हिंदी और महाराष्ट्र का अनमोल रिश्ता हिंदी देश की एक ऐसी भाषा है ,जो जनमानस तक पहुँची हैं। हॉंलाकि भारत बहुभाषीय राष्ट्र है और यहॉं भाषिक अस्मिता का बोलबाला है , फिर भी हिंदी के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता । भारत की अखंडता एवं राष्ट्रीयता अबाधित रहने के लिए संपूर्ण भारत के लिए एक भाषा का विकास एवं विस्तार आवश्यक हैं और हिंदी भाषा में वह शक्ति विद्यमान हैं ।
हिंदी और महाराष्ट्र का अनमोल रिश्ता
हिंदी देश की एक ऐसी भाषा है ,जो जनमानस तक पहुँची हैं। हॉंलाकि भारत बहुभाषीय राष्ट्र है और यहॉं भाषिक अस्मिता का बोलबाला है , फिर भी हिंदी के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता । भारत की अखंडता एवं राष्ट्रीयता अबाधित रहने के लिए संपूर्ण भारत के लिए एक भाषा का विकास एवं विस्तार आवश्यक हैं और हिंदी भाषा में वह शक्ति विद्यमान हैं । यह भाषा केवल उत्तर भारत तक सीमित न रहकर दक्षिण की ओर प्रवाहित होना आवश्यक हैं । भारत में त्रिभाषा सूत्री का उपयोग हो रहा है पर अंग्रेज़ी भाषा एक विशिष्ट समाज तथा भारत के बड़े नगरों की कक्षा तक ही पहुँच पायी है । वह जनमानस की भाषा नहीं बन सकती क्योंकि वह इस मिट्टी की नहीं है, सामान्य जन के मन को स्पर्श करने की ताक़त उसमें नहीं है, क्योंकि यहॉं के भावविश्व से वह ज्ञात नहीं है । अंग्रेज़ों की दो सौ वर्ष की ग़ुलामी में उन्हें यहॉं क्लर्क की आवश्यकता थी अत: अंग्रेज़ी शिक्षा से उन्होंने ' बाबू' लोगों की एक पीढ़ी पैदा कियी, जिनके वंशज आज अंग्रेज़ी का महत्त्व बताते है और हिंदी को कमज़ोर दिखाते हैं । मैं बताना चाहती हूँ कि विश्व में कई ऐसे देश है जहाँ अंग्रेजी का बिलकुल इस्तेमाल नहीं होता फिर भी तकनीकी दुनिया में वे देश अग्रगण्य है, क्योंकि उन्होंने अपनी भाषा, संस्कृति की महत्ता को पहचाना है । चूँकि भारत की आबादी में ५० करोड़ से अधिक और विश्व में ९० करोड़ के लगभग मनुष्य हिंदी बोलते हैं , तथा विश्व की तीसरी भाषा है जो अधिक मात्रा में बोली जाती है । भारत की ७० प्रतिशत जनता राजकाज, जनसंचार , शिक्षा, व्यापार आदि कामकाजों के लिए घर एवं घर के बाहर हिंदी का प्रयोग करती है । अत: हिंदी में वह सारी क्षमता हैं कि वह जनभाषा से राष्ट्रभाषा और राष्ट्रभाषा से राजभाषा बने । इसके विकास के लिए हमें मानसिक रूप से राज्य की गरिमा से देश की गरिमा का विचार करना होगा मातृभाषा के साथ साथ इस जनभाषा का स्वीकार करना होगा ।
महाराष्ट्र भारत का एक प्रगत राज्य है । मुंबई केवल महाराष्ट्र की राजधानी का नगर नहीं बल्कि देश की आर्थिक राजधानी का शहर है । अत: अपनी रोज़ी रोटी के लिए देशभर से युवा वर्ग मुंबई की ओर आकर्षित होकर यहॉं बसता है । यहॉं की मातृभाषा मराठी है और हिंदी और मराठी की लिपि , कई शब्द एक समान प्रतीत होते है , तब मुंबई की अपनी अलग ' मुम्बईया हिंदी' भाषा ने यहॉं जन्म लिया है । हिंदी की अन्य बोलीभाषाओं के भाँति ' मुम्बईया हिंदी' का अपना अलग अस्तित्व है और यहॉं के युवाओं की यह प्रिय भाषा है । मराठी के साथ साथ महाराष्ट्र में हिंदी का प्रचुर मात्रा में प्रयोग होता है । क्योंकि मुंबई, पुणे जैसे नगरों में देश के विभिन्न प्रांतों से, अलग अलग भाषा से लोग आकर बसे हैं तो अपने विचारों को अभिव्यक्ति देने के लिए वर्तमान परिवेश में हिंदी का ही प्रयोग किया जाता है ।
बात केवल वर्तमान की नहीं बल्कि इतिहास में भी हिंदी और महाराष्ट्र का गहरा रिश्ता रहा है । सन् १८५७ ई. के स्वतंत्रता आंदोलन में भी हिंदी ने अपनी अहम भूमिका निभायी थी।कानपुर ,झाँसी आदि स्थानों के शासक मराठा थे , अत: मराठी और हिंदी का बड़ा गहरा नाता है ।
" हरि नाँव सकल सुषन की रासी। हरि नांव काटै जम की पासी ।।
हरि नाँव सकल भुवन ततसारा। हरि नाँव नामदेव उतरे पारा ।।"
संत शिरोमणी नामदेव का जन्म मराठवाडा , महाराष्ट्र में हुआ । ' गुरू ग्रंथ साहिब' में नामदेव के अभंग संकलित हैं । आगे संत कबीर के पदों पर नामदेव के विचारों का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है । कवि भूषण छत्रपति शिवाजी महाराज के राजकवि थे । रीतिकाल के इस महान कवि ने वीर रस से ओतप्रोत शिवराज भूषण तथा शिवा बावनी जैसी रचना का निर्माण किया, स्पष्ट हैं कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिंदी को राजाश्रय प्राप्त हुआ था । शिवाजी महाराज के पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज स्वयं कवि थे तथा हिंदी के विद्वान थे।
आगे इस मराठी भाषी महाराष्ट्र में हिंदी का प्रचार एवं प्रसार करने हेतु महात्मा गांधी जी की प्रेरणा से आचार्य काकासाहेब कालेलकर ने अथक प्रयास किये, उनकी ' महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा ' के नाम से कार्यरत है । इसके अलावा मुंबई हिंदी विद्यापीठ , सन् १९३८ ई. से हिंदी के विकास के लिए अपना योगदान दे रहा हैं । हॉंल ही में मुंबई में सन् २००३ ई. में भारतीय भाषा प्रतिष्ठापन राष्ट्रीय परिषद की स्थापना हुई । जिसका उद्देश्य धर्म, भाषा, संप्रदाय, जाति,वर्ग के भेदभाव बिना हिंदी का विकास करना है । राष्ट्रभाषा देश की संस्कृति का अभिन्न अंग होती है, उसके विस्तार हेतु वर्धा , महाराष्ट्र में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति कार्यरत है । लोकमान्य तिलक का कहना है कि, " हिंदी राष्ट्रभाषा बन सकती है मेरी समझ में हिंदी भारत की सामान्य भाषा होनी चाहिए, यानी समस्त हिंदुस्तान में बोली जाने वाली भाषा होनी चाहिए।" मराठी भाषी तिलक राष्ट्र हित हेतु देवनागरी को राष्ट्रलिपि तथा हिंदी को राष्ट्रभाषा मानते थे । स्पष्ट है कि महाराष्ट्र में हिंदी की स्वीकार , सम्मान हुआ और सराहना भी हुई ।
गजानन माधव मुक्तिबोध , शंकर शेष जैसे मराठी भाषी साहित्यकार हिंदी साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर साबित हुए ।इतिहास से लेकर वर्तमान तक महाराष्ट्र और हिंदी का गहरा रिश्ता रहा है और आनेवाली सदियों तक रहेगा। हिंदी दिवस के उपलक्ष्य पर हिंदी का अधिक विकास करने का प्रयास हम करें ।
लेखिका : गौतमी अनुप पाटील
ईमेल - save.gautami@gmail.com
Good
जवाब देंहटाएंGood
जवाब देंहटाएंSant Namdev has written his poem in Marathi and punjabi .... don't spread lies .....hindi was not even born at that time
जवाब देंहटाएंMaharashtra has no relationship with hindi . Only north indian who come to Maharashtra have relationship with hindi
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