मनुस्मृति और संविधान manusmriti samvidhan मनुस्मृति और संविधान संविधान दिवस 26 नवंबर 1949 को अंगीकार किया गया,इसलिए संविधान 26 नवंबर को दिवस मनाया जाता है, जबकि मनुस्मृति के निर्माण कार्य का सटीक रूप से कोई पता नहीं हालांकि ऐसा सुनने में आया है कि महाभारत और वाल्मीकि रामायण में इसका उल्लेख मिलता है ।
मनुस्मृति और संविधान
मनुस्मृति और संविधान manusmriti samvidhan संविधान दिवस 26 नवंबर 1949 को अंगीकार किया गया,इसलिए संविधान 26 नवंबर को दिवस मनाया जाता है, जबकि मनुस्मृति के निर्माण कार्य का सटीक रूप से कोई पता नहीं हालांकि ऐसा सुनने में आया है कि महाभारत और वाल्मीकि रामायण में इसका उल्लेख मिलता है ।
मनु भी कई हुए हैं अतः किनके जीवन काल में इसकी रचना हुई है इसकी सही प्रमाण और सटीक व्याख्या संभव नहीं लगता हालांकि यह जरूर है कि मनुस्मृति का पहला ग्रंथ 1820 के आसपास कोलकाता में प्रकाशित हुआ था।
मनुस्मृति और संविधान |
तुलनात्मक रूप से संविधान 19वीं सती का है और यह सर्वविदित है कि न यह इतिहास है बल्कि केवल और केवल यह विधि का आधुनिक दस्तावेज है। यह यह ऐसा दस्तावेज है जो अपने आप में पूर्ण नहीं है और इसकी पूर्व वर्ती जितनी भी विधियां हैं वह सब इसमें लागू कर दी जैसे आईपीसी ,सीआरपीसी ,एविडेंस एक्ट अर्थात जो कानून अंग्रेजो ने बनाए उनको जारी रखने का भी प्रावधान इसमें है (संदर्भ:भारत का संविधान,दुर्गा दास बसु ) ।यह ध्यान में रखें कि यह कोई इतिहास का दस्तावेज नहीं है। नहीं पूर्व विधियों की इस विधि से तुलना करें और न हीं यह ठीक रहेगा ।इसे किसी भी दृष्टि से जीवन के सम्यक अंगों का प्रमाण कैसे माना जाए? इसमें भी खामियां हैं और यह संशोधन के लिए खुला हुआ है।
कोई भी कितना भी विद्वान क्यों न हो वह अपनी बात दूसरे पर थोप नहीं सकता और न यह कह सकता है कि केवल उसके शब्दों लिखित अथवा बोले हुए को ही प्रमाण माना जाए। मसलन तुलसीदास जी ने स्त्रियों के प्रति जो भी विचार रखा समाज के सम्मुख वह स्वयं प्रेरित था यह जरूरी नहीं था कि तुलसीदास जी जैसा ही अनुभव तत्कालीन बहुसंख्यक समाज को भी हुआ होगा।
आज जिस युग में हम रह रहे हैं उसमें प्रमुख चीज डॉक्यूमेंटेशन की है कि डॉक्यूमेंटेशन ठीक-ठाक है जबकि स्मृति और श्रुति गुरु शिष्य परंपरा की देन है तब ऐसा कोई इंवेंशन नहीं हुआ था कि काक्स्टन का प्रिंटिंग प्रेस हो आदि आदि।
उ. प्र . प्रदूषण नियंत्रण पर कार्यशाला
2 दिसम्बर को अलीगढ़ मंडल के मंडलायुक्त के सभा कक्ष में भोपाल गैस त्रासदी को याद करते हुए प्रदूषण दिवस पर एक कार्यशाला प्रदूषण नियंत्रण पर आयोजित की गई उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और सामाजिक संस्था आहुति द्वारा श्री अशोक चौधरी एवं श्री रामगोपाल क्षेत्रीय अधिकारी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की देखरेख में कार्यशाला आयोजित की गई मंच पर अध्यक्ष अलीगढ़ मंडल के आयुक्त एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड लखनऊ के श्री मिश्रा जी डॉक्टर राजेंद्र सिंह डॉक्टर रामस्वरूप मंच पर विराजमान थे।
आयुक्त श्री अजयदीप सिंह जी ने इस कार्यशाला में प्रमुखता से बताया कि प्रदूषण नियंत्रण के हरसंभव उपाय किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि मनु कौन है,मनु वह व्यक्ति है जिसने अपने मन पर विजय प्राप्त कर ली ,जिसने मन पर विजय प्राप्त कर ली है , वह असामाजिक काम नहीं करेगा।इसके लिए उन्होंने तीन प्रमुख बातें कहीं, ऋग्वेद में मनोभव है , वही है कि हम समाज के हित में ही कार्य करें( जैसा के मुक्तिबोध ने कहा था कि केवल समाज से , ....लिया ही लिया दिया कुछ भी नहीं ,तो हम जिस समाज से ग्रहण करते हो उसे देने के लिए भी तत्पर होना चाहिए और दूसरा जिसका सत्य वस्त्र और आभूषण हो , सत्यवादी हो और तीसरे मन कलुषित ना हो, मन निर्मल हो , चिंतन शुद्धा व सरल हो , तो भला उसका यह कलयुग क्या बिगाड़ सकता है ।
वस्तुतः विचार तो हम बहुत अच्छे-अच्छे रखते हैं , लेकिन जब व्यवहार रूप में उन्हें बदलने की बात आती है तो वही समस्या आन खड़ी होती है ।व्यवहार में वह विचार न अच्छे सोच पाते हैं और न अच्छे आचरण कर पाते हैं और उनका व्यवहार में लाना तो अत्यंत कठिन हो जाता है।
जैसा की अंग्रेजी कवि टेनिसन ने कहा कि ओल्ड आर्डर चेन्जेथ ईल्डिंगप्लेस टू न्यू , गॉड फुल फील्स हिमसेल्फ इन मैंने वेज,समय पर जो चीज हो जाए वही सही है।आज के समय को 11 वीं शताब्दी के साथ नहीं बदला जा सकता और 11वीं शताब्दी का वस्तुमान आज लागू नहीं हो सकता।
संविधान में लिखी हुई सब बातें हैं खरी नहीं, उसी प्रकार मनुस्मृति में लिखी हुई भी सब बातें खरी नहीं । जैसे स्त्रियों के प्रति उसमें जो भेदभाव किया गया है उसे कोई भी सभ्य समाज स्वीकार नहीं करेगा । निहित स्वार्थीओ के भी ग्रुप हुआ करते हैं और हितों के टकराव पर एक ग्रुप दूसरे ग्रुप को अस्वीकार करता है उसके विचारों को अस्वीकार करता है यहां तक कि हिंसक विचार उपजते है उनके कार्य रूप में परिणत होने पर रक्तपात भी हो जाता है।
कानून के संबंध में भी कानून के संबंध में भी हम ही हम पाते हैं कि मुख्यतः तीन प्रकार के कानून है:
एक विधि सम्मत वह कानून जो वर्तमान में लागू
- रीति रिवाज अर्थात Laws of Land
- तीसरे प्राकृतिक न्याय
- और चौथे
इसी क्रम में, जो भी पद है वह भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं जैसे मेडिकल पद, मिलिट्री पद , जुडिशल पद , शैक्षिक पद और इनकी प्रकृति भी भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है आप पाएंगे के उपरोक्त चारों प्रकार के कानून हैं,कानून कॉमन सेंस कोडिफाइड है।इंग्लेंड में तो लिखित संविधान भी नहीं और परंपरागत इंग्लिश लौ , लागू है , फिर भी काम एकदम फिट तरीके से चल रहा है।
वहाँ पहली प्राथमिकता देश को है ,हमारे यहां इतनी जटिलताएं हैं कि उनको ही हम पहली प्रार्हमिकता जैसा मान बैठे हैं ।और प्रशासनिक पद भी उच्च स्तर पर सेमी जुडिशल पद हो जाता है मैं आपको याद भर दिला रहा हूं कि विभाग का उच्च अधिकारी जो सीसीए रूल्स में अनुशासनिक अधिकारी भी है अपील अधिकारी भी है वह उस एक्ट के तहत ,विभागीय जांच कानून के तहत आरोपी को आरोप सिद्धा होने पर जांच कराकर या अत्यंत गंभीर स्थिति में बिना जांच के भी ,को सजा दे सकता है और वह सजा नौकरी से बर्खास्त की भी हो सकती है यह सेमी - जुडिशल पद की ही निशानी है ।
मनुस्मृति के समकालीन ग्रंथों में जैसे प्लेटो का रिपब्लिक उसमें भी समाज में चार वर्णों की व्यवस्था बताई गई है।वस्तुतः मिल्टन और अल्लामा इकबाल ऐसे कवि हुए हैं जिन्होंने पहले एक पुस्तक लिखी जिसके कारण उनको सार्वजनिक आलोचना सहनी पड़ी , इसके बाद उन्होंने उसी कृति के क्रम में दूसरी पूरक पुस्तक लिखी तब उसी समाज ने उन्हें सर आंखों पर बिठाया।
उस समय के कुछ शिष्यों ने प्रमुख सिद्धांतों के विपरीत बात कही, गैलीलियो ने भी सर्वाधिक विपरीत बात कही। ऐसे ही सुकरात के विचारों के विपरीत अरस्तु ने अपना विचार रखा , तो यह नई बात नहीं है। एक रूप से यह कह सकते हैं कि प्रमुख मान्यताओं के विपरीत गुरुओं की बात को मार्गदर्शक मंडल में डाला जाता रहा है।
संपर्क - क्षेत्रपाल शर्मा
म.सं 19/17 शांतिपुरम, सासनी गेट ,आगरा रोड अलीगढ 202001
मो 9411858774 ( kpsharma05@gmail.com )
bahut hi badhiya Lekh likha hai apne. Dhanyawad
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