आ ही गया है अब कलिकाल द्वारिका से लौटे पार्थ खाली हाथ कृष्ण न आये उनके साथ धर्मराज के पाँव पे अपना धर दिया अर्जुन ने माथ कुदरत की मनसा को जान धर्मराज ने लगाया ध्यान बाईं आँख लगी फड़कने अनहोनी का हुआ अनुमान कुत्ता सियार उल्लू कौआ ध्यान में सब दिखे चांडाल कलिकाल कलिकाल आ ही गया है अब कलिकाल प्रकृति अरिष्ट को सूचित करती द्वारे द्वारे डगर -डगर लगने लगा कि जैसे हो सांप और बिच्छू का डर चारो तरफ बस घना अन्धेरा
आ ही गया है अब कलिकाल
द्वारिका से लौटे पार्थ खाली हाथ
कृष्ण न आये उनके साथ
धर्मराज के पाँव पे अपना
धर दिया अर्जुन ने माथ
कुदरत की मनसा को जान
धर्मराज ने लगाया ध्यान
बाईं आँख लगी फड़कने
अनहोनी का हुआ अनुमान
कुत्ता सियार उल्लू कौआ
ध्यान में सब दिखे चांडाल
कलिकाल |
आ ही गया है अब कलिकाल
प्रकृति अरिष्ट को सूचित करती
द्वारे द्वारे डगर -डगर
लगने लगा कि जैसे हो
सांप और बिच्छू का डर
चारो तरफ बस घना अन्धेरा
संगीत- सुर- ताल- बेताल
आ ही गया है अब कलिकाल
आश्रमों में श्रीहीनता ब्यापी
देवी देवताओं की मूर्तियां काँपी
नगर गाँव और बाग़ बगीचे
सभी जगह बस आपाधावी
नदी - नाले ताल - तलैया
बिन पानी सब हैं बेहाल
आ ही गया है अब कलिकाल
यहां कृष्ण के न आने से
संशय दूर हुआ तत्काल
आ ही गया है अब कलिकाल
सूर्य किरणों का पता नहीं
घोर निशा और अन्धकार
क्रोध-लोभ-असत्य बढ़ रहा
अपशकुन खड़ा सभी के द्वार
बदल गई ऋतुओं की चाल
आ ही गया है अब कलिकाल
क्रिया -कर्म उल्टा पुल्टा हो रहा
पापपूर्ण व्यापार बढ़ रहा
है भाई से भाई तनाव में
झगड़ा सभी के सर चढ़ रहा
क्रिया की गति हुई विकराल
आ ही गया है अब कलिकाल
चंचल -चपल बाह रही बयार
घर परिवार में अनबन खार
बड़ों का नहीं रहा सत्कार
धूलि का चारो ओर अम्बार
भाग्यहीन है भूमि का हाल
आ ही गया है अब कलिकाल
भूतों की है भीड़ धरा पर
नदी-तालाब हैं काफी क्षुब्ध
आग लगी है अंतरिक्ष में
माथा नहीं प्रकृति का शुद्ध
मानवता की रक्षा को कौन बनेगा ढाल
आ ही गया है अब कलिकाल
घी से अग्नि नहीं जलती
अब बछड़े दूध नहीं पीते
कोयल मौन साध कर बैठी
घोड़ों की रेस गधे जीते
कुत्तों से बदतर मानव का हाल
आ ही गया है अब कलिकाल
गधा दाहिने, बायें गाय
अंधे रहे राह बतलाय
हंसों को तिनका न मिलता
कौवे मोती चुन -चुन खाय
सबका हाल हुआ बेहाल
आ ही गया है अब कलिकाल
सूर्य, चंद्र के चारो ओर
तारे मचा रहे हैं शोर
ग्रहों -नक्षत्रों की उठापटक से
नहीं लगे किसी का जोर
देशो दिशा में मचा बवाल
आ ही गया है अब कलिकाल
बाघ मिमियाये ,बकरी गुर्राये
ऊंट दहाड़े ,शेर बलबलाये
कोयल रोये कौआ गाये
क्या होगा कुछ समझ न आये
कांटी विहीन कर रहा कमाल
आ ही गया है अब कलिकाल
कांपे पृथ्वी और पहाड़
घास के आगे झुक गये ताड़
उलटफेर कुछ ऐसा है कि
नर्तकी पे भारी पद रहे भांड
सबकी अदला -बदली चाल
आ ही गया है अब कलिकाल
लादी लाड के हाथी जाय
धोबी, घाट खड़ा हबुआय
सूअर द्वारचार को आय
पंडित भाग खड़ा हो जाय
विद्वानों के आगे, मूर्ख बजाते गाल
आ ही गया है अब कलिकाल
एरोप्लेन सड़क पे दौड़े
ट्रेन हवा में उड़ती जाय
वेद -पुराण घूर में फ़ेंक के
पंडित मदिरा -मांस को खाय
चारो तरफ दुष्टों का जाल
आ ही गया है अब कलिकाल
-सुखमंगल सिंह
अवध निवासी
आदरणीय मेरी स्वरचित रचना प्रकाशी करने के लिए हार्दिक धन्यवाद
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