हमारी सोच हमारी सोच बीता हुआ समय हमें बहुत कुछ सिखा जाता है।कुछ ऐसे दृश्य होते हैं, जो चाहकर भी भुलाए नहीं जा सकते जिन्दगी की इस भागमभाग में कई ऐसे नज़ारे देखने को मिल जाते हैं l जिनसे एक माकूल सीख मिलती है l
हमारी सोच
हमारी सोच बीता हुआ समय हमें बहुत कुछ सिखा जाता है।कुछ ऐसे दृश्य होते हैं, जो चाहकर भी भुलाए नहीं जा सकते जिन्दगी की इस भागमभाग में कई ऐसे नज़ारे देखने को मिल जाते हैं l जिनसे एक माकूल सीख मिलती है l लेकिन मनुष्य का एक स्वभाव नजरंदाज करना भी है l शायद आज हम सभी एक ऐसी दुनियां में खो से गए हैं l जहाँ हम चाहकर भी कुछ सीख नहीं पाते हैं और अच्छी बातों को नजर अंदाज करते जाते हैं l इस बदले हुए स्वभाव को मैं नया नाम देता हूँ, `वर्तमान की सोच`l
सवारी बस |
इस सोच से जुडे कुछ दृश्य मैं बयां कर रहा हूँ , जो मैंने खुद महसूस किए हैं।मैं बताना चाहता हूँ, कि मनुष्य कहाँ गलती करता है और कहाँ हमारी सोच कुंठित हो जाती है। जो वर्तमान में समाज के लिए जहर बन जाती है l अपने जीवन की गाड़ी चलने के लिए हर किसी को कुछ न कुछ करना पड़ता है।
मैं भी एक दिन अपने काम से कहीं जा रहा था l बस में सवारियाँ बहुत थी l धक्का मुक्की में फसा हुआ मैं सफर का अनोखा आनंद ले रहा था l एक गाँव में कुछ सवारी बस से उतरी तो मैंने नजर दोडाई एक सीट खाली मिली l मैं फटाफट जाकर बैठ गया की कोई और न आ जाए l अगले गाँव में कुछ सवारी फिर चढ़ी l एक अधेड़ उम्र की महिला भी l उसने पूरी बस में नजर दोडाई लेकिन कोई सीट खाली नहीं थी l बस में एक सीट का सहारा लेकर बेचारी बूढी महिला खड़ी हो गई l मुझे कुछ देर के लिए तो लगा की खड़ा होकर सीट दे दूं l किन्तु आधे घंटे के धकमपेल की वजह से मैं भी काफी थक गया था l शरीर गवाही नही दे रहा था की खड़ा हो जाऊँ lआसपास नजर घुमाई तो सबसे युवा में ही था l तो सबकी नजरे मेरे उपर ही थी न चाहते हुए भी खड़ा हुआ l
``माताजी आप बैठ जाइये l न ..न ... न .. बेटा...... बैठे रहो कहते हुए मेरे पूरी तरह सीट छोडने से पहले ही सीट पर बैठ गई l मैंने सोचा की अगर बैठना ही था तो न.... न ..... बोलने की क्या जरुरत थी?
खेर बस अब शहर पहुँच चुकी थी l मेरे साथ साथ बस की अन्य सवारियां भी एक-एक करके उतर गई l सब चले अपनी अपनी मंजिल की ओर l
मुझे ओर आगे दूसरे शहर जाना था, तो बस स्टैंड पर खड़ा हो गया और आगे वाली बस का इंतजार करता रहा l सयोंग से बस के आने में बहुत समय था l मैं स्टैंड पर चहल कदमी करता रहा और बाजार की रौनक देखता रहा
विनोद महर्षि `अप्रिय` |
अचानक वही प्यारी धुन फिर से कानो मैं पड़ी l मैं फुरती से घूमा तो देखा वही बच्चा मुरली बजा रहा था l आश्चर्य हुआ और खुशी भी की इतनी छोटी उम्र में इतना मन भावन हुनर l
लेकिन एक और में अचरज में था, की इतनी छोटी उम्र में बच्चों को यह सब क्यों करना पड़ता है? शायद यही जिन्दगी है l जीविका के लिए कुछ तो करना ही पड़ता है l पर यह क्या भगवान उम्र का तो ख्याल रखते? दूध पीते बच्चे इस दुनिया की तड़क-भड़क में बिना ज्ञान के क्या कर पायेंगे? लेकिन मन को तसल्ली ये भी थी, की एक कहावत को सुना था की ,`कीचड़ मैं कमल खिलता है l` आज देखा भी l कुछ देर वो बच्चा खेल दिखाने की पूरजोर कोशिस करता रहा पर शायद किसी के पास इतना वक्त नही था, की रूककर खेल देखे और गरीब की पेट भरने में मदद करे l कोई उस तरफ नहीं गया मुरली की वो धून आकर्षक थी l बार बार चाह रहा था की जाऊँ l लेकिन न जा सका ये सोचकर पैर रुक गये की देखने वाले क्या कहेंगे की इसको कोई काम नहीं है l पैर दुनिया के कहने और डर से रुक जाते हैं l पर दिल की सच्चाई को कोई ताकत नही रोक सकती l लेकिन सचाई यह भी है की हम तमाशा भी भीड़ में देख सकते हैं l अकेले में हमें उस गरीब और बेसहारा की मजबूरी नजर आती है l जो कोई कभी चाह कर भी नहीं देखना चाहता है l एक बार मेरा भी मन हुआ की उसके पास जाऊ पर कदम आगे नहीं बढे l मन में कई सवाल विचार उठे l पर जवाब किसी का भी नहीं था l मेरे पास भी नहीं l ‘लेकिन फुर्सत में जब दुबारा उस द्रश्य को याद करता हूँ तो हर सवाल का जवाब मिलता है और वो जवाब है ‘हमारी सोच l`
यह हमारी वही सोच है जो कुंठित हो गई है l जिसके आगे हम किसी की धुन नहीं सुनना चाहते l बस अपने आप की सोचते है l सोच विचार की उठा पटक में मेरी बस आ गई l मैं झटपट बस में चढ़ा और कोने की सीट पकड़ कर बैठ गया ताकि कोई और आकर न बैठ जाये l
-विनोद महर्षि `अप्रिय`
पता - ग्राम पोस्ट - सीतसर तहसील - रतनगढ़ जिला - चुरू ( राजस्थान )
सम्पर्क सूत्र - 9772255022
Nice story. All the best for your future.
जवाब देंहटाएंKeep writing and think good as usual you do before.
R.K shastri guru