राधा कृष्ण की प्रीत राधा- पल पल राह निहारती ,आँखे तेरी ओर। जब से बिछुड़े सांवरे ,दुख का ओर न छोर। कृष्ण - पर्वत जैसी पीर है ,ह्रदय बहुत अकुलाय। राधा राधा जपत है ,विरही मन मुरझाय। राधा - कान्हा तेरी याद में ,नैनन नींद न आय। काजल अँसुवन बहत है ,हिया हिलोरें खाय। कृष्ण - मुकुट मिला वैभव मिला ,और मिला सम्मान। लेकिन तुम बिन व्यर्थ सब ,स्वर्णकोटि का मान।
राधा कृष्ण की प्रीत
राधा-
पल पल राह निहारती ,आँखे तेरी ओर।
जब से बिछुड़े सांवरे ,दुख का ओर न छोर।
कृष्ण -
पर्वत जैसी पीर है ,ह्रदय बहुत अकुलाय।
राधा राधा जपत है ,विरही मन मुरझाय।
राधा -
कान्हा तेरी याद में ,नैनन नींद न आय।
काजल अँसुवन बहत है ,हिया हिलोरें खाय।
कृष्ण -
मुकुट मिला वैभव मिला ,और मिला सम्मान।
लेकिन तुम बिन व्यर्थ सब ,स्वर्णकोटि का मान।
राधा -
कृष्ण कृष्ण को देखने ,आँखें थीं बेचैन।
राधा कृष्ण |
वाणी तेरा नाम ले ,थके नहीं दिन रैन।
कृष्ण -
जबसे बिछुड़ा राधिके ,नहीं मुझे विश्राम।
हर पल तेरी याद है ,हर पल तेरा नाम।
राधा (व्यंग से )-
स्वर्ण महल की वाटिका ,और साथ सतभाम।
फिर भी राधा याद है ,अहोभाग्य मम नाम।
कृष्ण -
स्वर्ग अगर मुझको मिले, नहीं राधिका साथ।
त्यागूँ सब उसके लिए ,उसके दर पर माथ।
राधा -
सुनो द्वारिकाधीश तुम ,क्यों करते हो व्यंग।
हम सब को छोड़ा अधर ,जैसे कटी पतंग।
बने द्वारिकाधीश तुम ,हम ब्रजमंडल ग्वाल।
हम सबको बिसरा दिया ,हो गए कितने साल।
कृष्ण -
सत्य कहा प्रिय राधिके ,मैं अपराधी आज।
किन्तु तुम्हारे बिन सदा ,पंछी बिन परवाज।
राधा बिन नीरव सदा ,मोक्ष ,अर्थ अरु काम।
नहीं विसरता आज भी ,वो वृन्दावन धाम।
राधा -
बहुत दूर तुम आ गए ,कृष्ण कन्हैया आज।
तुमको अब भी टेरती ,गायों की आवाज़।
ब्रजमंडल सूना पड़ा ,जमुना हुई अधीर।
निधिवन मुझसे पूछता ,वनिताओं की पीर।
बहुत ज्ञान तुमने दिया ,गीता का हो सार।
क्यों छोड़ा हमको अधर ,तुम तो थे आधार।
कृष्ण -
कर्तव्यों की राह पर ,कृष्ण हुआ मजबूर।
वरना कृष्ण हुआ कभी ,इस राधा से दूर।
जनम देवकी से हुआ ,जसुमति गोद सुलाय।
ग्वाल बाल के नेह की ,कीमत कौन चुकाय।
कृष्ण भटकता आज भी ,पाया कभी न चैन।
कर्तव्यों की राह में ,सतत कर्म दिन रैन।
युद्ध विवशता थी मेरी ,नहीं राज की आस।
सत्य धर्म के मार्ग पर ,चलते शांति प्रयास।
राधा (मुस्कुराते हुए )-
भक्तों के तुम भागवन ,मेरे हो आधीश।
अब तो आँखों में बसो ,आओ मेरे ईश।
सौतन बंशी आज भी ,अधरों पर इतराय।
राधा जोगन सी बनी ,निधिवन ढूढंन जाय।
कृष्ण -
नहीं बिसरत है आज भी ,निधिवन की वो रास।
राधे तुम को त्याग कर खुद भोगा वनबास।
बिन राधे कान्हा नहीं ,बिन राधे सब सून।
बिन राधे क्षण क्षण लगे ,सूखे हुए प्रसून।
बनवारी सबके हुए ,राधा ,कृष्ण के नाम।
बिन राधा के आज भी ,कृष्ण रहें बेनाम।
भक्त सुशील -
कृष्ण प्रेम निर्भय सदा,राधा का आधार।
राधा,कृष्ण संग सदा ,कृष्ण रूप साकार।
परछांई बन कर रही,राधा,कृष्ण सरूप।
दोनों अमित अटूट हैं ,एक छाया एक धूप।
राधा वनवारी बनी, कृष्ण किशोरी रूप।
कृष्ण सदा मन में रहें,राधा ध्यान सरूप।
परिभाषित करना कठिन,राधा जुगल किशोर।
किया समर्पित कृष्ण को,राधा ने हर छोर।
तन मन से ऊपर सदा,प्रिया, कृष्ण की प्रीत।
जोगन सा जीवन बिता,मीरा ,कृष्ण विनीत।
कृष्ण सिखाते हैं हमें, मानवता संदेश।
जीवन में निर्झर बहो, हरो विकार क्लेश।
कर्म सदा करते रहो,फल की करो न आस।
सुरभित जीवन हो सदा ,गर मन में विश्वास।
काव्य नाटिका
छंद -दोहा
राधा और कृष्ण के अमर प्रेम का वार्तालाप दोहा छंद के माध्यम से प्रेषित है।
- सुशील शर्मा
Is ki koi book hai kya agr ho to hum ko btayiye please.
जवाब देंहटाएंअद्भुत लेखन शैली बहुत सुंदर 👏👏👏👏👏
जवाब देंहटाएंअद्भुत
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