संतान सप्तमी व्रत कथा एवं पूजा विधि

SHARE:

संतान सप्तमी व्रत कथा एवं पूजा विधि Santan Saptami Vrat Katha Vidhi In Hindi Santan Saptami Date Vrat Katha Puja Vidhi Shubh Muhurat संतान सप्तमी व्रत कथा एवं पूजा विधि Santan Saptami Vrat Katha Vidhi In Hindi Katha Vidhi Procedure In Hindiसप्तमी व्रत 2018 संतान सप्तमी व्रत पूजा-कथा सप्तमी पूजा विधि सप्तमी कब है सप्तमी व्रत सप्तमी कब है सप्तमी तिथि शीतला सप्तमी 2018

संतान सप्तमी व्रत कथा एवं पूजा विधि 
Santan Saptami Vrat Katha Vidhi In Hindi


Santan Saptami Date Vrat Katha Puja Vidhi Shubh Muhurat संतान सप्तमी व्रत कथा एवं पूजा विधि Santan Saptami  Vrat Katha Vidhi In Hindi Katha Vidhi Procedure In Hindiसप्तमी व्रत 2018 संतान सप्तमी व्रत पूजा-कथा सप्तमी पूजा विधि सप्तमी कब है सप्तमी व्रत सप्तमी कब है  सप्तमी तिथि शीतला सप्तमी 2018 - यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन किया जाता है . स्त्री - पुरुष दोनों ही सामान रूप से इसे कर सकते हैं . भविष्योत्तर पुराण में श्री कृष्ण युधिष्ठिर के संवाद के रूप में यह मुक्ताभारण संतान सप्तमी व्रत कथा आती है .इस व्रत के अनुष्ठान से निसंतान दंपत्ति संतान पाते हैं तथा जिनकी संतान अल्पायु होती है एवं जीवित नहीं रहती ,उनको यह व्रत संकल्प के साथ करना चाहिए क्योंकि संसार में गृहस्थ पुरुष को समस्त सुखों के रहते हुए यदि संतान सुख नहीं हैं तो उसके लिए यह जीवन दुःख रूप ही है .संतान सुख होना न होना पूर्व जन्मों के कर्मों का फल है . तपस्या और दान से उत्पन्न होने वाले पुण्यों का प्रताप ही संतान की प्राप्ति कराता है .अनेक परम तपस्वी महारिशुओं ने अपने अनुष्ठानों के द्वारा ऐसे सफल उपाय किये हैं .ये सब उपाय हमें अपने शाश्त्रीय ग्रंथों में मिलते हैं . संतान सप्तमी का यह व्रत भी धार्मिक आस्तिक श्रधालुओंजनों के लिए एक सरल उपाय बताया गया है .
सप्तमी पूजा विधि

इस व्रत की साधना को साधारणत: गृहस्थीजन श्रद्धा से अपने आपन अपने परिवारीजनों के साथ कर सकते हैं .किन्तु समर्थ और इच्छुक व्यक्ति वैष्णव आचार्य के द्वारा भी विधिपूर्वक अनुष्ठान करा सकते हैं . वस्तुतः आवश्यता तो पूर्ण श्रद्धा और भावना ही है .यह व्रत भगवान् शंकर पार्वती को समर्पित है .इसीलिए यह पुनीत व्रत भादों के महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन किया जाता है। उस दिन ब्रह्म मुर्हत में उठकर किसी नदी अथवा कुएं के पवित्र जल से स्नान करके निर्मल वस्त्र पहिनना चाहिए। फिर श्रीशंकर भगवान तथा जगदम्बा पार्वतीजी की मूर्ति की स्थापना करे। इन प्रतिमाओं के सम्मुख सोने चाँदी के तारों का अथवा रेशम का एक गंडा बनावें। उस गंडे में सात गाँठे लगानी चाहिए। इस गंडे की धूप, दीप, अष्टगंध से पूजा करके अपने हाथ में बांधे और भगवान शंकर से अपनी कामना सफल होने की शुद्ध भाव से प्रार्थना करे। तदनन्तर सात पूआ बनाकर भगवान को भोग लगावें और सात ही पूआ एवं यथाशक्ति सोने और चाँदी की एक अंगूठी बनाकर इन सबको एक ताँबे के पात्र में रखकर और उनका शोड़षौपचार विधि से पूजन करके किसी सदाचार धर्मनिष्ठ, कर्मनिष्ठ सत्पात्र ब्राह्मण को दान में दे देवें। उसके पश्चात् सात पूआ स्वयं प्रसाद में ग्रहण करे। इस प्रकार इस व्रत का पारायण करना चाहिए। भाद्रपद की इस शुक्ल पक्ष की संतान सप्तमी के पश्चात भी हर पास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन व्रत रखकर महादेव - पार्वती का पूजन कर व्रत कथा को पढ़ना - सुनना चाहिए .इस प्रकार नियम पूर्वक करने से पापों का शमन होता है और निसंदेह भाग्यशाली संतान की प्राप्ति होती है .व्रती के द्वारा भगवान् महादेव शिवशंकर की प्रसन्नता के लिए उनका भजन कीर्तन और चालीसा का पाठ भी किया जाना चाहिए .


पूजन सामग्री -

मूर्तियाँ - श्रीगणेश -शिव जी एवं गौरी जी की ,चौकी या पाटा ,गंगाजल ,कलश ,दीपक ,पंचगव्य ,कुश - आसन ,कलावा ,श्वेत वस्त्र ,वन्दनवार ,केला के पत्ते ,बेल पत्र ,यज्ञोपवीत की जोड़ी ,सेंदुर ,केशर ,चन्दन ,चावल ,फूल एवं फूलों के हार ,दियासलाई ,धूप ,कपूर ,दीपक ,नैवेद्य ,फल ,ताम्बुल ,सुपारी ,सुहाग - पिटारी ,पकवान ,मिठाई ,शंख ,घंटा ,पूजन - पात्र आदि इच्छानुसार .



संतान सप्तमी व्रत कथा - 

एक दिन महाराज युधिष्ठर ने भगवान से कहा कि हे प्रभो! कोई ऐसा उत्तम व्रत बताइये, जिसके प्रभाव से मनुष्यों के सांसारिक दुःख क्लेश दूर होकर पुत्र एवं पौत्रवान हों। यह सुनकर भगवान बोले-हे राजन्! तुमने बड़ा ही उत्तम प्रश्न किया है। मैं तुमको एक पौराणिक इतिहास सुनाता हूँ, ध्यान पूर्वक सुनो।एक समय श्री लोमश ऋषि ब्रजराज की मथुरा पुरी में वसुदेव-देवकी के घर गये। ऋषिराज को आया हुआ देख करके दोनों अत्यन्त प्रसन्न हुए तथा उनको उत्तम आसन पर बैठाकर उनकी अनेक प्रकार से वन्दना तथा सत्कार किया। फिर मुनि के चरणोदक से अपने घर तथा शरीर को पवित्र किया। मुनि प्रसन्न होकर उनको कथा सुनाने लगे। कथा के कहते-कहते लोमश ऋषि ने  कहा कि हे देवकी! दुष्ट दुराचारी कंस ने तुम्हारे कई पुत्र मार डाले हैं, जिसके कारण तुम्हारा मन अत्यन्त दुखा है। इसी प्रकार राजा नहुष की पत्नी चन्द्रमुखी भी दुखी रहा करती थी। किन्तु उसने सन्तान सप्तमी का व्रत विधि-विधान सहित किया जिसके प्रताप से उसको संतान का सुख प्राप्त हुआ। यह सुनकर देवकी ने हाथ जोड़कर मुनि से कहा कि हे ऋषिराज! कृपा करके रानी चन्द्रमुखी का सम्पूर्ण वृतांत तथा इस व्रत का विधान विस्तार सहित मुझे बताइये जिससे मैं भी इस दुख से छुटकारा पाऊँ। लोमश ऋषि ने कहा है देवकी! अयोध्या के राजा नहुष थे। उनकी पत्नी चन्द्रमुखी अत्यन्त सुन्दरी थी। उसी नगर में विष्णुगुप्त नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्री का नाम भद्रमुखी था।वह भी अत्यन्त रूपवान सुन्दरी थी। रानी और ब्राह्मणी में अत्यन्त प्रेम था। एक दिन दोनों सरयू नदी में स्नान करने के निमित्त गयीं, वहाँ उन्होंने देखा कि अन्य बहुत-सी स्त्रियाँ सरयू नदी में स्नान करके निर्मल वस्त्र पहन कर  नंबई एक मंडप में श्री शंकर एवं पार्वती की मूर्ति स्थापित करके उनकी पूजा कर रही थी।रानी और ब्राह्मणी ने यह देखकर उन स्त्रियों से पूछा कि बहिना! यह तुम किस देवता का और किस कारण से यह पूजन व्रत आदि कर रही हो। यह सुन उन स्त्रियों ने कहा कि हम संतान सप्तमी का व्रत कर रही हैं और हमने शिव पार्वती का पूजन चन्दन अक्षत आदि से षोडषोपचार विधि से किया है। यह सब इसी पुनीत व्रत का विधान है। यह सुनकर रानी और ब्राह्मणी ने भी इस व्रत के करने का मन ही मन संकल्प किया और घर वापिस लौट आई। ब्राह्मणी भ्रदमुखी तो इस व्रत को नियम पूर्वक करती रही, किन्तु रानी राजमद के कारण इस व्रत को कभी करती, कभी भूल जाती। कुछ समय बाद यह दोनों मर गयीं। दूसरे जन्म में रानी ने बंदरिया और ब्राह्मणीने मुर्गी की योनि पाई। इधर ब्राह्मणी मुर्गी की योनि में भी कुछ नहीं भूली और भगवान शंकर तथा पार्वती जी का ध्यान करती रही। उधर रानी बंदरिया की योनि में सब कुछ भूल गई। थोड़े समय के बाद इन दोनों ने यह देह त्याग दी। अब इनका तीसरा जन्म मनुष्य योनि में हुआ। उस ब्राह्मणी ने तो एक ब्राह्मण के यहाँ कन्या के रूप में जन्म लिया। तथा रानी ने एक राजा के यहाँ राज कन्या के रूप में जन्म लिया। उस ब्राह्मण कन्या का नाम भूषण देवी रखा गया तथा विवाह योग्य होने पर उसका विवाह गोकुल निवासी अग्निझील नामक ब्राह्मण से कर दिया। भूषण देवी इतनी सुन्दर थी, कि वह आभूषण रहित होते हुए भी अत्यन्त सुन्दर लगती थी कि कामदेव की पत्नी रति भी उसके सम्मुख लजाती थी। भूषण देवी के अत्यन्त सुन्दर सर्वगुण सम्पन्न चन्द्रमा के समान, धर्मवीर कर्मनिष्ठ, सुशील स्वभाव वाले आठ पुत्र उत्पन्न हुए। यह शिव के व्रत का पुनीत फल था। दूसरी ओर शिव विमुख रानी के गर्भ से कोई भी पुत्र नहीं हुआ और नि:सन्तान दुःखी रहने लगी। रानी और ब्राह्मणी में जो प्रीति पहले जन्म में थी वह अब भी बनी रही।रानी जब वृद्धावस्था को प्राप्त होने लगी, तब उसके एक गूंगा व बहरा तथा बुद्धिहीन, अल्पायुवाला एक पुत्र हुआ और वह नौ वर्ष की आयु में इस क्षण भंगुर संसार को छोड़कर चला गया। अब तो
जय शिव
जय शिव
रानी पुत्र शोक में अत्यन्त दुखी हो व्याकुल रहने लगी । दैवयोग से भूषण देवी ब्राह्मणी रानी के यहाँ अपने सब पुत्रों को लेकर पहुँची। रानी का हाल सुनकर उसे भी बहुत दुःख हुआ। किन्तु इसमें किसी का क्या वश। कर्म और प्रारब्ध के लिखे को स्वंय ब्रह्मा भी नहीं मेट सकते हैं। रानी कर्मच्युत भी थी, इसी कारण उसे यह दुःख देखना पड़ा। इधर रानी उस ब्राह्मणी के इस वैभव और आठ पुत्रों को देखकर उससे मन ही मन ईर्ष्या करने लगी तथा उसके मन में पाप उत्पन्न हुआ। उस ब्राह्मणी ने रानी का सन्ताप दूर करने के निमित्त अपने आठों पुत्र रानी के पास छोड़ दिये। रानी ने पाप के वशीभूत होकर उन ब्राह्मण पुत्रों की हत्या करने के विचार से लड्डू में विष ( जहर ) मिला कर उनको भोजन करा दिया। परन्तु भगवान शंकर की कृपा से एक भी बालक की मृत्यु नहीं हुई। यह देखकर तो रानी अत्यन्त ही आश्चर्य चकित हो गई और इस रहस्य का पता लगाने की मन में ठान ली। भगवान की पूजा सेवा से निवृत्त होकर जब भूषण देवी आई तो रानी ने उससे कहा कि मैंने तेरे पुत्रों को मारने के लिए इनको जहर मिलाकर लड्डू खिला दिये किन्तु इसमें से एक भी नहीं मरा । तूने ऐसा कौनसा दान, पुण्य, व्रत किया है जिसके कारण तेरे पुत्र भी नहीं मरे और तू नित्य नये सुख भोग रही है।तू बड़ी सौभाग्यवती है। इस सबका भेद तू, मुझे निष्कपट होकर समझा। मैं तेरी बड़ी ऋणी रहूंगी।रानी के ऐसे दीन वचन सुनकर भूषण ब्राह्मणी कहने लगी-हे रानी! सुनो, तुमको तीन जन्म का हाल कहती हैं, सो ध्यानपूर्वक सुनना ।

पहिले जन्म में तुम राजा नहुष की पत्नी थी और तुम्हारा नाम चंद्रमुखी थी। मेरा नाम भद्रमुखी था और मैं ब्राह्मणी थी।हम तुम अयोध्या में रहते थे। मेरी तुम्हारी बड़ी प्रीति थी। एक दिन हम तुम दोनों सरयू नदी में स्नान करने गए और दूसरी स्त्रियों को संतान सप्तमी का उपवास, शिवजी का पूजन अर्चन करते देखकर हमने तुमने भी उस व्रत को करने की प्रतिज्ञा की | थी। तुम तो राजमद के कारण सब भूल गयीं और झूठ बोलने का तुमको दोष लगा, जिसे तुम आज भी भोग रही हो। मैंने इस व्रत का आचार विचार सहित नियमपूर्वक सदैव किया, और आज भी करती हैं। दूसरे जन्म में तुम्हें बन्दरिया की योनि मिली तथा मुझे मुर्गी की योनि मिली। भगवान शंकर की कृपा से इस व्रत के प्रभाव तथा भगवन्नाम को मैं इस जन्म में भी न भूली और निरन्तर उस व्रत को नियमानुसार करती रही। तुम अपने इस संकल्प को इस जन्म में भी भूल गयीं। मैं तो समझती हूँ कि तुम्हारे ऊपर जो भारी संकट है उसका एक मात्र यही कारण है और कोई दूसरा इसका कारण नहीं हो सकता है। इसलिए कहती हूँ कि आप अब इस संतान सप्तमी के व्रत को करिए जिससे तुम्हारा यह संकट दूर हो जावे।' सप्त के व्रत को करिए 'जिससे तुम्हारा यह संकट दूर हो जावे। लोमश जी ने कहा हे देवी! भूषण ब्राह्मणी के मुख से अपने पूर्व जन्म की कथा तथा व्रत संकल्प इत्यादि सुनकर रानी को पुरानी बातें याद आ गयीं और पश्चाताप करने लगी। अब रानी भूषण ब्राह्मणी के चरणों में पड़ क्षमा-याचना करने लगी और भगवान शंकर पार्वती की अपार महिमा के गीत गाने लगी। उसी दिन से रानी ने नियमानुसार सन्तान सप्तमी का व्रत किया, जिसके प्रभाव से रानी को सन्तान सुख भी मिला तथा सम्पूर्ण सुख भोग कर रानी शिवलोक को गई। भगवान शंकर के व्रत का ऐसा प्रभाव है कि पथभ्रष्ट मनुष्य भी अपने पथ पर अग्रसर हो जाता है और अन्त में ऐश्वर्य भोगकर मोक्ष पाता है। 

लोमशऋषि ने फिर कहा कि हे देवकी! इसलिए मैं तुमसे भी कहता  हूँ कि तुम भी इस व्रत को करने का दृढ़ संकल्प अपने मन में करो तो तुमको भी सन्तान सुख प्राप्त होगा। इतनी कथा सुनकर देवकी हाथ जोड़कर लोमश ऋषि से पूछने लगी हे ऋषिराज! मैं इस पुनीत व्रत को अवश्य करूंगी, किन्तु आप इस कल्याणकारी एवं संतान सुख देने वाले व्रत का विधान, नियम विधि आदि विस्तार से समझाइये। यह सुनकर ऋषि बोले-हे देवकी! यह पुनीत व्रत भादों के महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन किया जाता है। उस दिन ब्रह्म मुर्हत में उठकर किसी नदी अथवा कुएं के पवित्र जल से स्नान करके निर्मल वस्त्र पहिनना चाहिए। फिर श्रीशंकर भगवान तथा जगदम्बा पार्वतीजी की मूर्ति की स्थापना करे। इन प्रतिमाओं के सम्मुख सोने चाँदी के तारों का अथवा रेशम का एक गंडा बनावें। उस गंडे में सात गाँठे लगानी चाहिए। इस गंडे की धूप, दीप, अष्टगंध से पूजा करके अपने हाथ में बांधे और भगवान शंकर से अपनी कामना सफल होने की शुद्ध भाव से प्रार्थना करे। तदनन्तर सात पूआ बनाकर भगवान को भोग लगावें और सात ही पूआ एवं यथाशक्ति सोने और चाँदी की एक अंगूठी बनाकर इन सबको एक ताँबे के पात्र में रखकर और उनका शोड़षौपचार विधि से पूजन करके किसी सदाचार धर्मनिष्ठ, कर्मनिष्ठ सत्पात्र ब्राह्मण को दान में दे देवें। उसके पश्चात् सात पूआ स्वयं प्रसाद में ग्रहण करे। इस प्रकार इस व्रत का पारायण करना चाहिए। प्रतिमास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन हे देवकी! इस व्रत को इस प्रकार नियमपूर्वक करने से समस्त पाप नष्ट होते हैं और भाग्यशाली संतान उत्पन्न होती है तथा अन्त में शिवलोक की प्राप्ति होती है। हे देवकी! मैंने तुमको सन्तान सप्तमी का व्रत सम्पूर्ण विधान विस्तार सहित वर्णन कर दिया है। उनको अब तुम नियमपूर्वक करो, जिससे तुमको उत्तम संतान प्राप्त होगी।


इनती कथा कहकर भगवान आनन्दकन्द श्री कृष्ण ने धर्मावतार युधिष्ठिर से कहा कि लोमश जी इस प्रकार हमारी माता को शिक्षा देकर चले गये। ऋषि के कथनानुसार हमारी माता देवकी ने इस व्रत को नियमानुसार किया जिसके प्रभाव से हम उत्पन्न हुए।

यह व्रत विशेष रूप से स्त्रियों को तो कल्याणकारी है ही, परन्तु पुरुष को भी समान रूप से कल्याणदायक है। संतान सुख देने वाला, पापों का नाश करने वाला यह उत्तम व्रत है जिसे स्वयं भी करे तथा दूसरों से भी करावें। नियमपूर्वक जो इस व्रत को करता है और भगवान शंकर एवं पार्वती को सच्चे मन से आराधना करता है वह निश्चय ही अमर यश प्राप्त करके अन्त में शिवलोक को प्राप्त होता है।



संतान गोपाल मन्त्र  का पाठ


संतान प्रदान करने वाले अनुष्ठानों में संतान गोपाल मन्त्र का पाठ भी अमोघ उपाय है . इसको धनी - निर्धन सभी सुविधा अनुसार कर सकते हैं -

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।



शिव चालीसा


दोहा
जय गणेश गिरिजासुवन मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम देउ अभय वरदान॥

चालीसा
जय गिरिजापति दीनदयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नाग फनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु कि हवे दुलारी। वाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नंदी गणेश सोहैं तहं कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि कौ कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तबहिं दु:ख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लव निमेष महं मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। तबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
जय शिव
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहीं पाई॥
प्रकटे उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ह दया तहं करी सहाई। नीलकंठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हां। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं त्रिपुरारी।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सबके घट वासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावैं। भ्रमत रहौं मोहे चैन न आवैं॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यह अवसर मोहि आन उबारो॥
ले त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहिं आन उबारो॥
मात पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा ही। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करों तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत हैं शम्भु सहाई॥
रनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन की इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। तन नहिं ताके रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दु:ख हरहु हमारी॥
दोहा

नित नेम उठि प्रातः ही पाठ करो चालीस।
तुम मेरी मनकामना पूर्ण करो जगदीश॥



शिव जी की आरती


ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
जय शिव
जय शिव
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥



विडियो के रूप में देखें - 





COMMENTS

Leave a Reply: 1
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1478,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,40,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,3,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,53,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,77,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,7,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,12,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,141,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,50,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,18,भीष्म साहनी,9,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,16,यशपाल,19,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,125,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,3,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,3,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,34,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,270,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,22,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,88,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,438,हिंदी लेख,536,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,186,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,divya-upanyas-yashpal,5,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,12,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,430,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,682,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,77,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,24,kavyagat-visheshta,26,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,12,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,8,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,6,Syllabus,7,tamas-upanyas-bhisham-sahni,4,top-classic-hindi-stories,59,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: संतान सप्तमी व्रत कथा एवं पूजा विधि
संतान सप्तमी व्रत कथा एवं पूजा विधि
संतान सप्तमी व्रत कथा एवं पूजा विधि Santan Saptami Vrat Katha Vidhi In Hindi Santan Saptami Date Vrat Katha Puja Vidhi Shubh Muhurat संतान सप्तमी व्रत कथा एवं पूजा विधि Santan Saptami Vrat Katha Vidhi In Hindi Katha Vidhi Procedure In Hindiसप्तमी व्रत 2018 संतान सप्तमी व्रत पूजा-कथा सप्तमी पूजा विधि सप्तमी कब है सप्तमी व्रत सप्तमी कब है सप्तमी तिथि शीतला सप्तमी 2018
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6xaoZrqBfYB68NG7lAvgNkwSNxjhqG-CeQaosIlgapW7Q_WmfYHaG_ohaU2cZRwPv98-SW-AsEQklco0W8dwu5h3i4T70ljfxRRzSxegaQ-lK_c2Z7VMUd6pK466io2Ig52-eVFO8YTd5/s320/maxresdefault.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6xaoZrqBfYB68NG7lAvgNkwSNxjhqG-CeQaosIlgapW7Q_WmfYHaG_ohaU2cZRwPv98-SW-AsEQklco0W8dwu5h3i4T70ljfxRRzSxegaQ-lK_c2Z7VMUd6pK466io2Ig52-eVFO8YTd5/s72-c/maxresdefault.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2018/09/santan-saptami.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2018/09/santan-saptami.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका