नवरात्रि व्रत कथा और पूजन विधि दुर्गा नवरात्रि व्रत पूजा विधि नवरात्र व्रत के नियम navratri vrat katha and puja vidhi in hindi Navratri vrat katha in Hindi Navratri Vrat Katha | Navratri Vrat Katha in Hindi नवरात्री व्रत कथा Navratri 2017 Navratri 2018 Navratri Vrat Katha Navratri Vrat Katha in Hindi नवरात्री व्रत कथा नवरात्रि पूजन विधि in hindi
नवरात्रि व्रत कथा और पूजन विधि
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श्री दुर्गा नवरात्रि व्रत पूजा विधि
आश्विन मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक विधि पूर्वक व्रत करे यदि दिन भर का व्रत न कर सके तो एक समय भोजन करे। पढ़े लिखे ब्राह्मणों से पूछकर कलश स्थापना करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचे। महाकाली, महालक्ष्मी और महा सरस्वती इनकी मूर्तियां बनाकर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करे और पुष्पों से विधि पूर्वक अध्र्य दें। बिजौरा के फूल से अध्र्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। जायफल से कीर्ति, दाख से कार्य की सिद्धि होती है।आंवले से सुख और केले से भूषण की प्राप्ति होती है।इस प्रकार फलों से अध्र्य देकर यथा विधि हवन करें। खांड, घी, गेहूं, शहद, जौ, तिल, विल्व, नारियल, दाख और कदम्ब इनसे हवन करें गेहूं होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।खीर व चम्पा के पुष्पों से धन और पत्तों से तेज और सुख की प्राप्ति होती है। आंवले से कीर्ति और केले से पुत्र होता है। कमल से राज सम्मान और दाखों से सुख सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। खंड, घी, नारियल, जौ और तिल इनसे तथा फलों से होम करने से मनवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है। व्रत करने वाला मनुष्य इस विधान से होम कर आचार्य को अत्यन्त नम्रता से प्रणाम करे और व्रत की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दे। इस महाव्रत को पहले बताई हुई विधि के अनुसार जो कोई करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। इसमें तनिक भी संशय नहीं है।इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है, उसका करोड़ों गुना मिलता है। इस नवरात्र के व्रत करने से ही अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।
श्री दुर्गा नवरात्रि व्रत पूजन सामग्री -
कदली खर्भ,पल्लव, पंच पल्लव, कलश, यज्ञोपवीत, लाल वस्त्र, सफेद वस्त्र, तन्दुल, कुंकुम (रोली) गुलाल, मंगलीक (गुड़), धूप, पुष्पादि, तुलसीदल, श्रीफल, ताम्बूल, नाना फलानी (मौसम के फल), माला, पंचामृत, नैवेद्यार्थ प्रसाद पदार्थ, गोधन चूर्ण, गुणान्न, रंगीन आटा, दीपक, भगवान की मूर्ति, लौंग, इलायची, दूर्वा (दूब),कर्पूर (कपूर), केशर, मण्डप उपयोगी साहित्य, द्रव्य दक्षिणा।
श्री दुर्गा नवरात्रि व्रत पूजन सामग्री को घर बैठे ऑनलाइन अमेज़न से आर्डर करें और भगवती दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करें .
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श्री दुर्गा नवरात्रि व्रत कथा
एक समय नारद जी ने संसार भ्रमण के लिये स्वर्गलोक से मृत्युलोक की यात्रा को प्रस्थान किया। जब मृत्युलोक में पहुँचे तब वहाँ पर अनेक मनुषों को नाना प्रकार के क्लेशों से दुखी देखा।किसी मनुष्य को पुत्र से दुखी देखा, किसी को धन के लिये रोते देखा।जब सारा मृत्युलोक घूम चुके तब उनके मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि श्री वृहस्पति जी के बहुत दिनों से दर्शन नहीं किये हैं सो इनके दर्शन भी करते चलें, ऐसा मन में विचार कर वे श्री वृहस्पति जी के स्थान पर पहुँच गये।श्री वृहस्पति जी ने श्री नारद जी के आगमन पर बड़ा हर्ष प्रकट किया और नारद जी से बोले- आप अपने आने का कारण मुझे बतलाइये, जिस विचार से आप आज मेरे स्थान पर पधारे हैं, नि:संकोच मुझसे वर्णन कीजिये। तब नारद जी ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की और कहा- महाराज! मैं इस बात को जानने के लिये आपके पास आया हूँ कि नवरात्र के दिनों में व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है।इस व्रत का माहात्म्य मैं आपके मुखारविन्द से सुनना चाहता हूँ।
तब वृहस्पति जी बोले-हे नारद! इस नवरात्र व्रत कथा को मैंने ब्रह्माजी से सुना था- यह नवरात्र का व्रत चैत्र शुक्ल
श्री दुर्गा |
हे बृहस्पते! जिसने पहले इस व्रत को किया है उसका पवित्र इतिहास मैं तुम्हें सुनाता हूं। तुम सावधान होकर सुनो। इस प्रकार ब्रह्मा जी का वचन सुनकर बृहस्पति जी बोले- हे ब्राह्मण! मनुष्यों का कल्याण करने वाले इस व्रत के इतिहास को मेरे लिए कहो मैं सावधान होकर सुन रहा हूं। आपकी शरण में आए हुए मुझ पर कृपा करो।
ब्रह्मा जी बोले- पीठत नाम के मनोहर नगर में एक अनाथ नाम का ब्राह्मण रहता था। वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसके सम्पूर्ण सद्गुणों से युक्त मनो ब्रह्मा की सबसे पहली रचना हो ऐसी यथार्थ नाम वाली सुमति नाम की एक अत्यन्त सुन्दर पुत्री उत्पन्न हुई। वह कन्या सुमति अपने घर के बालकपन में अपनी सहेलियों के साथ क्रीड़ा करती हुई इस प्रकार बढ़ने लगी जैसे शुक्लपक्ष में चन्द्रमा की कला बढ़ती है। उसका पिता प्रतिदिन दुर्गा की पूजा और होम करता था। उस समय वह भी नियम से वहां उपस्थित होती थी। एक दिन वह सुमति अपनी सखियों के साथ खेलने लग गई और भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता को पुत्री की ऐसी असावधानी देखकर क्रोध आया और पुत्री से कहने लगा कि हे दुष्ट पुत्री! आज प्रभात से तुमने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मैं किसी कुष्ठी और दरिद्री मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूंगा।
इस प्रकार कुपित पिता के वचन सुनकर सुमति को बड़ा दुख हुआ और पिता से कहने लगी कि हे पिताजी! मैं आपकी कन्या हूं। मैं आपके सब तरह से आधीन हूं। जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करो। राजा कुष्ठी अथवा और किसी के साथ जैसी तुम्हारी इच्छा हो मेरा विवाह कर सकते हो पर होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है मेरा तो इस पर पूर्ण विश्वास है।
मनुष्य जाने कितने मनोरथों का चिन्तन करता है पर होता वही है जो भाग्य में विधाता ने लिखा है जो जैसा करता है उसको फल भी उस कर्म के अनुसार मिलता है, क्यों कि कर्म करना मनुष्य के आधीन है। पर फल दैव के आधीन है। जैसे अग्नि में पड़े तृणाति अग्नि को अधिक प्रदीप्त कर देते हैं उसी तरह अपनी कन्या के ऐसे निर्भयता से कहे हुए वचन सुनकर उस ब्राह्मण को अधिक क्रोध आया। तब उसने अपनी कन्या का एक कुष्ठी के साथ विवाह कर दिया और अत्यन्त क्रुद्ध होकर पुत्री से कहने लगा कि जाओ- जाओ जल्दी जाओ अपने कर्म का फल भोगो। देखें केवल भाग्य भरोसे पर रहकर तुम क्या करती हो?
इस प्रकार से कहे हुए पिता के कटु वचनों को सुनकर सुमति मन में विचार करने लगी कि - अहो! मेरा बड़ा दुर्भाग्य है जिससे मुझे ऐसा पति मिला। इस तरह अपने दुख का विचार करती हुई वह सुमति अपने पति के साथ
श्री दुर्गा |
तुम्हारे पूर्व जन्म का वृतान्त सुनाती हूं सुनो! तुम पूर्व जन्म में निषाद (भील) की स्त्री थी और अति पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की। चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और ले जाकर जेलखाने में कैद कर दिया। उन लोगों ने तेरे को और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया। इस प्रकार नवरात्रों के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न ही जल ही पिया। इसलिए नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया। हे ब्राह्मणी! उन दिनों में जो व्रत हुआ उस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर तुम्हें मनवांछित वस्तु दे रही हूं। तुम्हारी जो इच्छा हो वह वरदान मांग लो।
इस प्रकार दुर्गा के कहे हुए वचन सुनकर ब्राह्मणी बोली कि अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो हे दुर्गे! आपको प्रणाम करती हूं। कृपा करके मेरे पति के कुष्ठ को दूर करो। देवी कहने लगी कि उन दिनों में जो तुमने व्रत किया था उस व्रत के एक दिन का पुण्य अपने पति का कुष्ठ दूर करने के लिए अर्पण करो मेरे प्रभाव से तेरा पति कुष्ठ से रहित और सोने के समान शरीर वाला हो जायेगा। ब्रह्मा जी बोले इस प्रकार देवी का वचन सुनकर वह ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न हुई और पति को निरोग करने की इच्छा से ठीक है ऐसे बोली। तब उसके पति का शरीर भगवती दुर्गा की कृपा से कुष्ठहीन होकर अति कान्तियुक्त हो गया जिसकी कान्ति के सामने चन्द्रमा की कान्ति भी क्षीण हो जाती है वह ब्राह्मणी पति की मनोहर देह को देखकर देवी को अति पराक्रम वाली समझ कर स्तुति करने लगी कि हे दुर्गे! आप दुर्गत को दूर करने वाली, तीनों जगत की सन्ताप हरने वाली, समस्त दुखों को दूर करने वाली, रोगी मनुष्य को निरोग करने वाली, प्रसन्न होने पर मनवांछित वस्तु को देने वाली और दुष्ट मनुष्य का नाश करने वाली हो। तुम ही सारे जगत की माता और पिता हो। हे अम्बे! मुझ अपराध रहित अबला की मेरे पिता ने कुष्ठी के साथ विवाह कर मुझे घर से निकाल दिया। उसकी निकाली हुई पृथ्वी पर घूमने लगी। आपने ही मेरा इस आपत्ति रूपी समुद्र से उद्धार किया है। हे देवी! आपको प्रणाम करती हूं। मुझ दीन की रक्षा कीजिए।
ब्रह्माजी बोले- हे बृहस्पते! इसी प्रकार उस सुमति ने मन से देवी की बहुत स्तुति की, उससे हुई स्तुति सुनकर देवी को बहुत सन्तोष हुआ और ब्राह्मणी से कहने लगी कि हे ब्राह्मणी! उदालय नाम का अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान और जितेन्द्रिय पुत्र शीघ्र होगा। ऐसे कहकर वह देवी उस ब्राह्मणी से फिर कहने लगी कि हे ब्राह्मणी और जो कुछ तेरी इच्छा हो वही मनवांछित वस्तु मांग सकती है ऐसा भवगती दुर्गा का वचन सुनकर सुमति बोली कि हे भगवती दुर्गे अगर आप मेरे ऊपर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे नवरात्रि व्रत विधि बतलाइये। हे दयावन्ती! जिस विधि से नवरात्र व्रत करने से आप प्रसन्न होती हैं उस विधि और उसके फल को मेरे लिए विस्तार से वर्णन कीजिए।
इस प्रकार ब्राह्मणी के वचन सुनकर दुर्गा कहने लगी हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हारे लिए सम्पूर्ण पापों को दूर करने वाली नवरात्र व्रत विधि को बतलाती हूं जिसको सुनने से समाम पापों से छूटकर मोक्ष की प्राप्ति होती है। आश्विन मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक विधि पूर्वक व्रत करे यदि दिन भर का व्रत न कर सके तो एक समय भोजन करे। पढ़े लिखे ब्राह्मणों से पूछकर कलश स्थापना करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचे। महाकाली, महालक्ष्मी और महा सरस्वती इनकी मूर्तियां बनाकर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करे और पुष्पों से विधि पूर्वक अध्र्य दें। बिजौरा के फूल से अध्र्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। जायफल से कीर्ति, दाख से कार्य की सिद्धि होती है। आंवले से सुख और केले से भूषण की प्राप्ति होती है। इस प्रकार फलों से अध्र्य देकर यथा विधि हवन करें। खांड, घी, गेहूं, शहद, जौ, तिल, विल्व, नारियल, दाख और कदम्ब इनसे हवन करें गेहूं होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। खीर व चम्पा के पुष्पों से धन और पत्तों से तेज और सुख की प्राप्ति होती है। आंवले से कीर्ति और केले से पुत्र होता है। कमल से राज सम्मान और दाखों से सुख सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। खंड, घी, नारियल, जौ और तिल इनसे तथा फलों से होम करने से मनवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है। व्रत करने वाला मनुष्य इस विधान से होम कर आचार्य को अत्यन्त नम्रता से प्रणाम करे और व्रत की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दे। इस महाव्रत को पहले बताई हुई विधि के अनुसार जो कोई करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। इसमें तनिक भी संशय नहीं है। इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है, उसका करोड़ों गुना मिलता है। इस नवरात्र के व्रत करने से ही अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। हे ब्राह्मणी! इस सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले उत्तम व्रत को तीर्थ मंदिर अथवा घर में ही विधि के अनुसार करें।
ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पते! इस प्रकार ब्राह्मणी को व्रत की विधि और फल बताकर देवी अन्तध्र्यान हो गई। जो मनुष्य या स्त्री इस व्रत को भक्तिपूर्वक करता है वह इस लोक में सुख पाकर अन्त में दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त होता हे। हे बृहस्पते! यह दुर्लभ व्रत का माहात्म्य मैंने तुम्हारे लिए बतलाया है। बृहस्पति जी कहने लगे- हे ब्राह्मण! आपने मुझ पर अति कृपा की जो अमृत के समान इस नवरात्र व्रत का माहात्म्य सुनाया। हे प्रभु! आपके बिना और कौन इस माहात्म्य को सुना सकता है? ऐसे बृहस्पति जी के वचन सुनकर ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पते! तुमने सब प्राणियों का हित करने वाले इस अलौकिक व्रत को पूछा है इसलिए तुम धन्य हो। यह भगवती शक्ति सम्पूर्ण लोकों का पालन करने वाली है, इस महादेवी के प्रभाव को कौन जान सकता है।
माता दुर्गा से अरदास विनती
मैया तू ही करेगी प्रतिपालना मुझको नहीं और सहारा री।
मैया जी हैं दीन अनाथ में होकर दुखी न पुकार री॥
मैया सारे देवों का मिल तेज यह बना शरीर तिहारा री।
मैया अष्ट भुजा तेरा रूप औ वाहन है सिंह करारा री।
मैया चक्र गदा त्रिशूल लिये बरछी और दुधारा री।
मैया धनुष बाण कर धार तू गरजे दे हुँकारा री।
मैया कौन कोप सके ओट लख थर्राये जग सारा री।
श्री दुर्गा |
मैया धार भयंकर रूप झट महिषासुर को मारा री।
मैया चण्ड-मुण्ड दिये मार और रक्तबीज महि डारा री।
मैया शुभ-निशम्य विदार दल असुरों का संहारा री।
मैया मेरा है कौन कसूर जो मुझको आज बिसारा री।
मैया हो अगर कोई अपराध उसे दिल से कर दे न्यारा री।।
मैया पूत कपूत होय माता ना करे किनारा री।
मैया लो सुन करुण पुकार है जग में तेरा पसारा री।
मैया बीच भंवर मेरी नाव फैंसी न दीखे कोई किनारा री।
पैया जिसने शरण लई आय उसका काज सुधारा री।
मैया वीर रूप निज धार लेकर आज कटारा री।
मैया देव हमारे रिप मार हम करें तुम्हारा जयकारा री।।
मैया कीन्हें बड़े बड़े काज मेरा क्या भारा री।
मैया दुश्मन रहे हैं सिर गाज, तू उनको कर दे छारा री।
मैया तेरी दया की मुझको चाह, मैं घिर आफत से हारा री
मैया करके न कोप कराल दल दुश्मन का कर दे छारा री।।
मैया मुझको तो तेरा ही आधार, कर बेड़ा पार हमारा री।
मैया कर दे दया भरपूर दे लगा विजय का नारा री।
मैया होकर निपट अधीर, यों करता अरज दोबारा री।
मैया फेरो दया की दृष्टि आप हो रक्षक मिले उबारा री।।
मैया सारे विघ्न देवो टार, चमका दो मेरा।सितारा री।
मैया दो धन यश बल मान सेवक ने हाथ पसारा री।
मैया आनन्द का कर मेरे राज सुत अपना समझ पिसारा री।
मैया दिव्य दरश दो आज हो झट मेरा निस्तारा री।।
मैया पूरी विधि से यह पाठ जो करता भगत तिहारा री।
मैया हो सुख विविध प्रकार मिले रंज से छुटकारा ।
मैया द्वार पड़ा हैं तेरे आय, ‘ब्रजमोहन' तेरा दुलारा री।
मैया खुश होके देवो वरदान आनन्द का बजे नगारा ।।
आरती श्री दुर्गा जी की
अम्बे तू है जगदम्बे काली,
जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेर ही गुण गायें भारती,
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ।
तेर भक्त जानो पर मैया भीड़ पड़ी है भारी,
श्री दुर्गा |
दानव दल पर टूट पड़ो माँ कर के सिंह सवारी ।
सो सो सिंघो से है बलशाली,
है दस भुजाओं वाली,
दुखिओं के दुखड़े निवारती ।
माँ बेटे की है इस जग में बड़ा ही निर्मल नाता,
पूत कपूत सुने है पर ना माता सुनी कुमाता ।
सबपे करुना बरसाने वाली,
अमृत बरसाने वाली,
दुखिओं के दुखड़े निवारती ।
नहीं मांगते धन और दौलत ना चांदी ना सोना,
हम तो मांगे माँ तेरे मन में एक छोटा सा कोना ।
सब की बिगड़ी बनाने वाली,
लाज बचाने वाली,
सतिओं के सत को सवारती ।
अम्बे तू है जगदम्बे काली,
जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेर ही गुण गायें भारती,
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ।
विडियो के रूप में देखें -
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