फिरोजा वीरमदेव एक सच्ची प्रेम कथा viramdev firoza love story दबे हुए परिवेश बताकर ये बतलाने आया हूं। सोए हुए इतिहास के पन्ने फिर से पलटने आया हूं। आज मै आपको सोनगढ़ ले चलता हूं,जो सिंहो की भूमि है। वहां का कण_ कण, पत्ता_ पत्ता एक ही प्रेम कहानी कहती हैं 'फिरोजा वीरमदेव' की प्रेम कहानी।
फिरोजा वीरमदेव एक सच्ची प्रेम कथा
दबे हुए परिवेश बताकर
ये बतलाने आया हूं।
सोए हुए इतिहास के पन्ने
फिर से पलटने आया हूं।
आज मै आपको सोनगढ़ ले चलता हूं,जो सिंहो की भूमि है। वहां का कण_ कण, पत्ता_ पत्ता एक ही प्रेम कहानी कहती हैं 'फिरोजा वीरमदेव' की प्रेम कहानी।
जो की सदैव महान योद्धा थे, साथ_ साथ में एक कुशल राजकुमार भी थे तथा मल्ल_ युद्ध तो इतना खेलती थी कि मानव कहीं शेर सियारों का शिकार कर रहा हो।
"उस माटी का वंदन करता
जिस माता का नंदन है।
वहां का कण-कण धूल भी कहता
वह माटी भी चंदन है।"
एक बार वीरमदेव सल्तनत दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में गए, वो अपना कर लेकर गए थे। तब सुल्तान ने एक परीक्षा लेनी चाही, उसने किवाड़ को नीचे की ओर कर दिया ताकि वीरमदेव आकर झुक कर आए तथा मुझसे सलाम करें लेकिन वीरमदेव सच्चे क्षत्रिय थे, वे सीना तान कर सीधे चले।
अल्लादीन ने पूछा कि इतनी कठिनाई के बाद भी तुम सीना तानकर कैसे आए? तुम्हें हमारा खौफ नहीं लगा, तो वीरमदेव ने उत्तर दिया -
"वीर मर जाते हैं
लेकिन झुका नहीं करते।
जंगल में देखो शेर को
शेर मर जाते हैं,
लेकिन घास नहीं खाते।"
खिलजी ने कहा - ' इतना गुरुर अच्छा नहीं होता'
वीरमदेव ने उत्तर दिया_यह गुरुर नहीं बल्कि हमारा सरुर है।
खिलजी हैरत में पड़ गया, उसने कहा कि अगर तुझमें इतना साहस है तो मेरे इस गुलाम हजार दिनारी को हरा के दिखाओ। जो कभी अखाड़े में हारा नहीं है।
हजार दीनारी और वीरमदेव आमने-सामने मानो एक जंगल में शेरों का युद्ध हो रहा हो।
फिरोजा वीरमदेव |
हजार दिनारी -देखा कहीं मदमस्त हाथी को मसल कर रख देता है।,
वीरमदेव - 'सही कहा तुमने, लेकिन कभी-कभी एक छोटी सी चींटी भी उसको धराशाई कर देती है, हम तो वह पृथ्वीराज चौहान के प्रेमी हैं जो मोहम्मद गौरी के राज्य में जाकर उसको ढेर कर देते हैं।
(एक महान मल्ल_ युद्ध हुआ और सोनगढ़ का राजकुमार मानों मृगेंद्र की भांति वहां के जीवो पर भारी पड़ गया हो)
वहां पर मौजूद उन सभी में एक सुंदर सी मृगनयनी जैसी तथा जिसका कमर मुर्गी की तरह तथा होंठ मानो कमल की तरह, जिसका नाम फिरोजा था जो अलाउद्दीन खिलजी की बेटी थी। वो तो वीरमदेव को देखकर, इस प्रकार पागल हो गई मानों कि कमुदनी के पुष्प को लाने में वहां पर अधिक से अधिक घड़ियाल बैठे हैं, लेकिन उसको लाना जरूर है_
"सोनगढ़ का बंकरो
क्षत्रिय जोश अपार।
फिरोजा के तन _मन में बसे
वीरम की तलवार।"
वीरमदेव इजाजत मांग कर अपने राज्य लौट गए, तब फिरोजा ने अपने पिता से कहा कि_"अब्बा जान जो मै आपसे मांगूगी वह मुझे आप जरूर देंगे।
अलाउद्दीन ने कहा_"एक बार मांग कर तो देखो, पूरे हिंदुस्तान के राजकुमारों का सर तुम्हारे चरणों में रख दूं।
फिरोजा ने कहा_"मुझे केवल सोनगढ़ चाहिए।
(अलाउद्दीन खिलजी हजार दिनारी को कहता है)
हजार दिनारी सोनगढ़ राजकुमारी के चरणों में रख दो।
फिरोजा ने कहा_'नहीं अब्बा जान मुझे केवल सोनगढ़ का राजकुमार चाहिए जो मेरे दिल में ऐसा छप गया है कि जैसे हाथों की लकीरें धूल भी लग जाए तो भी इस जाती है।
अलाउद्दीन खिलजी_'ऐसा संभव नहीं है, तुम हमसे कुछ भी मांग लो लेकिन ये नहीं दे सकते।
फिरोजा_"शादी करूंगी तो वीरमदेव से करूंगी नहीं तो कुंवारी मर जाऊंगी।
अलाउद्दीन खिलजी_"ठीक है हम तुम्हारी ख्वाहिश जरुर पूरी करेंगे।
(अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सिपाही को आदेश दिया कि, तुम सोनगढ़ जाओ तथा हमारा हुकुम वीरमदेव से कहो कि तुम्हें हम अपना दामाद बनाना चाहते हैं बड़े-बड़े उपहार ले जाओ। )
अचानक सोनगढ़ के राजा की मृत्यु हो गई तथा राजकुमार वीरमदेव राजा बन गए।
उनके दरबार में खिलजी का राजदूत आया और उसने अपना संदेश राजा को सुनाया उसमें यह लिखा था कि राजकुमारी फिरोजा आपसे बहुत ही प्यार करती है और हम तुम्हें अपना दमाद बनाना चाहते हैं।
राजा वीरमदेव ने उत्तर दिया_
"सात दिनों तक चींटी जिवे
बीस बरस को सियार।
कोटी बरस को धरती आए
सुंदर चली बयार।
मर_मर को जो क्षत्रिय जीवे
जीवन को धिक्कार।"
राजदूत_"यह तो तुम्हारा भाग्य है कि हमारी राजकुमारी ने तुम्हें अपना हमदम माना है लेकिन अगर तुमने कुबूल नहीं किया तो यहां कयामत आ जाएगी।
वीरमदेव_"तुम्हारा अभिमान है तो हमारी तरफ से भी जंग का ऐलान है।"
(जंग छिड़ गया और लगभग 8 वर्षों तक यह युद्ध हुआ इसमें कई योद्धा मारे गए तथा वीरमदेव भी वीरगति को प्राप्त हुए वहां उपस्थित फिरोजा की दोस्त रुखसार वीरमदेव के मस्तक को फिरोजा के पास लाई)
फिरोजा ने उनके मस्तक को देखा तथा उसको सजाया फिर उस मस्तक से कहा_
"कोई बात नहीं, तुम्हारे शरीर में
ठाकुर का खून है।
पर मेरे दिल में भी
सच्चे इश्क का जुनून है।"
(फिरोजा ने कहा कि मैंने अपने आपको वचन दिया था कि शादी करूंगी तो वीरमदेव से नहीं तो कुंवारी मर जाऊंगी और वो तो मैं जरूर करूंगी।)
फिरोजा वीरमदेव के मस्तक को ले जाकर तथा सुहागन के वस्त्र धारण कर नदी में समा गई।
- नरेंद्र भाकुनी
मेरी कहानी को प्रकाशित करने का आपका कोटि कोटि धन्यवाद
जवाब देंहटाएंPuri kahani thik se nahi batai , viramdev ka dhad bhi firoza se muh fer leta hai or vo us dhad k sath vo sati ho jati hai
जवाब देंहटाएंसत्य
जवाब देंहटाएंइस कहानी में आधी सत्यता हैं, पूरी कहानी बताते तो ठीक रहते, धाय माता गुल मिहिश्त के बारे में भी बताते , वीरमदेव का वो लोक प्रसिद्ध दोहा भी सुनाते
जवाब देंहटाएं"मामा लाजूं भाटियां, कुल लाजूं चौहान,
जै मैं परणीजू तुर्कणी , तो उल्टो ऊगे भाण"
ये भी बताते कि खिलजी ने विवाह के लिये इसलिये मना किया था कि उसे हिंदू धर्म से ्िवाह नहीं रचाना था." बहुत सी बातें और भी हैं जो आपने नहीं बताई, एसे आधी - अधूरी बातें ना ही बतायें तो बेहतर होगा
Aapne kafi kuchha thik likha itihas to kalpnik h uska andaja lgaya ja skta h likhin aapne biram dev ke pita kanddev ka itihas shi nhi btaya jalor ka saka bhi ni btaya thoda sudhar kro to kahani aachi hogi
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