समाज को बदल रही हैं बेटियां स्वच्छता के प्रति जागरूक और इस गंभीर समस्या के निदान के लिए रोहिणी और अन्य बच्चों के एक समूह ने बच्चों की संसद और स्कूल में इस मामले पर चर्चा की। उन्होंने इस विषय को अपने स्तर पर उठाने और लोगों को जागरूक करने का फैसला किया।
समाज को बदल रही हैं बेटियां
जब रोहिणी रिचर्ड 13 या 14 साल की थी, तो वह याद करती है कि किस तरह गटर से बहते गंदे पानी के खिलाफ आवाज़ उठाई थी और इसका सकारात्मक परिणाम भी मिला था। महाराष्ट्र के ठाणे ज़िले के उत्तन गाँव की रहने वाली रिचर्ड और उसके जैसे कई बच्चों को रोज़ स्कूल जाने के लिए गटर से निकलते गंदे, बदबूदार और दूषित पानी से होकर गुज़रनी पड़ती थी। इससे कई बच्चे धीरे धीरे गंभीर बीमारी विशेषकर त्वचा संबंधी बिमारियों के शिकार होते जा रहे थे। इतना ही नहीं यह पानी आसपास के क्षेत्रों में फैलने लगा था और गांव वालों के लिए उपलब्ध पीने के पानी को भी दूषित करने लगा था। गटर के बहते पानी को रोकने के लिए किसी भी स्तर पर गंभीर प्रयास नहीं किये जा रहे थे। स्थानीय प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधि तक सभी इस मुद्दे पर उदासीन थे। यह पानी धीरे धीरे कुंए के पानी में मिल रहा था, जहां लोग अपने कपड़े और बर्तन धोते थे। लेकिन इसके बावजूद गटर की सफाई के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठाया जा रहा था।
स्वच्छता के प्रति जागरूक और इस गंभीर समस्या के निदान के लिए रोहिणी और अन्य बच्चों के एक समूह ने बच्चों की संसद और स्कूल में इस मामले पर चर्चा की। उन्होंने इस विषय को अपने स्तर पर उठाने और लोगों को जागरूक करने का फैसला किया। एक शिक्षक की मदद से रोहिणी ने 50 बच्चों के हस्ताक्षर के साथ स्थानीय नगरपालिका पार्षद को इस संबंध में एक पत्र दिया। जिसमें निगम के अधिकारियों से तुरंत गटर साफ़ करने की प्रार्थना की गई थी। रोहिणी कहती है कि "हमने यह भी लिखा था कि यदि कोई उचित कार्यवाई नहीं की जाती है तो बच्चे खुद गटर की सफाई करेंगे और अगर कोई हादसा होता है तो इसके लिए बच्चे ज़िम्मेदार नहीं होंगे।" उसने बताया कि तीन दिनों के अंदर निगम के कर्मचारी गटर की सफाई करने पहुँच गए। इसके बाद रोहिणी और उसकी टीम ने अपने आसपास के पड़ोसियों को सफाई के प्रति जागरूक करना शुरू किया। उसने लोगों को समझाना शुरू किया कि सड़कों पर कूड़ा-करकट न डालें और कूड़े का निपटान केवल नगरपालिका द्वारा उपलब्ध कूड़ेदान में ही करें।
रोहिणी बताती है कि यदि इस गंभीर समस्या के प्रति युवा जागरूक रहते तो अधिकारी अवश्य समस्या का
रोहिणी रिचर्ड |
अब रोहिणी उस बाल संसद का नेतृत्व करती है। इसकी शुरुआत 2010 में सेंटर फॉर सोशल एक्शन (सीएसए) द्वारा किया गया है। वह 2012 से इस समूह में शामिल हुई है और संस्था द्वारा चलाये जा रहे जनकल्याण कार्यक्रमों में नियमित रूप से शामिल होती रही है। वह बताती है कि 'शुरू में हमें लगा कि यह एक जगह है जहाँ आकर हमें खेलने का मौका मिलता है। लेकिन बाल संसद में भाग लेकर हमने न सिर्फ अपने कर्तव्यों और ज़िम्मेदारियों को पहचाना बल्कि सामाजिक बदलाव लाने में बच्चों की भूमिका से रूबरू होने का अवसर भी प्राप्त हुआ।'
रोहिणी स्कूल की तुलना में बाल संसद को प्राथमिकता देती रही। वह बताती है कि स्कूल में जहां तेज़ तर्रार बच्चों को अधिक अवसर मिलता है, शिक्षक भी ऐसे ही बच्चों को विभिन्न मंचों पर आगे रखते हैं वहीं इस बाल संसद में सभी बच्चों को बराबर का अवसर प्रदान किया जाता रहा है। यही कारण है कि मैं और मेरे जैसे ग्रामीण परिवेश से आने वाले बच्चे इस बाल संसद में भाग लेने के बाद पहले की तुलना में अधिक आत्मविश्वास महसूस करने लगे हैं। सामाजिक परिवेश और लोगों की सोंच को बदलने में बाल संसद की भूमिका का एक और उत्कृष्ट उदाहरण देते हुए रोहिणी बताती है कि दो साल पहले संसद ने एक शराबी व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाई की, जो अक्सर अपनी पत्नी और बच्चों को मारता पीटता था। उसकी शराब की लत की वजह से बच्चे नियमित रूप से स्कूल नहीं आ पाते थे। रोहिणी ने इस संबंध में अपनी ट्यूशन टीचर रौशनी के मार्गदर्शन में बाल संसद के 30 बच्चों के साथ उस व्यक्ति के घर जाकर उसे कड़ी चेतावनी दी कि वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ हिंसा न करे, अन्यथा उसके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी जाएगी। बच्चों द्वारा उठाये गए इस क़दम का बहुत ही सकारात्मक परिणाम सामने आया और उस व्यक्ति ने अपनी पत्नी और बच्चों के खिलाफ न केवल हिंसा बंद कर दी बल्कि उसके बच्चे भी नियमित रूप से स्कूल आने लगे।
बाल संसद की ओर से समय समय पर सामाजिक कार्यों और लोगों को समाज के प्रति उनके कर्तव्यों के लिए जागरूकता रैली का भी आयोजन किया जाता है। बाल सांसद स्थानीय पुलिस स्टेशन, डाकघर और अनाथालय में भी जाकर जागरूक यात्राएं करते रहते हैं। बाल संसद में भाग लेने के बाद रोहिणी न केवल सामाजिक रूप से जागरूक हुई है बल्कि उसे अपने अधिकारों के बारे में भी पता है। वह बताती है कि उसे पढ़ाई के बाद बाहर जाना और दोस्तों संग खेलना अच्छा लगता है, लेकिन कुछ समय पहले उसके माता-पिता उसे बाहर जाने से रोकने लगे थे। उसने अपने माता-पिता को बताया कि खेलना बच्चों का अधिकार होता है अन्यथा उनका शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित हो सकता है।
रोहिणी अब 18 वर्ष की हो चुकी है। वह अध्यापिका बनना चाहती है। उसे गणित विषय बहुत पसंद है और वह इसी क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना चाहती है। हालांकि उसके माता-पिता उसकी शादी करवाना चाहते हैं। लेकिन अधिकारों के प्रति सजग रोहिणी अभी शादी नहीं बल्कि अपने पैरों पर खड़ा होकर अपने सपने पूरा करना चाहती है। वह कहती है कि उसका समुदाय भी जागरूक हो चुका है और अब वहां भी लड़के और लड़कियों की शादी 27-28 वर्ष की उम्र में हो रही है।
आज रोहिणी अपने क्षेत्र की लड़कियों की रोल मॉडल बन चुकी है। लड़के और लड़कियों के बीच भेदभाव करने वालों के लिए वह अनुकरणीय है। देश के कई क्षेत्रों में आज भी कन्या भ्रूण हत्या जैसा घृणित कार्य हो रहे हैं, ऐसे में रोहिणी जैसी लड़कियां समाज के लिए आईना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किये गए बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान को उत्तन गांव की रोहिणी ने बहुत पहले साकार कर दिया है। ज़रूरत है बेटियों के प्रति इस सकारात्मक विचाधारा को बढ़ावा देने की क्योंकि बेटियां भी सामाजिक परिवर्तन ला सकती हैं। (चरखा फीचर्स)
- उर्वशी सरकार
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