साहित्य का मूल प्रयोजन लोक मंगल की साधना है, न कि मनोरंजन। समाज के लिए जो कुछ भी अशुभ और अमंगलकारी हो सकता है साहित्य उस यथार्थ की आलोचना करता है और मंगलकारी आदर्श की स्थापना करता है। इस दृष्टि से भारतीय भाषाओं का भक्ति आंदोलन, नवजागरण आंदोलन और स्वतंत्रता आंदोलन के समय का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन साहित्य पूरी तरह सुधारात्मक दृष्टिकोण से प्रेरित है।
एलूरु में द्विदिवसीय त्रिभाषी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न
- हिंदी भारतीय संस्कृति की संवाहक और दिल की भाषा है - को जोंग किम
- साहित्य यथार्थ की आलोचना करता है – ऋषभदेव शर्मा
एलूरु (आंध्र प्रदेश, 21 दिसंबर)।
“साहित्य का मूल प्रयोजन लोक मंगल की साधना है, न कि मनोरंजन। समाज के लिए जो कुछ भी अशुभ और अमंगलकारी हो सकता है साहित्य उस यथार्थ की आलोचना करता है और मंगलकारी आदर्श की स्थापना करता है। इस दृष्टि से भारतीय भाषाओं का भक्ति आंदोलन, नवजागरण आंदोलन और स्वतंत्रता आंदोलन के समय का
अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन |
ये विचार सर सी.आर. रेड्डी (स्वायत्त) महाविद्यालय में आयोजित संस्कृत, तेलुगु और हिंदी के द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के हिंदी केंद्रित विचार-विमर्श के बीज भाषण के दौरान दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के पूर्व आचार्य डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने प्रकट किए। उन्होंने हर्ष व्यक्त किया कि भयंकर मूल्य विघटन और उपभोक्ता संस्कृति से ग्रसित वर्तमान परिस्थितियों में इस प्रकार एक सार्थक सम्मेलन का आयोजन हो रहा है। उन्होंने कहा कि एक ठेठ तेलुगु प्रदेश में इतने बड़े पैमाने पर हिंदी में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन होना अपूर्व है।
भाषा और संस्कृति विभाग, आंध्र प्रदेश सरकार के सहयोग से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रायोजित तथा हिंदी, तेलुगु व संस्कृत विभागों के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में समाज पर भाषा एवं साहित्य के प्रभाव को लेकर कई महत्वपूर्ण चर्चाओं को स्थान मिला। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, पांडिच्चेरी आदि राज्यों के साथ-साथ अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, कोरिया और जापान से आए विद्वानों, हिंदी सेवियों और छात्रों ने बड़ी संख्या में उपस्थित होकर इस सम्मेलन को सफल बनाया।
दक्षिण कोरिया से पधारे हिंदी लेखक और आलोचक डॉ. को जोंग किम ने कहा कि दक्षिण कोरिया और भारत के बीच बहुत प्राचीनकाल से अच्छे रिश्ते रहे हैं। उन्होंने हिंदी को भारतीय संस्कृति की संवाहक बताते हुए उसे ‘दिल की भाषा’ कहा।
आंध्र प्रदेश के पूर्व सांसद और फिल्म विकास निगम के अध्यक्ष अंबिका कृष्ण ने अपने संबोधन में तेलुगु भाषा और साहित्य को संरक्षित करने की बता कही तथा उसके आंदोलनात्मक और सुधारवादी चरित्र पर प्रकाश डाला।
हिंदी साहित्य संबंधी विचार सत्रों में समाज और भाषा के संबंध में आंध्र विश्वविद्यालय के प्रो. एन. सत्यनारायण, सैंट जोसेफ महिला महाविद्यालय की डॉ. पी.के.जयलक्ष्मी, नरसापुर के डॉ. कुमार नागेश्वर राव, तमिलनाडु केंद्रीय विश्वविद्यालय के आचार्य डॉ. एस.वी.एस.एस.नारायण राजु, कांचीपुरम विश्वविद्यालय के डॉ. दंडिबोट्ला नागेश्वर राव, नागार्जुन विश्वविद्यालय के डॉ. काकानि कृष्ण, मानु के डॉ. डी. शेषुबाबु, काकिनाडा के डॉ. पी. हरिराम प्रसाद तथा हैदराबाद की डॉ. पूर्णिमा शर्मा सहित अनेक विद्वानों और शोधार्थियों ने शोधपत्र प्रस्तुत किए।
सर सी.आर.रेड्डी शैक्षिक संस्थाओं के अध्यक्ष श्री कोम्मारेड्डि राम बाबू, महाविद्यालय के कॉरस्पॉन्डन्ट एवं अन्य पदाधिकारियों ने समारोह में भाषा के महत्व पर अपनी राय जताई। समापन समारोह में प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने तेलुगु में भाषण देकर श्रोताओं को अभिभूत कर दिया।
सर सी.आर. रेड्डी (स्वायत्त) महाविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ.आर.एन.वी.एस.राजाराव और प्राध्यापक के.शैलजा ने अतिथियों का स्वागत और धन्यवाद किया। साथ ही सम्मेलन के दौरान ही शोधपत्रों का संग्रह प्रकाशित करके अपनी कार्य-दीक्षा और लगन का परिचय दिया।
प्रस्तुति : डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, सह संपादक ‘स्रवंति’, सहायक आचार्य, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद – 500004
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