अपनी अपनी पत्नियों का सांस्कृतिक विकास

SHARE:

शीलाजी बहुत सादगी से रहती हैं। शीलाजी लड़कियों की आदर्श हैं। शीलाजी खाना बहुत अच्छा बनाती हैं। शीलाजी चमक-दमक पर विश्वास नहीं करतीं। शीलाजी नई से नई किताबें पढ़ती हैं। शीलाजी अंग्रेजी भी उसी अधिकार से बोलती हैं जैसे हिंदी बोलती हैं।

अपनी अपनी पत्नियों का सांस्कृतिक विकास 


मध्य प्रदेश के उस छोटे, कुछ सोए-सोए स्टेशन पर गाड़ी रुकी तो सुबह का सात बजा था। जान-पहचान किसी से न थी। कुछ लोगों के नाम-पते ही डायरी में थे, जिनसे मिलना था। सोचा, वे सो रहे होंगे, जबकि मेरी यह धारणा गलत थी। वे सब अपने-अपने घरों में जाग रहे थे। खैर, तो मैंने स्टेशन पर चाय पी और नाश्ता किया ताकि कुछ समय बीते। फिर बाहर आया। स्टेशन से मिला एक बाजार था। बाजार बंद था। जिस दुकान का पता दिया था वह बंद थी। उसके सामने एक आदमी दातून-कुल्ला कर रहा था। उस आदमी से बात करने की देर थी कि सारे रास्ते खुल गए। कुछ ही देर में एक टूटे-फूटे स्कूटर पर बैठकर मैं कुंवर साहब की हवेली पहुंच गया जो कस्बे से दूर नर्मदा नदी के उस पार लगभग उजाड़-से जंगल के बीच बसी थी। कुंवर साहब घर पर थे। बहुत सज्जनता से मिले। फिर से नाश्ता कराया। उन्हें मालूम था कि मैं फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में ‘लोकेशन’ देखने आने वाला हूं। कुंवर साहब की हवेली अतीत का गौरवगान कर रही है। वर्तमान पर आंसू बहा रही थी। पर कुंवर साहब भूत, भविष्य, वर्तमान से परे थे। खानदानी शराफत उनमें कूट-कूट कर भरी हुइर्अ थी। उन्होंने हर तरह की मदद का वायदा था। बाद में मुझे पता चला कि जो उनके वश में न था उसका भी उन्होंने वादा कर लिया था। वह अच्छा था कि तत्काल मेरी समस्या दूर होती नजर आने लगी थी।

ये उन दिनों की बात है जब मुझे फिल्मों का चस्का लगा हुआ था और मैं एक ‘लो बजट’ फिल्म के निर्माण में ‘पीर’ और ‘भिश्ती’ जैसी भूमिका निभा रहा था। एक युवा मित्र अपनी पहली फिल्म बनाने जा रहे थे। दूसरे युवा मित्र की कहानी थी। तीसरे युवा मित्र संगीत दे रहे थे। चौथे युवा मित्र अभिनय कर रहे थे। कहने का मतलब हुआ कि वह युआ मित्रों का पहला-पहला प्रोडक्शन था। मैं उस प्रोडक्शन में, जैसा कि पहले कह चुका हूं, सब कुछ था और कुछ न था। ऐसी स्थिति मुझे पसंद है।

‘लो बजट’ फिल्मों में जो लोक काम कर चुके हैं वे अच्छी तरह जानते हैं कि इन फिल्मों का निर्माण गरीब की लड़की की शादी जैसा होता है। पैसे की कमी, आपाधापी, अव्यवस्था, मनमुटाव, लड़ाई-झगड़े, तकलीफें तो होती ही हैं, पर उसके साथ-साथ सहयोग भी खूब मिलता है। वह भी अगर शूटिंग किसी ऐेसे कस्बे में हो रही हो जहां सिनेमाहॉल भी न हो, तो सोने पर सुहागा है। तो यही हमारे प्रोडक्शन के साथ हुआ था। कस्बे के लुच्चे-लफंगे, दुकानदार, ठेकेदार, कर्मचारी, नेता, अध्यापक, कम्पाउंडर, सम्मानित लोग सब सहयोग दे रहे थे। सबसे महत्वपूर्ण सहयोग कुंवर साहब का था।बल्कि कहना चाहिए उनके सहयोग के कारण ही हमें व्यापक समर्थन मिला था। सहयोग देने वालों में एक ओवरसियर, जिन्हें सब इंजीनियर साहब कहते थे, बहुत सक्रिय थे। क्योंकि उन्होंने जवानी के दिनों में कुछ कविताएं लिखी थींऔर अब तक अपने को कवि समझते थे।

निर्धारित समय के बाद ‘यूनिट’ कस्बे पहुंची। वह भी इस तरह जैसे थके-हारे योद्धा घर लौटते हैं। प्रोडक्शन मैनेजर ने कम खर्च करने के लालच में जो ‘रूट’ अपनाया था उसके कारण तीन बार ट्रेनें बदली गई थी। एक लंबी यात्रा बस में हुई। पर प्रोडक्शन मैनेजर ने जो प्रयास पैसा बचाने के लिए किए थे वे तत्काल ही फेल हो गए थे। हुआ यह था कि यूनिट ‘सेकेंड क्लास’ में यात्रा कर रही थी। नायक इसका अभ्यस्त न था। उसका मूड अच्छा
पति पत्नी 
रखने के लिए ह्विस्की की बोतलें खोल दी गई थीं। वह धुआंधार पी रहा था। उसके साथ अन्य लोग भी यात्रा के कष्ट को कम करने के लिए ‘सेवन’ कर रहे थे। उस समय पुलिस के सिपाही आए और उन्होंने कहा कि ट्रेन में शराब पीना जुर्म है। यह सुनकर हीरो भड़क गया और उन्हें गालियां देने लगा। सिपाही भी अकड़ गए। हीरो उन फिल्मों के नाम गिनाने लगा जिनमें उसने काम किया था और नाम कमाया था। पुलिसवाले इस बात पर जिद करने लगे कि वे हीरो तथा अन्य शराब पीने वाले लोगों को अगले स्टेशन पर उतार देंगे। मसला बिगड़ते-बिगड़ते बहुत बिगड़ गया। लगा कि शायद यूनिट उतार ही दी जाएगी क्योंकि पुलिसवालों ने अगले जंक्शन पर सूचना भेज दी थी। वहां डॉक्टरी परीक्षा के लिए डॉक्टर तथा पुलिस का समुचित इंतजाम हो गया था। अब प्रोड्यूसर जो निर्देशक, कैमरामैन, संपादक और आर्ट डायरेक्टर भी थे, परेशान हुए। प्रोक्शन मैनेजर के जिम्मे यह काम था `ि क यूनिट साथ खैरियत के ‘लोकेशन’ पर पहुंचे। वह आगे आया। पहले सौ रुपये का पत्ता दिखाया। सिपाही घाघ थे। समझ गए कि मामला संगीन है। उन्होंने सौ का नोट भिखारी को दे देने की सलाह दी। फिर दो सौ, पांच सौ और एक हजार पर सौदा पटा। इस तरह यात्रा के खाते में जो पैसे बचाए जाने थे वे भारतीय पुलिस ने झटक लिए। उसके बाद सारी दिक्कतों को झेलती यूनिट, जिसमें तीस-चालीस लोग थे, रात में दो बजे कस्बे पहुंची तो उन्हें वह मकान नहीं मिला जो उनके रहने के लिए लिया गया था। मकान एक सज्जान अध्यापक ने बिना पैसे लिए दिया था। मकान अभी बना ही था। अध्यापक महोदय ने पर्दे आदि लगवाकर उसे ठहरने लायक बना दिया था। पर शौचालय न थे। शौचालय टाट का पर्दा लगाकर बाहर बनाए थे जो यूनिट आगमन की रात तेज बारिश और आंधी के कारण गिर गए थे। अब यूनिट जो आई तो खुला मैदान था। मर्दों को तो बहुत दिक्कत नही हुई पर ‘हीरोइनें’ परेशान हो गईं। उन्होंने कहा कि फौरन वापस जाना चाहती हैं। प्रोडक्शन मैनेजर के हाथों के तोते उड़ गए। बहरहाल, किसी तरह इस समस्या का समाधान किया गया। लेकिन समस्याएं कम न थीं। हजारों थीं। कस्बे में पेट्रोल न था। खाने की व्यवस्था ऐसी थी कि नाश्ता बारह बजे और रात का खाना एक बजे रात को मिलता था। मुंबई से जो जनरेटर चला था उसका रास्ते में एक्सीडेंट हो गया था, वह रुका पड़ा था। हीरोइन के कपड़ों वाला बक्सा किसी स्टेशन पर ट्रेन बदलते वक्त छूट गया था। हद यह है कि जल्दी में ‘क्लैप बोर्ड’ तक छूट गया था। लेकिन इस पूरी व्यवस्था और हबड़-तबड़ के बावजूद शूटिंग शुय हो गई थी। एक और भी टेढ़ा मसला था वह यह कि एक अभिनेत्री की कमी थी। यानी कमला की मां का रोल करने वाली महिला बंबई स्टेशन पर रह गई थी। कमला की मां का रोल कस्बे में कौन कर सकता है यानी ‘लोकल टैलेंट’ की तलाश बड़े पैमाने पर शुरू हो गई। दूर-दूर तक कोई न नजर आता था। औरतें फिल्मों में काम करने के नाम पर शरमा जाती थीं। ऐसे मौके पर ओवरसियर महोदय काम आए। उन्होंने कहा कि शीलाजी इस काम के लिए तैयार हो सकती हैं। ओवरसियर महोदय यानी मलकानी जी ने शीलाजी के बारे में जो कुछ बताया था उससे यह आशा बंधी थी कि वे काम कर सकती हैं। शीलाजी स्थानीय गर्ल्स कॉलेज की सबसे प्रगतिशील महिला थीं। उन्होंने महिला क्लब बनाया था। वे कविताएं लिखती थीं। ड्रामे कराती थीं। भाषण देती थीं। बिना साड़ी का पल्लू सिर पर डाले बाहर निकलती थीं। मर्दों से खुलकर बातचीत करती थीं। बहुत सम्मानित और कस्बे के जीवन में महत्वपूर्ण थीं। मलकानी उनका जिक्र इस तरह करते थे कि लगता था वे शीलाजी के प्रशंसक से कुछ अधिक ही हैं। बहरहाल फिल्मों में सब कुछ चलता है। मैंने सोचा हमारा काम होना चाहिए, शीला चाहे मलकानी की प्रेमिका हो या उनकी माताजी हों, हमें क्या करना है। मलकानीजी से यह भी मालूम हुआ था कि शीलाजी के पति किसी दूसरे शहर में एक कॉलेज के प्राध्यापक हैं। आते-जाते रहते हैं। इसका मतलब यह था कि काम बन सकता है।

मजेदार बात यह थी कि मलकानी शीला का जिक्र इस तरह करते थे जैसे वे उनकी ‘स्वप्न सुंदरी’ हों। उनके बारे में कुछ कहते हुए मलकानी दूसरी दुनिया में पहुंच जाते थे। खासतौर से वे शीलाजी की प्रगतिशीलता का वर्णन करते समय यह जाहिर करते थे, अगर शीलाजी न होतीं तो इस कस्बे में प्रगतिशीलता न होती। शीलाजी महिलाओं की पत्रिकाएं ही नहीं मंगवातीं बल्कि उनमें कभी-कभार कुछ लिखती भी हैं। शीलाजी की एक रचना धर्मयुग में छप चुकी है। शीलाजी बहुत सादगी से रहती हैं। शीलाजी लड़कियों की आदर्श हैं। शीलाजी खाना बहुत अच्छा बनाती हैं। शीलाजी चमक-दमक पर विश्वास नहीं करतीं। शीलाजी नई से नई किताबें पढ़ती हैं। शीलाजी अंग्रेजी भी उसी अधिकार से बोलती हैं जैसे हिंदी बोलती हैं। शीलाजी ने एक मीटिंग में एक अभद्र मंत्री को डांट दिया था। शीलाजी कभी किसी के चुनाव-प्रचार में नहीं जातीं। शीलाजी दरअसल महिला-शक्ति, महिला-नैतिकता, महिला-साहस और महिला-सौंदर्य का प्रतीक जैसी थीं। शीलाजी के बारे में यह बस बताते-बताते यह भी स्पष्ट हो जता था कि मलकानी किस तरह की महिलाओं को आदर्श मानते हैं। मलकानी की महिलाओं संबंधी धारणाएं बहुत उच्चकोटि की और बहुत आदर्श लगती थीं। दरअसल शीलाजी के माध्यम से मलकानी स्वयं गौरवान्वित होते थे। वे मुझ पर यह सिद्ध करते थे कि ठीक है होंगी बंबई में शबाना आजमी, हमारे यहां शीलाजी हैं। शबाना का बंबई में जो स्थान है वही शीलाजी का यहां हैं।

मलकानी ने शीलाजी के बारे में जो कुछ बताया था वह मैंने निर्देशक को बताया। निर्देशक खुश हो गया। उसे लगा ‘कमला की मां’ मिल गई है। जाहिर है शीलाजी से अच्छा यह रोल कौन कर सकता है। वैसे भी निर्देशक दस-बारह दिन की शूटिंग में टूट-फूटकर पतला हो गया था। सिर्फ कलात्मक जिम्मेदारी ही नहीं बल्कि ‘आटा-दाल का भाव’ भी उसे लगातार परेशान करता रहता था। यूनिट में कई दल बन गए थे। हीरोइन पर अधिकार जमाने के लिए हीरो और खलनायक में रस्साकशी चल रही थीं। हीरो खराब खाने से बहुत दुखी था। उसका पेट खराब हो गया था और लगातार टट्टियां करता था। एक दिन शराब के नशे में उसने प्रोडक्शन मैनेजर की मां-बहन एक कर डाली थीं। पर हर प्रोडक्शन मैनेजर की तरह हमारे प्रोडक्शन मैनेजर की भी मां-बहनें नहीं थीं। एक प्रमुख अभिनेता,जो केवल फलाहारि किया करते थे, अब अमरूद ही खा रहे थे। अस्टिेंट लोगों को भत्ता नहीं मिल रहा था। वे रात में शराब पीकर प्रोड्यूसर को गालियां देते थे। किराए की दोनों जीपों के ड्राइवर पेट्रोल की चोरी करने लगे थे। दस दिन की शूटिंग के दौरान कुंवर साहब की हवेली चौपाल बन चुकी थी। वे कहते कुछ नहीं थे, क्योंकि सभ्य आदमी थे, पर उनके चेहरे से यही लगता था कि बस बसबस... अब बस करो। पर निर्देशक आधा काम छोड़कर जाना नहीं चाहता था। उसने एक-दो अभिनेताओं को कुंवर साहब का ‘मॉरल’ हाई करने के काम पर लगा दिया था। बहरहाल, किसी तरह गाड़ी घिसट रही थी। मदद देने वालों का उत्साह ठंडा पड़ गया था। लेकिन कस्बे के आवारा लौंडे रोज सुबह शूटिंग देखने इस लालच में आ जाते थे कि शायद छोटा-मोटा रोल ही मिल जाए। कस्बे के दरोगाजी भी एक दिन शूटिंग देखने आए थे। डिप्टी साहब की भी फैमिली के साथ एक दिन आना था। ये बातें फिल्म वालों का नैतिक आधार बन जाती थीं। बजट चूंकि हर फिल्म बजट की तरह ‘ओवर’ हो गया था इसलिए अभिनेताओं और नेत्रियों को आदिवासियों द्वारा खींची शुद्ध शराब सप्लाई की जा रही थी जिसको एक बोतल का दाम ह्विस्की के एक पेग के बराबर था। प्रोडक्शन मैनेजर इस शराब की खूब तारीफ करताथा। कभी-कभी उसे ‘स्कॉच’ से अच्छी सिद्ध कर देता था।

जब से यूनिट आई थी लोगों के कपड़े नहीं धुले थे क्योंकि प्रोडक्शन मैनेजर धोबी का इंतजाम नहीं कर पाया था। छोटे-मोटे अभिनेता और टेक्नीशियन तो एक जींस से काम चला रहे थे, लेकिन अभिनेत्रियों और अन्य कलाकार एक दिन गुस्से में आ गए। उन्होंने शूटिंग पर जाने से इनकार कर दिया। कहा, जब तक धोबी नहीं आएगा, तब तक हम शूटिंग पर नहीं जाएंगे। तत्काल धोबी कहां से आता प्रोडक्शन मैनेजर शातिर आदमी था। उसने एक गांव वाले को पटाया। वह धोगी के ‘मेकअप’ में लाया गया और यूनिट के कपड़े एक गट्ठर बांधकर ले गया। तब शूटिंग चालू हुई।

ऐसे माहौल में शीलाजी का जिक्र निर्देश को दैवी मदद जैसा लगा। उसने मुझसे कहा कि तुरंत जाओ और शीलाजी को ‘कमला की मां’ के रोल के लिए ‘सेट’ कर दो। मलकानी मेरे साथ थे। उन्होंने कहा कि यह काम तो बस समझो हुआ ही रखा है। मलकानी ने उन औरतों की बेअक्ली और जड़ता पर आंसू बहाए जिन्होंने रोल करने से इनकार कर दियाथा। जैसे ‘कमला की मां’ के लिए तारबाबू की पुत्रवधू से बात की गई थी। वह तैयार भी हो गई थी, लेकिन शूटिंग के वक्त पुत्रवधू के बजाय तारबाबू स्वयं आ गए थे और उन्होंने कहा कि वे कस्बे के बहुत सम्मानित आदमी हैं और उनकी पुत्रवधू फिल्म में काम नहीं करेगी। इसका सीधा मतलब यह भी था कि हम लोग कहीं के भी सम्मानित लोग नहीं हैं। खासतौर पर जो औरतें फिल्मों में या हमारी फिम में काम कर रही हैं वे वेश्याएं हैं। तारबाबू की पुत्रवधू के न आने के कारण वे सीन नहीं हो सके थे और प्रोडक्शन का काफी नुकसान हुआ था। इसी तरह के एक-दो और किस्से थे। मलकानी ने इन सब घटनाओं पर गहरा दुःख व्यक्त किया था। महिलाओं की आजादी पर बोलते हुए मलकानी हमें ‘महिला मुक्ति सेना’ के एक सेनापति लगे थे। हम खुश थे कि चलो एक आदमी तो ऐसा मिला जो हमें सहयोग दे रहा है।

मलकनी में एक और गुण यह था कि उनके पास स्कूटर था। नर्मदा के किनारे जंगल में बसी हवेली में ठहरे लोगों के लिए कस्बे आना-जाना स्वप्न जैसा था, क्योंकि यूनिट की दो जीपों में एक तो हमेशा ‘जैसी थी’ वैसी हालत में
असग़र वजाहत
असग़र वजाहत
रहती थी और दूसरी दिन-भर भागती रहती थी। भागते-भागते दम तोड़ देती थी। तब दूसरी में सांस यानी पेट्रोल आता था, वह भागती थी। इसलिए अगर किसी को कस्बे जाना होता था तो मलकानी का स्कूटर एक बरकत जैसा था। विशेष रूप से यूनिट की लड़कियां और वह भी दुबली-पतली सांवली नायिका अपने बड़े-बड़े काले बाल खोले स्कूटर की पिछली सीट पर बैठी दिखाई देती थी। वह जींस और जैकेट या स्कर्ट और ब्लाउज पहनकर जब स्कूटर की पिछली सीट पर बैठी अपने बाल हवा में उड़ाती कस्बे की एकमात्र सड़क पर से गुजरती थी तो घनश्याम पान वाला पान में जर्दा डालता ही चला जाता था। कपड़े की दुकान का मालिक रघुबीर अफसोस करता था कि साला सेकेंड हैंड स्कूटर दो हजार ही में तो आता है। उसने क्यों न खरीदा।

यूनिट में मलकानी की उपयोगिता ही नहीं उनके महिलाओं संबंधी प्रगतिशील विचारों की धाक जमी हुई थी। वे हमें बिलकुल अपने जैसे लगते थे।मलकानी भी कभी-कभी अफसोस करते थे कि वे इस कस्बे में आकर फंस गये हैं, अगर कहीं दिल्ली या मुम्बई में होते तो वैसे ही होते जैसे हम लोग हैं।

जिस दिन मुझे मलकानी के साथ शीला जी के घर जाना था उस दिन वे सफेद कुर्ता-पाजामा पनकर आये। साफ धुला हुआ और सफेद बुर्राक। मैं उनके साथ स्कूटर पर बैठकर शीलाजी के यहां गया। कैमरा भी लटका लिया। रास्ते-भर मलकानी शीला ही की ही बातें करते रहे और यकीन दिलाते रहे कि शीलाजी बहुत उदार, प्रगतिशील, साहित्यिक और जनवादी विचारों की महिला हैं। वे स्कूटर चलाते हुए पीछे मुड़-मुड़कर मुझसे बातचीत कर रहे थे। मुझे डर लग गया था कि कहीं स्कूटर लुढ़क न जाये, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने एक घर के सामने स्कूटर रोका। दरवाजे पर बोर्ड लगा हुआ था-शीला दीक्षित, एम.ए.(हिन्दी) एम.ए. (संस्कृत) मैं प्रभावित हुआ। मलकानी ने घंटी बजायी। एक नौकरनुमा औरत ने दरवाजा खोला। हम अंदर गये। छोटी-सी बैठक बहुत सुरुचिपूर्ण ढंग से सजी थी। दीवारों पर टैगोर के प्रिंट लगे थे। कुशन कढ़े हुए थे। एयर इंडिया का कैलेण्डर दीवार पर था। टी.वी. सेट पर कढ़ा हुआ गिलाफ चढ़ा था। कुछ शीशे और चीनी मिट्टी के खिलौने खुली हुई अलमारियों मे रखे थे। एक कोने में कायदे से सितार और तबला रखा था। मैं प्रभाावित हुआ। मलकानी ने कहा, शीलाजी गाती भी हे।। लेकिन फिल्मी-इल्मी गाने नहीं, वे ‘निराला’ और ‘बच्चन’ के गीत गाती हैं। बहरहाल कुछ ज्यादा ही देर के बाद शीला जीे अंदर आयीं। हम दोनों खड़े हो गये। वे करीब चालीस साल की सुन्दर महिला थीं। सादी साड़ी पहनी हुई थीं। लगता था अभी-अभी नहाई हैं, क्योंकि चेहरे पर ताजगी थी। परिचय आदि के बाद हम असली बात पर आ गये। मलकानी के कहने के बाद मैंने औपचारिक अनुरोध किया। वे बहुत मारक ढंग से मुस्कराकर बोलीं, ‘‘लेकिन मैंने तो कभी किसी फिल्म में अभिनय नहीं किया है।’’

मलकानी ने कहा,‘‘लेकिन आप नाटकों में अभिनय ही नहीं, निर्देशन भी कराती हैं। आपसे अधिक अच्छा यह रोल कोई और नहीं कर सकता।’’

फिर उन्होंने कई बहाने किये। जैसे स्कूल में परिक्षाएं होने वाली हैं। कोर्स खत्म नहीं हुआ है। और उनका बेटा आने वाला है। उसकी तबियत कुछ खराब है। फिर उन्होंने इसी तरह की दो-चार बातें और कीं, लेकिन मलकानी बहुत समझदारी और चतुराई से उन्हें काटता रहा-‘‘दरअसल मुश्किल से एक दिन का काम है जब आप कहेंगी तब ही हो सकता है। चाहें तो वे सीन इतवार के दिन कर लेंगे।’’

‘‘देखिए, कपड़े उल्टे-सीधे नहीं पहनने होंगे।’’

‘‘नहीं,नहीं बिलकुल नहीं... आप जो कपड़े पहनती हैं बिलकुल वही कपड़े होंगे...और फिर वह तो मां का रोल है। आप समझ सकती हैं।’’

‘‘बात दरअसल यह है कि मलकानी जी कि मैं फिल्म वालों से कुछ डरती हूं।’’

‘‘अजी डरने की क्या बात...ये साहब,‘‘मलकानी ने मेरी ओर इशारा किया ‘‘जी जाने-माने प्रोफेसर हैं। वैसे ही शैकिया फिल्मों के लिए लिखते और काम करते हैं...और ये तो कला फिल्म है...मतलब वैसी जैसी सत्यजीत राय, श्याम बेनेगल वगैरा बनाते हैं। मतलब सामाजिक चेतना वाली फिल्में...’’

‘‘वो तो सब ठीक है लेकिन देखिए...मैं कुछ घबराती...’’

‘‘शीला जी, आप ये बात कहेंगी तो बताइये कैसे काम चलेगा; हम सबको तो आपके ऊपर गर्व है।’’फिर मलकानी उनकी उपलब्धियां गिनाने लगा। जिन्हें मैं पहले ही जानता था। इतनी देर में नौकरानी चाय ले आयी। चाय के साथ पकौड़ियां, मिठाई, दालमोठ और रसगुल्ले थे। यूनिट का खाना खाते-खाते तंग आ चुका था। मैंने सोचा शीला जी तुम महान् हो। रोल के लिए तैयार हो या ना हो...तुम महान हो। मै नाश्ते पर बहुत सभ्य ढंग से टूट पड़ा। मलकानी लगातार बातें किये जा रहा था। शीला जी को फिल्म की कहानी और रोल समझा रहा था। दूसरी ओर शीला जी ‘हां’ में कोई जवाब नहीं दे रही थीं। पर लग रहा था कि उन्हें रुचि तो है, पर पता नहीं कौन-सी बाधा है जो रोक रही है। हमें बैठै कोई घंटा-भर हुआ होगा। उसे देखते ही मलकानी के चेहरे का रंग उड़ गया। वह खड़ा हो गया मैं भी खड़ा हो गया। मलकानी ने कहा, ‘‘अरे भाई साब, आप...अभी-अभी आये’

उस आदमी ने ‘हां’ ‘हूं’ किया। उससे मेरा परिचय कराया गया। उस पर भी उसने ‘हां’ ‘हां’ से आगे कोई बात नहीं की और अटैची लिये घर के अंदर चला गया। उसके पीछे-पीछे शीला जी भी अंदर चली गयी। मलकानी मुझसे बोला, ‘‘डॉ. दीक्षित हैं। शीला जी के पति...बहुत विद्वान आदमी है।अर्थशास्त्र में आगरा से पी.एच.डी. किया है। जबलपुर में वरिष्ठ प्राध्यापक है...’’फिर हम काफी देर तक चुपचाप बैठे रहे। उसके बाद शीला जी फिर आयीं। अब कम-से-कम मैं चाहता था कि कुछ उत्तर मिल जाये और हम लोग जायें।

‘‘हां तो शीला जी, क्या तय किया आपने’ मलकानी ने पूछा।

‘‘ऐसा है मलकानी जी, ‘ये’ मना करते हैं। वे बोलीं। ‘ये’ का मतलब डॉक्टर दीक्षित। ‘ये’ का मतलब शीला जी के पति। ‘ये’ का मतलब अर्थशास्त्र में पी-एच.डी. और वरिष्ठ प्राध्यापक। खैर बात पानी कि तरफ साफ हो गयी। मलकानी का चेहरा देखने लायक था। जैसे किसी ने पांच जूते मार दिये हों। उसके बाद वह खामोश हो गया। हम उठे, नमस्कार आदि के बाद बाहर आये। स्कूटर पर बैठे। मलकानी बिलकुल खामोश था। कारण मैं समझ रहा था। बेचारे के विश्वास को ठेस लगी थी। वह सोच रहा था कि मैं क्या सोच रहा हूंगा। मलकानी की प्रगतिशीलता, महिला मुक्ति आदि पर शीला जी को व्यवहार ने कुठाराघात किया था। मलकानी ने पान की दुकान पर स्कूटर रोक दिया। हम उतरे। मैंने देखा मलकानी का चेहरा लाल हो रहा है। वह बोला, ‘‘आप समझे...वह आदमी शीला जी के सांस्कृतिक विकासमें एक बाधा है। ‘‘मैं समझ गया। मलकानी फिर बोला-‘‘साला बड़ा प्रोफेसर बना फिरता है। तीन बच्चों की अम्मां को कोई उठा ले जायेगा। क्यों..पढ़ाई-लिखाई सब गधे पर लाद दी है उसने...इससे तो अच्छा था कहीं क्लर्क लग जाता...पक्का पुरातनपंथी और जड़ व्यक्ति है। आधुनिक विचार तो उसे छू तक नहीं गये हैं।’’बहुत देर तक मलकानी ऐसी ही बातें करता रहा। वह मेरी नजर में एक बहुत ‘जेनुइन’ आदमी बन गया था। पर मैं कर क्या सकता था। वह बोला, ‘‘साले ने मूड़ खराब कर दिया। चलिए अब दो-दो पेग ह्विस्की पी जाये तो मूठ ठीक हो।’’ नेकी और पूछ-पूछ। मैं तैयार हो गया। इससे पहले मलकानी के घर कभी नहीं गया था।

अपनी बैठक में पांव फैलाकर वह बैठ गया। जूते-मोजे उतार दिये और आवाज दी, ‘पिंकी बेटी, इधर आओ’ एक छः-सात साल की लड़की आ गयी। मलकानी बोला-‘‘दो शीशे के गिलास ले जाओ और मम्मी से कहो पकौड़ी बना लें।’’ लड़की चली गयी। उसने फिर आवाज दी। पिंकी फिर आयी। अब उसने पानी लाने और अपने जूते-मोजे अंदर ले जाने और अंदर से चप्पल लाने के लिए कहा।

हमने पीना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद एक लड़का पकौड़ी लेकर आ गया। मलकानी ने उससे कहा कि मुझे नमस्ते करे। उसने नमस्ते किया। वह मलकानी का लड़का था। इसके बाद एक दो-तीन साल की छोटी लड़की उसकी चप्पलें लेकर आयी। वह मलकानी का सबसे छोटी लड़की थी। तीनों बच्चे सामने तख्त पर बैठ गये। मैंने उनसे छोटी-मोटी बातें कीं फिर अंदर से कुछ ऐसी आवाज आयी जैसे परात पर चमचा बजाया गया हो। मलकानी ने अपने लड़के से कहा, ‘‘देखो, मम्मी बुला रही हैं। गरम पकौड़ी ले आओ।’’ लड़का तुरंत अंदर गया और गरम पकौड़ी ले आया। फिर मलकानी ने जोर से आवाज देकर पत्नी से कहा, ‘‘चटनी भी बना लो...ये बहुत बड़े लेखक आये हैं हमारे यहां।’’हंसा।

कुछ देर बाद फिर परात बजी। मलकानी ने कहा, ‘‘बेटी, अंदर जाओ। चटनी ले आओ।’’ पिंकी अंदर गयी और चटनी ले आयी। फिर हम बैठे पीते रहे। बातें करते रहे शाम को साम बज गए। अंदर फिर परात बजी। अबकी मलकानी खुद उठकर गया और वापस आकर बोला, ‘‘आपकी भाभीजी कह रही हैं अब खाना यहीं खाकर वापस जाना।’’

मैंने कहा, ‘‘नहीं मलकानी जी, देर हो रही है। अब चलता हूं।’’

‘‘तो चलिए आपको छोड़ दूं।’’

हवा में हल्की-सी ठंडक थी। ढाक के जंगल और नर्मदा के ऊपर से हवा चुपचाप गुजर रही है। मैं मलकानी के उस वाक्य के बारे में सोच रहा था जो उसने डॉ. दीक्षित के बारे में कहा था-वह आदमी शीला जी के सांस्कृतिक विकास में बाधा है...और...



असग़र वजाहत (जन्म - 5 जुलाई, १९४६ ) हिन्दी के प्रोफ़ेसर तथा रचनाकार हैं । इन्होंने नाटक, कथा, उपन्यास, यात्रा-वृत्तांत तथा अनुवाद के क्षेत्र में रचा है । ये दिल्ली स्थित जामिला मिलिया इस्लामिया  के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रह चुके हैं । 


सौजन्य :- विकिपीडिया हिंदी 

COMMENTS

Leave a Reply: 1
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1478,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,40,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,3,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,53,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,77,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,7,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,12,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,141,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,50,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,18,भीष्म साहनी,9,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,16,यशपाल,19,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,125,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,3,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,3,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,34,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,270,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,22,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,88,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,438,हिंदी लेख,536,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,186,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,divya-upanyas-yashpal,5,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,12,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,430,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,682,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,77,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,24,kavyagat-visheshta,26,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,12,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,8,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,6,Syllabus,7,tamas-upanyas-bhisham-sahni,4,top-classic-hindi-stories,59,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: अपनी अपनी पत्नियों का सांस्कृतिक विकास
अपनी अपनी पत्नियों का सांस्कृतिक विकास
शीलाजी बहुत सादगी से रहती हैं। शीलाजी लड़कियों की आदर्श हैं। शीलाजी खाना बहुत अच्छा बनाती हैं। शीलाजी चमक-दमक पर विश्वास नहीं करतीं। शीलाजी नई से नई किताबें पढ़ती हैं। शीलाजी अंग्रेजी भी उसी अधिकार से बोलती हैं जैसे हिंदी बोलती हैं।
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjLGxmVbxm6k1xS4LUwYnd5XEaZxyVOESck254KK3xDsLTNx6AfP7pzFSVHAGOPrmoeU0fx7Kz-Ia2uGkLqHvMfMneAcbBLh9f9qo-e1ST_SQBWmm9d2zZoMS-iS18F_f57NxZG5xCWcv4v/s320/apni.jpeg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjLGxmVbxm6k1xS4LUwYnd5XEaZxyVOESck254KK3xDsLTNx6AfP7pzFSVHAGOPrmoeU0fx7Kz-Ia2uGkLqHvMfMneAcbBLh9f9qo-e1ST_SQBWmm9d2zZoMS-iS18F_f57NxZG5xCWcv4v/s72-c/apni.jpeg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2019/02/apni-apni-patniyon.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2019/02/apni-apni-patniyon.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका