ग्राम देवता की पूजा आवष्यक तथा शास्त्र सम्मत ग्रामीण जनजीवन में प्रकृति की पूजा का प्रचलन था। प्रकृति पुजा में नदी पहीड़ वृक्ष तालाब सरोवर आदि का पूरा का पूरा ध्यान दिया जाता था। इसी क्रम में ग्राम देवी अथवा ग्राम देवताओं की पूजा पद्धति का प्रचलन भी हुआ है।
ग्राम देवता की पूजा आवश्यक तथा शास्त्र सम्मत
ग्राम देवता पूजा ग्रामीण जनजीवन में प्रकृति की पूजा का प्रचलन था। प्रकृति पुजा में नदी पहीड़ वृक्ष तालाब सरोवर आदि का पूरा का पूरा ध्यान दिया जाता था। इसी क्रम में ग्राम देवी अथवा ग्राम देवताओं की पूजा पद्धति
सकता और देवता का अस्तित्व मनुष्य के बिना शून्य जैसा है। हड़प्पा और मोहन जोदाड़ों की खुदाई इस विश्वास को काफी बल देती है कि प्राचीन काल से उपासना की परंपरा चली आ रही है।जिस जिस चीज से लोग डरते थे उसको प्रसन्न करने के लिए उसकी पूजा अर्चना शुरूकर देते थे। पहले लोग प्रकृति की पूजा करते थे फिर अपने घरो मे पूजा करने लगे जो कालांतर मे एक गोत्र या कुल की पूजा कहलाती रही । इसी प्रकार अपने वास स्थान या गांव की सुरक्षा के लिए ,दैविक या भौतिक या प्राकृतिक आपदा जैसे आग ,बाढ़ ,महामारी ,बाहरी आक्रमण आदि से दूर रखने के लिए गांव की सीमा पर ग्राम देवता या कुल देवता की स्थापना की गई।
वार्षिक पूजा भजन तथा भंडारा -
ऐसा पाया गया है कि हिंदुस्तान के अधिकांश हिस्सों में ग्राम देवता स्त्रियाँ होती हैं, जैसे सत्ती माई ,काली माई ,दुरगा माई ,चंडीमाई ,शीतला माई व समय माई आदि। मगर कहीं कहीं पुरुष देवता भी होते हैं ,जैसे भैरो बाबा , बजरंग बली ,ब्रम्हा शंकर ,नंदी ए जोगीबीर बाबा डीवहारे बाबा आदि । किसी समय मे स्थापित होने वाले ये पवित्र स्थान गाव से बाहर या सीमा पर ऐसे निर्जन ,सुनसान खेतों , झाड़ियों या गाछों के बीच हुआ करते जहां कम आबादी के कारण शाम ढलते ही भयानक और रोमहर्षक वातावरण ,विभिन्न प्रकार के भूत ,प्रेत ,चुड़ैल ,आदि की दंतकथाओ के विकास और प्रचलन से उत्पन्न भय से मनुष्यों को निजात दिलाया करते थे। दीपावली के दिन यहां पर दीपक रखे जाने की परम्परा है तो कहीं कहीं लोग वार्षिक पूजा भजन तथा भंडारा तक भी करते है।
अगाध विश्वास -
पीपल या बरगद की विशाल वृक्षों की शाखाओ से बंधे नए लाल लंगोट ,पीले ,कपड़े या झंडे या त्रिशूल ,सिंदूर पुते पत्थर के आकृति आदि उन्हें आसुरी या पैचासिक प्रवृत्तियों से , प्राकृतिक और ,मनुष्य कृत आपदाओ से ,मनोवैज्ञानिक सुरक्षा प्रदान करता था। उनकी दृढ़ आस्था और विश्वास के प्रतीक ये न्याय के देवता उनके आपसी और सामाजिक झगड़ों के निबटारे के लिए वास्तव मे न्यायाधीश का कार्य करते । उन्हें अगाध विश्वास था कि अगर कोई बलशाली उसकी संपत्ति हड़पेगा ,उसे बिना कसूर के सताएगा तो ये देवता आततायी को अवश्य दंडित करेंगे ।
विधिवत पूजा -
इसके अलावा बहुत सारे पवित्र पेड़ों एवं झाड़ों जैसे पीपल ,बरगद केला ,बेल ,शमी ,तुलसी ,आवला आदि कीय जानवरो की ,साँपो की पूजा भी वहां होती ,समय समय पर भजन कीर्तन होता ,जिससे उनकी आध्यात्मिक शक्तियां और भी बलवती होती थी। राजतंत्र मे भी नगर या ग्राम की बाहरी और आंतरिक सुरक्षा के लिए राजे महाराजे ग्राम या नगर देवता की मूर्ति स्थापित कराते थे। और उनकी विधिवत पूजा करवाते, राजा के अलावे उस इलाके के सारे लोग अपने परिवार की सुख शांति के लिए उनकी उपासना करते और बच्चों के जन्म ,मुंडन ,उपनयन ,शादी ब्याह आदि मांगलिक मौको पर सर्व प्रथम उस सर्वाधिक आदरणीय एवं प्रतिष्ठित स्थान को न्योता जाता ,तदुपरांत वहां जाकर अपनी अगाध भक्ति , निष्ठा और आस्था का परिचय देते । सजी धजी सुहागिने देवता को प्रसन्न करने के लिए एक से एक भक्ति पूर्ण गीत बनाती और बड़ी भावुकता से गाती हैं।
समाज में प्रायः बलि प्रथा समाप्त हो गयी है। इसके बाद भी अनेक स्थानो पर लोग मिट्टी के हाथी ,घोड़े या ऐसी ही कुछ प्रतिकात्मक चीजें मन्नत पूरा हो जाने पर चढ़ाते हैं। यद्यपि किसी किसी समुदाय मे जानवरो की बलि प्रथा अभी भी सुनी जाती है । अलग अलग गावों मे अपनी समुदाय या जाति के आधार पर लोग अपने देवता की स्थापना की जाती है। जो लोगों के रक्षक ,जनकल्याण कारक ,और असीम शक्ति पूंज के रूप मे आज भी पूजे जाते हैं। मुंबा देवी किसी जमाने मे मुंबई की ग्राम देवी ही थी । कोलकाता की काली जी की स्थिति भी प्रायः एसी ही है। गोहाटी की कामाख्या आदि ग्राम देवी के साथ सती के रुप में भी ूपजी जाती है। आज भी इन की महिमा कम नहीं हुई है । पहाड़ो मे भी अनेक देवी देवता है जिन्हें वहां के स्थानीय लोग अपने इलाके का रक्षक मानते हैं,और उनके रुष्ट होने पर भयंकर प्रलय की बात कहते हैं। ,इसका एक ताजा उदाहरण केदारनाथ के प्रलय से जोड़ा जाता है। बहुत से आदिवासी बहुल इलाको मे आज भी लोग अपने इस ग्राम्य देवता की उपासना साल मे एक बार ,ढ़ोल ,मजीरे ,पिपही ,के साथ नाच गाकर बड़े पैमाने पर उत्सव मना कर करते हैं। प्रकृति मे फैली अपार सकारात्मक ऊर्जा से, प्राण वायु से नवीन चेतना प्राप्त कर अपनी मानवीय जिंदगी को बेहतरीन और सुखमय बनाने का हमारे प्रातः स्मरणीय ऋषिओ ,मुनियो ,पूर्वजों आदि द्वारा दिखाया गया यह आध्यात्म का मार्ग निस्संदेह अद्भुत एवं परम वैज्ञानिक है। सनातन धर्म के छत्तीस कोटि देवी देवताओ मे ये सभी शामिल हैं। लोगों ने अपनी जाति और व्यवसाय के अनुकूल अपने अपने देवता को चित्रित कर पूजा किये जाने का विधान बनाया है।
अंध विश्वास निरोधक कानून -
जब भारत माता ही ग्राम वासिनी हुई ,तो भले उनके देवी देवता भी कैसे उनका दामन छोड़ते । पूरब से पश्छिम ,उत्तर से दक्छिन तक ही नहीं ,सनातन धर्म के अवशेषों को अपने सीने मे सँजोए विश्व मे जहां जहां भारत वंशी हैं,अपने अपने कुल या ग्राम देवता को अपने से जुदा कर ही नहीं सकते हैं। देश परदेश की कभी कोई गहन मजबूरी हुई तो भी हृदय से कौन मिटा सकता है ।कभी कभी सीधे सरल चित्त आस्थावानों की भावना का लाभ उठाकर धूर्त और चालाक लोगों द्वारा बहुत से अंध विश्वासों का जन्म और पोषण भी हो जाता है जो यदा कदा उस समाज के लिए घातक भी हो जाता है। अतएव उन अंध विश्वासों से, पाखंडो से समाज का दोहन या शोषण रोकना बेहद आवश्यक है , जिसके लिए अंध विश्वास निरोधक कानून काफी कारगर होगा ,बशर्ते इसे ईमानदारी से लागू किया जाय ।
- डॉ राधेश्याम द्विवेदी
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