विप्लव गायन Class 7 Hindi NCERT Solutions

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विप्लव गायन Class 7 Hindi Viplav Gayan विप्लव गायन Class 7 Hindi Viplav Gayan विप्लव गायन विप्लव गान का अर्थ वसंत भाग 2 कक्षा 7 chapter 20 विप्लव गान का भावार्थ विप्लव गायन कविता की व्याख्या विप्लव गायन कविता का सारांश viplav gayan poem meaning in hindi

विप्लव गायन Class 7 Hindi Viplav Gayan


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विप्लव गायन कविता की व्याख्या


कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए,
एक हिलोर इधर से आए, एक हिलोर उधर से आए,
प्राणों के लाले पड़ जाएँ,त्राहि-त्राहि रव नभ में छाए,
नाश और सत्यानाशों का -धुँआधार जग में छा जाए,
बरसे आग, जलद जल जाएँ,भस्मसात भूधर हो जाएँ,
पाप-पुण्य सद्सद भावों की,धूल उड़ उठे दायें-बायें,
नभ का वक्षस्थल फट जाए-तारे टूक-टूक हो जाएँ
कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ,जिससे उथल-पुथल मच जाए।

व्याख्या - कवि बालकृष्ण शर्मा नवीन कवियों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि ऐसी कविताओं की रचना करो ,जिससे सम्पूर्ण भारत में बदलाव आ जाए। कविताओं के माध्यम से कवि स्वतंत्रता संग्राम में उथल पुथल मचाकर सेनानियों में उत्साहवर्धन करना चाहता है। कवि कहता है कि एक विद्रोह की लहर एक ओर उठे और दूसरी लहर दूसरी ओर से। उन भयंकर प्रलयंकारी विद्रोह की लहरों से अपने प्राण बचाने ही मुश्किल  हो जाए. हाहाकार का स्वर आकाश में गूँज उठे। क्रांति सदैव बुराईयों का केवल नाश ही नहीं करती है ,बल्कि उन्हें मूल से ही उखाड़ फेंकती है। इसी कारण परतंत्र भारत में अत्याचारों को जलाकर कवि उसके धुएं से विश्व को भर देना चाहता है। आकाश क्रांति की आग उगले। वर्षा करने वाले ,सांत्वना देने वाले बादल भी भस्म हो जाएँ। उस आग में धरती को धारण करने वाला शेषनाग ही जल कर राख हो जाए। पाप ,पुण्य तथा अच्छे और बुरे भावों पर विचार करने का समय ही न रहे। तुम्हारी तान को सुनकर आकाश ,जो अत्यंत धैर्यवान है ,उसका ह्रदय भी फट जाए। तारे जो आकाश में चुपचाप चमकते रहते हैं ,वे भी टूटकर बिखर जाएँ। कवि ऐसे गीत का आहवान कर रहा है जिससे भारतवासियों पर ही नहीं ,अपितु प्रकृति पर भी प्रभाव पड़े और वह भी अत्याचारों का अंत करने के लिए कटिबद्ध हो जाए।  

माता की छाती का अमृत-मय पय काल-कूट हो जाए,
आँखों का पानी सूखे,वे शोणित की घूँटें हो जाएँ,
एक ओर कायरता काँपे,गतानुगति विगलित हो जाए,
अंधे मूढ़ विचारों की वहअचल शिला विचलित हो जाए,
और दूसरी ओर कंपा देने वाला गर्जन उठ धाए,
अंतरिक्ष में एक उसी नाशक तर्जन की ध्वनि मंडराए,
कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ,जिससे उथल-पुथल मच जाए, 

व्याख्या - हे कवि तुम्हारी कविता के प्रभाव से माँ की छाती से निकलने वाला दूध ,जो अमृत तुल्य होता है ,जिससे उसके बालकों का पालन पोषण होता है ,वह भी कालकूट विष बन जाए। भले ही रोते रोते आँखों के आंसू ही क्यों न सूख जाएँ। ये दर्द भरे आंसू खून के घूँट ही क्यों न बन जाएँ ,कायरता काँप कहीं छिपकर बैठ जाए। भले ही सब कार्यों की गति ही रुक न जाए। पुरानी मान्यताएँ ,हमारे विचार जो मूर्खतापूर्ण हैं ,जो अस्तित्व छोड़ नहीं रहे हैं ,उन विचारों की शिला भी हिल जाए। इसके विपरीत डरा देने वाली गर्जना होने लगे। सम्पूर्ण सृष्टि में नाश करने वाली भयंकर ध्वनि ही घूमती रहे ,जिससे प्राचीन मूर्खतापूर्ण मान्यता का अंत हो और हम प्रगति के पथ पर अग्रसर हो उठे। 
विप्लव गायन
विप्लव गायन 

नियम और उपनियमों के ये ,बंधक टूक-टूक हो जाएँ,
विश्वंभर की पोषक वीणा के सब तार मूक हो जाएँ
शांति-दंड टूटे उस महा-रुद्र का सिंहासन थर्राए
उसकी श्वासोच्छ्वास-दाहिका, विश्व के प्रांगण में घहराए,
नाश! नाश!! हा महानाश!!! की प्रलयंकारी आँख खुल जाए,
कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ ,जिससे उथल-पुथल मच जाए। 

व्याख्या - हमें जो नियम बनाये हैं और उनके विभिन्न उपनियम ,जिनके बंधन में हमें स्वयं को बाँध रखा है ,आज वह समय आ गया है ,जब वे सभी बंधन टूट जाएँ।भगवान विष्णु की पालन करने वाली वीणा के तार भी  चुप हो जाएँ। कवि के गीत से शान्ति का साम्राज्य समाप्त हो जाए और महाशिव का सिंहासन हिल उठे। रूद्र की प्रलयकारी स्वांसों  से सम्पूर्ण विश्व का आंगन ही भर उठे।भगवान रूद्र की तीसरी आँख खुलकर महानाश का तांडव नृत्य करने लगे। बुराई का अंत होने पर ही समाज में नव जागृति आएगी।पुरातन मूढ़ विचारों को धराशायी करने ही नवीनता का निर्माण होगा। यही आज की पुकार है। 

सावधान! मेरी वीणा में,चिनगारियाँ आन बैठी हैं,
टूटी हैं मिजराबें, अंगुलियाँ दोनों मेरी ऐंठी हैं।

व्याख्या - कवि कहता है कि हमें सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि कवि की वीणा से मधुर गान नहीं निकालेंगे बल्कि कटुता एवं चिंगारियां ही निकलेंगी। उनकी वीणा को बजाने वाली मिज्राबें टूट गयी हैं और उनकी दोनों अंगुलियाँ ही ऐंठ गयी है। 

विप्लव गायन कविता का सारांश 


कविता में ओज -तेज  और उत्साह से ओतप्रोत हैं। कवि की वाणी में इस प्रकार का ओज है जो समाज में क्रांति के अंकुर बो सकता है। इसीलिए नव निर्माण का आकांक्षी कवि ,अन्य कवियों से ऐसी रचना को कहता है जिससे नव निर्माण का रास्ता तैयार है।कवि अराजकतावादी न होकर पुरानी सड़ी मान्यताओं  को हटाना चाहता है तथा उसके स्थान पर नव विचारों का सृजन व परिपालन करना चाहता है।कवि का मुख्य उद्देश्य परतंत्र भारत में क्रांतिकारियों का जागृत कर सामाजिक चेतना में परिवर्तन करना चाहता है क्योंकि सदैव विध्वंश के बाद ही निर्माण होता है। समाज को जीवन मूल्यों से आपूरित कर पुरानी जीर्ण शीर्ण मान्यताओं से छुटकारा दिलाना भी कवि का उद्देश्य है। इस प्रकार के कविता के अन्दर अपने विद्रोही स्वरों से मानस मन में उथल -पुथल मचाने में कवि सफल हुआ है। देश की स्वतंत्रता के लिए भारतीयों के मानसिक परिवर्तन में यह कविता सफल हुई है। 

विप्लव गायन कविता के प्रश्न उत्तर कविता से 



प्र. १. ‘कण-कण में है व्याप्त वही स्वर……………कालकूट फणि की चिंतामणि’

(क) ‘वही स्वर’,’वह ध्वनि’ एवं ‘वही तान’ आदि वाक्यांश किसके लिए/ किस भाव के लिए प्रयुक्त हुए हैं?

क. उ. वही स्वर ,वह ध्वनि एवं वही तान आदि वाक्यांश कविता में जनता को नवनिर्माण करने के लिए प्रेरित किया गया है।इसीलिए वह कवि ऐसी तान सुनाने का आग्रह कर रहा है कि हमारी पुरानी मान्यताएँ विनष्ट हो जाएँ एवं देश नवीन परिवेश में पदार्पण कर सके। 

(ख) वही स्वर, वह ध्वनि एवं वही तान से संबंधित भाव का ‘रूद्ध-गीत की क्रुद्ध तान है/ निकली मेरी अंतरतर से’ – पंक्तियों से क्या कोई संबंध बनता है ?

उ. ख. कवि उपरोक्त शब्दों द्वारा शान्ति का साम्राज्य समाप्त करना चाहता है ,जिससे महारुद्र शिव का सिहांसन हिल उठे।रूद्र की प्रलयंकारी स्वांसों से सम्पूर्ण विश्व का आँगन ही भर उठे।भगवान शिव की तीसरी आँख खुल जाए ,जिससे सृष्टि का महाविनाश हो।सभी पुरातन को नष्ट करके नवीनता का निर्माण होगा। 

प्र.२. नीचे दी गई पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-

‘सावधान! मेरी वीणा में……दोनों मेरी ऐंठी हैं।’ 

उ. इन पंक्तियों द्वारा कवि कह रहा है कि हमें सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि कवि की वीणा से मधुर गान नहीं निकालेंगे बल्कि कटुता एवं चिंगारियां ही निकलेंगी। उनकी वीणा को बजाने वाली मिज्राबें टूट गयी हैं और उनकी दोनों अंगुलियाँ ही ऐंठ गयी है। 




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