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यदि मैं नेता होता पर निबंध
Essay on If I were A Leader of the Country in Hindi
अजगर करे न चाकरी पंक्षी करे न काम
दास मलूका कह गये सबके दाता राम ।
सचमुच इन नेताओं ने मलूक दास का यह दोहा अवश्य ध्यान से पढ़ा होगा तभी तो ये काम नहीं करते लेकिन साफ सुथरा वस्त्र, मुंह में बनारसी पान दबाये हुये बड़े रोबदाब से समाज में घुमते मिलते हैं । काम भले न करें इनको पैसे की कमी नहीं । इनका कोई काम नहीं रुकता, न घनाभाव इनको खलता है क्योंकि जनता जनार्दन जो तुलसी के सिय-राम है इनके लिये दाता बने खड़े ही रहते है फिर इनको चिन्ता किस बात की । शिरीष के फूल पाठ में इन नेताओं पर विद्वान लेखक ने व्यंग किया है कि ये एक बार कुर्सी पकड़ ले तो छोड़ने का नाम नहीं लेते. चाहे इनके विरुद्ध शिकायतों की आंधी क्यों न उठती रहे । ये तब तक अपने स्थान पर जमें रहते हैं जबतक नये नस्ल के नेताओं द्वारा इन्हें धकिया कर स्थान से हटा नहीं दिया जाता । भला यह भी कोई बात हुई। कुर्सी क्या छोड़ने की वस्तु है, एक बार लालू ने कहा था कि नेताओं को देखकर ही मैं भैंस की पीठ पर बैठना सीखा और अब तो पीठ के स्थान पर कुर्सी मिल गयी है, इसे तो मैं छोड़ने से रहा । ठीक ही बात है - ‘महाजनो येन गतः सपंथा' । हमें अपने पूर्व नेताओं से सीख तो लेनी ही चाहिये ।
नेता स्वार्थ सिद्धि करते हैं
अधिकार के रक्षक एकांकी में एकांकीकार ने आधुनिक नेताओं पर बहुत व्यंग वाण वरसाये हैं उनके कथनी करनी में अन्तर बताया है । भला ये व्यंग वाण इन नेताओं का क्या बिगाड़ सकते ? नेता बनना है तो इन सब वातो को सुनना ही होगा । गान्धी जी के तीन बन्दर बुरा मत देखो, बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो की हमें शिक्षा देते हैं। आज हर व्यक्ति दी गयी शिक्षा का विशेषार्थ अपने अनुसार गढ़ लेता है । इन नेताओं ने भी गढ़ लिया है । ये तो थोड़ा और आगे बढ़ गये हैं । यह अपना कान इसलिये बन्द रखते हैं कि जिस जनता ने उन्हें अपना नेता बनाया है उनकी मांग और दर्द वेदना के शब्द इनके कानों तक पहुंच ही न सकें । आंखे इन्होंने इसलिये बन्द कर लिया है फटी नंगी भुखमरी की शिकार जनता के चेहरे पर फैली वेदना को ये देख न सकें । मुंह तो इन्होंने एक बार खोला ही था जब इन्हें जनता को गुमराह कर अपने पक्ष में लाने के लिये आश्वासनों की रेबडी वांटना था । क्या बार-बार मुंह खोलना ठीक है ? अत : नेता बनते, पदं पाते, इन्होंने अपना मुंह बन्द कर लिया है । फिर भी इन नेताओं से मुझे प्रेम है । कभी-कभी सज्जन, जनसेवक मानवतावादी व्यक्तियों के विरुद्ध ये अपने स्वार्थ सिद्धि के लिये अभियान छेड़ देते हैं । कारण व्यक्ति को अपना चरित्र ही दूसरों में दिखायी पड़ता है । उनके विरुद्ध ये अपनी दुर्भावनाओं को व्यक्त करने के लिए हर हथकंडे अपनाते हैं । मूक जनता उसे देखती है और जब सत्य से जनता का साक्षात्कार होता है तो जनता ऐसे नेताओं के चरित्र से परिचित हो जाती है । ये नेता न तो शिक्षानुरागी होते हैं न मानवीय गुणों से ही युक्त, अपने कलंकित चरित्र की छाया उन्हें सर्वत्र फैली हुई दिखायी देती हैं । मैंने ऊपर कहा है कि 'नेता' शब्द से मुझे प्रेम है इसलिये नहीं कि आज के नेताओं के तरह इसके द्वारा अपने स्वार्थ की सिद्धि होती है अपितु कुछ महान जन नेताओं के आदर्श चरित्र को पढ़कर मुझे इस शब्द से प्रेम हो गया है ।
समाज में नवचेतना
'नेताजी' नाम से तो एक ही व्यक्ति आज तक श्रद्धा से याद किया जाता है और वे हैं नेताजी सुभास चन्द बोस।गान्धी भी नेता थे, हां, वे नेता के साथ संत भी थे।लाल बहादा शास्त्री जी नेता थे । इसी तरह के नेता कभी कबीर और तुलसी भी थे । मैं भी नेता बनना चाहता हूँ।देश समाज और जनता की सेवा करने के लिये मैं नेता बनना चाहता हूँ | नेता का अपना कोई घर नहीं होता, अपना कोई परिवार नहीं होता । सम्पर्क सेसार ही उसका घर होता है और सम्पूर्ण मानव ही उसका परिवार।वसुधैव कुटुम्बकम् उसका भाव होता है और सभा सुखिनः' उसका ध्येय और प्रेय । नेता का धर्म मानव धर्म होता है और मानवता का विकास उसका कर्म । जाति पांति के भावों के मिटाकर सबमें एक दूसरे के प्रति सौहार्द्ध उत्पन्न करने के लिये वह सदैव कार्यरत रहता है । जनजागरण द्वारा समाज की कुरीतियों का विनाश करना और समाज में नव चेतना फैलाना ही नेता का कार्य है । समाजिक एकता, सामाजिक सदभावना वह कार्य करता है ।
जनजन में देशप्रेम का भाव भरता, दूसरे के प्रति सहयोगी भाव रखना, दूसरों के दु:ख दर्द को अपना द:ख दर्द समझना, परोपकार के लिये कार्य करना आदि भाव मानव समाज में उत्पन्न कर संसार के सुन्दर बनाना ही नेता का कार्य है। अनाचार अत्याचार. व्यभिचार शोषण, उत्पीड़न के विरुद्ध संघर्ष करना नेता का कार्य है और इनके विरुद्ध जनमा करन कलिये ही वह जीवन जीता है।नेता का जीवन लोक कल्याण के लिये समर्पित होता है और लोक होता है उसके लिये 'स्व' का महत्व नहीं होता है. वह परोपकार, पर सेवा, पर दुःख कातरता को महत्व देता है।समाज और देश को तोड़ना नहीं जोडना वह जानता है। जन-जन में त्याग और वलिदान का भाव भरना उसका कर्म है अगर मैं नेता होता तो निश्चय ही उपरोक्त गणों को अपने में सच्चे अर्थों में नेता बनने का प्रयास करता।आज देश के सामने जातिवाद एक भयावह खडा है ।देश की एकता के लिये यह सबसे अधिक वाधक है।धर्म की गलत व्याख्या करके धार्मिक उन्माद की स्थिति उत्पन्न कर दी गयी है।
आतंकवादी गतिविधियां देश के विकास में बाधक बनी हुई है ।देश के धनजन की व बना हुई है । अगर मैं नेता होता तो अपने दिनरात के प्रयत्न द्वारा इनके विरुद्ध जनजागरण करता और देश की जनता को इनके दुष्प्रभाव से अवगत करवाता।उसी नेता का जनता विश्वास करती है जिसका चरित्र-आदर्श चरित्र हो, सादा जीवन उच्च विचार भारत की जीवन धारा है ।नेता बनने के पहले अपने आदर्श चरित्र हो, जनप्रिय होने का भी मैं प्रयत्न करता एवं नेता बनकर इन गुणों से जनता को भी प्रेरित करता।समन्वयवादी दृष्टिकोण के कारण ही तुलसी जननायक कहलाये । नेता बनने के लिये यह गुण अत्यावश्यक है नेता के रुप में अगर एक तरफ कबीर के खंडन मंडन की शैली अपनाता तो दूसरी तरफ मेरा दृष्टिकोण समन्वयवादी भी होता । यह भी सत्य है कि एक नेता अपने कर्मो से सबको खुश नहीं कर सकता तो इस क्षेत्र में गान्धी का बहुजनहिताय, बहुजनसुखाय आदर्श ही हमारा आदर्श होता । नेता को तो कपास के समान होना चाहिए- "जे सहि दुःख पर छिद्र दुरावा"।
जनता की सेवा
मैं भी कपास के समान दुसरे के दुःख को सहकर उसे सुख पहुँचाने का प्रयत्न करता । नेता का काम जनता को उसके अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान भी कराना है । धर्म निरपेक्षता का वास्तविक अर्थ भी बताना है | मानव धर्म का उसे बोध भी कराना है तथा जनता में कर्मठता और सहकारिता का भाव भी उत्पन्न करना है अगर मैं नेता होता तो जन-जन में यह भाव अवश्य उत्पन्न करता जीवन का लक्ष्य स्वर्ग नही है अपितु दुःखीजनो की सेवा करना है । पतितो को उठाना, दलितो को सहारा देना, भूखो को रोटी और नंगो को वस्त्र देना । आश्रयहीनो को आश्रय देना है, मानव की सेवा, मानवता का विकास ही सच्चा नेतृत्व भाव है-स्नेह सिंचित न्याय पर विश्व का निर्माण ही हमारा लक्ष्य होता, अगर मैं नेता होता । मानव समन्वय से ही इस लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है-हम नेता के धर्म के रूप में जयशंकर की ये उक्तियाँ उद्धृत कर सकते हैं -
"शक्ति के विद्युत कण जो व्यस्त विकल विखरे हैं हो निरुपाय ।
समन्वय उनका करें समस्त, विजयिनी मानवता हो जाय ।।"
Yadi aap ko koi sammanit path mil jata h to aap desh ke liye kya karenge
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