जीवित्पुत्रिका व्रत कथा और पूजन विधि जीवित्पुत्रिका व्रत कथा और पूजन विधि Jivitputrika Vrat 2019 Puja Vidhi जीवित्पुत्रिका व्रत जितिया व्रत Jivitputrika Vrat अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि रखा जाता है ,जिसका उद्देश्य माताओं द्वारा अपने पुत्रों को अनिष्ट से बचाकर उन्हें दीघार्यु प्रदान कराना है।
जीवित्पुत्रिका व्रत कथा और पूजन विधि
जीवित्पुत्रिका व्रत कथा और पूजन विधि Jivitputrika Vrat 2019 Puja Vidhi जीवित्पुत्रिका व्रत जितिया व्रत Jivitputrika Vrat अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि रखा जाता है ,जिसका उद्देश्य माताओं द्वारा अपने पुत्रों को अनिष्ट से बचाकर उन्हें दीघार्यु प्रदान कराना है। इस रूप में यह व्रत जीवत्पुत्रिका व्रत कहलाता है और केवल आज के दिन निर्जल रहकर किया जाता है जिससे संतान के सुखी और स्वस्थ रहने की कामना की जाती है।
इस व्रत में भगवान सूर्यदेव की पूजा की जाती है और उनसे अपने पुत्रों की दीर्घ आयु, आरोग्य एवं बल-बुद्धि के वर्द्धन हेतु प्रार्थना की जाती है। इस व्रत को करने वाली स्त्री आज के दिन चाकू का प्रयोग नहीं करती, और न ही फल अथवा शाकभाजी आदि काटती है।भगवान सूर्यदेव की मूर्ति को स्नान कराने के बाद वस्त्रादि पहनाकर धूपदीप से उनकी पूजा और आरती करने के पश्चात बाजरे और चने से बनी वस्तुओं का भोग लगाती है। कुछ महिलाएँ सप्तमी की रात्रि को उड़द की दाल पानी में भिगोकर रख देती हैं और प्रातःकाल उसमें से कुछ दाने साबुत ही निगल लेती हैं। वैसे यह इस व्रत का विधान नहीं, लोक व्यवहार की बात है, जो शायद दिनभर निर्जल रहने में असमर्थ महिलाओं हेतु प्रचलन में आ गई है।
जीवित्पुत्रिका व्रत का मुहूर्त २०१९ में
अष्टमी तिथि प्रारंभ - सुबह 08:21 (सितंबर 21)
अष्टमी तिथि समाप्त – 07:50 रात्रि (सितंबर 22) तक माना गया है।
जीवित्पुत्रिका व्रत कथा Jivitputrika Vrat 2019 Katha
द्वापर युग की बात है। भगवान कृष्ण अपनी राजधानी द्वारिकापुरी में निवास करते थे। उस समय एक ब्राह्मण भी द्वारिका में रहता था। उसके सात पुत्र बचपन में ही काल के गाल में जा चुके थे।इस दशा को देखकर वह ब्राह्मण बहुत दुखी था। वह ब्राह्मण एक दिन भगवान कृष्ण के पास आया और कहने लगा-हे भगवान! आपके राज्य में आपकी कृपा से मेरे सात पुत्र हुए, परन्तु जीवित कोई न रहा, क्या कारण है ? यदि आप अपने राज्य में प्रजा को दुःखी देखना नहीं चाहते तो कोई उपाय बताइये।तब भगवान बोले-हे ब्राह्मण! ध्यानपूर्वक सुनो! इस बार - तुम्हारे जो पुत्र होगा उसकी उम्र तीन वर्ष ही है। उसकी उम्र बढ़ाने के लिए तुम भगवान सूर्य नारायण के निमित्त होने वाले पुत्रीजीवी व्रत को धारण करो। तुम्हारे पुत्र की आयु बढ़ेगी। ब्राह्मण ने वैसा ही किया। जब वह सपरिवार हाथ जोड़कर और खड़े होकर इस प्रकार विनती कर ही रहा था -
सूर्यदेव विनती सुनो, पाऊँ दुक्ख अपार।
उम्र बढ़ाओ पुत्र की, कहता बारम्बार।।
इतना सुनते ही सूर्य का रथ वहीं रुक गया।ब्राह्मण की विनती से प्रसन्न होकर सूर्य ने अपने गले से एक माला ब्राह्मण पुत्र के गले में डाल दी और आगे चले गये। थोड़ी देर में यमराज उस ब्राह्मण पुत्र के प्राण लेने के लिए आये।यमराज को देखकर ब्राह्मण और ब्राह्मणी कृष्ण जी को झूठा कहने लगे।
भगवान श्रीकृष्ण ने जब यमराज के आने की बात सुनी तो ब्राह्मण के घर आकर बोले-इस माला को यमराज के ऊपर डाल दो। इतना कहते ही ब्राह्मण उस माला को उठाने लगा तो यमराज डर कर भाग गये, परन्तु वहाँ यमराज की छाया वर रही ब्राह्मण ने वह फूल की माला छाया के ऊपर फेंक दी। इसके फलस्वरूप वह छाया शनि के रूप में आकर भगवान कृष्ण से प्रार्थना करने लगी। इस प्रकार भगवान् श्री कृष्ण ने उस ब्राह्मण के पुत्र की उम्र बढ़ा दी।हे भगवन्! जिस प्रकार आपने उस ब्राहण के लडके की उम्र बढ़ाई है उसी तरह सबकी उम्र बढ़ाना।
भगवान सूर्य की आरती
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन - तिमिर - निकन्दन, भक्त-हृदय-चन्दन॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
सप्त-अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस-मल-हारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
सुर - मुनि - भूसुर - वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
सकल - सुकर्म - प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व-विलोचन मोचन, भव-बन्धन भारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
कमल-समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत साहज हरत अति मनसिज-संतापा॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
नेत्र-व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा-हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान-मोह सब, तत्त्वज्ञान दीजै॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
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