कौन बिगाड़ रहा है बच्चों की हिंदी भाषा

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कौन बिगाड़ रहा है बच्चों की हिंदी भाषा हिन्दी विश्व की सर्वाधिक बोलने वाली भाषा बनने की ओर अग्रसर है, सोशल मीडिया पर हिन्दी ने एकाधिकार कर रखा है, किसी भी हिन्दीप्रेमी के लिए यह सब सुनना बहुत ही सुखद लगता है, लेकिन सच तो यह है कि हिन्दी की विशुद्धता वर्तनीय और व्याकरणीय स्तर पर बेहद चिंताजनक है।

कौन बिगाड़ रहा है बच्चों की हिंदी भाषा


कौन बिगाड़ रहा है बच्चों की हिंदी भाषा अकबर बीरबल की प्रसिद्ध कहानियों में से एक कहानी हम सभी ने सुनी हुई है कि बीरबल ने बड़ी ही चतुराई से बादशाह अकबर के दरबार में आए एक बहुभाषी विद्वान की मातृभाषा का पता लगाया था। बीरबल ने गहरी नींद में सो रहे बहुभाषाज्ञानी उस व्यक्ति को डरवाया, तो डर के कारण व्यक्ति तुरंत उठकर अपनी मातृभाषा में चिल्लाने लगा। तभी बीरबल ने अकबर को बताया कि उस व्यक्ति की मातृभाषा फलां फलां है और यह बात सच भी निकली। उस व्यक्ति ने माना कि बीरबल ने जो भाषा बताई है वही उसकी मातृभाषा है। इस कहानी का सार यह था कि एक व्यक्ति चाहे कितनी भी भाषाएं बोलने की क्षमता रखता हो, परंतु वह जब डरता है तो अपनी मातृभाषा में ही चिल्लाता है। अर्थात् मातृभाषा अचेतन और अवचेतन मनःस्थितियों में भी व्यक्ति के साथ संलग्न रहती है।

मातृभाषा का मतलब उस भाषा से होता है, जिसे एक बच्चा पहली बार अपनी माता के मुख से सुनता है और उसके बाद लगातार अपनों से सुनता चला जाता है। फिर अचानक स्वयं भी वही भाषा बोलने लगता है।
हिंदी
तथाकथित आधुनिक भारतीय परिवेश में पिछले जाने कितने दशकों से बच्चे अपनी मातृभाषा की मौलिकता से भ्रमित किए जाते जा रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं कहें या फिर अपनी मातृभाषा की सशक्तता पर संशय होने की प्रवृत्ति कहें, माता-पिता बच्चों को मातृभाषा से दूर रखने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। यदि सीधे विषय पर आएं तो वास्तव में तथ्य यह है कि स्कूलों में तो बच्चे बाद में अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने जाते हैं, उसके पहले वे अपने माता पिता, रिश्तेदारों और पड़ोसियों से अंग्रेजी सुन चुके होते हैं। अतः अंग्रेजी ही उनको अपनी मातृभाषा होने का सुख देती है, वे किसी भी घबराहट की स्थिति में ओ माय गॉड जैसे वाक्यांशों से बीरबल की अवधारणा को आसानी से असत्य प्रमाणित कर सकने का सामर्थ्य रखते हैं।

भारतीय बच्चों द्वारा अंग्रेजी भाषा को मातृभाषा मानकर सोना, खाना, पीना, सोचना, बोलना, पढ़ना आदि प्रक्रियाएं होने से सम्भवतः किसी को कोई परेशानी न हो, लेकिन भाषाई और सामाजिक भारतीय परिपेक्ष्य में यह एक विचारणीय विषय अवश्य बनता है। भारत जैसे बहुमातृभाषाई देश में बच्चे अपनी मातृभाषाओं को विशुद्ध स्वरुप में कितना जानते हैं? यह एक बड़ा प्रश्न है। इसके लिए किसी एक भाषा विशेष को लेकर भी यदि विश्लेषण करें, तो काफी सीमा तक इस प्रश्न का उत्तर खोजा जा सकता है। अतः विभिन्न भारतीय भाषाओं की अपेक्षा हिन्दी को मूल में रखकर आइए, हिन्दीभाषी लोगों में विशेषतौर पर बच्चों में मातृभाषा हिन्दी की विशुद्धता का अवलोकन करते हैं। 

यूं तो आंकड़े दर्शाते हैं कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में कुल 52,83,47,193 लोगों की मातृभाषा हिन्दी है, जो देश की कुल जनसंख्या का 43.63 प्रतिशत है। यह सर्वविदित भी है कि भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली वे प्रमुख राज्य हैं, जिनमें हिन्दी मातृभाषा के रुप में बोली जाती है। इन भारतीय प्रदेशों में हिन्दी बोली ही नहीं जाती, बल्कि पढ़ी और समझी भी जाती है। इन प्रदेशों के लोग हिन्दी को जीते आए हैं। शेष भारतीय प्रदेशों में हिन्दी मातृभाषा नहीं है परंतु समझ सकने योग्य भाषा अवश्य है। 

इतनी विस्तारशीलता होते हुए भी इन प्रदेशों के लोग हिन्दी के विशुद्ध स्वरुप के प्रयोग को लगभग विस्मृत कर चुके हैं। किसी भी श्रेणी के व्यक्ति से वार्तालाप करने पर हिन्दी के साथ साथ अनगिनत अंग्रेजी के शब्द आ ही जाते हैं। यहां से विकृत होने लगती है हमारी हिन्दी। चलिए इसे भी यदि इस तर्क के साथ क्षमा कर दिया जाए कि हिन्दी में शब्द समाहिता का गुण है, इसलिए इसे विकृति न कहा जाए। परंतु बच्चे ऐसी ही अधकचरी हिन्दी को सुनते बड़े हो रहे हैं, उनके लिए विशुद्ध हिन्दी संस्कृत लगती है। अभी ऐसी ही हिन्दी को पढ़कर आए युवा शालाओं में शिक्षक नियुक्त हो गए हैं और हिन्दी जब ऐसे शिक्षकों द्वारा पढ़ाई जा रही है, तो उसी स्वरुप में बच्चों तक पहुंच रही है।वर्तनी और व्याकरण की त्रुटियों से भरी हिन्दी कुछ भी कह और कर पाने में कितना असहाय है। कुछ लोग बोलते अच्छा हैं तो लिखते समय छोटी और बड़ी मात्राओं का बोध जाने कहां गायब हो जाता है। सोशल मीडिया पर भी देवनागरी में हर कोई हिन्दी लिख रहा है, परंतु पुराने समय का कोई हिन्दी शिक्षक यदि उनके एक अनुच्छेद को भी जांच करने बैठे, तो सिवाय लाल गोलों के कुछ नहीं मिलेगा।

विश्व स्तर पर बताए जा रहे आंकड़ों से प्रसन्नता बड़ी होती है कि हिन्दी विश्व की सर्वाधिक बोलने वाली भाषा बनने की ओर अग्रसर है, सोशल मीडिया पर हिन्दी ने एकाधिकार कर रखा है, किसी भी हिन्दीप्रेमी के लिए यह सब सुनना बहुत ही सुखद लगता है, लेकिन सच तो यह है कि हिन्दी की विशुद्धता वर्तनीय और व्याकरणीय स्तर पर बेहद चिंताजनक है। निःसंदेह ये त्रुटियां वर्तमान में हिन्दी की विशुद्धता को खोखला कर रही हैं। एक समय था जब दक्षिण भारतीयों को टूटी-फूटी हिन्दी बोलने पर परिहास का विषय बनना पड़ता था, परंतु आजकल हिन्दीभाषी राज्यों के लोगों के बच्चों ने हिन्दी बोलने और लिखने के स्तर को बहुत नीचे पहुंचा दिया है। शोचनीय विषय यह है कि इस बात की अनुभूति न उनको है, न ही उनको पढ़ा रहे शिक्षकों और पालन पोषण कर रहे अभिभावकों को है। वे इस बात से काफी प्रफुल्लित हो उठते हैं कि उनके बच्चों को अंग्रेजी बहुत अच्छी आती है, पर वे हिन्दी बोल लिख नहीं पाते। उनके लिए यह गर्व का विषय हो सकता है, परंतु सत्य तो यह है कि उनके बच्चों को उन्होंने स्वयं अपनी मातृभाषा के मौलिक अधिकार से वंचित कर दिया है। हिन्दी का एक मुहावरा उनकी इस स्थिति के लिए बिल्कुल सटीक बैठेगा कि वे न घर के रहे न घाट के। बाकी जो हिन्दी को अभी भी भूले नहीं होंगे वे इस मुहावरे के अदृश्य भाग से आज के बच्चों को सहसंबंधित कर सकते हैं।
डॉ. शुभ्रता मिश्रा
डॉ. शुभ्रता मिश्रा

वर्तमान में भारत की प्रायः सभी प्राथमिक शालाओं की स्थिति यह है कि निबंधों की जगह हिन्दी में कैसे भी पांच पंक्तियां किसी विषय पर लिख देने पर शाबाशी दे दी जाती है। वाक्य कैसे भी करके बच्चे लिख देते हैं, शब्दों विशेषकर सुंदर हिन्दी शब्दों का प्रयोग शिक्षक स्वयं नहीं पढ़े हैं तो वे बच्चों को क्या सिखा सकेंगे। अभिभावकों के पास हिन्दी को गम्भीरता से लेने की प्रवृत्ति का पूर्णतया अभाव सा दिखता है। एक पेज भी बच्चे ने कभी लिख दिया, वो फेसबुक और वाट्सेप की शान के लिए उपयोग किया जाने पर अधिक ध्यान दिया जाने लगता है।टी वी चैनलों पर लगातार चल रहे कार्टून और बच्चों के सीरियलों की हिन्दी को सुनकर हमारे देश के बच्चे बड़े हो रहे हैं। उनके लिए नोबिता, शिमशान, छोटा भीम, बालवीर आदि आदि किरदारों की हिन्दी मानक है। सम्भवतः हम और आप भी हिन्दी को वैसे ही सुनते सुनते उसकी विशुद्धता को भूलते जा रहे हैं। इसलिए टोकने जैसी किसी आवश्यकता का भी अनुभव नहीं होता। ऐसी ही हिन्दी को सुनते, पढ़ते, लिखते बड़े हो गए बच्चों की युवा पीढ़ी आज जब सरकारी दफ्तरों में पहुंच रही है तो राजभाषा हिन्दी उनको परेशान करने लगती है। दफ्तरों में भी एक पीढ़ी अंतराल ने कोई राजभाषा सेतु बना पाने का मार्ग नहीं छोड़ रखा है। कार्यालयीन कार्यों में भी हिन्दी की विशुद्धता किसी प्रखर बुद्धिमान युवा की बाट जोटती रहती है। विश्वविद्यालयों में बहुत से विद्यार्थी हिन्दी में स्नातक, स्नातोत्तर और शोध कर रहे हैं। परंतु वर्तनी और व्याकरण की कसौटियों पर वे भी कितना खरा उतर पा रहे हैं, ये वे प्राध्यापकगण भली भांति जानते हैं, जिनको बार बार उनकी पुस्तिकाएं किसी प्राथमिक कक्षा के विद्यार्थी की तरह पुनःकार्य के लिए लौटानी पड़ती हैं। 

उपर्युक्त समस्त पहलुओं को सार रुप में देखें तो निष्कर्ष यही निकलता है कि हमारे भारतीय बच्चों की हिन्दी बिगाड़ने में कहीं न कहीं हम और आप ही उत्तरदायी हैं। शिक्षकों की वो ताजी पौध जो तैयार होकर शिक्षासमाज में आ रही है, वो जो स्वयं हिन्दी भाषा से असमृद्ध है, बच्चों को क्या हिन्दी पढ़ा सिखा पाएगी, बड़ी आशंका का विषय है। नए नए बने अभिभावक जो स्वयं को अभिभावक समझ पाने के संशयों से स्वयं को मुक्त नहीं कर पा रहे हैं, विवाहित तो होना चाहते हैं परंतु बड़े होने की सत्यता से बचना चाहते हैं, या कि अपने मातृ-पितृत्व का उत्तरदायित्व भी अपने माता पिता को दोहराव बतौर देने में अपना शान समझते हैं, वे हिन्दी या अन्य मातृभाषा की विशुद्धता जैसे गहन विषय को समझना समय क्षय के अलावा और कुछ नहीं मान सकते।इन सामाजिक और पारिवारिक परिवेशों में बच्चों की हिन्दी को बिगाड़ने वाले हिन्दी पखवाड़ा जैसे शब्दों का उच्चारण हिन्दी पकौड़ा करते पाए जाते हैं। बच्चों के लिए हमने पखवाड़ा और पकौड़ा एक जैसा ही बना दिया है। आवश्यकता इस बात की है कि हिन्दी के गिरते जा रहे वर्तनीय और व्याकरणीय स्तर को समय रहते संशोधित और उपचारित करने का दृढ़ संकल्प हिन्दी भाषियों को तो लेना ही होगा। भाषा है तो भाव हैं, भाव हैं तो सम्मान है। बच्चों में अपनी मातृभाषा के प्रति सम्मान के भाव को जगाने और बनाए रखने के लिए भाषायी विशुद्धता पर ध्यान देना बेहद जरुरी है। अब संकल्प हिन्दी दिवस मनाने का नहीं, हिन्दी की विशुद्धता वापस लाने का लेना होगा। तभी हमारे बच्चे सही हिन्दी लिख और बोल पाएंगे। 


- डॉ. शुभ्रता मिश्रा
वास्को-द-गामा, गोवा

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  1. मैं भी फोर्स विभाग में नौकरी करता हूँ, Computer चलाता हूँ, यह देखने में अकसर आ रहा है कि अब बच्चे एवं कई बड़ो को भी सिर्फ शब्द का अर्थ से मतलब है, वर्तनी क्या होगी इससे मतलब नहीं है, उस वाक्य में कौन सा अक्षर प्रयोग होगा पता नहीं है। पाठशालाओं में शुद्ध लेख लिखाए जाने का एक समय निर्धारित किया जाना चाहिए तथा गलत करने पर टोका जाना चाहिए। सही वर्तनी लिखने के लिए बताया जाना चाहिए।

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  2. मैं भी फोर्स विभाग में नौकरी करता हूँ, Computer चलाता हूँ, यह देखने में अकसर आ रहा है कि अब बच्चे एवं कई बड़ो को भी सिर्फ शब्द का अर्थ से मतलब है, वर्तनी क्या होगी इससे मतलब नहीं है, उस वाक्य में कौन सा अक्षर प्रयोग होगा पता नहीं है। पाठशालाओं में शुद्ध लेख लिखाए जाने का एक समय निर्धारित किया जाना चाहिए तथा गलत करने पर टोका जाना चाहिए। सही वर्तनी लिखने के लिए बताया जाना चाहिए।

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