आशा भगोती व्रत कथा और पूजा विधि Asha Bhagoti Vrat Katha & Puja Vidhi आशा भगोती व्रत कथा और पूजा विधि Asha Bhagoti Vrat Katha & Puja Vidhi Asha Bhagoti Vrat Ki Kahani निसंतान स्त्रियाँ पुत्र प्राप्ति के लिए आशा भगोती नामक व्रत करती हैं।आश्विन अष्टमी से लेकर अमावस्या तक आठ दिन इस हेतु व्रत रखा जाता है और प्रतिदिन पूजा की जाती है।
आशा भगोती व्रत कथा और पूजा विधि
Asha Bhagoti Vrat Katha & Puja Vidhi
आशा भगोती व्रत कथा और पूजा विधि Asha Bhagoti Vrat Katha & Puja Vidhi Asha Bhagoti Vrat Ki Kahani निसंतान स्त्रियाँ पुत्र प्राप्ति के लिए आशा भगोती नामक व्रत करती हैं।आश्विन माह में अष्टमी से लेकर अमावस्या तक आठ दिन इस हेतु व्रत रखा जाता है और प्रतिदिन पूजा की जाती है।अमावस्या को व्रत और पूजन करने के बाद बायना निकाला जाता है।
व्रत करने वाली स्त्री को चाहिए कि वह नहा धोकर गोबर मिट्टी से लेकर लीपकर अष्टकोण अर्थात आठ कोने का चौका बनाये।इस पर मेंहदी ,रोली और काजल की आठ आठ बिंदियाँ रखकर उन पर दक्षिना रखे और दीपक जलाकर कहानी सुने। आठ दिन तक इसी प्रकार नियमित रूप से करें। आठवें दिन आठ सुहाली का बायना निकालकर सासूजी को दें और आठ सुहाली स्वयं खाएं। आठ वर्ष तक व्रत करने के बाद इसका उद्यापन या उजमन किया जाता है।उस समय उपरोक्त सम्पूर्ण पूजा के साथ साथ आठ सुहाग पिटारीयां भी बनायीं जाती है। प्रत्येक पिटारी में सुहाग की सभी वस्तुएँ और आठ आठ अन्य वस्तुएं रखे। आठ सुहागिन ब्रहामानियों को भोजन कराकर एक एक पिटारी और दक्षिना उन्हें दी जाती है। सास के लिए अलग से एक सुहाग पिटारी बनाकर वस्त्रों सहित उन्हें पैरों पड़कर दी जाती है।जिन स्त्रियों के संतान नहीं होती ,इस व्रत को करने से उन महिलाओं के भी सुन्दर पुत्र उत्पन्न हो जाते हैं।
आशा भगोती व्रत कथा
एक बार भगवान शिव जी और माता पार्वतीजी जोगी -जोगिन का वेश धारण करके संसार भ्रमण कर रहे थे। एक स्थान पर उन्होंने देखा कि एक साहूकार बहुत ही उदास और दुखी है। शंकर जी ने साहूकार से पूछा - सेठ उदास क्यों हो ? साहूकार ने कहा - महाराज क्या करूँ, बहुतेरे जप तप और दान -पुण्य किये परन्तु मेरे कोई
शिव पार्वती जी |
कुछ समय अयोध्या में रहने के बाद उसी मार्ग से जोगी और जोगिन के वेश में भगवान शिव और पार्वती कैलाश पर्वत की ओर वापस चल पड़े। वापस लौटते समय भगवान शिव और पार्वती जी ने देखा कि वही गाय एक ब्राह्मण के यहाँ बंधी हुई है। नीचे एक सफ़ेद रंग का बछड़ा दूध पी रहा है। शिव जी ने पूछा यह गाय अब दूध देने लग गयी है क्या ? ब्राह्मण बोला - हाँ महाराज ,अब इसकी कोख चालू हो गयी है। शिव जी आगे चले। उस बनिए के दरवाजे पर पहुंचे। साहूकार अपने बच्चे को गोद में लिए खिला रहा था। शिव जी ने पूछा - सेठ यह तेरा लड़का है क्या ? साहूकार - बोला महाराज यह आप ही का है। आप ही के प्रताप से यह हुआ है। शिव जी ने पूछा - कैसे हुआ ? साहूकार ने कहा - हमारे गाँव में महिलायें आशा भगवती का व्रत करती हैं। मेरी स्त्री भी उनसे कहानी और व्रत विधि सीख आई। उसने घर आकर व्रत किया ,कहानी सुनी और उससे लड़का हुआ। शिव जी बोले - यह बात तो ठीक है पर तुम्हारे गाँव में उस गौ के बछड़ा कैसे हुआ ? साहूकार ने कहा - जब स्त्रियाँ व्रत करती थी ,तो बचा खुचा बायना उस गौ को भी दे देती थी ,उसी से उसकी भी कोख चालू हो गयी है।
कैलाश पर्वत पर आने के बाद पार्वती जी ने शिवजी से कहा - महाराज यह व्रत मैं भी करुँगी। शिव जी बोले - आपके पास किस बात की कमी है। पार्वती जी ने कहा मेरे भी संतान नहीं है। शिव बोले जरुर करना। पार्वती जी ने भी यह व्रत किया और गणेश और कार्तिकेय दो पुत्र प्राप्त किये। पार्वती जी ने दुनिया को इस व्रत महिमा दिखाने के लिए यह व्रत किया था। हे माता आशा भगवती जिस प्रकार साहूकार पर प्रसन्न हुई वैसे ही सब पर होना। सबकी कोख हरी करना ,संसार में कोई निपुत्री न रहे।
भगवान शिव की आरती
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा |
शिव |
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव ओंकारा......
एकानन चतुरानन पंचांनन राजे |
हंसासंन, गरुड़ासन, वृषवाहन साजे॥ ॐ जय शिव ओंकारा......
दो भुज चारु चतुर्भज दस भुज अति सोहें |
तीनों रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहें॥ ॐ जय शिव ओंकारा......
अक्षमाला, बनमाला, रुण्ड़मालाधारी |
चंदन, मृदमग सोहें, भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव ओंकारा......
श्वेताम्बर,पीताम्बर, बाघाम्बर अंगें |
सनकादिक, ब्रह्मादिक, भूतादिक संगें॥ ॐ जय शिव ओंकारा......
कर के मध्य कमड़ंल चक्र, त्रिशूल धरता |
जगकर्ता, जगभर्ता, जगससंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव ओंकारा......
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका |
प्रवणाक्षर मध्यें ये तीनों एका॥ ॐ जय शिव ओंकारा......
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रम्हचारी |
नित उठी भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव ओंकारा......
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावें |
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावें ॥ ॐ जय शिव ओंकारा.....
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा......
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