हरकीरत जी की कलम से नारी विमर्श के केंद्र में दर्द , आह , वेदना , आँसू , घुटन , आक्रोश और ..........की ब्यथा यहाँ दर्शित है | नारी मन की अनकही आवाज़ का नज़्म यहाँ क्षणिकाओं के रूप में पुस्तकाकार हुई है |
ख़ामोशी का अनुवाद करती क्षणिकाएं
हिंदी साहित्य में कई विधाओं की पुस्तकें इन दिनों प्रकाशित हो रही हैं लेकिन क्षणिकाओं की इस पुस्तक ने यहाँ अपना एक अलग मुकाम हासिल किया है | क्षणिकाओं की यदा – कदा प्रकाशन और उनकी जीवन्तता पर कम लिखा – पढ़ा गया परन्तु यहाँ जो कुछ भी लेखिका हीर जी ने देखा – समझा उसको अपनी लेखनी से शब्दांकित कर इसे पवित्र कर दिया ; यह हिंदी साहित्य को उनका बहुमूल्य अवदान है |
आग के अक्षर |
इन क्षणिकाओं में काव्यत्व के सारे गुण मौजूद हैं , ब्यंग्य से इतर ये परिस्थितियों पर सवाल उठाते हुए खड़ी हैं इनमें मानवीय मूल्यों को जिन्दा रखने की छटपटाहट है | ये क्षणिकाएँ संवेदनाओं की बस्ती की यात्रा बेरोकटोक करते हुए अपने आपको प्रकट करते हैं जो समर्पित हैं उन तमाम महिलाओं को जिनकी कलम अक्षरों की आग से लड़ने का साहस रखती हैं |
हरकीरत जी की कलम से नारी विमर्श के केंद्र में दर्द , आह , वेदना , आँसू , घुटन , आक्रोश और ..........की ब्यथा यहाँ दर्शित है | नारी मन की अनकही आवाज़ का नज़्म यहाँ क्षणिकाओं के रूप में पुस्तकाकार हुई है | भारतीय नारी के त्याग , तपस्या , खामोशी , समर्पण को अलग – अलग समय पर भिन्न प्रकार से परिभाषित कर समाज ने सदैव से उसका दोहन किया है इसी विडम्बना को सवालों के आईने में हीर जी ने खड़ा किया है –
औरत एक सनसनीखेज खबर क्यों बना दी जाती है ?
मुहब्बत के मुस्कुराते शब्दों के हाथ अचानक खून से क्यों रंग जाते हैं ?
मुहब्बत की लिबास , औरत या मर्द क्यों होती है ?
नारियों के लिए चुप रहो तुम की दुनिया से बाहर निकालने उनकी चुप्पी सयानी होकर कविताएँ लिखने लगी हैं और आग के अक्षर चुन बैठी हैं | आपकी क्षणिकाएं नारी मन के रूप को अक्षर . सफहा , नज़्म और शब्द का रूप देकर इश्क , प्यार , मुहब्बत , मज़ार , दावत , कफ़न , कब्र , ज़ख्म , दर्द , और धुआँ के इर्द – गिर्द समेटते हैं | जब कलम संवेदनाओं की गलियों से गुजरते हैं , उसे अनुभूत करते हैं तो ऐसे ही शब्द निकलते हैं –
बेहया यादें क्रियाकर्म के बाद भी जिन्दा हो उठती हैं ....
मृत शब्दों की लाशें ढोती खामोशी जब मुहब्बत का जन्मदिन मनाने लगे तो क्या कहियेगा ?
कविता के सच और वकालत के झूठ के बीच मुहब्बत कुँवारी ही मर गयी ?
शब्दों के चयन में उत्कृष्टता आपकी पंक्तियों में पैनापन लाती हैं ताकि ये पाठकों के दिल में सीधे उतर जाएँ | किसी माता के कोख की पवित्रता को ब्यक्त करने का अंदाज़ देखिए -
श्वानों का जमावड़ा है / माँस की गंध लिए / एक लम्बी चीख के टुकड़े / फिर
उग आये हैं कचरे की देह में / आज फिर किसी कोख का / क़त्ल हुआ है ....||
सबसे पवित्र जगह / होती है इक औरत की कोख / जो बिन जाति
मज़हब के / परवरिश करती है / इक बलात्कारी का अंश ......
मज़हब के / परवरिश करती है / इक बलात्कारी का अंश ......
सहजता की पीठ पर सवार शब्द अनायास ही गहरी बाटन के साथ अलौकिक चमत्कार उत्पन्न करते हैं -
सुनो ...! / वापस लौटते वक्त / कुछ हिस्सा तुम्हारे पास रह गया था / उसे बो देना ... / किसी गीली सी मिट्टी में / क्या पता फूट पड़े कोई पत्ता / ठूँठ होने से पहले ..... ||
...... ये कौन बो गया इश्क का बीज / कि मिट्टी ने भी अपनी / जात बदल ली ...... ||
नारी मन की ब्यथा में विछोह का दर्द बहुत भयानक त्रासदी होता है ; वह किस पर भरोसा करे , किस पर नहीं इसमें उसे धोखा मिल जाया करता है -
सुनो ...! ले तो लिया है तुमने / पर मत कुरेदना कभी / इसकी सतही परतों को .... / न जाने कितने .... / मुहब्बत के परिंदों की लाशें / दफन है इस दिल की .... / मिट्टी में .... ||
इक कोठरी में लगे हैं जाले / इक कोठरी में ख़ामोशी रहती है / इक कोठरी दर्द ने ले रखी है / इक कोठरी बरसों से बंद पड़ी है / कभी रहा करता था यहाँ प्रेम / सोचती हूँ तुम्हें दिल की / किस कोठरी में रखूँ ....?
सामजिक और मानवीय सरोकारों को जिन्दा रखने की तमाम कोशिश इस संग्रह की क्षणिकाओं में प्रस्तुत है ; प्रत्येक क्षणिका संवेदनहीन दुनिया [खासकर नारियों के प्रति ] की परतें उघाड़ कर रख देता है | हरकीरत जी ने क्षणिका की पंक्तियों को प्रतीकोण के माध्यम से अभिब्यक्त किया है ; प्रत्येक क्षणिका का अपना अलग अंदाज़ है जो मर्मस्पर्शी हैं और आक्रोश के साथ पाठकों के दिल में गहरे उतरकर उसे झकझोर देने में समर्थ हैं .......| प्रत्येक क्षणिकाएं अद्भुत हैं और आपको पढने का न्यौता देती हैं , पढ़ लिया तो अंतरात्मा को खदबदा देती हैं ; आशा है यह संग्रह पाठकों को अवश्य पसंद आएगी |
मेरी अनंत शुभकामनाएं .......
बहुत ढूंढा तुम्हें प्रेम / तुम बिकते क्यों नहीं .....?
तुमने नहीं पढ़ा / जब किसी गैर ने / उसे पढ़ा .... / वह बाजारू हो गयी ...?
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आग के अक्षर [ क्षणिका संग्रह ] – हरकीरत हीर , असम
अयन प्रकाशन – दिल्ली , प्रथम संस्करण -२०१९ मूल्य – ४००=०० रु.,पृष्ठ – २२३
-रमेश कुमार सोनी
जे. पी. रोड – बसना , जिला – महासमुंद [ छत्तीसगढ़ ]
पिन – ४९३५५४ / मोबाइल – ७०४९३५५४७६ / ९४२४२२०२०९
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