माइकल मधुसूदन दत्त का जीवन परिचय माइकल मधुसूदन दत्त का जीवन परिचय माइकल मधुसूदन दत्त जीवनी Michael Madhusudan Dutt - माइकल मधुसूदन दत्त बंगला साहित्य के प्रमुख कवि व नाटककार थे।मधुसूदन दत्त का जन्म 1824 ई. में हुआ।उन्होंने कलकत्ते के हिन्दू कालेज में उच्च शिक्षा पायी।
माइकल मधुसूदन दत्त का जीवन परिचय
माइकल मधुसूदन दत्त का जीवन परिचय माइकल मधुसूदन दत्त जीवनी Michael Madhusudan Dutt - माइकल मधुसूदन दत्त बंगला साहित्य के प्रमुख कवि व नाटककार थे।मधुसूदन दत्त का जन्म 1824 ई. में हुआ।उन्होंने कलकत्ते के हिन्दू कालेज में उच्च शिक्षा पायी। राजनारायण वसु उनके सहपाठी थे।अंग्रेजी साहित्य के रस और अंग्रेज अध्यापकों के संसर्ग से स्वधर्म एवं स्वसमाज के प्रति आस्था घट गयी। इसलिए ईसाई बनकर कुछ बनने- कर सकने की लालसा से धर्म परिवर्तन किया, किन्तु अंग्रेज महिला से पाणिग्रहण करने पर भी उसके साथ मनोमालिन्य के कारण उसे छोड़ा तथा दूसरी यूरोपीय महिला से विवाह किया। उनका 'शर्मिष्ठा' नामक नाटक (शर्मिष्ठा देवयानी के प्रसिद्ध पौराणिक कथानक पर आधारित) सन् 1858 में लिखा।पद्मिनी नाटक तथा अन्य कई नाटक लिखे किन्तु उनकी ख्याति मेघनाथ वध' नामक महाकाव्य के कारण हुई।सन् 1865 में चतुर्दशपदी कवितावली (सोनेट्स) लिखे।बंगला साहित्य में यही सर्वप्रथम सोनेट है।सोनेट बाद में भी लिखे गये पर उनके लेखकों को यहाँ तक कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर को भी उतनी सफलता नहीं मिली।उनके हेक्टर वध (होमर के इलियट के एक उपाख्यान पर आधारित) और माया कानन (1871) में 'कवि की प्रचण्ड प्रतिभा के भस्मावशेष मात्र का परिचय मिलता है।आशा भंग जनित घोर मनोवेदना एवं अत्याचार उच्छृखलता जनित देहयंत्रणा और दारिद्र्य दुख भोग करके मधुसूदन ने 1873 ई. में देह त्याग दिया।
माइकल मधुसूदन दत्त |
मधुसूदन दत्त का महाकाव्य
मधुसूदन दत्त का महाकाव्य किसी महाकाव्य या महाकाव्य विधा का अनुकरण नहीं है, 'यह उनकी अपनी सृष्टि है।' बाल्यकाल से ही मधुसूदन रामायण और महाभारत के रस से ओत-प्रोत थे। बंगला में वीर रस के काव्य का अभाव देखकर वीर रसाश्रित महाकाव्य मेघनाद का प्रणयन किया। मेघनाद वध' बंगला में प्रथम एवं एकमात्र वीर रसाश्रित महाकाव्य है। उनके हाथ बंगला भाषा और छन्दों की ओजहीनता दूर हुई। प्रचुर संख्या में संस्कृत के अभिधानिक शब्दों को ग्रहण कर एवं नाम धातुओं की सृष्टि करके उन्होंने भाषा की ओजहीनता दूर की। 'पयार' छन्द में अमित्राक्षर पयार के प्रवर्तन द्वारा छन्दों की ओजहीनता दर की।18वीं 19वीं शताब्दी में मधुसूदन जी ने बंगला साहित्य के परिपेक्ष्य में रहकर अपने काव्य की रचना करके बंगला साहित्य के विकास में काफी प्रयास किया।
असीम प्रतिभा
प्रायः सभी बंगला छन्दों के मूल में पयार है, पयार का प्रधान लक्षण यह है कि आठवें और चौदहवें वर्ण के पश्चात् विराम होता है और अन्तिम यति में अनुप्रास होता है। विराम के निर्दिष्ट होने के कारण झंकारमय ओजस्वी संस्कृत शब्दों का अधिक मात्रा में प्रयोग करना असम्भव था एवं चरणान्त में तुक होने के कारण वाक्य और भाव को दो चरणों में समाप्त करना ही पड़ता था। असीम प्रतिभा के सहारे मधुसूदन ने इन दोनों बाधाओं को खेल में पार कर दिया। उन्होंने जिस अमित्राक्षर छन्द की सृष्टि की, वह बिल्कुल विदेशी वस्तु नहीं है, इनके मूल में बँगला पयार का ही ध्वनि-प्रवाह है और निर्दिष्ट वर्ण संख्या भी है, केवल अन्त्यानुप्रास नहीं है और आठवें वर्ण पर यति का होना सर्वदा आवश्यक नहीं है। बँगला छन्द ने अपनी विशिष्टता को पूर्णतया सुरक्षित रख कर ही यह नूतन अभूतपूर्व रूप पाया है।बंगला-साहित्य ने मानो नया जन्म पाया।
मधुसूदन दत्त अपने तीन नाटकों 'शर्मिष्ठा', 'पद्मावती' और 'कृष्णकुमारी' तथा मेघनादवध नामक गीतात्मक सोनेट पद्धति के पहले और अन्तिम महाकाव्य के कारण अमर हैं।निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि आधुनिक बंगला साहित्य में मधुसूदन दत्त ने अपने महाकाव्यों के माध्यम से बंगला साहित्य में अधिक योगदान दिया।
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