बाल अपराध दशा और दिशा बाल अपराध दशा और दिशा कुछ दिनों पहले शहर के एक समाचार पत्र में प्रकाशित ख़बर पढ़ कर अफ़सोस हुआ था , ख़बर के मुताबिक़ सातवीं कक्षा की एक छात्रा अपने स्कूल से चुपचाप भाग गयी ।
बाल अपराध दशा और दिशा
बाल अपराध दशा और दिशा कुछ दिनों पहले शहर के एक समाचार पत्र में प्रकाशित ख़बर पढ़ कर अफ़सोस हुआ था , ख़बर के मुताबिक़ सातवीं कक्षा की एक छात्रा अपने स्कूल से चुपचाप भाग गयी । यद्यपि उसे पुलिस ने आगरा में बरामद कर लिया था । किंतु मेरे समक्ष यही प्रश्न था कि सातवीं कक्षा की बालिका , परिवार को बताए बग़ैर घर से भाग गई, ये अपराध की श्रेणी में ही आता है । ये सच है कि एक बालक / बालिका अपने मूल रूप में भोला - भाला और निरीह अवश्य होता है ।इसलिए प्राय सभी देशों में बाल स्वरूप को ईश्वर का प्रतिरूप कहा गया है , वहीं बालक अपराध की दिशा में अग्रसर होता है तो लगता है बड़ों से कुछ चूक हो गई ।
दुर्भाग्य वश हमारे देश में अपराध कार्यों में लिप्त बालकों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है । सन् 2000 के
आँकड़ों के अनुसार भारतीय दंड संहिता के अन्तर्गत कुल 9,267 मामले पंजीकृत किये गये तथा स्थानीय एवं विशेष कानून के अन्तर्गत 5,154 मामले पंजीकृत किये गये। बाल अपराध की दर में विभिन्न वर्षो में उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है। बालकों द्वारा किये गये अपराधों मे से भारतीय दंड संहिता के अन्तर्गत सबसे अधिक सम्पत्ति सम्बन्धी थे। दण्ड संहिता के अन्तर्गत कुल संज्ञेय अपराधों में से चोरी (2,385), लूटमार (1,497) तथा सेंधमारी (1,241) के मामले पाये गये, इसके अलावा लैंगिक उत्पीड़न के (51.9), डकैती के (32 प्रतिशत), हत्या के (28.6 प्रतिशत), बलात्कार के (24.5 प्रतिशत) मामले पाये गये।
भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत बाल अपराध की सर्वाधिक दर मध्यप्रदेश में 2,681 और महाराष्ट्र में (1,641) पायी गयी। इसी प्रकार महानगरों जैसे बम्बई, दिल्ली में भी बाल अपराध की उच्च दर पायी गयी।जब बच्चें के संबध प्रारम्भिक अवस्था में अपने माँ-बाप से अच्छे नहीं होते, तो उसका संवेगात्मक विकास अवरूद्ध हो जाता है, परिणामस्वरूप अपने परिवार के भीतर ही सामन्य तरीकों से संतुष्ट न होकर वह अपनी बाल आकांक्षाओं को संतुष्ट करने के प्रयत्न में अक्सर आवेगी हो जाता है। इन आकांक्षाओं एवं आवेगों की संतुष्टि असामाजिक व्यवहार का रूप धारण कर सकती है।
विद्यार्थियों में उद्दंडता , उच्छ्र्खलता, और अनुशासनहीनता बिलकुल सामान्य हो गई है । भावी पीढ़ी के इन कर्णधारों के चरित्र की झाँकी लें तो छुटपन से ही अश्लीलता , वासनाओं , दुर्व्यसनो,की दुर्गंध उड़ती दिखाई देती है । छोटे-छोटे बच्चों को बीड़ी पीते , गुटका खाते देखकर ऐसा लगता है कि सारा राष्ट्र बीड़ी पी रहा , नशा कर रहा है । युवतियों के पीछे अश्लील शब्द उछालता है तो लगता है सम्पूर्ण राष्ट्र काम वासना से उद्दीप्त हो रहा है ।किसी भी राष्ट्र का भावी विकास और निर्माण वर्तमान पीढ़ी के मनुष्यों पर उतना अवलंबित नहीं है जितना कि आने वाली कल की नई पीढ़ी पर । बालक का नैतिक रुझान अभिरुचि जैसी होगी निश्चित तौर पर भावी समाज भी वैसा ही बनेगा । वर्तमान की बात करें तो आज समाज के नैतिक स्तर में अत्यंत तीव्र गति से परिवर्तन हो रहा है वैश्वीकरण उदारवाद और पश्चिमी स्वच्छंदतावाद की वजह से किसी भी कार्य को बुरा नहीं माना जाता - 'जैसी मर्जी वैसा करो और तब तक करते चलो जब तक दूसरों को कोई क्षति न पहुंचे ' । जनमत के आधार पर आज जिसे नैतिक रूप से उचित ग्रहण किया जा रहा है वहीं आगामी पीढ़ी के लिए विध्वंसक का कार्य करेगा ।
बड़े आश्चर्य की बात है कि आज के चार , पांच और सातवें दर्जे के छोटे-छोटे बच्चे- बच्चियां , जिन्हें उम्र का अहसास तक नहीं है , वर्जनाओं और मर्यादाओं की सभी सीमाओं को पीछे छोड़ चुके हैं । स्कूली बच्चों के लिए नैतिकता और मूल्यों के वे अर्थ अब नहीं रह गए जिनकी उनसे अपेक्षा की जाती है । शराब सिगरेट पीना , हल्की मादक दवाएं लेना , गुपचुप सैर सपाटा , अचानक स्कूल से गायब हो जाना , साइबर कैफे और मोबाइल में इंटरनेट पर अश्लीलता से सराबोर होना और ऐसे परिधान का चयन करना ऐसे परिधान का चयन करना जिन्हें वे घर में भी पहनने का साहस नहीं जुटा पाते आदि प्रचलन बन गया है । समस्या बड़ी गंभीर है और यह अनियंत्रित होने की स्थिति में है क्योंकि अपराधी बालको ने आज सारे समाज को ही कलंकित कर के रख दिया है। हकीकत यह है कि आज के अधिकतर बच्चों में न अभिभावकों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का भाव बचा है और ना समवयस्कों के साथ प्रेम और सहयोग की भावना । नैतिकता का स्तर इतना नीचे गिरता जा रहा है कि अध्यापक और बाजार में बैठे दुकानदार उनके लिए समान है , कुछ शेष रहा है तो फैशन , शौकिनी सिनेमा और मटरगश्ती का अंतहीन आलम ।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बाल अपराध की समीक्षा करें तो आज की आधुनिक जीवन शैली ने अभिभावकों और बच्चों के संवेदनशील संबंधों को संक्रमण काल के दौर में ला खड़ा कर दिया है पहले माता-पिता अपने बच्चों के सुख-दुख और अपनेपन के साथ-साथ थे , परंतु आज के माता-पिता भौतिकता एवं महत्वकांक्षा की अंधी दौड़ के अंतिम दौर में व्यस्त हो गए वह अपने कैरियर को संभालने -संवारने में लगे रहते हैं । न माता-पिता को बच्चों के भविष्य की चिंता है , और न बच्चों को ही भावी जीवन के निर्माण हेतु आवश्यक मूल्यों, और मानदंडों की फिक्र है ।आशिक दृष्टि से देखें तो एक बाल अपराधी वह है जो अपना घर छोड़ देता है ।
पारिभाषिक दृष्टि से देखें तो एक बाल अपराधी वह है जो अपना घर छोड़ देता है या आदतन आज्ञाकारी नहीं है या माता-पिता के नियंत्रण में नहीं रहता है और देश के कानून का उल्लंघन करता है जिनका पालन करना उसके
डॉ निरूपमा वर्मा |
बाल अपराधियों की समस्या के लिए चिंतन हमारे देश मे प्रारंभ किया गया और इस समस्या की रोकथाम के लिए उपाय भी किए गए । भारत में इसके लिए कई कानून भी बनाए गए हैं , किंतु कानून से ही सुधार नहीं होगा । बालकों को अपराध के मार्ग पर बढ़ने से रोकने के लिए समाज को विशेष रुप से ध्यान देना होगा सर्वप्रथम तो माता-पिता को यह देखना होगा कि वह बालकों के सामने अपने आचरण और व्यवहार से आदर्श प्रस्तुत करें आपस में शिष्टता ,और प्रेम का व्यवहार करें तथा बड़ों के प्रति सम्मान के भाव रखें । उन्हें अपने बच्चों को भरपूर स्नेह देना होगा , और अपने प्रति बच्चों के मन में इतना विश्वास पैदा करना होगा कि वह अपने माता-पिता से कोई भी बात छुपा कर नहीं करें । कोई भी परेशानी हो , कहीं भी जाना हो तो वह अपने माता पिता को बताने में संकोच न करें । इतना विश्वास माता पिता के प्रति बच्चों में पैदा करना चाहिए । साथ ही उन पर गहरी नजर भी रखनी होगी । उनके छोटे गलत कार्यों की भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए । उसे समझा-बुझाकर और स्वयं अपने आचरण के द्वारा बच्चे को उस गलत कार्य से दूर रखना चाहिए । हमारे शिक्षकों को भी देश के भविष्य को सुधारने की दृष्टि से आदर्श बनना होगा । उनका कार्य बच्चे को केवल साक्षर बनाना ही नहीं अपितु उसके चरित्र का निर्माण करना भी है समाज में जो तत्व बच्चों को बरगलाते हैं या उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं , उन पर सरकार को गहरी नजर रखनी चाहिए और उन्हें कठोर दंड दिया जाना चाहिए हमें यह ध्यान रखना होगा कि आज का बालक ही कल का नागरिक है और इसलिए देश के भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए हमें आज के बालक को आदर्श बनाना होगा ।
डॉ निरूपमा वर्मा
जन्म 13/5/1953 . शिक्षा - एम ए , एम् फिल. , पीएचडी । रविशंकर वि.वि. रायपुर , छत्तीसगढ़ । 6,वर्ष जवाहर लाल नेहरू डिग्री कॉलेज एटा में समाज शास्त्र की व्याख्याता रही । पाँच वर्ष , जिला उपभोक्ता फोरम की न्यायिक सदस्य । तीन वर्ष जिला बाल किशोर न्यायालय की बोर्ड में सदस्य । साहित्यिक ...समसामयिक लेखों का विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन । आकाशवाणी से अनेक विषयों पर वार्ताएं प्रसारित । कुछ कहानी भी प्रकाशित । शोध प्रबंध - पुस्तक रूप में प्रकाशित । अखिल भारतीय भाषा से सम्मलेन से सम्बद्ध । तथा सामाजिक कार्य कर्ता ..। सम्मान -- उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा " नारी सम्मान ।" दैनिक जागरण ,पत्र समूह द्वारा -'नारी सशक्तिकरण सम्मान '। दैनिक अमर उजाला ,द्वारा पर्यावरण संरक्षण हेतु सम्मान । तथा हिंदुस्तान प्रकाशन समूह द्वारा --' सशक्त नारी सम्मान ' से सम्मानित । पता-निरुमन विला वर्मा नगर ,आगरा रोड एटा (उत्तर प्रदेश ) -207001 email-- drnirupama.varma@gmail .com मोबाईल ---9412282390
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