हिंदी का महत्व वर्तमान समय में हिंदी का महत्व राजभाषा हिन्दी का महत्व - भाषा हमारे विचारों के आदान-प्रदान का एक सशक्त माध्यम है |हिंदी की महत्ता को उतना महत्व नहीं देते जितने महत्व की वह अधिकारिणी है | हिंदी के साथ ऐसा भेदभाव क्यों ? हिंदी एक जीवित भाषा है | नए-नए शब्दों को समाहित करने का गुण, बदलते समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने का हौसला इसकी जीवन्तता का प्रमाण है |
ढाई अक्षर हिंदी के
हिंदी का महत्व वर्तमान समय में हिंदी का महत्व राजभाषा हिन्दी का महत्व - भाषा हमारे विचारों के आदान-प्रदान का एक सशक्त माध्यम है | ईश्वर ने मात्र मनुष्य को ही इस अनुपम गुण से सुशोभित किया है | हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने कहा है-‘ मनुष्य ही बड़ी चीज़ है और भाषा उसी की सेवा के लिए है |’ वहीं कबीर दास जी ने भाषा को ‘बहता नीर’ कहा है | यदि दोनों विद्वानों के कथन को मिलाकर दखा जाए तो भाषा बहता नीर बन कर मनुष्य की सेवा कर रही है | वैसे ही जैसे नदियों के पास बड़ी-बड़ी संस्कृतियाँ विकसित हुईं वैसे ही भाषा रूपी नदी के पास मनुष्य और साहित्य का विकास हुआ | भाषा और साहित्य ने कभी कविता का लोच,कभी कहानी की सोच, लेख की गंभीरता, निबंध की सारगर्भिता , संस्मरण के रेखाचित्र , डायरी के अनुभव , व्यंग्य के चटकारे आदि अलग-अलग रूपों में मानव जाति की सेवा की है | मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्धन और उत्साहवर्धन भी किया है | ऐसे ही हमारी हिंदी भाषा ने हमारे अपनत्व और प्रेम में नवरस का संचार किया है | ‘सिर्फ हिंदी ही पूरे देश को एक सूत्र में पिरोकर रख सकती है |’ ये कथन शत प्रतिशत सही है और हिंदी भाषा ने स्वयं को इस कथन की कसौटी पर साबित भी किया है |
लेकिन कुछ लोग हिंदी की महत्ता को उतना महत्व नहीं देते जितने महत्व की वह अधिकारिणी है | हिंदी के साथ ऐसा भेदभाव क्यों ? हिंदी एक जीवित भाषा है | नए-नए शब्दों को समाहित करने का गुण, बदलते समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने का हौसला इसकी जीवन्तता का प्रमाण है. ऐसा क्या है जो हमें हिंदी भाषा में या इसके साहित्य में नहीं मिलता?काव्य,कहानी,उपन्यास,नाटक,आत्मकथा,जीवनी, निबंध ,फीचर,कविता,गीत,डायरी,संस्मरण ,आदि हर विधा में हिंदी का गुणवत्तापरक कार्य मिलता है | इसके अतिरिक्त विभिन्न भाषाओँ के साहित्य का अनुवाद भी हिंदी भाषा में किया गया है | ये अनुवाद इस बात का सूचक है कि हिंदी एक लोकप्रिय भाषा है और लोग हिंदी पढ़ना व लिखना दोनों पसंद करते हैं तभी तो दूसरी भाषाओँ का साहित्य भी हिंदी में आ रहा है |
हिंदी जनसंपर्क का सरल व सुगम साधन है | इतनी सारी भाषाओँ व बोलियों के देश में एक भाषा को सर्वोपरि स्थान मिलना अपने आप में एक महत्वपूर्ण बात है | आज़ादी के बाद जब संपूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बाँध कर रखने की आवश्यकता महसूस हुई तो ये उत्तरदायित्व हिंदी को दिया गया | तभी 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का पद पर आसीन किया गया | लेकिन हमारी हिंदी दोहरी मानसिकता का शिकार हो गई | इतने विलक्षण गुणों वाली भाषा को शिरोधार्य करने के बजाय इसके गुण-दोषों पर चर्चा-परिचर्चा होने लगी जो बढ़ते-बढ़ते कुचर्चा बन गई | जिसमें सिर्फ हमें हिंदी भाषा के लिए विरोधाभास दिखाई पड़ता है | आज हिंदी भाषा को अपने ही घर में , अपने ही देश में श्वास लेने में कठिनाई हो रही है | हम हिंदी में लिखना नहीं चाहते ,पढ़ना नहीं चाहते, बोलना नहीं चाहते | ऐसा दुर्व्यवहार क्यों ? महात्मा गाँधी का कथन – ‘राष्ट्रभाषा के बिना देश गूंगा है|’ अथवा श्री कमलापति त्रिपाठी का कथन –‘हिंदी भारतीय संस्कृति की आत्मा है|’ क्या ये सारे कथन,विचार आज हम पर प्रभाव नहीं डालते | हम अपनी आत्मा को ही कष्ट दे रहें हैं जिसने हमें सारे रिश्तों को निभाने के लिए शब्द दिए , विश्व में अपनी पहचान बनाने के लिए हमारे विचारों की सुदृढ़ नींव रखी | रामचरितमानस मानस,सूरदास के पद, भगवद्गीता आदि अनेक महान ग्रंथ जिनकी प्रशंसा करते पूरा विश्व नहीं थकता , उनके आनंद में सब सरोबार होना चाहते हैं | कैसे हम उस भाषा को द्वितीय स्थान दे सकते हैं ? यहाँ पर एक विशेष ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि हिंदी का अर्थ सिर्फ खड़ी बोली से नहीं है | हिंदी परिवार में इसके जितने रूप हैं वे सब हिंदी ही हैं |
दास प्रथा और सात समंदर के दिवास्वप्न में कई भारतीयों को मजदूर बनाकर कई देशों में ले जाया गया | ये वही भारतीय हैं जो आज फीजी , ट्रिनीदाद , गुयाना , सूरीनाम , मारीशस , न्यूज़ीलैंड के प्रवासी भारतीय हैं तथा हिंदी भाषा बोलते हैं और समझते हैं | वहीं आधुनिक युग में नौकरी और पढ़ाई के कारण भी कई भारतीय विदेश जाते हैं और अपनी भाषा का वहाँ पर परोक्ष रूप से प्रचार-प्रसार करते हैं | अपनी उन्नति के लिए अगर आप कोई भी नई भाषा सीखते हैं तो यह अच्छी बात है पर इसके साथ ही हमें अपनी भाषा के मान-सम्मान का भी ध्यान रखना चाहिए |
स्वतंत्रता के समय हमारे अंदर आगे बढ़ने का जो जोश था , जो ललक थी उसके चलते हमने यह विचारधारा अपने मन में बैठा ली कि हमारा विकास सिर्फ अंग्रेजी भाषा के सहयोग से ही संभव है | हमने अपनी शिक्षा प्रणाली को भी अंग्रेजी परक बना लिया जिससे हम ज्ञान एवं तकनीक के बढ़ते भंडार को आत्मसात कर सकें | शायद यही हमारी सबसे बड़ी भूल थी | ऐसा कोई कार्य नहीं है जोकि हम हिंदी भाषा में नहीं कर सकते या उससे संबंधित शब्दावली का हिंदी भाषा में अभाव है | इसके लिए आप व्यावहारिक हिंदी या कार्यपरक हिंदी का प्रयोग कर सकते हैं | तकनीक की बात करते हुए विश्व के सबसे बड़ी कंपनी माइक्रो सॉफ्ट का उल्लेख न किया जाए तो बात अधूरी रह जाएगी | हिंदी की लोकप्रियता व वैश्विक स्थिति के कारण इस कम्पनी ने हिंदी सॉफ्टवेयर का निर्माण किया | उनके कई एप भी हिंदी भाषा में हैं | यहाँ तक कि ऑनलाइन हिंदी टाइपिंग की सुविधा भी दी जा रही है | यह सब हिंदीप्रेमियों के लिए ही है | आज भारत जहाँ विश्व में एक बड़ा उपभोक्ता बन कर सामने आया है , वहाँ दुनिया के तमाम देश अपनी कंपनियां ,अपने उत्पाद भारत में लाने के लिए तत्पर है | पर वे सब सबसे पहले एक बात सोचते हैं –‘भारत से जुड़ना है ,भारतीयों के मन में जगह बनानी है तो हिंदी सीखो|’ ये कथन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के हैं| भले ही इसमें उनका स्वार्थ निहित है कि वे अपने उपनिवेश को आर्थिक रुप से मजबूत करना चाहते हैं | पर वे जानते हैं कि हिंदी हमारी अपनी भाषा है | आप विश्व के किसी कोने में चले जाइए,खूब घूमिए-फिरिए ,खरीदारी करिये ,पर मेरा यकीन मानिए जितनी खुशी आपको वहाँ किसी हिंदी भाषी से मिलकर होगी उतनी और किसी से नहीं | हिंदी की महत्ता ,लोकप्रियता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि पूरा विश्व हमारी हिंदी से प्रेम करता है ,इसे सीखना चाहता है | तभी तो दुनिया के कोने-कोने में हिंदी सीखने के लिए विद्यालय , उच्च अध्ययन के लिए कॉलेज खोले जा रहे हैं | हिंदी को हमारे प्यार और अपनत्व की आवश्यकता है तभी तो हिंदी के ढाई अक्षर हमें और हमारी संस्कृति को पूर्णता प्रदान करेंगे | अंत में रीमा दीवान जी की कविता की चंद पंक्तियाँ बहुत ही न्यायसंगत प्रतीत होती हैं -
हिन्दी हूँ मैं मातृ भाषा तुम्हारी
तुम्हारा ही जीवन हूँ आशा तुम्हारी
राष्ट्र की हूँ भाषा राष्ट्र की पहचान
राष्ट्र की आन बान और शान .
राष्ट्र का हूँ गुरूर राष्ट्र की संस्कृति
मेरे नाम पर बनी कितनी महान कृति
निराला ,पंत ,महादेवी ,प्रसाद ने की सेवा मेरी
कहाँ है मातृ प्रेम तेरा कहाँ है मातृ भक्ति तेरी ?
गीता हूँ मैं गंगा हूँ मैं गर्विता हूँ मैं
इस पावन सलिला की पुनीत वसुंधरा मैं
कश्मीर से कन्याकुमारी तक बंग से कच्छ तक
गूँजने वाली ध्वनि हूँ मैं लय हूँ मैं .
मैं हूँ भाषा , मातृभाषा ,राष्ट्र की भाषा
सरल देवनागरी लिपि उन्नत व्याकरण मेरा
वैज्ञानिक हैं शब्द मेरे वृहत मेरा शब्दकोश
भारत की पहचान का सशक्त माध्यम हूँ मैं .
१४ सितम्बर एक दिवस की मोहताज नहीं हूँ मैं
तुम्हारी धरती से उपजी पूरी ज़िंदगी हूँ मैं
भाषा ,व्याकरण ,वाणी ही नहीं स्वामिनी हूँ मैं
मैं हिन्दी केवल एक माँ हूँ तुम सबकी जां हूँ ...
जय हिंदी,जय भारत
लेखिका-
इलाश्री जायसवाल
नोएडा
मो-9911542580
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