँखें बंद करता हूँ , मैं वहीं पहुँच जाता हूँ । और आपको क्या लगता है , मैं वहाँ किसे देखता हूँ ? अपनी पत्नी एल्का को । वह कपड़ों से भरी बाल्टी के पास बैठी है , जैसी वह मुझसे पहली मुलाक़ात के समय थी । लेकिन उसका चेहरा दमक रहा है और उसकी आँखें किसी संत-महात्मा की आँखों जैसी दीप्त हैं । और वह मुझसे किसी अजीब-सी विदेशी भाषा में न जाने क्या बोल रही है । जब मैं जागता हूँ तो वह सब भूल जाता हूँ । लेकिन जब तक मैं सपना देख रहा होता हूँ , मुझे राहत मिलती है । वह मेरे सभी प्रश्नों के उत्तर देती है । और अंत में यही लगता है कि सब कुछ ठीक-ठाक है । मैं रोते-रोते उससे याचना करता हूँ , " मुझे अपने पास रहने दो । " और वह मुझे सांत्वना देती है और धीरज रखने को कहती है । अब वह समय दूर नहीं है , करीब आता जा रहा है । कभी-कभी वह मुझे थपकियाँ देती है और मुझे चूमती है और मेरे चेहरे पर उसके आँसू गिरते हैं । जब मैं जागता हूँ तो मैं उसके होठों और उसके आँसुओं के नमक का स्वाद महसूस करता हूँ ।
बेशक , वह विश्व पूरी तरह से एक काल्पनिक विश्व है , किंतु वह वास्तविक विश्व से बस थोड़ा-सा ही पृथक् है । जिस झोंपड़ी में मैं रहता हूँ , उसके दरवाज़े पर वह तख़्ता है जो मृतकों को ढोने के लिए इस्तेमाल किया जाता है । क़ब्र खोदने वाला यहूदी अपने फावड़े के साथ तैयार है । क़ब्र प्रतीक्षा कर रही है और मांसभक्षी कीड़े भूखे हैं । कफ़न तैयार है -- मैं उसे अपने भिखारी वाले थैले में रखे हुआ हूँ । मेरे जाने के बाद पुआल के मेरे बिस्तर को प्राप्त करने के लिए एक और भिखारी प्रतीक्षारत है । जब मेरा समय आएगा , मैं खुशी-खुशी यहाँ से चला जाऊँगा । वहाँ जो कुछ भी हो , वह वास्तविक होगा , और जटिलता , उपहास और छल के बिना होगा । ईश्वर की जय हो : वहाँ गिम्पेल भी मूर्ख नहीं बनाया जा सकेगा ।

------------०------------

--- मूल लेखक : आइज़ैक बैशेविस सिंगर
--- अनुवाद : सुशांत सुप्रिय


प्रेषक : सुशांत सुप्रिय
A-5001 ,
गौड़ ग्रीन सिटी ,
वैभव खंड ,
इंदिरापुरम ,
ग़ाज़ियाबाद - 201014
( उ.प्र. )
मो: 8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail.com
------------0------------

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1474,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,38,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,76,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,6,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,10,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,139,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,47,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,17,भीष्म साहनी,8,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,15,यशपाल,15,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,2,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,33,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,269,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,20,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,86,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,432,हिंदी लेख,532,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,182,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,11,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,424,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,679,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,67,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,22,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,11,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,7,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,4,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,51,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: मूर्ख गिम्पेल
मूर्ख गिम्पेल
मूर्ख गिम्पेल Gimpel the Fool मैं मूर्ख गिम्पेल हूँ । मैं खुद को मूर्ख नहीं समझता , बल्कि मैं तो खुद को इसके ठीक उलट ही मानता हूँ । किंतु लोग मुझे मूर्ख कहते हैं । उन्होंने तब मुझे यह नाम दे दिया जब मैं स्कूल में ही पढ़ता था ।
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiQLfXn3UuOEDHSJNI7qEOUvvSuBz2CkwjSWmfniFvIcbxD_aIa-lofe-B5h5Rm5Q929tPEIMjMGc0CKhauNiUys4OCQSTooo1PBXuJgh8Lt7r7udXo9FWVb5ZJkUoSfYJmrHCpwS5YX0aS/s320/%25E0%25A4%25AE%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%25B0%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%2596.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiQLfXn3UuOEDHSJNI7qEOUvvSuBz2CkwjSWmfniFvIcbxD_aIa-lofe-B5h5Rm5Q929tPEIMjMGc0CKhauNiUys4OCQSTooo1PBXuJgh8Lt7r7udXo9FWVb5ZJkUoSfYJmrHCpwS5YX0aS/s72-c/%25E0%25A4%25AE%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%25B0%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%2596.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2018/09/gimpel-fool.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2018/09/gimpel-fool.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका