नारी और निर्वाण नारी और निर्वाण कहानी नारी और निर्वाण कहानी धर्मवीर भारती Dharamvir Bharati nari aur nirwan dharmveer bharti डॉ० धर्मवीर भारती द्वारा रचित 'नारी और निर्वाण' शीर्षक कहानी एक प्रसिद्ध कहानी है।कहानीकार ने इस कहानी में नारी की प्रतिष्ठा स्थापित की है।
नारी और निर्वाण
नारी और निर्वाण कहानी नारी और निर्वाण कहानी धर्मवीर भारती Dharamvir Bharati nari aur nirwan dharmveer bharti डॉ० धर्मवीर भारती द्वारा रचित 'नारी और निर्वाण' शीर्षक कहानी एक प्रसिद्ध कहानी है।कहानीकार ने इस कहानी में नारी की प्रतिष्ठा स्थापित की है।उन्होंने नारी को निर्वाण (मुक्ति) से भी महान स्थान का दर्जा दिया है। इस कहानी में डॉ० धर्मवीर भारती ने गौतम बुद्ध एवं उनकी पत्नी यशोधरा के जीवन से सम्बद्ध घटनाओं के आधार पर नारी और मुक्ति के सम्बन्ध पर प्रकाश डाला है।उन्होंने नारी को निर्वाण से भी महान स्थान दिया है तथा निर्वाण नारी के कदमों पर नतमस्तक होकर अपने को गौरवान्वित मानता है।इस कहानी में गौतम बुद्ध के त्याग एवं यशोधरा की नारी के विभिन्न रूपगत गरिमा तथा महिमा का वर्णन किया गया है।
नारी और निर्वाण कहानी का सारांश /कथावस्तु
कहानी का प्रारम्भ नाटकीय ढंग से हुआ है। कथानक का प्रारम्भ यशोधरा के स्वप्न से होता है। यशोधरा स्वप्न देखती है कि वह सिद्धार्थ के साथ झूला झूल रही है। यशोधरा झूले को पृथ्वी के समानान्तर रखने के लिए प्रार्थना करती है किन्तु सिद्धार्थ कहते हैं, “पृथ्वी के समानान्तर ! वह झूला ही क्या जो पृथ्वी के समानान्तर रहे- अरे ! झूले में तो वह वेग हो, वेगों की वह ऊँचाई हो कि पृथ्वी भी झूलने लग जाय यशोधरा । यह कहकर सिद्धार्थ झूले के वेग को और भी तेज कर देते हैं। इस पर घबड़ा कर यशोधरा एक हाथ से स्वर्णपट्ट थामती है और दूसरे से रेशम की डोर। वह कहती है कि "धीमें-धीमें झूलो कुमार ! धीमा संगीत अधिक सुखदायी होता है। संगीत का सम अधिक मधुर होता है कुमार ।"
नारी और निर्वाण |
सिद्धार्थ झूले के वेग को बढ़ाते जाते हैं। यशोधरा को ऐसा लगा मानो स्वर्णपट रेशम की डोर तोड़कर ऊपर उठता जाता है तथा सिद्धार्थ उसमें लुप्त हो जाते हैं। यशोधरा भय एवं आशंका से काँप उठती है। उसकी नींद खुल जाती है। वह पुत्र राहुल को समझाती हुई हाथ में मणिदीप लेकर सिद्धार्थ के शयनकक्ष में जाती है और शयनकक्ष को सूना पाकर विचित्र आशंका से सहम जाती है और अश्रुपूरित नेत्रों एवं रुंधे स्वर में काँपते हुए पुकारती है-"कुमार' किन्तु सर्वत्र व्याप्त शून्यता में कोई प्रत्युत्तर न पाकर उसकी आँखों से आँसू टपक पड़ा हैं।
कहानी के कथानक में दूसरा मोड़ तब आता है जब सिद्धार्थ वटवृक्ष के नीचे तपस्यारत हैं। नारी की छाया से दूर भागने वाले और निर्वाण पथ की बाधक नारी सुजाता उनके समक्ष उपस्थित होती है। परन्तु उसके शुभ स्नेह को देखकर सिद्धार्थ की नारी विषयक धारणा बदल जाती है और उनके सामने नारी का वह पवित्र एवं महिमामय रूप सामने आता है जिससे वे अब तक अपरिचित थे।सहसा ही उनके मुख से यह ध्वनि निकल पड़ती है-"नारी तुम्हारा यह स्वरूप देवोपम है । यशोधरा मैंने तम्हें पहचाना न था। सिद्धार्थ को निर्वाण मिल जाता है, परन्तु वे उसे पाकर भी संतुष्ट नहीं हैं और सहसा उनके मुख से निकल पड़ता है "मुझे निर्वाण नहीं चाहिए। वे घर-घर जाकर प्रेम एवं त्याग का संदेश देना चाहते हैं। इसी समय सिद्धार्थ प्रचार करते हुए कपिलवस्तु पहुँचते हैं और वहीं पर तेजस्वी बालक राहुल को देखकर गौतमी से पूछ बैठते हैं- “यह तेजस्वी बालक किसका है माता ? गौतमी उत्तर देती है- “यह बालक तुम्हारा नहीं, यशोधरा का है।
"कौन राहुल ? मैं इसे भिक्षु बनाना चाहता हूँ।
"यह आपकी सम्पत्ति नहीं है, यह यशोधरा की सम्पत्ति है आर्य ! सिद्धार्थ यशोधरा के पास जाकर कहते हैं-'यशोधरा ! मैं तुमसे एक भीख माँगने आया हूँ। इस पर यशोधरा हँस देती है, तत्पश्चात् .उसकी आँखें सजल हो उठती हैं और वह रुंधे कंठ से जबाव देती है-“ले जाओ" . बुद्ध इस भिक्षा के लिए यशोधरा को आशीर्वाद देते हुए कहते हैं--"तुम्हारा सुहाग, तुम्हारा निर्वाण अचल रहे।
यशोधरा का चरित्र चित्रण -
नारी और निर्वाण कहानी की प्रमुख पात्र के रूप में हम यशोधरा को ही पाते हैं। इस कहानी में यशोधरा का अस्तित्व बुद्ध की अपेक्षा अत्यधिक जीवन्त है। कहानीकार ने यशोधरा तीन चारित्रिक रूपों में व्यक्त किया है। उसका पहला रूप है पत्नी यशोधरा, दूसरा रूप यशोधरा एवं तीसरा रूप-सुन्दरी युवती यशोधरा का । इन तीनों रूपों में यशोधरा सम्पूर्ण कहानी में विशिष्ट ढंग से अपने चारित्रिक स्वरूप का परिचय देती है।
भारतीय नारी का वह गौरवान्वित चरित्र इस नारी पात्र के चरित्र में दिखलाई पड़ता है जो त्याग, व ममता के गुणों से परिपूर्ण होकर इस संसार और मानव जाति एवं विशेषकर नारी जाति को त्याग और बलिदान का मार्ग प्रदर्शित करता रहा है। यशोधरा के चरित्र का पहला रूप है उसका पत्नी स्वरूप। वह पत्नी के रूप में एक आदर्श पत्नी है जो प्रतिक्षण अपने पति के प्रेम डोर में बँधी है तथा पति की अनन्य प्रेमिका है। यशोधरा स्वप्न में भी अपने पति से अलग नहीं होती। परन्तु आँख खुलने पर अपने पति को कक्ष में न पाकर यशोधरा का पत्नीत्व चीख एवं चिल्ला उठता है और आँखों से अश्रु की धारा बरस पड़ती है।
वह एक असहाय पत्नी बनकर जीती है किन्तु पत्नी के महत्व को समझती है और इसी आशा में जीती है कि एक दिन उसके पास वे अवश्य आयेंगे। वह कहती भी है कि नारी के समक्ष पुरुष को झुकना ही पड़ता है। पुरुष चाहे किसी भी ऊँचाई तक पहुँच जाय परन्तु उसे नारी के पास आना ही पड़ता है।पत्नी यशोधरा का यह कथन प्रमाणस्वरूप देखा जा सकता है-“नारी वह सम है आर्य ! जहाँ पर घुम-फिर कर पुरुष को आना ही पड़ता है।
जननी यशोधरा पत्नी यशोधरा से कम त्यागमयी एवं कम गर्विता नहीं है। वह अपने को गौरवान्वित मानती है कि वह बुद्ध के पुत्र राहुल की जननी है। किन्तु बुद्ध के चले जाने के बाद वह राहल पर सिर्फ अपना हक मानती है। राहुल के तेजस्वी रूप को देखकर बुद्ध अभिभूत हो उठते हैं और जननी यशोधरा से उसकी भीख माँग बैठते हैं। यहाँ जननी यशोधरा का यह स्वरूप अत्यन्त गौरवान्वित होता है, जब वह अश्रुपूरित नेत्रों, अव व कंठ एवं आद्यातीत मानसिकता से अपने इकलौते पत्र राहल को भिक्षा दे देती है। यहाँ पत्नीत्व एवं जननीत्व के समन्वय को देखकर यह कहना कठिन सा प्रतीत होता है कि पत्नी यशोधरा अधिक महान हैं या जननी यशोधरा।
यशोधरा का यह चारित्रिक गौरव इतना उदात्त है कि बुद्ध का निर्वाण भी उस गरिमा के सम्मख निष्प्रभाव सा लगने लगता है और अपने चरित्र से वह यह प्रमाणित कर देती है कि नारी केवल भोग एवं विलासिता की वस्तु नहीं है बल्कि मनुष्य जाति को ज्योति प्रदान करने वाली ज्योतिपुंज है, जहाँ घुम-फिर कर पुरुष को आना ही पड़ता है। नारी को निर्वाण मार्ग की बाधा मानने वाले सिद्धार्थ कहते हैं "नारी ! माँ ! शक्ति ! तुम्हारा यह रूप देवोपम है यशोधरा ! मैं तुम्हें पहचान नहीं पाया था यशोधरा।
नारी और निर्वाण कहानी का शीर्षक व उद्देश्य -
'नारी और निर्वाण' कहानी का शीर्षक एक तथ्यपूर्ण एवं सारगर्भित शीर्षक है। कहानी का शीर्षक सम्पर्ण कहानी की अट्टालिका की नींव की ईंट है। इस कहानी को सफल उदघोषक स्वर भी कह सकते हैं। कहानी के दोनों पात्र सिद्धार्थ और यशोधरा से यह कहानी में आद्यांत जुड़ा रहता है फलस्वरूप वह शीर्षक सहज, सफल, एवं सार्थक और एक सटिक शीर्षक है। इस प्रकार आलोच्य कहानी में कहानीकार ने यशोधरा के जिस उदात्त चरित्र को दर्शाया है वह भारतीय नारी के लिए एक आदर्श प्रेरणा स्रोत है।
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