हजारी प्रसाद द्विवेदी साहित्यिक परिचय

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हजारीप्रसाद द्विवेदी 
Hazari Prasad Dwivedi 


हजारीप्रसाद द्विवेदी Hazari Prasad Dwivedi हजारी प्रसाद द्विवेदी निबंध आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी पुस्तकें हजारी प्रसाद द्विवेदी के ललित निबंध हजारी प्रसाद द्विवेदी आलोचना acharya hazari prasad dwivedi information in hindi hazari prasad dwivedi ki rachna hai hazari prasad dwivedi ka jivan parichay dr hazari prasad dwivedi ka jeevan parichay in hindi hazari prasad dwivedi photo hazari prasad dwivedi ki rachna konsi hai hazari prasad dwivedi ki alochana drishti hazari prasad dwivedi ki bhasha shaili हजारी प्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का जीवन परिचयहजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध संग्रह 
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी हिन्दी साहित्य के श्रेष्ठ निबन्धकार, उपन्यासकार. आलोचक एवं सफल अध्यापक रहे हैं। वे भारतीय संस्कृति के युगीन व्याख्याता थे।श्री द्विवेदी की हिन्दी साहित्य को सबसे बड़ी देन यह है कि उन्होंने हिन्दी-समीक्षा को एक नई, उदार और वैज्ञानिक दृष्टि दी है। 

हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय

आधुनिक हिन्दी साहित्य जगत् के सर्वश्रेष्ठ समालोचक, इतिहासकार, निबन्धकार तथा उपन्यासकार आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने सन् 1907 में जन्म लेकर बलिया जिलान्तर्गत बेछपरा ग्राम को गौरवान्वित किया। इनके पिता का नाम प० अनमोल द्विवेदी तथा माता का नाम श्रीमती ज्योतिकली था। गाँव में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के उपरान्त आपने काशी को अपना अध्ययन केन्द्र बनाया। काशी में ही रहकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से आपने ज्योतिष तथा साहित्याचार्य की परीक्षाएँ उत्तीर्ण की। 
हजारी प्रसाद द्विवेदी
हजारी प्रसाद द्विवेदी

अध्ययनोपरान्त सन् 1930 में आप शान्ति निकेतन में हिन्दी अध्यापक और कुछ वर्षोंपरान्त हिन्दी विभाग के अध्यक्ष बनाये गये। लगभग 20 वर्षों तक आपने शान्ति निकेतन में हिन्दी अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। यहाँ रविन्द्र बाबू तथा आचार्य क्षितिमोहन सेन के सानिध्य में आपकी शोध प्रवृत्ति जागी। आपने हिन्दी साहित्य, बंगला, पालि, प्राकृत आदि का गहन अध्ययन किया। इनमें प्रतिभा थी ही, परिश्रमी होने के कारण इनकी विद्वता निखर गई। इनकी अध्ययनशीलता ने इन्हें महान विद्वान और विचारक बनाया। सन् 1950 में द्विवेदी जी को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर तथा अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। यहाँ मतभेद हो जाने पर कुछ दिनों बाद आप इसी पद पर चण्डीगढ़ चले गए। वहां से सेवामुक्त होकर आपने पुनः काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में रेक्टर पद को सुशोभित किया।मृत्युपर्यन्त काशी में ही रहकर वीणापाणि के चरणों में नित नूतन प्रसून चढ़ाकर भक्तिभाव से हिन्दी साहित्य को दिशा तथा बल प्रदान करते रहे। 

हजारी प्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि

बाल्यावस्था से ही द्विवेदी जी में साहित्यानुराग का भावभरा पड़ा था। रविन्द्र बाबू के सानिध्य में यह अनुराग और प्रतिभा विशेष रूप से पल्लवित और पुष्पित हुई। जब आप शान्ति निकेतन में थे, उस समय सूर साहित्य पर आपको इन्दौर में स्वर्ण पदक मिला था।इनकी कबीर पुस्तक पर मंगला प्रसाद पारितोषिक तथा लखनऊ विश्वविद्यालय से सन् 1949 में डी. लिट् की उपाधि मिली है। इनकी प्रतिभा तथा विद्वता से प्रभावित होकर सन् 1957 में भारत सरकार ने इन्हें ही पद्यभूषण उपाधि से अलंकृत किया। आपने रविन्द्र बाबू से मानवतावादी दृष्टिकोण तथा आचार्य शुक्ल से रसवादी दृष्टि प्राप्त की है। द्विवेदी जी की साहित्य साधना बहुमुखी है। वह कुशल सम्पादक, उपन्यासकार, इतिहासकार, समालोचक तथा निबन्धकार हैं। अत: इनके प्रत्येक रूप का अलग-अलग अध्ययन करना उचित होगा
  • उपन्यासकार के रूप में- 'बाण भट्ट की आत्मकथा' तथा चारुचन्द्र लेख' इनके प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यास हैं। इनकी ऐतिहासिक दृष्टि बड़ी सूक्ष्म तथा मौलिक है। मृत्यु के पूर्व आप एक पौराणिक उपन्यास लिख रहे थे। यह उपन्यास भी प्रथम ही उपन्यासों की भाँति पाठकों का कण्ठहार बनेगा। बाणभट्ट की आत्मकथा' उपन्यास भाषा ,शैली तथा ऐतिहासिक दष्टि के कारण अपने ढंग का अनूठा उपन्यास है। 
  • इतिहासकार के रूप में- साहित्य इतिहासकार के रूप में द्विवेदी जी को विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है। हिन्दी साहित्य के आदिकाल में इनकी अच्छी पहुँच है। हिन्दी साहित्य की भूमिका', नाथ सम्प्रदाय', 'हिन्दी साहित्य का आदिकाल', 'हिन्दी साहित्य' नामक ग्रंथ इन्हें उच्च कोटि का इतिहासकार सिद्ध करते हैं। इन रचनाओं में इनका गहन विचार और मौलिक चिन्तन सराहनीय है। 
  • सम्पादक के रूप में- आपने सम्पादक के रूप में भी सफल साहित्य सेवा की 'नाथ सिद्धों की बानियाँ' तथा 'पृथ्वीराज रासो' आपके सम्पादित ग्रन्थ हैं। 
  • समालोचक के रूप में-द्विवेदी जी सफल आलोचक हैं। इनकी आलोचनाएँ गम्भीर तथा मौलिक हैं। इनमें गम्भीर अध्ययन तथा चिन्तन की छाप है। सूर-साहित्य तथा इतिहास', 'कबीर' की पुस्तकों में इनकी आलोचनात्मक प्रतिभा बिखरी पड़ी है। 
  • निबन्धकार के रूप में- इस रूप में द्विवेदी जी का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। विषयवस्तु की दृष्टि से इनके निबन्ध 4 प्रकार के हैं- (क) साहित्यिक निबन्ध (ख) सांस्कृतिक निबन्ध (ग) आलोचनात्मक निबन्ध (घ) गवेषणात्मक निवन्ध। 


इनके निबन्धों में इनकी मानवतावादी दृष्टि का दर्शन होता है। नाखून क्यों बढ़ते हैं ऐसे सामान्य विषयों पर आपका गहन चिंतन देखते ही बनता है। इनके निबंध विषय प्रधान तथा व्यक्ति व्यंजक हैं। सामान्य विषयों को भी वह वेदों, पुराण, इतिहास आदि में जोड़ देते हैं। अपनी इस प्रवृति के विषय में 'मेरी जन्म भूमि' निबन्ध में वे लिखते हैं- 'अच्छा समझिए या बुरा, मेरे अन्दर एक गुण है, जिसे आप बालू में से तेल निकालना समझ सकते हैं। मैं बालू से भी तेल निकालने का सचमुच प्रयत्न करता हूँ, बशर्ते कि वह बालू मुझे अच्छा लग जाय।' साधारण से साधारण विषय पर द्विवेदी जी जादू की छडी चलाकर उसे अत्यन्त आकर्षक और पठनीय बना देते हैं। 

हजारी प्रसाद द्विवेदी की रचनाएँ 

आपकी निम्नलिखित रचनाएँ हैं -  
  • सम्पादित रचनाएँ- 'नाथ सिद्धों की बानियाँ', 'पृथ्वीराज रासो'। 
  • उपन्यास - बाणभट्ट की आत्मकथा, "चारुचन्द्र लेख' 'पुनर्नवा', 'अनामदास का पोथा'। 
  • आलोचनात्मक ग्रन्थ- कबीर, सूर साहित्य, हिन्दी साहित्य की भूमिका, नाथ सम्प्रदाय, हिन्दी साहित्य का आदिकाल, 
  • निबन्ध संग्रह- अशोक के फूल, विचार प्रवाह, कुटज, कल्पलता, प्रबन्ध चिंतामणि, विचार और वितर्क, लाल कनेर आदि। 

हजारी प्रसाद द्विवेदी की भाषा 

आपकी भाषा शुद्ध साहित्यिक खडी बोली है। इनमें संस्कृत के शब्दों की प्रधानता है। संस्कृत प्रधान भाषा होते हुए भी उनमें सरलता और सरसता है। यत्र-तत्र उर्द या अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। किन्तु विदेशी भाषा के ये शब्द रचनाओं में अधिक प्रभावक तथा सार्थक बन गए हैं। जैसे-'भाषा पर कबीरदास का जबरदस्त अधिकार था। वे वाणी के डिक्टेटर थे।' 

भाषा पर द्विवेदी जी का पूरा अधिकार है। वह जहाँ जैसी भाषा का प्रयोग करना चाहते हैं, करते हैं। भावावेश में आ जाने पर तो इनकी भाषा संस्कृत गर्भित हो जाती है और वाक्य लम्बे-लम्बे बनने लगते हैं, ऐसी भाषा पढ़ते समय काव्य जैसा आनन्द मिलता है। वास्तव में आपकी भाषा बडी सशक्त और प्रवाहपूर्ण है। इनकी भाषा के मूलतः दो रूप हैं -
  • सरल व्यावहरिक भाषा- 'सारा देश आपका है। भेद और विरोध ऊपरी है। भीतरी मनुष्य एक है। इस एक को दृढ़ता के साथ पहचानने का यत्न कीजिए।' 
  • संस्कृतनिष्ठ भाषा- एक बार कल्पना कीजिए। तरल तप्त धातुओं के प्रचण्ड समुद्र की , निरन्तर झरने वाले अग्नि गर्म मेघों की, विपुल जड़ संघात की, और फिर कल्पना कीजिए क्षुद्रकाय मनुष्य की। विराट ब्रह्माण्ड निकाय, कोटि-कोटि नक्षत्रों का अग्निमय आवर्तनृत्य, अनंत शून्य में निरंतर उदीयमान और विनाशमान नीहारिका पुँज विस्मकारी है, पर उनसे अधिक विस्मयकारी मनुष्य, जो नगण्य स्थानकाल में रहकर इनकी नाप-जोख करने निकल पड़े हैं। प्रंसगानुकूल द्विवेदी जी ने हास्य-व्यंग्य तथा कहावतों एवं मुहावरों का प्रयोग करके अपनी भाषा को सजीव बनाया है। 

हजारी प्रसाद द्विवेदी की शैली

द्विवेदी जी बाणभट्ट की गद्य शैली से विशेष प्रभावित हैं। आपकी शैली में चण्डी प्रसाद तथा हृदयेश प्रसाद जो की झलक मिलती है। बाणभट्ट की आत्मकथा में बाणभट्ट की कादम्बरी' की गद्य शैली का आपने पनरुद्धार किया 
आपको रसवादी शैली आचार्य शुक्ल से प्राप्त हुई। यह इनकी प्रतिनिधि शैली है क्योंकि इसमें इनके निजी व्यक्तित्व और मौलिकता की पर्याप्त कर्म-भूमि मिलती है। आलोचनात्मक कृतियों में आलोचनात्मक तथा विवेचनात्मक शैली. इतिहास ग्रंथों में गवेषणात्मक शैली के दर्शन होते हैं। आपकी शैली आचार्य शुक्ल की शैली से पर्याप्त मात्रा में मिलती-जलती है।अन्तर केवल इतना है कि शुक्ल जी में सूत्र, कटुक्तियाँ तथा व्यंग्य द्विवेदी जी से अधिक हैं। 

हजारी प्रसाद द्विवेदी का साहित्य  में स्थान

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी मात्र उपन्यासकार, समीक्षक तथा निबन्धकार के रूप में ही नहीं अपित आचार्य के रूप में हिंदी जगत में प्रतिष्ठित हैं उन्होंने गद्यकार के रूप में जो कृतियाँ प्रदान की हैं उनका हिन्दी के गद्य साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है।जिस प्रकार उनके व्यक्तित्व में निरीभ मानवता और निष्कपटता है, उसी प्रकार उनकी सेवा भी परमोज्जवल और उदात्त गुणों से विभूषित है।उनकी रचनाओं में प्राचीनता और नवीनता का समन्वय अपूर्व ढंग से हुआ है।  


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