छत्तीसगढ़ में प्रारंभ से ही तंत्र-मंत्र का बोलबाला रहा है । इसका मुख्य कारण यह प्रतीत होता है कि यहाँ समय-समय पर विभिन्न प्रकार की जातियों का आगमन होता रहा है । संस्कृतियों को आत्मसात भी किया जाता रहा है, फिर भी उनका झुकाव जादू-टोने से दूर न हो सका।
छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति में जादू-टोना,टोटका एवं बैगा
छत्तीसगढ़़ को दण्डकारण्य, कोशल, महाकोशल, दक्षिण कोशल आदि नामों से जाना जाता है । यहाँ की संस्कृति अत्यंत प्राचीन हैं जिसमें आदिम सभ्यता का अवशेष आज भी सुरक्षित है।इस दृष्टि से यहाँ की लोकजीवन व संस्कृति अत्यंत महत्वपूर्ण है ।
संस्कृति शब्द - सम् उपसर्ग के साथ संस्कृत की (ङ) कृ (ञ्) से बना है, जिसका अर्थ साफ, सुधरी अर्थात् सुधरी हुई जाति है । संस्कार-सम्पन्नता से समाज सुसंस्कृत होता है । इस तरह संस्कार से संस्कृति का सीधा सम्बंध है । इसके अन्तर्गत रहन-सहन, खान-पान, आचार- व्यवहार, रीति- रिवाज, पर्व त्यौहार, उत्सव, मेले, व्रत, कला व जीवन के वह समस्त क्रियाकलाप सम्मिलित हैं, जिसमें जीवन सुधरता और संवरता है । लोक का सम्बंध जहाँ लोक जीवन से है, वहीं शिष्ट का सम्बंध, विशिष्ट जन या सभ्यता से है।
डाॅ0 बलदेव प्रसाद मिश्र ने लिखा है:- ‘‘ छत्तीसगढ़ का लोकजीवन आदिकाल से ही शिक्षा और सभ्यता का केन्द्र रहा है, फिर भी यहाँ के संस्कार, कला, संस्कृति का स्त्रोत निरंतर प्रवाहमान रहा, इसके बावजूद छत्तीसगढ़ी संस्कृति की आत्मा गाँवों में सुरक्षित रही है ।’’
छत्तीसगढ़ में जादू-टोना:- छत्तीसगढ़ में प्रारंभ से ही तंत्र-मंत्र का बोलबाला रहा है । इसका मुख्य कारण यह प्रतीत होता है कि यहाँ समय-समय पर विभिन्न प्रकार की जातियों का आगमन होता रहा है । संस्कृतियों को आत्मसात भी किया जाता रहा है, फिर भी उनका झुकाव जादू-टोने से दूर न हो सका। इसी संदर्भ में डाॅ0 पालेश्वर शर्मा का यह कथन समीचीन जान पड़ता है ‘‘ छत्तीसगढ़ तांत्रिकाओं का गढ़ रहा है, इसलिए प्रत्येक शुभ और महत्वपूर्ण कार्य के आरंभ में तंत्र-मंत्र, पूजा-अर्चना जुड़ी हुई है । यहाँ नर-नारी जानवर या पेड़ ही नहीं कुएँ, तालाबों की विवाह भी प्रचलित हैं । ’’
जादू-टोना, टोटका की उपज ‘‘अंधविश्वास’’
अंधविश्वास का तात्पर्य है ‘‘अंधाविश्वास’’। किसी भी बात की सत्यता, सच्चाई को जाने बिना किसी तर्क, परीक्षण व मूल्याँकन को उसको उसी रूप में मान लेना, जैसा दूसरे मानते आये हैं या मानते रहे हो । अंधविश्वास ईश्वर के प्रति अनास्था का ही परिणाम है । जब कभी अंधविश्वास की चर्चा होती है या विचार चलता है तो समझ आता है कि यह अज्ञानग्रस्त, अशिक्षित, भावुक लोगों में पाई जाने वाली प्रवृत्ति है परन्तु जब शिक्षा का प्रसार हुआ, लोग शिक्षित हुए और बुध्दिजीवियों की संख्या भी बढ़ी है, तो अंधविश्वास की घटनाओं में कमी आनी चाहिए थी लेकिन प्रायः कई अवसरों पर देखा जाता है, प्रबुध्द एवं बुद्धिजीवी कहे जाने वाले तर्क और विचारशीलता की दुनिया में जीने वाले व्यक्ति भी किसी के छींक देने, कुत्तों के कान फड़-फड़ा देने, बिल्ली के रास्ता काट देने, खाली घड़ा रास्ते में दिख जाने, शनिवार को कोई शुभ कार्य न करने आदि नानाविध अंधविश्वासों पर विश्वास करके आवश्यक कार्य के लिए भी जाना छोड़ देते हैं।
प्राकृतिक घटनाओं के पीछे अपने कार्यों की सफलता या असफलता से संबंध जोड़ने की प्रवृत्ति सामान्य श्रेणी के व्यक्तियों में पाई जाए तो इसका कारण अशिक्षा और अज्ञानता कहा जा सकता है, परन्तु पढ़े लिखे शिक्षित व्यक्ति भी कौएँ के सिर पर या कँधे पर बैठने से अपनी मृत्यु का पूर्वाभास करने लगे तो उसे क्या कहा जाना चाहिए.....?
मानसिक विकार:- अंधविश्वास मानसिक पिछड़ेपन का नहीं, कुछ मानसिक विकारों का परिणाम है जो शताब्दियों से हमारी मनोभूमि में जड़े जमा हुई हैं । छत्तीसगढ़ में यह अंधविश्वास ग्रामीण अंचल में अधिकांश फैला हुआ है जिसके अन्तर्गत टोना-टोटका, काला-जादू तंत्र-मंत्र , भूत-प्रेत, मरी-मसान जैसे कुरीतियाँ आज भी विद्यमान हैं।
हमारा छत्तीसगढ़ राज्य अभी भी पिछड़ा हुआ है । यद्यपि इस राज्य को बने 19 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं, फिर भी इस राज्य के गाँवों में अज्ञानता व पिछड़ापन बरकरार है, छत्तीसगढ़ी लोगों में आज भी टोटके व अंधविश्वास बहुत है, जादू-टोने पर विश्वास रखने वाले है । आसुरी प्रवृत्ति और वाममार्गी साधना में आतुरवत होने के कारण यहाँ अंधविश्वास का जन्म हुआ । टोने-टोटके का मायाजाल व जादू के मारण-उच्चारण के विकृत रूपों का प्रचलन भी हो गया । यह भी सत्य है कि छत्तीसगढ़ तंत्रयान, वज्रयान का भी गढ़ रहा है ।
सामाजिक कुरीतियाँ
आज समाज में जादू-टोना, झाड़-फूक, बैगा-गुनिया, तंत्र-मंत्र का बोलबाला है । यह समाज के लिए अत्यंत घातक और विघटनकारी सिद्ध हुआ है । यह सभी कुरीतियाँ समाज को खोखला करती आ रही है ।उदाहरण स्वरूप हम कह सकते हैं कि आज हम बिमार हो जाने पर बैगा के पास जाते हैं, तथाकथित देवी का प्रकोप मानकर हम एैसा करते हैं, यह नहीं कि तत्काल अस्पताल में जाकर इलाज करायें । इसी प्रकार सर्प दंश में तंत्र-मंत्र और बैगा-गुनिया का सहारा लिया जाता है, जिससे बिमार व्यक्ति की मृत्यु तक हो जाती है । यह अंधविश्वास भरा कुरितियाँ मुफ्तभोगी के लिए महज कोरे राहत का साधन रह गया है ।
अंधविश्वास से सम्बंधित प्रसंग का चित्रण छत्तीसगढ़ी उपन्यास कका के घर में हुआ है। उदाहरण इस पकार है:-
‘‘पारवती........... । बालक फेर पूछिस रेंगते-रेंगते ............। हाँ ........... । तोला ये आजकल का हो जात हे ... । मैं नई जानव कोनो देव भूत.............. बईहर बतास .............? ............ चल तो वो तोला नगमथिया डोकरा करा फुकवा हूँ। नई...............नई लागे ।
इस उदाहरण में छत्तीसगढ़ ग्रामीण अँचल में प्रचलित फूंक-झाड़ का वर्णन किया है । अंधविश्वास को मानने में ग्रामीण महिलाएँ अग्रणी है । जब तक अंधविश्वास का अंधकार रहेगा, तब तक विश्वासों में प्रकाश व चेतना कैसे फैल पायेगी ? यह मेरी हृदय की गंभीर प्रश्न है ।
टोनही प्रथा:-
वर्तमान समय में टोनही विवाद छत्तीसगढ़ की ही नहीं पूरे भारतदेश की गम्भीर समस्या है । आए दिन हम समाचार पत्रों में पढ़ते हैं कि वह स्त्री टोनही थी, जादू-टोना करती थी । गाँव के लोग उसे बहिष्कृत कर दिए हैं तथा उसकी राशन-पानी बंद कर दी गई ।
कई बार तो तथाकथित टोनही के शक में उसे गाँव के लोगों के बीच निःर्वस्त्र कर दिया जाता है। टोनही का लांछन लगाकर उसकी आँखें फोड़ दी जाती है, इन सभी बातों को सुनकर मेरा हृदय क्षोभ से भर उठता है ।
इन टोनहियों की अफवाह के द्वारा सामाजिक भय, शारीरिक भय व दहशत का जो वातावरण निर्मित किया जाता है वह किसी भी दृष्टि से सामाजिक विकास में हितकर नहीं है । अगर इस प्रथा के विरूद्ध जनजागृति नहीं लाई गई तो समाज का पतन निश्चित है । आज भी टोनही के नाम पर बेकसूर, निर्दोष स्त्री जाति को प्रताड़ित किया जाता है, उन्हें टोनही करार दिया जाता है जो उचित नहीं ।
छत्तीसगढ़ भाषा के तंत्र-मंत्र
छत्तीसगढ़ी भाषा में ऐसे बहुत से तंत्र-मंत्र है जिनकों संग्रह करना बड़ा कठिन कार्य है । कुछ विद्वान अँचल के हैं जिन्होंने छत्तीसगढ़ के तंत्र-मंत्र पर अन्वेषण करके शोध पूर्ण साहित्य दिया है जिसमें डाॅं. चन्द्रकुमार अग्रवाल का नाम उल्लेखनीय है ।
वास्तव में इस अँचल के अंदर जितने लोक कथा व लोकगीत हैं, उससे कई गुना अधिक लोकमंत्र है जो गाँव-गाँव के जनमानस में है । यह लोकतंत्र विशेषकर रोग दूर करने, विष उतारने व भूत-प्रेत भगाने आदि कार्यांे में उपयोग किये जाते हैं । यहाँ कई मंत्र हैं जिनका वर्गीकरण इस प्रकार है:-
(1) बोल मंत्र (2) नाम मंत्र (3) पाठ मंत्र (4) बंधनीमंत्र (5) हाँकनी के मंत्र (6) नहावन के मंत्र (7) पारधी के मंत्र (8) फूकनी के मंत्र (9) गुरहर मंत्र (10) सुमरनी मंत्र (11) अन्य विविध मंत्र ।
गाँव के विभिन्न देवी-देवता:- ठाकुरदेव , ठकुराईन दाई, चिथराइन दाई, मरीमाई, ओंगनपाट, कुमनपाट, कंसेसुर, धुकीदाई, भैंगहा, मटिया मसान, बैताल, पानी-गोसांई व बरम बाबा आदि विशेष प्रसिद्ध है।
बैगा:- बैगा द्रविड़ वर्ग की जनजाति है लेकिन बैगा स्वयं को गोड़ नहीं मानते हैं, बैगा गाँव में तंत्र-मंत्र विद्या में सिद्ध माना जाता है पर इसका कोई आधार या प्रमाणिकता नहीं है। गाँवों में आज भी जादू-टोने, टोनही प्रथा व बलिप्रथा का बोलबाला है । इसको आग में घी का काम बैगा करते हैं । आज भी यह किस्सा सुनाई देता है कि अमुक महिला को टोनही करार दिया गया, कहीं देवी को बलि चढाई गई या नर बलि दी गई, आधुनिकता की यह कैसी विडम्बना, कैसी नियति है, यह कैसा न्याय है, कैसी प्रताड़ना है ! ये तथाकथित धर्म के ठेकेदार पुजारी, बैगा- गुनिया क्या इसी प्रकार स्वार्थ सिद्ध में लगे रहेगें ? यह विचारणीय है ।
छत्तीसगढ़ क्षेत्र में योग-योगिनी की पूजा, पशु बलि तथा अधार्मिक अनुष्ठानों की परम्परा रही है । बस्तर की ‘‘ केशकाल घाटी’’ के ‘‘देवी मन्दिर ’’ में तो नर बलि भी दी जाती रही है । राज्य के बस्तर तथा सरगुजा जिलों के वनांचलों में तो इन रूढिवादी परम्पराओं तथा तंत्र-मंत्र, फूक-झाड़ (ओझा) का भारी प्रभाव है । बस्तर क्षेत्र में विवाह हेतु ‘‘घोटुल संस्कृति’’ तथा ‘‘ बहुविवाह ’’ जैसी प्रथाएँ इंगित करती है कि राज्य का आदिवासी समाज अभी भी आधुनिकता से कोसों दूर है ।
छत्तीसगढ़ के टोना-टोटका का स्वरूप इस प्रकार है:-
(1) बिल्ली द्वारा रास्ता काटना ।
(2) कहीं जाते समय खाली घड़ा देखना ।
(3) सियार द्वारा रास्ता काटना ।
(4) किसी कार्य के शुभारंभ में विधवा महिला का सामने होना ।
(5) दिये का बुझ जाना ।
(6) घाव में कीड़े पड़ना ।
(7) कुत्ते की रोने जैसी आवाज करना ।
(8) नीबू मिर्च को दरवाजे पर टांगना ।
(9) काला कंगन और लाल रिबन टांगना ।
(10) दूल्हे को लोहा पकड़ाना ।
(11) बाँझ महिला से सामना ।
(12) खाट का उल्टा होना ।
(13) चप्पल का उल्टा होना ।
(14) रात में उल्लू का चिल्लाना ।
(15) रसोईघर में बर्तनों का आपस में टकराना ।
(16) दूध का फट जाना ।
(17) दही में कीड़े लगना ।
(18) दूध का उफनना ।
(19) काले घोड़े की नाल ।
(20) टूटे हुए आईने में देखना ।
(21) कछुए की मूर्ति रखना ।
(22) शनिवार को दाढ़ी न बनाना ।
(23) किसी की मृत्यु पर मुंडन होना ।
(24) किसी की मृत्यु होने पर मिट्टी का बर्तन फेंक देना ।
(25) दरवाजे की ओर पैर करके न सोना, इत्यादि.....
यह सभी छत्तीसगढ़ के टोना - टोटका है, जिनका कोई आधार नहीं है यह अवैज्ञानिक, अप्रमाणिक और तर्कहीन है।
धार्मिक विश्वास
छत्तीसगढ़ में टोना, टोटका, जादू, तंत्र, मंत्र, विभिन्न प्रथाएँ प्राचीन काल की ही देन है। इसमें देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बलि प्रथा भी प्रचलित है। यहाँ के लोग जादु टोना पर विश्वास करते हंै, तथा अपनी समस्या का निवारण इसके माध्यम से हो जाने में विश्वास रखते हैं। प्रत्येक गाँव अथवा समूह में एक बैगा होता है, जो तांत्रिक क्रियाओं द्वारा विपत्तियों, बिमारियों, अवरोधांे आदि को अपनी तांत्रिक क्षमता द्वारा दूर करता है। स्त्रियों के मध्य टोनहिनों की एक विशेष श्रेणी होती है जो श्मशान भमि में तंत्र साधना करती है। इनकी क्रियाएँ हमेशा नकारात्मक मानी जाती है एवं भयवश लोग इनसे दूर रहना पसंद करतेे हैं।
निष्कर्ष: -
छत्तीसगढ़ की प्रगति में तंत्र - मंत्र, टोना - टोटका, झाड़ - फुक, टोनहा - टोनही, भूत - प्रेत, बैगा - गुनिया एक बड़ा बाधक है। आज हमें आवश्यकता इस बात की है कि हमें अपने नजरियों को बदलना होगा, इस तरह की कुसंस्कृति से उबरना होगा , हर बात को सत्यता की आईनें में परखना होगा। समाज में टोनही प्रथा के विरूद्ध सकारात्मक सामाजिक चेतना जागृत करनी होगी। टोनही के शक में होने वाली असंख्य हत्याओं व अन्याय अत्याचार पर रोक लगाना आज हम सब का परम कर्तव्य है। तंत्र मंत्र जादु टोना यह सब मानसिक कमजोरी की उपज है।
आवश्यकता है कि शिक्षा के माध्यम से सामाजिक चेतना जागृत की जाए, लेकिन शिक्षित वर्गों में भी यह प्रचलन देखकर बड़ा आश्चर्य होता है। वर्तमान में इस कुरीतियों पर सपूंर्ण रूप से रोक लगाई जाए। अपनी धार्मिक मान्यताओं के लिए निर्दोष पशु - पक्षियों व मनुष्यों को खुन बहाना क्या हिंसा नहीं है....? महात्मा गाँधी व महावीर स्वामी के अहिंसा के सिद्धातों का क्या हम पालन कर रहे है !!! यह प्रश्न विचारणीय है।
संदर्भ:-
(1) छत्तीसगढ़ दिग्दर्शन भाग 2, मदनलाल गुप्ता, भारतेन्दु हिन्दी साहित्य समिति बिलासपुर, पृष्ठ- 201
(2) वही पृष्ठ -319
(3) प्रतियोगिता साहित्य-सामान्य अध्ययन, सं0 डाॅ0 बी0 एल0 फड़िया, साहित्य भवन पब्लिकेशन आगरा, पृष्ठ -135
(4) छत्तीसगढ़ सांस्कृतिक भाग -2 डी0 एस0 पटेल, मुस्कान पब्लिकेशन बिलासपुर, पृष्ठ -241
(5) भारतीय साहित्य कोश भाग -1 धीरेन्द्र वर्मा व अन्य, ज्ञानमण्डल लिमिटेड वाराणसी, पृष्ठ- 868
(6) छत्तीसगढ़ उपन्यासेां में नकारात्मक सामाजिक चेतना, शोधगंगा पृष्ठ- 306/307
(7) वही पृष्ठ -309
(8) वही पृष्ठ- 313/314
(9) वही पृष्ठ -326
शोधार्थी - मनीष कुमार कुर्रे
हिन्दी विभाग, शास0 दिग्विजय स्वशासी
महा0 राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़)
मो0 नं0 – 9669226959, ईमेल –manishkumarkurreymkk@gmail.com
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