बुद्धिमान लोग अकबर बीरबल अकबर – हमारे दरबार मे कितने बुद्धिमान लोग हैं। मैं एक शहंशाह हूँ। इसलिए हमारे आस पास बुद्धिमान लोग ही रहते हैं। मैं बुद्धिमान लोगो के बीच रह कर ऊब चुका हूँ। इसलिए अब मैं कुछ मूर्ख लोगो से मिलना चाहता हूँ।
बुद्धिमान लोग
बुद्धिमान लोग एक दिन शहंशाह अकबर दरबार मे अपने लोगों के साथ बैठे थे, तभी अचानक शहंशाह बोले –
अकबर – हमारे दरबार मे कितने बुद्धिमान लोग हैं। मैं एक शहंशाह हूँ। इसलिए हमारे आस पास बुद्धिमान लोग ही रहते हैं। मैं बुद्धिमान लोगो के बीच रह कर ऊब चुका हूँ। इसलिए अब मैं कुछ मूर्ख लोगो से मिलना चाहता हूँ।
बीरबल वैसे तो हमने आपको जितनी भी आज तक चुनौतियों दी हैं, सभी चुनौतियो में आप खरे उतरे हैं। क्या आप हमारे लिए छ: मूर्ख लोग ढूंढ सकते हैं। कितना दिल चस्प रहेगा उन मूर्ख लोगो से मिलना।
बीरबल – जी जहाँ पनाह क्यूँ नहीं। मैं ज़रूर ढूंढ निकालूंगा।
अकबर – हम आपको एक महीने का वक्त देते हैं, छ: मूर्ख लोगो को ढूंढने का।
बीरबल – जहाँ पनाह मुझे नही लगता मुझे इतने वक्त की ज़रुरत पड़ेगी।
अकबर – ठीक है बीरबल, आपकी मर्जी आप उससे पहले ढूंढ सकें तो।
फिर क्या था बीरबल अपना घोड़ा लेकर मूर्ख लोगो की तलाश में निकल जाते हैं और रास्ते भर यही सोचते रहे
अकबर बीरबल |
बीरबल – तुम कौन हो और ये घांस अपने सिर पर क्यूँ रखी है, इसे गधे के ऊपर क्यूँ नही रखा है।
रामू – मेरा नाम रामू है और मैंने ये घांस इसलिए अपने सिर पर रखी है क्यूंकि मेरा गधा बहुत थक गया था और मैंने सोचा उसका कुछ भार अपने ऊपर लेलूं।
बीरबल ने सोचा मुझे मेरा पहला मूर्ख मिल गया-
बीरबल – अच्छा, अच्छा! हम आपको जानवरों के बारे में इतना सोचने के लिए इनाम दिलबायेंगे चलो तुम हमारे साथ चलो।
रामू – अच्छा मुझे इनाम मिलेगा तो चलो।
तभी बीरबल कुछ दूर और चलते हैं, चलते चलते उन्हें दो लोग लड़ते दिखाई देते हैं। वह फिर अपना घोड़ा रोकते हैं और पूछते हैं-
बीरबल – रुक जाओ, रुक जाओ, तुम लोग क्यूं लड़ रहे हो,
ऐसी क्या बात हो गयी और तुम कौन हो?
पहला आदमी – मेरा नाम चंगु है।
दूसरा आदमी – और मेरा नाम मंगू है।
मंगू – ये चंगु मेरी गाय पर अपना शेर छोड़ने को कह रहा है।
चंगु – हाँ मैं छोडूंगा, मुझे बहुत मज़ा आएगा, मैं इसलिए छोडूंगा।
बीरबल – क्या, (शेर-गाये)! चंगु कहां है तुम्हारा शेर और मंगू कहाँ है तुम्हारी गाये?
चंगु – हमें भगवान वरदान देंगे तो मै गाय मागूँगा और ये शेर मांगने की बात कर रहा है, और कह रहा है ये अपना शेर मेरी गाय पर छोड़ देगा।
बीरबल – अच्छा तो ये बात है, तो तुम दोनों मेरे साथ चलो मैं तुम्हे शहंशाह से इनाम दिलबाउंगा भगवान के बारे में इतना अच्छा सोचने के लिए।
चंगु-मंगू – इनाम, हम ज़रूर चलेंगे।
बीरबल उन तीनों को अपने घर ले जाते हैं, घर ले जाकर फिर बीरबल सोचते हैं, अब मैं वाकी के मूर्खो को कहाँ खोजूं। फिर बीरबल उसी वक्त अपने घर से बाहर चल देते हैं और उन तीनों मूर्खो को घर पर ही रहने को कह देते हैं।
जब वह (बीरबल) घर से बाहर निकलते हैं, तभी उन्हें एक आदमी क्यारियों में कुछ ढूंढता दिखाई देता है। बीरबल उनके पास जाते हैं और कहते है –
बीरबल – क्या आप कुछ ढूंढ रहे हैं, क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूँ।
आदमी – वो मेरी अंगूठी गिर गई है, मैं बहुत देर से ढूंढ रहा हूँ, पर मिल नही रही है।
बीरबल – आपकी अंगूठी कहां पर गिरी थी?
आदमी – मेरी अंगूठी वो दूर उस पेड़ के नीचे गिरी थी, वहां पर अंधेरा हो गया है, इसलिए मैंने सोचा उसे मैं यहां पर ढूंढ लूँ।
बीरबल – ओ, अच्छा, अच्छा! तो आप हमारे साथ कल शहंशाह के पास चलिए हम आपको दूसरी अंगूठी दिलवा देंगे। आप उस अंगूठी को छोडिये।
आदमी – अच्छा जी, फिर तो ठीक है।
फिर अगले दिन बीरबल उन चारों को शहंशाह अकबर के पास लेकर चलते हैं।
बीरबल – शहंशाह ये रहे आपके मूर्ख।
अकबर – आप एक दिन में ही ये काम कर पाए, क्या हमारी सल्तनत में बहुत सारे मूर्ख लोग हैं। और तुम्हे कैसे यकीन है ये चारो मूर्ख हैं।
बीरबल रास्ते मे घटी घटनाओं को अकबर को बताता है। अकबर को बीरबल की बातों पर बहुत हसीं आती है।
अकबर – लेकिन ये तो सिर्फ चार मूर्ख हैं, बाकी के दो कहाँ हैं।
बीरबल – जहाँ पनाह वो दो मूर्ख यहीं मौजूद हैं।
अकबर – यहाँ-कहाँ, हमे बताओ वो कौन हैं।
बीरबल – उसमे से एक तो मैं हूँ, जो सबसे बड़ा मूर्ख है।
अकबर – क्या आप, आप कैसे?
बीरबल – मैं इसलिए हूँ, क्योंकि मैं इन मूर्खों को ढूंढ कर लाया।
अकबर -( हंस कर) हा-हा! मैं समझ गया दूसरा मूर्ख कौन है, फिर भी मैं चाहता हूँ आप बताये वो मूर्ख कौन है।
बीरबल – सबसे बड़े मूर्ख आप हैं, जो आपने मुझे इन मूर्खो को लाने के लिए कहा।
अकबर – बहुत खूब! बहुत खूब बीरबल! जैसा कि मैं हर बार कहता आया हूँ। आपका जबाब नही। बीरबल आपकी बराबरी कोई नही कर सकता है, आपके पास हर सबाल का हल है बहुत खूब।
बीरबल – शुक्रिया जहाँ पनाह!
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