शूर्पणखा का अगाध प्रेम शूर्पनखा का अगाध प्रेम - रावण का विनाश सजी धजी लखन समक्ष जा पहुंची जब लंकिनी प्रणव -प्रयास लिए उसने अति खुश दिखी डंकिनी | यह संयोग कहा जा सकता भक्तिरूपा -वैरागी को छोड़ सीधे पहुंची ब्रह्म के पास अहंकार ने मिला विनाश |
शूर्पणखा का अगाध प्रेम - रावण का विनाश
सजी धजी लखन समक्ष
जा पहुंची जब लंकिनी
प्रणव -प्रयास लिए उसने
अति खुश दिखी डंकिनी |
यह संयोग कहा जा सकता
भक्तिरूपा -वैरागी को छोड़
सीधे पहुंची ब्रह्म के पास
अहंकार ने मिला विनाश |
इच्छा पूरी हो जाएगी
ऐसी की कामना सुंदरी
प्रणव -प्रयास लिए पास
अतिशय खुश नंदनी |
रूप की मलिका बन कर आयी
राम रूप औ सिय छवि दिखायी
ब्यर्थ मनहिं मन गाल बजायी
उपमा सकल वरनि नहीं जायी |
फिर प्रणव प्रस्ताव लखन से कींन
तब शेषावतार ने उसे उत्तर दीन
हो यद्यपि अति सुन्दर -सुकुमारि
और देखन में एक पूरी तू नारि !
है तेरा रूप -भेष वैभव भी नीक
औ चंचल चितवन सुभग शरीर
लेकिन मैं तो हूँ उनका दासा
सुंदरी सुनो तुम प्रेम पिपासा |
रावण का विनाश |
मेरी पूरी होती उनसे आशा
प्रभु समर्थ कोसलपुर राजा
पराधीन मैं सेवक, नहिं राजा
करिहैं वही सब कुछ काजा |
जीवन साथी गर तुम्हें बनाया
सुख-संपत्ति ,नहीं अपनाया
वही समर्थ हैं राज कुमारी
प्रभु समक्ष जाओ सुकुमारी |
सेवक सुख चाहे मानो भिखारी
व्यसन का धन में व्यभिचारी
लोभी को चढ़ जात है गुमान
जैसे अम्बर से दूध चाहे प्राणी |
सुख सेवक की इच्छा नाहीं
पूरी होती ना यहीं कहानी
सेवक की बस एक ही इच्छा
मालिक की सेवा औ भिक्षा |
भिखारी सोचे समाज से सम्मान
समझ लो उसमें भरा है गुमान
उसे सदा समाज धिक्कारता जान
उठाना पड़ता है उसको अपमान |
व्यसनी इच्छा कभी पूरी नही होती
नशा की आदत सर्वदा अधूरी होती
कुबेर का खजाना भी खाली हो जाता
नशातल में अपना सब कुछ लुटाता |
शास्त्र भी व्यभिचार को पाप ही माना
सद्गति से ब्रह्म चारी को ऊपर माना
जो पुरुष अवैध सम्बन्ध को बनाता
उसका अपना अंत भी बुरा ही है पाता |
जब उसकी गुप्त बातें समाज में आती
भयंकर पीड़ाओं से तब वह घबराता
जो अपनी पत्नी -प्रति वफादारी निभाता
उसी का सुखमय जीवन जग में हो पाता|
लालची की लालसा धन की होती
यश-इक्षा उसकी पूरी नहीं होती
घर -परिवार-मित्रों से दूर रहता
धन की कामना में वह सदा बहता |
अपनी पूर्ति मे अहित की करता कामना
वह सदा यश से दूर की करता साधना
यश-मान की कामना स्वप्न सा मानना
लोभी को चाहिये इतना जरूर जानना |
उसकी दूसरों को तुच्छ समझना
घमंड की ही होती उसमे धारणा
दूसरों को जो कुछ नहीं जानते
वह स्वयं को ही श्रेष्ठ हैं मानते-
काम-मोक्ष,धर्म-अर्थ -फल पाना
ऐसे लोगों की बढ़ी धारणा
शास्त्र ऐसे को घमंडी है कहता
नाश-विनाश उसके सर चढ़ा |
रावण और कंस भी थे अभिमानी
विनाश हो गया ,राज-पाट-राजधानी
जब लखन ने यह बचन उसे सुनाया
पुनि राम से प्रणव प्रस्ताव को धाई|
नीति-रीति सुन काखन लाल की
शूर्पनखा ने पुनि किया विचार
त्याग कर अपने चाव भाव को
पहुची प्रभु श्री राम से करने बात |
फिर वैसा ही प्रणव -प्रस्ताव प्रसंग
राम जी को अपने मन की सुनायी
उसकी भाषा और भाव समझ कर
प्रभु ने सादी सुदा, खुद को समझाये
यह सब कहकर भगवान राम ने
जब वापस उसको भेजना चाहा
बात बनती नहीं देखा तो वह
राक्षसी का अपना वही रूप बनाया |
बना भयंकर रूप बनाकर शूर्पनखा
जगत जननी जानकी को डसने दौड़ी
सहनशील प्रभु राम रीति -नीति ने
गलत इरादे नाक-कान काटवा डाली |
पूर्व जन्म में शूर्पणखा
नयनतारा इंद्र लोक की
उर्वसी -रम्भा व मेनका में
नयनतारा का था मान |
सभा मध्य नयन मार इंद्र से
प्रेयसी उनकी बनी सुजान
तापसी वज्रा का तप भंग करने
इंद्र उसे भेजे भूलोक उस धाम |
ऋषि का तप भंग किया पर
वज्रा ने शापित किया उसे
घबराकर नयना ने ऋषि पद
पर सर अपना पटक दिया
क्षमा -याचना के बल से
ऋषि ने उसे वरद दिया
राक्षस जन्म में ही उसको
प्रभु दर्शन सौभागत मिला |
प्रभु का दर्शन पाकर मैं तो
उनको पा लूँगी ,ऐसी ठानी
उसने नयना वाली रूप बनाकर
राम -लखन के पास जो जानी |
अहंकार में राम को साधी
तुम सम कोई पुरुष न, बोली
मुझ सम न दूजी नारि ,अकेली
प्रणव -प्रसंग, ब्रह्म से नवेली |
नाक-कान जब लखन ने काटा
मिला ज्ञान और बढ़ा पिपासा
प्रभु प्राप्ति की लेकर मन आशा
पुष्कर जी में खड़े 'शिव' साधा |
जब वर्षों बीत गया तप को
भगवान शिव दर्शन देने आये
दर्शन पा धन्य हुयी शूर्पणखा
शिव शंकर से तब वह वर पायी |
द्वापर में राम का कृष्णावतार होगा
कुब्जा, पत्नी रूप सुख निखार होगा
कूबड़ पर जब क्रीं का पाँव होगा तो
नयनतारा मनमोहक तेरा रूप मिलेगा |
-सुखमंगल सिंह ,
अवध निवासी
हिन्दीकुंज॰ काँम प्रवंध्न के प्रति आभार व्यक्त करते हुये पाठकों को अपनी मुक्त छंद रचना से इतिहास
जवाब देंहटाएंके प्रति जाग्रत करने का छोटा प्रयास मात्र !