किलिमंजारो की बर्फ किलिमंजारो 19,710 फ़ीट ऊँचा बर्फ़ से ढँका एक पहाड़ है और वह अफ़्रीका का सबसे ऊँचा पहाड़ माना जाता है । उसकी पश्चिमी चोटी का नाम मसाई भाषा में ‘ नगाजे नगाई ‘ है जिसका अर्थ है — ईश्वर का घर । पश्चिमी चोटी के पास ही एक तेंदुए का सूखा और जमा हुआ शव पड़ा है । कोई नहीं बता पाया कि उतनी ऊँचाई पर वह तेंदुआ क्या खोज रहा था ।
किलिमंजारो की बर्फ
किलिमंजारो 19,710 फ़ीट ऊँचा बर्फ़ से ढँका एक पहाड़ है और वह अफ़्रीका का सबसे ऊँचा पहाड़ माना जाता है । उसकी पश्चिमी चोटी का नाम मसाई भाषा में ‘ नगाजे नगाई ‘ है जिसका अर्थ है — ईश्वर का घर । पश्चिमी चोटी के पास ही एक तेंदुए का सूखा और जमा हुआ शव पड़ा है । कोई नहीं बता पाया कि उतनी ऊँचाई पर वह तेंदुआ क्या खोज रहा था ।
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“ आश्चर्यजनक बात यह है कि यह दर्द-रहित है , “ उसने कहा । “ इसलिए आप इसके शुरू होने पर इसे जान पाते हैं । “
“ क्या यह वाक़ई ऐसा है ? “
“ बिलकुल । हालाँकि इसकी गंध के बारे में मुझे बेहद खेद है । यह गंध तुम्हें परेशान कर रही होगी। “
“ नहीं , मेहरबानी करके ऐसा मत कहो । “
“ इन पक्षियों की ओर देखो । “ उसने कहा । “ क्या वह दृश्य है या गंध है जो उन्हें इस तरह यहाँ लाती है ? “
जिस खाट पर वह आदमी लेटा था वह मिमोसा वृक्ष की घनी छाया के नीचे थी और जब उसने छाया के पार मैदान की चौंध की ओर देखा तो वहाँ तीन बड़े गिद्ध मौजूद थे जो बेहद फूहड़ ढंग से सट कर बैठे थे जबकि आकाश में दर्जन भर और गिद्ध मँडरा रहे थे और उड़ते हुए तेज़ी से भागने वाली परछाइयाँ बना रहे
थे ।
किलिमंजारो की बर्फ |
“ जिस दिन ट्रक ख़राब हुआ था , वे तब से वहाँ हैं । “ उसने कहा । “ आज पहली बार वे ज़मीन पर भी उतर आए हैं । मैंने उनका पंख फैला कर उड़ने का तरीक़ा ध्यान से देखा है ताकि अगर कभी चाहूँ तो उसका इस्तेमाल अपनी कहानी में कर सकूँ । यह बात अब हास्यजनक है । “
“ मैं चाहती हूँ , तुम ऐसी बातें न करो । “ उसने कहा ।
“ मैं तो केवल बात कर रहा हूँ । “ उसने कहा । “ अगर मैं बात करूँ तो ज़्यादा आसानी रहती है । लेकिन मैं तुम्हें परेशान करना नहीं चाहता । “
“ तुम जानते हो , मुझे इससे परेशानी नहीं होती । “ उसने कहा । “ बस , मैं केवल कुछ नहीं कर पाने के कारण बेहद अधीर हो गई हूँ । मुझे लगता हे , हवाई जहाज़ के आ जाने तक हम इसे जितना आसान हो सके , बनाने का प्रयास करें । “
“ या हवाई जहाज़ के नहीं आने तक । “
“ मेहरबानी करके मुझे बताओ , मैं क्या कर सकती हूँ ? कुछ तो होगा जो मैं कर सकती हूँ ? “
“ तुम मेरी टाँग काट दो और तब शायद यह दर्द बंद हो जाए , हालाँकि मुझे शक है । या तुम मुझे गोली मार दे सकती हो । अब तो मैंने तुम्हें गोली चलाना भी सिखा दिया है , है कि नहीं ? “
“ मेहरबानी करके इस ढंग से बात मत करो । क्या मैं तुम्हारे लिए पढ़ सकती हूँ ? “
“ क्या पढ़ सकती हो ? “
“ पुस्तकों के थैले में पड़ी कोई किताब जो हमने नहीं पढ़ी है । “
“ मैं उसे नहीं सुनना चाहता । “ उसने कहा । “ बातचीत करना सबसे ज़्यादा आसान है । हम झगड़ने लगते हैं और इससे समय जल्दी बीत जाता है । “
“ मैं झगड़ा नहीं करती हूँ । मैं कभी झगड़ा करना नहीं चाहती । आओ , अब हम दोबारा कभी झगड़ा नहीं करें । चाहे हम कितने भी अधीर क्यों न हो जाएँ । शायद वे दूसरा ट्रक लेकर आज ही वापस आ जाएँ । शायद हवाई जहाज़ आ जाए । “
“ मैं कहीं नहीं जाना चाहता । “ आदमी ने कहा । “ अब कहीं जाने का कोई मतलब नहीं , पर मैं इसे तुम्हारे लिए आसान बनाना चाहता हूँ । “
“ यह कायरतापूर्ण है । “
“ क्या तुम एक आदमी को बिना गाली दिए चैन से मरने भी नहीं दे सकती ? अब मुझे गाली देने का क्या फ़ायदा ? “
“ तुम मरने नहीं जा रहे । “
“ बेवक़ूफ़ मत बनो । मैं अब मर रहा हूँ । उन हरामज़ादों से पूछो । “ उसने उस ओर देखा जहाँ वे विशालकाय , गंदे पक्षी बैठे हुए थे । उन गिद्धों के नंगे सिर उनके झुके हुए पंखों में धँसे हुए थे । एक चौथा पक्षी तैरता हुआ नीचे उतरा , अपनी टाँगों पर कुछ दूर तेज़ी से दौड़ा और फिर धीरे-धीरे बत्तख़ की तरह चलता हुआ दूसरे पक्षियों की ओर चला गया ।
“ वे सभी शिविरों के इर्द-गिर्द होते हैं । तुम कभी उनकी ओर ध्यान भी नहीं देते । यदि तुम हिम्मत नहीं हारो तो तुम नहीं मर सकते । “
“ यह तुमने कहाँ पढ़ा ? तुम भी कितनी बेवकूफ़ हो । “
“ तुम किसी और के बारे में सोच सकते हो । “
“ ईश्वर के लिए । “ उसने कहा । “ यह मेरा व्यापार रहा है । “
फिर वह लेट गया और कुछ देर तक शांत पड़ा रहा और मैदान की गर्म चौंध के पार झाड़ियों के किनारों को देखता रहा । वहाँ कुछ भेड़े थे जो पीली पृष्ठभूमि में सफ़ेद और बेहद छोटे नज़र आ रहे थे और काफ़ी दूरी पर , उसने ज़ेब्रा के एक झुंड को देखा , जो झाड़ियों की हरी पृष्ठभूमि में उजले दिख रहे थे । यह एक मनोहर शिविर था जो कि एक पहाड़ की ओट में , घने वृक्षों की छाया में था , जहाँ पानी की अच्छी व्यवस्था थी।
—— मूल लेखक : अर्नेस्ट हेमिंग्वे
—— अनुवाद : सुशांत सुप्रिय
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