हिंदी नाटक का उद्भव और विकास

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हिंदी नाटक का उद्भव और विकास हिंदी नाटक का उद्भव और विकास hindi natak ka udbhav aur vikas hindi natak ka udbhav aur vikas in hindi भारतेंदु हिंदी नाटक के जन्मदाता ही नहीं अपने युग के सर्वश्रेष्ठ नाटककार भी है .इनकी सफलता का सबसे कारण उनका रंगमंच विषयक ज्ञान और अनुभव था .इनके नाटकों के कथानक इतिहास ,पुराण तथा समसामयिक है .

हिंदी नाटक का उद्भव और विकास 

हिंदी नाटक का उद्भव और विकास hindi natak ka udbhav aur vikas  hindi natak ka udbhav aur vikas in hindi- भरत मुनि अपने नाट्यशास्त्र में नाटक की उत्पत्ति चारों वेदों के उपरान्त स्वीकार करते हैं .कतिपय विद्वान इसकी उत्पत्ति यूनान के अनुकरण पर मानते हैं .परन्तु यह निराधार है .भारतीय नाटकों को अपनी मौलिक विशेषता है .हिंदी में नाटक परंपरा का आरम्भ हरीशचंद्र से ही मानना चाहिए .इनके पूर्व नाटक नाम की जो रचनाएं मिलती हैं ,उसमें आधुनिक नाटक की विशेषताएं नहीं मिलती .ये पद्य में लिखे गए नाटकीय काव्य है .हमारे यहाँ रामलीला ,स्वांग तथा नौटंकी नाटकों का भी अभाव नहीं रहा है .परन्तु भारतेंदु ने भिन्न आदर्शों पर नाटक की रचना आरम्भ की .अंग्रेजी ,संस्कृत तथा बंगला के नाटकों के अनुवाद के साथ इन्होने मौलिक नाटक भी लिखा है .भारतेंदु से अब तक नाटक साहित्य का जो विकास हुआ है ,उसे निम्नलिखित युगों में बाँट सकते हैं - 

१. भारतेंदु युग 
२. द्विवेदी युग 
३. प्रसाद युग 
४. प्रगतिवादी युग का प्रसादोत्तर युग 

१. भारतेंदु युग - 

भारतेंदु हिंदी नाटक के जन्मदाता ही नहीं अपने युग के सर्वश्रेष्ठ नाटककार भी है .इनकी सफलता का सबसे कारण उनका रंगमंच विषयक ज्ञान और अनुभव था .इनके नाटकों के कथानक इतिहास ,पुराण तथा समसामयिक है .जिस सामाजिक चेतना को काव्य द्वारा उन्होंने व्यक्त करना चाहा था ,उसके लिए नाटक इन्हें उचित माध्यम प्रतीत हुआ .इन्होने हास्य तथा व्यंग के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया .इनकी नाट्य कला तथा अंग्रेजी ,बंगला तथा संस्कृत तीन भाषाओँ के नाटकों का प्रभाव है . 
भारतेंदु ने अपना नाटक विद्या सुन्दर सन १८६८ में प्रकाशित किया .भारतेंदु जी ने अन्य अनेक नाटकों की रचना की ,जिसमें प्रमुख है पाखण्ड विदामब्नाम ,वैदिकी हिंसा हिंसा न भवती ,धनंजय विजय सत्य हरिश्चंद ,प्रेम योगिनी ,कपूर्मंजारी ,चन्द्रावली ,भारत दुर्दशा आदि . इनमें कुछ नाटक अनुदित भी है .भारतेंदु बाबू ने नाट्यकला के सिधान्तों का सूक्ष्म अध्ययन किया था .वह रंगमंच की बारीकियां से भी परिचित थे .अपने जीवन काल में भी उन्होंने अनेक नाटकों का अभिनय कराया और इस अभिनय में स्वयं भाग लिया . 

भारतेंदु की प्रेरणा से उनके युग के अन्य अनेक लेखक भी नाटक रचना की ओर प्रवृत्त हुए .श्रीनिवासदास ने संयोगिता स्वयंबर ,प्रहलाद चरित्र ,रंधीर और मोहिनी ,राधा कृष्ण दास ने दुखिनीवाला ,धर्मालाप ,महाराणा प्रताप ,खंगबहादुर लाल ने भारत ललना .बद्री नारायण चौधरी ने बुद्ध विलाप भरत सौभाग्य ,प्रताप नारायण मिश्र ने गोसंकट ,कलि कौतुक ,हठी हमीर भारत दुर्दशा रूपक .राधा चरण गोस्वामी ने सती चन्द्रावती ,अमर सिंह राठोर ,तन मन धन तथा श्री गोसाईं जी के अर्पण की रचना इसी काल में हुई थी .इन सभी नाटकों में प्रायः सुधार कुरीतियों ,देश प्रेम तथा हास्य व्यंग की प्रवृतियां उपलब्ध होती हैं . 

२. द्विवेदी युग - 

द्विवेदी युग में वस्तुतः नाटकों की प्रगति अवरुद्ध हो गयी .द्विवेदी जी सुधारवादी प्रकृति के व्यक्ति थे .अतः इस काल में मनोरंजन के लिए साहित्य रचना न हो सकी .फिर भी इस काल में जिन नाटकों की रचना हुई ,उनके पात्र सात्विकवृत्ति वाले महापुरुष थे .इस काल में रचे गए नाटक इस प्रकार हैं जगन्नाथ चतुर्वेदी का तुलसीदास ,वियोगी हरी का प्रबुद्धयामुने ,मिश्र बंधू का शिवाजी ,बद्री भट्ट का कुरुवन दहन ,चन्द्रगुप्त तथा दुर्गावती नाटक ,माधव शुक्ल का महाभारत ,आनंद प्रसाद खत्री का संसार स्वप्न ,मैथिली शरण गुप्त का चंद्रहास आदि .मौलिक नाटकों के अभाव में भी इस युग में अनेक नाटकों का अनुवाद हुआ है . 

३. प्रसाद युग - 

जयशंकर प्रसाद ने हिंदी नाटक को प्रौढ़ता प्रदान की है .उपन्यास साहित्य में जो क्षेत्र प्रेमचंद का है ,नाटक रचना में वहीँ स्थान प्रसाद जी का है .इनके हाथों से हिंदी नाटक के क्षेत्र में एक अभूत पूर्व परिवर्तन हुआ .प्रसाद ने एक दर्जन से अधिक नाटकों की रचना किये ,जिनका विवरण इस प्रकार है . सज्जन , कल्याणी ,परिणय ,करुणालय ,प्रस्षित ,राज्यश्री ,वैशाख ,अजातशत्रु ,कामना ,जन्मेजय का नागयज्ञ ,स्कन्दगुप्त ,एक घूँट ,चन्द्र गुप्त ,ध्रुस्वमिनी . 
प्रसाद ने अपने नाटकों का विषय भारत के गौरवपूर्ण इतिहास से ग्रहण किया है .उन्होंने इसके पात्र भी अतीत से ग्रहण किया है .अपने प्रत्येक नाटक में एक न एक उत्कृष्ट नारी चरित्र की उद्भावना की .शिल्प के क्षेत्र में उन्होंने भारतीय एवं पश्चिम पद्धतियों के मध्य सुन्दर समनवय स्थापित किया है . चन्द्रगुप्त इनका सर्वश्रेष्ठ नाटक हैं .उसमें प्रसाद जी को नाट्यकला का सर्वश्रेष्ठ रूप दृष्टिगत होता है .नाटक में गीत सृजन इनकी नाट्यकला की एक विशेषता है . प्रसाद युग में कई उत्कृष्ट नाटकों की रचना हुई ,जिसमें मुख्य है - माखनलाल चरुर्वेदी का कृष्णार्जुन ,गोविन्द बल्लब पन्त के वरमाला ,राजमुकुट ,उग्र जी का महात्मा ईशा ,मुंशी प्रेमचंद के कर्बला ,संग्राम आदि . 

४. प्रसादोत्तर हिंदी नाटक - 

प्रसाद के उपरान्त इस परंपरा ने विशेष बल पकड़ा और उसकी अनेक धाराएँ हो गयी .इन धाराओं का निम्नलिखित संक्षिप्त विवेचन हैं - 

ऐतिहासिक नाटक - 

ऐतिहासिक नाताकारों में हरिकृष्ण प्रेमी ,वृंदावन लाल वर्मा ,आचार्य चतुरसेन शाष्त्री ,जगदीश चन्द्र माथुर आदि उल्लेखनीय हैं . हरिकृष्ण प्रेमी के नाटकों में प्रमुख है ,रक्षाबंधन ,शिवासाधना ,प्रतिशोध ,आहुति ,स्वप्न भंग ,विषपान शपथ .वृन्दावनलाल वर्मा ने राखी की लाज ,कश्मीर का काँटा ,झाँसी की रानी ,हंस मयूर ,बीरबल आदि तथा जगदीशचंद्र माथुर ने कोणार्क एवं शारदीय की रचना कर इस परम्परा को आगे बढाया . 

समस्यामूलक नाटक - 

इक्सन और बर्नाड शॉ से प्रभावित होकर हिंदी में भी अनेक समस्या मूलक नाटकों की रचना हुई है .जिसमें मुख्य इस प्रकार है - श्री उपेन्द्रनाथ अश्क ने झलक ,कैद ,उड़ान आदि .लक्ष्मी नारायण मिश्र ने राक्षस का मंदिर ,मुक्ति का रहस्य ,सिंदूर की होली ,आधी रात ,गुड़िया का घर ,वत्सराज आदि .सेठ गोविन्द दास ने हर्ष ,प्रकाश ,कर्तव्य ,सेवापथ ,दुःख क्यों ,बड़ा पापी कौन आदि लिखा है . 

इनमें मिश्र जी का दृष्टिकोण बुद्धिवादी है .समस्याओं के साथ पात्रों की मन स्थिति तथा द्वन्द का भी इन्होने यथार्थ चित्रण किया है .सेठ गोविन्ददास ने अपने नाटकों की समस्याओं को तल दृष्टि से देखा है .चरित्र चित्रण तथा रंग मंच की दृष्टि से इनके नाटक अच्छे हैं .अश्क के नाटकों में सामायिक जीवन की समस्याओं का यथार्थवादी चित्रण मिलता हैं .इन्हें रंगमंच की आवश्यकता का पूर्ण ज्ञान हैं .मोहन राकेश बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार है।किंतु नाटककार के रूप में उनका स्थान सर्वोपरी है।आधुनिक हिन्दी नाटक के विकास यात्रा में ‘आषाढ़ का एक दिन’, ‘लहरों के राजहंस’ तथा ‘आधे - अधूरे’ ने महत्वपूर्ण योगदान निभाया है।उन्होंने अपनी मौलिक दृष्टि, भावपूर्ण संवेदना तथा जीवन के अनुभव - वैविध्य के आधार पर हिन्दी नाटक को कथ्य एवं शिल्प पर परंपरागत दृष्टिकोण से मुक्त कर विकास के नये आयामों से परिचित कराया।रंगमंच की दृष्टि से मोहन राकेश का आषाढ़ का एक दिन’ नाटक सर्वोत्तम हैं .इसीलिए रंगमंच के लिए उक्त नाटक अनुकूल है . 


COMMENTS

Leave a Reply: 4
  1. आधुनिक हिंदी नाटक अंग्रेजी नाटकों से किस प्रकार प्रभावित है स्पष्ट कीजिए

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  2. Hindi natak ke usbhv vikash ki vivechana kijiye

    जवाब देंहटाएं
  3. मोहन राकेश जी का आधे -अधूरे नाटक रंगमंच की दृष्टि से सर्वोत्तम नाटक है क्या ?

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हिंदी नाटक का उद्भव और विकास
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