हिंदी निबंध का उद्भव और विकास hindi nibandh udbhav aur vikas हिंदी निबंध का उद्भव और विकास निबंध का उद्भव एवं विकास हिंदी उपन्यास तथा कहानी के समान निबंध भी पश्चिम की देन है .हिंदी में निबंध का विकास प्राय: अंग्रेजी के निबंधों के आधार पर हुआ है .भारतेंदु युग से लेकर हिंदी निबंध साहित्य निरंतर अग्र गति और निरंतर विकास की ओर अग्रसर होता रहा है .
हिंदी निबंध का उद्भव और विकास
हिंदी निबंध का उद्भव और विकास निबंध का उद्भव एवं विकास hindi nibandh udbhav aur vikas - हिंदी उपन्यास तथा कहानी के समान निबंध भी पश्चिम की देन है .हिंदी में निबंध का विकास प्राय: अंग्रेजी के निबंधों के आधार पर हुआ है .
अन्य गद्य विधाओं के समान निबंध भी भारतेंदु युग की देन है .तब से अब तक इस विधा में अनेकानेक परिवर्तन हुए हैं .हिंदी निबंध के विकास का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है -
१. भारतेंदु युग (१८६८ -१९०३ ) -
भारतेंदु जी हिंदी के सर्वप्रथम निबंधकार है और उनका युग हिंदी का प्रारंभिक युग है .इस काल के निबंधों में विषय और शैली की विविधता है .भाषा व्यावहारिक है .उस पर स्थानीय बोलियों का प्रभाव है .भारतेंदु जी के अतिरिक्त इस काल के निबंधकारों में बालकृष्ण भट्ट ,प्रतापनारायण मिश्र ,बाल मुकुंद गुप्र ,बदरी नारायण चौधरी ,अम्बिकादत्त व्यास ,राधाचरण गोस्वामी का प्रमुख स्थान है .इन सबने राजनीति समाज सुधार देश प्रेम आदि को अपने निबंधों का विषय बनाया .प्रायः इस युग के निबंधकार मनमौजी स्वभाव के व्यक्ति थे .अतः उनमें स्वच्छंदता और उन्मुक्तता पायी जाती है .
२. द्विवेदी युग (१९०३ -१९२० )-
द्विवेदी युग भाषा के परिष्कार और संस्कार का युग है .द्विवेदी जी के सामने दो लक्ष्य थे - भाषा की शिथिलता को समाप्त करना और लोगों की रूचि को गंभीर विषय की ओर आकर्षित करना .इसका परिणाम यह हुआ कि इस युग के निबंधों में प्रौढ़ता और गंभीरता आई ,भाषा परिष्कृत हुई और निबंध के विषयों का विस्तार हुआ .द्विवेदीयुग के निबंधकारों में अध्यापक पूर्ण सिंह ,पद्मसिंह शर्मा ,माधव मिश्र ,मोहनलाल मेहता ,बनारसीदास चतुर्वेदी और मिश्र बन्धुवों के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं .
३. शुक्ल युग (१९२० -१९३७ ) -
निबंध क्षेत्र में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के पदार्पण से निबंध साहित्य को नया जीवन मिला .वास्तव में निबंधों के क्षेत्र में सबसे अधिक प्रभावशाली व्यक्तित्व शुक्ल जी का क्षेत्र है .शुक्ल जी के प्रभाव से इस युग में गंभीर और विचार प्रधान निबंधों की रचना हुई .इनमें प्रौढ़ भाषा शैली का प्रयोग हुआ है .इस युग के अन्य प्रतिभाशाली लेखकों में डॉ .श्यामसुन्दरदास ,पीताम्बर दत्त बडथ्वाल ,संपूर्णानंद ,गुलाब राय आदि का महत्वपूर्ण स्थान है .
४. शुक्लोत्तर युग (१९३७ - से अब तक ) -
शुक्लोत्तर युग के निबंधकारों में डॉ .हजारी प्रसाद द्विवेदी ,जैनेन्द्र कुमार ,डॉ .नगेन्द्र ,महादेवी वर्मा ,डॉ .राम विलास शर्मा ,अमृतराय ,आचार्य नन्द दुलारे वाजपेयी आदि का नाम बड़ी श्रधा के साथ लिया जा सकता है .
डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के अशोक के फूल,कल्पलता ,विचार और वितर्क ,निबंध संग्रह प्रकाशित हुए हैं .इनमें विचारों की मौलिकता और शैली की रोचकता है .श्री जैनेन्द्र कुमार जी के दार्शनिक और सामाजिक विषयों पर निबंधों की रचना की है .डॉ .नगेन्द्र जी ने मुख्यतः साहित्यिक विषयों पर निबंध लिखे हैं .ये निबंध विचार और विवेचन ,विचार और अनुभूति ,विचार और विश्लेषण आदि संग्रहों में संग्रहित हैं .
महादेवी वर्मा ने अतीत के चलचित्र ,स्मृति की रेखाएँ और श्रंखला की कड़ियाँ आदि संग्रहों में हिंदी में संस्मारात्मक निबंधों के भाव की पूर्ति की है .
इनके अतिरिक्त श्री शिवदान सिंह चौहान ,डॉ .देवराज ,कन्हैयालाल मिश्र ,धर्मवीर भारती ,प्रभाकर माचवे ,विद्यानिवास मिश्र ,आदि निबंधकारों के निबंध विभिन्न साहित्य के पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं और अभी भी हो रहे हैं .इस प्रकार निबंध साहित्य ने कुछ ही समय में पर्याप्त उन्नति की है .भारतेंदु युग से लेकर हिंदी निबंध साहित्य निरंतर अग्र गति और निरंतर विकास की ओर अग्रसर होता रहा है .
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Inki parmukh viseatawo ko bhi daliye
जवाब देंहटाएंSukalottar yug ke koi pravartak nahi the kya??
जवाब देंहटाएंहमें यहां से अच्छा से अच्छा जानकारी प्राप्त होता है साहित्य मार्गदर्शन में।
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