मौखरि साम्राज्य का इतिहास सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु 647 ईस्वी में हो जाने के बाद अधिकांश भारतीय इतिहासकारों का मत है उत्तर भारत की राजनीतिक एकता बिखर गई थी परंतु सत्य से थोड़ा भिन्न है। हर्ष की मृत्यु के बाद गुप्त काल के सम्राट आदित्य सेन ने उसके रिक्त स्थान को भरा।
मौखरि साम्राज्य का इतिहास
सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु 647 ईस्वी में हो जाने के बाद अधिकांश भारतीय इतिहासकारों का मत है उत्तर भारत की राजनीतिक एकता बिखर गई थी परंतु सत्य से थोड़ा भिन्न है। हर्ष की मृत्यु के बाद गुप्त काल के सम्राट आदित्य सेन ने उसके रिक्त स्थान को भरा। संपूर्ण उत्तर भारत को एकजुट कर उसने अश्वमेध यज्ञ किया। 694- 95 ईसवी तक यह साम्राज्य शक्तिशाली रहा। 694-95 ईसवीं के पश्चात कन्नौज के मौखरी वंश का सम्राट
मौखरि साम्राज्य का इतिहास |
पुस्तक के विशेष अंश एवं लेखक की खोज:-
सम्राट यशोवर्मन मौखरी राजवंश का ही उत्तराधिकारी था । यशोवर्मन चंद्रवंशी क्षत्रिय था । मौखरी महाराज सुब्रत वर्मा हर्ष की मृत्यु के बाद कन्नौज का शासक बना।
"सुब्रत वर्मा का उत्तराधिकारी भोग वर्मा और उसका उत्तराधिकारी मनोरथ वर्मा और उसका उत्तराधिकारी सम्राट यशोवर्मन था" को सिद्ध करने के लिए लेखक ने बड़े तथ्य दिए हैं।उज्जैन पर होने वाले अरब मुस्लिम आक्रमण जिसका सेनापति जुनैद था को पराजित कर भारतीय सीमा से बाहर खदेड़ने का काम सम्राट यशोवर्मन ने किया। इसके प्रमाण लेखक ने इस ग्रंथ में दिए हैं।जबकि इतिहासकार उज्जैन से अरबों को पराजित करने का श्रेय नागभट्ट को देते हैं परंतु यह सत्य नहीं है क्योंकि नागभट्ट उस समय मेड़ता का शासक था उज्जैन का नहीं । केवल मात्र यह तथ्य इसी ग्रंथ में प्रकाशित किया गया है कि सम्राट यशोवर्मन की प्रेरणा से नागभट्ट ने अपनी राजधानी मेड़ता से भीनमाल स्थानांतरित की । सम्राट यशोवर्मन की प्रेरणा से उज्जैन में नागभट्ट ने अपने पोते वत्सराज को प्रशासक नियुक्त किया था। सम्राट यशोवर्मन की वृद्धावस्था के समय लगभग 740 के आस पास कश्मीर नरेश सम्राट ललितादित्य मुक्तापीठ ने अपनी राजनीतिक आकांक्षा को पूरा करने के लिए मित्रता को ताक पर रखकर कन्नौज पर आक्रमण किया लेकिन बुद्धिमान यशोवर्मन ने दुखी होकर बड़ी समझदारी से ललितादित्य के समक्ष समर्पण कर संधि स्थापित कर ली। संधि के अनुसार उसने अपने राज्य के उत्तरी क्षेत्रों पर अधिकार स्वीकार कर लिया। ललितादित्य के दिग्विजय पर किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करते हुए शांत रहा ।सम्राट ललितादित्य उत्तर भारत सहित दक्षिण भारत को विजय कर अपनी राजनीतिक आकांक्षा पूर्ण करते हुए कश्मीर लोट गया । दोनों सम्राट अपने अपने क्षेत्र में जब तक जीवित रहे शासन करते रहे।
सुझाव :–
लेखक विजय नाहर की भारतीय इतिहास के संदर्भ में लगभग आठ-दस किताबे प्रकाशित हो चुकी है । 175 पृष्ठों की इस पुस्तक में लेखक ने सम्राट यशोवर्मन की वीरता का गुणगान करते हुए मोखीरी साम्राज्य से जुड़े कई अनकहे पहलुओं को उजागर किया है । लेखक 25 वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे हैं एवं भारतीय इतिहास संकलन योजना के महामंत्री रह चुके है। अपने 50 वर्षों की शोध को पाठकों के समक्ष संदर्भों के साथ रखने का प्रयास कर रहे हैं और भारतीय इतिहास के असली स्वरूप को उजागर करने के प्रयत्न में लगे हुए हैं। इससे पूर्व लेखक की पुस्तक "शीलादित्य सम्राट हर्षवर्धन एवं उनका युग" में 467 से 647 ईस्वी तक के इतिहास को निष्पक्षता के साथ प्रस्तुत करने में सफल सिद्ध हुए थे। सम्राट यशोवर्मन पर इतनी विस्तृत सामग्री और शोध को प्रदर्शित करने वाली भारतीय इतिहास में यह पहली पुस्तक है । अन्य पुस्तकों में सम्राट यशोवर्मन केवल एक पृष्ठ में ही सीमित हो जाते हैं। लेखक की शैली प्रवाह मान भाषा सरल एवं स्पष्ट है। इतिहास के विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं और व्याख्याताओं के लिए यह पुस्तक लीक से हटकर नवीन सामग्री प्रदान करती है।
लेखक की इसी कड़ी की अन्य पुस्तकें:-
शीलादित्य सम्राट हर्षवर्धन एवं उनका युग, सम्राट मिहिर भोज एवं उनका युग, सम्राट भोज परमार, प्रारम्भिक इस्लामिक आक्रमणों का भारतीय प्रतिरोध, युगपुरुष बप्पारावल, सम्राट पृथ्वीराज चौहान
लेखक परिचय
https://en.m.wikipedia.org/wiki/Vijay_Nahar
१. पुस्तक का नाम :-सम्राट यशोवर्मन(मौखरी साम्राज्य का इतिहास)
२. लेखक :- विजय नाहर
३. प्रकाशक का नाम, प्रकाशन स्धल :- पिंकसिटी पब्लिशर्स, जयपुर
४. प्रकाशन वर्ष :-2014
५. आवृत्ति :-प्रथम
६. आई एस बी एन न० :-978-93-80522-20-3
७. पुस्तक का मूल्य :-240 रु
८. पुस्तक का विषय:-
मौखरी वंश का यशोवर्मन का एवं कश्मीर नरेश ललितादित्य मुक्तापीड़ के विषय में तथा प्रारंभिक मुस्लिम आक्रमणों के विषय में संदर्भसहित वर्णन
लेखक परिचय
https://en.m.wikipedia.org/wiki/Vijay_Nahar
https://en.m.wikipedia.org/wiki/Vijay_Nahar
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