राजा निरबंसिया Raja Nirbansiya राजा निरबंसिया raja nirbansiya राजा निरबंसिया कहानी का उद्देश्य राजा निरबंसिया कहानी राजा निरबंसिया कहानी की विशेषताएं बताइए राजा निरबंसिया कहानी की कथावस्तु का विश्लेषण राजा निरबंसिया कहानी का प्रकाशन वर्ष राजा निरबंसिया कहानी का सार राजा निरबंसिया summary राजा निरबंसिया का प्रकाशन वर्ष राजा निरबंसिया का विषय क्या है
राजा निरबंसिया Raja Nirbansiya
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राजा निरबंसिया कमलेश्वर जी की बहुचर्चित कहानी है। अपनी विषमता और विराटता में यह कहानी जीवन के विविध पक्षों का परामर्श कर यथार्थ अभिव्यक्ति करती है। यह कहानी आधुनिक भाव बोध कराने में पूरी तरह समर्थ है। इस कहानी का प्रकाशन फ़रवरी १९५७ में हुआ था। इस कहानी में लेखक ने परिवेश और वातावरण में आधुनिक मूल्यों की खोज की है। यह कहानी दृष्टि की अपेक्षा रूप में परिवर्तन का उदाहरण है। राजा निरबंसिया कहानी में दोहरी कथा चलती है। एक तरफ माँ द्वारा सुनी हुई कहानी राजा रानी की कथा हैं वहीँ दूसरी तरफ चंदा की अंतर्कथा। इसमें जीवन टुकड़ों में उभर कर सामने आती है और पात्र जीवन के अजनबीपन के शिकार बने रहते है।
राजा निरबंसिया कथा वस्तु raja nirbansiya kahani ki kathavastu / summary
संकट के व्रत कमलेश्वर की माँ राजा निरबंसिया की कहानी सुनाया करती थी। उसके आस पास ही चार पांच बच्चे हाथों से फूल लिए बैठे रहते थे। कथा की समाप्ति पर बच्चे गौरों पर फूल चढ़ा दिया करते थे। राजा निरबंसिया के राज्य में बड़ी खुशहाली थी ,उसकी लक्ष्मी सी रानी थी।
लेखक के सामने उसके ख्यालों के राजा जगपती थे। वह लेखक के साथ मिडिल में पढ़ता था। मैट्रिक पास करके वह जब वह वकील के यहाँ मुहर्रिर हो गया तो उसका विवाह पास गाँव की लड़की चंदा से हो गया। जगपति की माँ की मृत्यु कुछ दिनों बाद हो जाती है ,फलस्वरूप सारा भार चंदा पर आ जाता है। छ : बरस हो जाने पर चंदा के संतान नहीं हुई।
माँ कहानी सुनाया करती थी कि राजा निरबंसिया शिकार खेलने जाया करते थे। पहले वें सातवें दिन अवश्य लौट
आते थे ,परन्तु इस बार नहीं लौटे। रानी को बहुत चिंता हुई ,वह मंत्री को साथ लेकर राजा की खोज में निकल पड़ी। लेखक के निरबंसिया राजा को दूर के गाँव में दयाराम की शादी में जाना पड़ा। वह चंदा से दसवें दिन लौट आने के लिए कह गया था। परन्तु दयाराम के घर डाका पड़ जाता है और यह उसमें बहुत घायल होकर अस्पताल पहुँच जाता है। चंदा उसकी खोज में अस्पताल पहुँच जाती है। चंदा की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। अस्पताल में कम्पाउण्डर की चंदा पर ललचाई नज़र पड़ती है। वह चंदा के लिए उसकी कोठरी में खाट डलवा देता है और जगपति के लिए अच्छी दवाइयाँ का प्रबंध कर देता है। चंदा उसे इसके बदले में अपने सोने के कड़े देने जाती जाती है ,परन्तु वह नहीं लेता है। चंदा जगपति से कह देती है कि वह कड़े बेचकर दवाई का प्रबंध कर रही थी।
आते थे ,परन्तु इस बार नहीं लौटे। रानी को बहुत चिंता हुई ,वह मंत्री को साथ लेकर राजा की खोज में निकल पड़ी। लेखक के निरबंसिया राजा को दूर के गाँव में दयाराम की शादी में जाना पड़ा। वह चंदा से दसवें दिन लौट आने के लिए कह गया था। परन्तु दयाराम के घर डाका पड़ जाता है और यह उसमें बहुत घायल होकर अस्पताल पहुँच जाता है। चंदा उसकी खोज में अस्पताल पहुँच जाती है। चंदा की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। अस्पताल में कम्पाउण्डर की चंदा पर ललचाई नज़र पड़ती है। वह चंदा के लिए उसकी कोठरी में खाट डलवा देता है और जगपति के लिए अच्छी दवाइयाँ का प्रबंध कर देता है। चंदा उसे इसके बदले में अपने सोने के कड़े देने जाती जाती है ,परन्तु वह नहीं लेता है। चंदा जगपति से कह देती है कि वह कड़े बेचकर दवाई का प्रबंध कर रही थी।
माँ कहानी आगे बढाती हुई कहती है कि रानी मंत्री के साथ जब निराश होकर वापिस लौटती है तो उसे राजा घर में उपस्थित मिलते हैं। राजा को मंत्री के साथ रानी का जाना उचित नहीं लगा। राजा रानी दोनों आपस में एक दूसरे को बहुत चाहते थे परन्तु संतान न होने से लोक परलोक बिगड़ जाने के डर से दुखी थे। बचन सिंह का तबादला मैनपुरी के सदर अस्पताल हो जाता है। पंद्रह बीस दिन बाद जगपति की हालत सुधर जाती है और चंदा समेत घर लौट आते हैं। चाची दोनों को देखते हुए व्यंग बाण छोडती है।
पहले तो चंदा ने कहा था कि अपने दोनों सोने के कड़े बेचकर उसने जगपति का इलाज करवाया है ,पर बाद में घर लौटने पर जब जगपति ने दोनों कड़ा मौजूद पाया ,तो उसका संदेह पुष्ट हो जाता है। बेकारी के आलम में वह परिस्थितियों से समझौता करके बचनसिंह के सौजन्य से लकड़ी का टाल खोल देता है। वह अब बेकार नहीं है। तेज़ी से उसका व्यापार आगे बढ़ने लगा। बचनसिंह रोज उसके घर आता और वह अब परिवार का हिस्सा बन गया है। चंदा से उसके संबंधों की बात अब किसी के लिए अनजानी नहीं रह गयी। छ : वर्षों बाद बचनसिंह से चंदा को गर्भ राज जाता है। गाँव के लोगों में काना फूसी होने लगी। जगपति का समाज में जीना दूभर जैसा हो गया। उसकी चंदा से इस बात को लेकर तकरार हुई और वह अपने भाई को बुलवा कर मायके चली जाती है। उसे वहां लड़का पैदा होता है। वह ससुराल न जाकर वहीँ किसी दूसरे आदमी के साथ बैठ जाती है। जगपति हर प्रकार से तन मन और पैसे से कमजोर है ,क़र्ज़ से लदा है और समाज का हर कोना उसके प्रति घृणा का भाव रखता है। बच्चे और चंदा को लेकर एक अजीब सा द्वन्द उसके मन में उभरता है और टूटा हुआ जगपति एक दिन तेल और अफीम पीकर मर जाता है। वह पर्चे में लिख जाता है कि उसे रुपये ने क़र्ज़ के जहर ने मारा है ,पाप ने नहीं ,उसको पश्चाताप ने मारा है। माँ की कहानी तो सुखांत थी पर जगपति की बेहद करुण ,मार्मिक और दुखांत।
भाषा शैली व शिल्प
कमलेश्वर की राजा निरबंसिया शीर्षक कहानी में आधुनिक सामाजिक विरूपताओं और विसंगतियों का चित्रण है। आज के व्यक्ति और समाज में व्याप्त अस्थिरता ,अनास्था ,कुंठा और अनिश्चयता की स्थिति को उन्होंने अपने पात्रों के चारित्रिक पृष्ठों में रखा हैं तथा उन्ही सन्दर्भों में उन्हें तौला और परखा है। कमलेश्वर कहानी में नयेपन के पक्षपाती रहे हैं परन्तु वह उसे आज की ज़िन्दगी में जोड़ना भी आवश्यक समझते हैं। इस रूप में वह कल्पना पर नहीं ,यथार्थ पर बल देते हैं। राजा निरबंसिया कहानी में जगपति ,चंदा और कम्पाउण्डर - ये तीनों विविध रूपों में आये हैं। जहाँ जगपति कम्पाउण्डर से कुछ रुपये उधार लेकर उन्हें वापस नहीं कर पाता उसके विडम्बनापरक परिणाम सामने आते हैं। वहाँ जगपति का एकाकीपन उसकी स्थिति की भयंकरता दिखाती है। कहानी में लोक कथा का उपयोग केवल शिल्प सम्बन्धी नवीनता के लिए ही नहीं किया गया है ,बल्कि अतीत की यह कथा वर्तमान की वास्तविकता की स्थिति को उभारने के लिए भी प्रस्तुत की गयी है।
राजा निरबंसिया कहानी का उद्देश्य व शीर्षक
कहानी के माध्यम से लेखक ने सामाजिक जीवन की विसंगतियों एवं अव्यस्था पर प्रकाश डाला है। आधुनिक समाज में बदलते मूल्यों से परिचय कराना भी उसका उद्देश्य रहा है। उसके पास लोक जीवन एवं संस्कृति का गहरा अनुभव है ,इसे वह कैसे भी अपने पाठकों के अनुभव का विषय बनाना चाहता है। समाज में अच्छाईयां -बुराइयाँ दोनों समान रूप से विद्यमान है। यह हमारे विवेक का निर्भर करता है कि हम किसे अपनावे और कैसा आचरण करें। कहानी का शीर्षक जिज्ञासा और कुतूहल जागृत करने वाला है। उसका अंत इतना प्रभावक है कि पाठक के मन पर अमिट एवं दुर्निवार प्रभाव छोड़ता है। कुल मिलाकर यह कहानी अपने में सर्वांगपूर्ण और सफल है तथा कमलेश्वर की श्रेष्ठतम कहानियों में से एक है।
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