भारतीय साहित्य में संस्कृति के तत्व शिवानंद जी की आरती के बारे में तो आपने सुना ही होगा, जय जगदीश हरे वाली आरती के रचयिता शिवानंद जी , पं श्रद्धाराम शर्मा फिल्लौरी पंजाब के थे । उसी तरह चिन्मय मिशन मद्रास के स्वामी चिन्मयानंद जी का संस्कारित जीवन के उत्थान में योगदान को स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाना चाहिए।
भारतीय साहित्य में संस्कृति के तत्व
शिवानंद जी की आरती के बारे में तो आपने सुना ही होगा, जय जगदीश हरे वाली आरती के रचयिता शिवानंद जी , पं श्रद्धाराम शर्मा फिल्लौरी पंजाब के थे । उसी तरह चिन्मय मिशन मद्रास के स्वामी चिन्मयानंद जी का संस्कारित जीवन के उत्थान में योगदान को स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाना चाहिए।
नदिया ,पश्चिम बंगाल जिले के गौरांग महाप्रभु का भी नाम आपने सुना हुआ। यह गौरांग महाप्रभु ही थे,जिन्होंने यह कृष्ण जन्मभूमि है खोजी , और श्री कृष्ण के जीवन काल की समस्त घटनाओं का ब्यौरा बताया। धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन में उनके योगदान को क्या कभी भुलाया जा सकता है या परतंत्रता काल के भक्ति आंदोलन के योगदान को क्या हम कभी भूल सकते है ?
नैतिक मूल्यों का वास्तविक अर्थ -
तमिल कवि तिरुवल्लुवर एवं अंडाल बहने और अन्य ने जो ग्रंथ हमें सौपे हैं उनमें ठीक उसी तरह की सीख है
जैसे विदुर नीति, चाणक्य नीति, एवं भीष्म पितामह की सीख। लेकिन यह सब ग्रंथों में समाहित हैं और इनसे व्यवहार हमारे युवाओं को बहुत देर बाद मिलता है। जैसे पं भवानी प्रसाद मिश्र की बुनी हुई रस्सी शीर्षक कविता।यक्ष युधिष्ठिर संवाद को समेटे हुए अलीगढ़ के प्रसिद्ध कव्वाल हबीब पेंटर की कव्वाली के : बहुत कठिन है डगर पनघट की......" के अलावा,कुछ ऐसे ग्रंथ जिनका वर्णन नीचे किया है वह सब के सब दिन प्रतिदिन व्यवहार में आने वाली चीजें हैं जो शिशुओं और युवाओं को नैतिक मूल्यों का वास्तविक अर्थ समझाती है ,जिसकी कि आज नितांत आवश्यकता है।
साहित्य |
आशय यह नहीं कि हम जो लकीर के फकीर बन के उसी स्थान पर खड़े थे , वही खड़े रहे,वरन विकास और गतिमान होना है तो स्वप्न ,संकल्प और क्रिया और मैं कहूंगा संक्रिया शुद्ध हो और आचरण में आई हुई हो तब समाज और देश का भला होगा।
भारतीय साहित्य की तीन उत्कृष्ट कृतियों में प्रथम सदाशिव साने अर्थात साने गुरुजी की श्यामची आई पुस्तक है। साने गुरुजी को सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जेल हुई थी और उन्हीं 5 दिन में यह पुस्तक कहानियों के रूप में लिखी गई है। सबसे विलक्षण बात यह है कि इसमें जैसे मां अपनी बेटेबेटी को कहानी रात में कहती है या कहानियां भी 14 कहानियां रात में ही सरल भाषा में मराठी में सुनाई गई है।
मातृ देवो भव -
बच्चे का प्रथम पालना मा की गोद ही है ।
पहली ही कहानी मे बालक श्याम मां की बात नहीं मानता। वह इसलिए नहीं मानता क्योंकि उसे न केवल महिलाओं द्वारा अपनी खिल्ली उड़ाई जाने का डर है बल्कि साथियों द्वारा भी खिल्ली उड़ाई जाने का डर है कि वह लोग क्या कहेंगे। मूल मुद्दा यह है कि श्याम की मां बीमार है बुखार से पीड़ित है और वह श्याम से कहती है कि अगले दिन वट सावित्री का व्रत है और श्याम की मां को रीति-रिवाजों में पूर्ण आस्था है इसलिए वह चाहती है कि उसका बेटा 108 बार परिक्रमा उसके बदले में करें। लेकिन बेटे को वह बात सुहाती नहीं कि ये व्रत तो महिलाए रखती है पुरुष नही ,लेकिन अचानक ही श्याम को एहसास होता है कि केवल व्रत की बात नही कि इसे स्त्रिया ही करती है ,।बल्कि मां-बाप की बात मानना भी ईश्वर के काम आना है ( मातृ देवो भव , पितृ देवो भव , अतिथि देवो भव ) , ईश्वर की पूजा अर्चना है। इस तरह आप देखेंगे कि बातों के जरिए इसमें बड़े गूढ इष्टतम लक्ष्य को प्राप्त करने की चेष्टा की गई है।
यह कहानियां साने गुरुजी की वास्तविक रूप से आत्मकथा है। वीर लोग अपना साहित्य खून से रचते हैं पर इस कथानक की विशेषता यह है कि साने गुरुजी के आंसुओं से लिखी हुई उनकी आत्मकथा है।
अन्य कहानियों के अभीष्ट भी इसी तरह के हैं।
सार बात है , वह यह है कि :
- जो मां अपने बच्चे को प्यार करती है वह मां है और जो मां अपने बच्चे के साथ साथ सभी बच्चों को प्यार करती है वह एक सर्वश्रेष्ठ मां है ।
- भारत में विनाश का कारण केवल और केवल भाइयों के बीच शत्रुता ही रहा है।
- धन अथवा शक्ति अगर आपके पास है तो समय रहते उसका सदुपयोग करें "परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम्" लेकिन किसी व्यसन में अथवा इसका दुरुपयोग ( जोर , जुर्म ) कतई ना करें।
दूसरी उत्कृष्ट कृति वी शांताराम का नाटक पिंजरा है।1972 मे यह फिल्म बनी थी जिसे प्लाजा मे देखने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी आए थे । एक स्वाभिमानी होनहार और सीधे साधे गुरुजी एक नटनी ( तमाशा और लावनी अभिनीत करने वाली )के जाल , में वही जाल पिंजरा कहलाता है ,में फस जाते हैं।
और तीसरी उत्कृष्ट कृति गडकरी का एकच प्याला है कि किस तरह एक स्वाभिमानी और अति उत्साही कर्मठ सुधाकर मद्यपान के व्यसन में बुरी तरह फंस कर बर्बाद हो जाता है। वह अपने पुत्र को मारता है , सिन्धु पत्नी आगे मर जाती है और सुधाकर आत्महत्या करता है , इस तरह यह शोकान्तिका है ।
दुख की बात है कि युवक इनमे पठन आदि मे कम रुचि लेते है। आचरण भी इन सीख पर कम करते है ।
संपर्क - क्षेत्रपाल शर्मा
म.सं 19/17 शांतिपुरम, सासनी गेट ,आगरा रोड अलीगढ 202001
मो 9411858774 ( kpsharma05@gmail.com )
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