सात चाचा एक भतीजा सात चाचा एक भतीजा Saat Chacha Ek Bhatija किसी गाँव में एक गरीब ,समझदार लड़का रहता था ,जिसका नाम मंगू था। मंगू अपनी माँ के साथ गाँव के आखिरी छोर पर एक टूटी -फूटी झोपड़ी में रहता था। हालाकिं उसके सात चाचा थे और सातों बेहद अमीर थे ,जब मंगू बहुत छोटा था ,तभी उसके पिता मर गए थे।
सात चाचा एक भतीजा
सात चाचा एक भतीजा Saat Chacha Ek Bhatija किसी गाँव में एक गरीब ,समझदार लड़का रहता था ,जिसका नाम मंगू था। मंगू अपनी माँ के साथ गाँव के आखिरी छोर पर एक टूटी -फूटी झोपड़ी में रहता था। हालाकिं उसके सात चाचा थे और सातों बेहद अमीर थे ,जब मंगू बहुत छोटा था ,तभी उसके पिता मर गए थे। इसके बाद उसके सातों चाचाओं ने उसे और उसकी माँ को घर से निकाल दिया। इसके बाद मंगू की माँ ने मेहनत मजदूरी करके मंगू को बड़ा किया। जब मंगू बड़ा हो गया था और जमींदार के खेतों में काम किया करता था।
मंगू के चाचा थे तो अमीर ,लेकिन थे बड़े मूर्ख। जब तब मंगू के घर आकर उस पर रोब गांठते और हर तरह की बेवकूफियां से उसे परेशान करते।लाख चाहने पर भी मंगू उनसे अपना पीछा नहीं छुड़ा पाता।एक दिन बैठे बैठे मंगू के दिमाग में एक बात आई। क्यों न चाचा के धन का फायदा उठाया जाय।अगर मूर्ख के घर में धन दो तो बुद्धिमान क्यों भूखा मरे।
यह सब सोच उसने मन ही मन एक योजना बनायीं। योजना के अनुसार चाचाओं के घर दावत का न्योता भेजा। दावत की बात सुनकर चाचाओं को लालच में आना लाजमी था। न्योता देने वाले दिन जब सातों चाचा मंगू के घर आये ,तो मंगू घर में नहीं था।चाचाओं के पूछने पर माँ ने घर के बाहर बंधे गधे की रस्सी खोलकर कहा ,जा बेटा,भैय्या को खेत पर से जल्दी से बुलाकर ले आओ।
चाचा तो यह बात सुनकर हैरान रह गए क्या गधा यह काम कर सकता है ? दरअसल ,बात कुछ और ही थी। मंगू अगली गली में खड़ा था। जैसे ही उसने गधे को जाता देखा ,उसे रोककर उस पर बैठकर घर वापस आ गया।
चाचाओं ने जब मंगू को वापस लौटते देखा तो उनका मूंह फटा का फटा रह गया। उन्होंने मंगू से कहा उन्हें दस सोने की अशर्फियों में गधा बेच दें ,लेकिन मंगू कहाँ मानने वाले थे।उसने सौ असर्फियाँ की मांग रखी। भला गधे को सौ अशर्फियाँ कौन देगा।आखिर पचास अशर्फियाँ पर मामला तय हो गया। इसके बाद वे बिना दावत खाए घर से निकल पड़े।
घर आते ही बड़े चाचा ने गधे से कहा ,"जा बेटा खेतों से किसी नौकर को बुला ला। इसके बाद उन्होंने गधे को हांक दिया। बस गधा तो भागा तो भागता ही चला गया। बहुत देर तक गधा जब लौटकर नहीं आया तो वे सब उसे खोजने निकले। पर वह तो नौ दो ग्यारह हो गया था। यह देखकर वे गुस्से से आग बबूला हो गए।
इधर मंगू समझ रहा था कि चाचा अब लौटे तब लौटे। उसने दूसरी योजना बनायीं। गुस्से से भरे चाचा को जब मंगू ने आते देखा ,तो वह झूठ मूठ बेहोस हो गया और इसके बाद उसकी माँ छाती पीट -पीटकर रोने लगी। चाचा का गुस्सा यह सब देखकर शांत हो गया। तभी मंगू की माँ रसोई घर से एक लकड़ी लायी और मंगू को सुंघाने लगी। लकड़ी सुघंते ही मंगू होश में आ गया। चाचा ने जब यह करामाती लकड़ी देखी तो उनका मन फिर लालच में आ गया। उन्होंने मंगू से दोबारा सौदा किया और मामला फिर पचास अशर्फियों में तय हो गया।
चाचा तो यही सोच रहे थे कि अब वे लोग दूर दूर तक मशहूर हो जायेंगे। उनकी करामाती लकड़ी सबके रोग दूर कर देगी ,लेकिन दुःख की बात यह थी कि लकड़ी ख़रीदे हुए उन्हें एक हफ्ता हो गया था और उनके घर में क्या आस - पड़ोस में भी कोई बीमार नहीं पड़ रहा था।कई दिन और बीतने पर चाचाओं को चैन न पड़ा। उन्होंने अपने घर के नौकर को खूब पीटा और उसके बेहोश हो जाने के बाद उसे लकड़ी सुंघाने लगे। लेकिन नौकर को कहाँ से होश आता ,मंगू की लकड़ी तो साधारण थी। लकड़ी की करामात न देखकर बड़े चाचा फिर गुस्से से आग बबूला हो गए। गुस्से से भरे फिर वे मंगू के पास पहुंचे। और उसकी खूब पिटाई की। फिर उसे बोरे में बंद करके नदी में डालने के लिए चल पड़े.थोड़ी दूर जाने के बाद चाचा को भूख लगी। सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे उस बोरे को रख खाने की तलाश में चल पड़े. उनके वहां से जाने के बाद संयोगवश बड़े चाचा को मुंह लगा नौकर हरिया वहां से गुजरा। उसने मंगू को कभी देखा तो नहीं था ,लेकिन मंगू को परेशान करने की सारी तरकीबें वहीँ चाचा को सुझाया करता था।चूँकि बोरे में छोटा सा छेद था ,इसी से मंगू बाहर का नज़ारा देख रहा था। उसे हरिया जाता हुए नज़र आया। बस ,उसे तरकीब सूझ आई।
उसने आवाज बदलकर कहा बेटा मैं नदी का प्रेत बोल रहा हूँ। अगर खूब सारा धन कमाना चाहता है ,तो मेरे पास आ. हरिया पहले तो चौंका ,लेकिन पैसों के लालच में वह लौट आया। मंगू फिर बोला ,बेटा इसक लिए तुम आँखें बंद कर लो और फिर पेड़ के पास पड़े हुए बोरे की गाँठ खोलो और उसमें बैठ जाओ। पांच मिनट बाद तुम नदी की सतह में पहुँच जाओगे और वहां रखा अकूत धन तुम्हारा होगा। हरिया ने ठीक वैसा ही किया। मंगू तो अपने घर वापस आ गयाऔर बड़े चाचा ने बोरे को नदी में फेंक दिया। हरिया इस दौरान न तो चिल्लाया न ही कुछ बोला ,उसे तो पैसे चाहिए थे।
कुछ दिनों बाद चाचाओं ने सोचा क्यों मंगू की माँ की हालत देखकर आया जाए। सब मंगू को घर पहुंचे तो हैरान रह गए ,मंगू तो मज़े से बैठा था। चाचा को हैरान देख कर उसने कहा ,बड़े चाचा ,आपने जब मुझे बोरी में बंद करके नदी में फेंका तो नदी के प्रेत ने मुझे थाम लिया ,फिर ढेर सारा धन देकर मुझे विदा कर दिया।यहह सुनकर चाचाओं के मुंह में पानी आ गया।उन्होंने मंगू की फिर खुशामद करनी शुरू कर दी। मंगू ने उन सातों को अलग अलग सात बोरो में बंद किया और नदी में डाल दिया। जिससे दुष्ट चाचाओं का अंत हो गया और मंगू बेफिक्र होकर रहने लगा।
कहानी से शिक्षा -
- किसी गरीब को सताना नहीं चाहिए। उसकी हाय लगती है तो बड़े से बड़े दुष्ट भी समाप्त हो जाता है।
- हमेशा बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए। बुद्धि ,मुसीबतों में भी सहायता करती है।
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