नव अनुभूतियों से महकते हवा गा रही है जापानी काव्य विधा हाइकु का विस्तारित रूप ताँका है जिसे लघु गीत भी कहा जाता है, ताँका लेखन में 5, 7, 5, 7, 7 = 31 के वर्ण का पालन किया जाता है। हाइकु एवं ताँका लेखन हिंदी साहित्य में अब अपनी एक अलग पहचान बना चुका है, इसके कई संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं तथा ब्लॉग्स , वेब पेज एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक पत्रिका ( त्रिवेणी - डॉ भावना कुँवर ) के रूप में इसकी अपनी एक वैश्विक पहचान बन चुकी है ।
नव अनुभूतियों से महकते हवा गा रही है
जापानी काव्य विधा हाइकु का विस्तारित रूप ताँका है जिसे लघु गीत भी कहा जाता है, ताँका लेखन में 5, 7, 5, 7, 7 = 31 के वर्ण का पालन किया जाता है। हाइकु एवं ताँका लेखन हिंदी साहित्य में अब अपनी एक अलग पहचान बना चुका है, इसके कई संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं तथा ब्लॉग्स , वेब पेज एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक पत्रिका ( त्रिवेणी - डॉ भावना कुँवर ) के रूप में इसकी अपनी एक वैश्विक पहचान बन चुकी है । इस कार्य में सतत रूप से लगे हुए डॉ सुधा गुप्ता , रामेश्वर कांबोज हिमांशु , हरदीप कौर संधू , डॉ सरला अग्रवाल ,डॉ रामनिवास मानव , देवेंद्र नारायण दास एवं प्रदीप दाश दीपक ( ताँका की महक - 271 ताँकाकारों का संग्रह )तथा .......... के नाम विशेष तौर पर उल्लेखित किए जा सकते हैं । विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं के भी अब इनसे संबंधित विशेषांक निकल चुके हैं ।
डॉ सुदर्शन रत्नाकर जी का ताँका संग्रह - हवा गाती है , को पढ़ने का मुझे सौभाग्य मिला । इसके तीन खंडों में कुल 379 ताँका संग्रहित हैं जो विविध विषयों - आद्या प्रकृति , जीवन पथ एवं विविधा अनुक्रम पर आधारित है । इसमें प्रकृति का चित्रण बिल्कुल नए अंदाज से किया गया है ; प्रकृति के नए अनुभूतियों को लिखने का नया तरीका इस संग्रह को विशिष्ट बनाता है । प्रकृति के विभिन्न ऋतु का वर्णन , इस धरती पर लगे हुए फूलों- फलो से महकती शाखाएं , पतझड़ से टूटे पत्तों का रुदन या फूलों- कांटों की वार्ता विशेष रूप से दृष्टव्य हैं ।
ताँका की सभी पंक्तियाँ एक ही भाव , दृश्य को समेटे होने चाहिए इसका कोई भी हाइकु खण्ड स्वतंत्र नहीं होना चाहिए । आपके दृष्टि में हवाएँ गाती हैं , शहनाई बजाती हैं , सदाबहार हर मौसम में मुस्कुराता है , फूल फल आभूषण हैं बसंत के और तितली परियाँ हैं -
हवा गाती है |
उड़ते पक्षी
सरसर करती
चली हवाएं
लयबद्ध तानों ने
शहनाई बजाई ।
सदाबहार
महकती रहे
हर मौसम
सुख दुख सहते
फिर भी मुस्कुराते।
उपवन में
उड़ती तितलियाँ
लगती ऐसे
आकाश से उतरी
कोई परियाँ जैसे।
किया श्रृंगार
फूलों के आभूषण
पहनकर
सतरंगी लिबास
आ गया ऋतुराज।
पतझड़ के ये दृश्य अनोखे हैं जो साथ रहने का संदेश लिए खड़े हैं
घबरा मत
लहलहाते पत्ते
ठूँठ से बोले
हम तेरे साथ हैं
हाथ आगे तो बढ़ा।
डालियाँ सूखी
तृष्णाएँ नहीं मिटी
स्पर्श की चाह
खींचती उस ओर
जीवन जहां खड़ा।
इतरा मत
अपने यौवन पे
मिट जाएगा
हम भी तो हरे थे
वक्त ने मिटा दिया।
प्रकृति का सौंदर्य इनमें निखर आया है , दुल्हन सी आती भोर , माँ सी गर्माहट , बादलों की पालकी और लहरों का लजाना वाह -
घूँघट काढ़े
धीरे पग बढ़ाती
लजाती हुई
आ रही है सहर
लाल चूड़ा पहने।
पत्तों से छन
उतरके आ रही
नरम धूप
गर्माहट दे रही
माँ सी बाहों का स्पर्श।
उड़ी आ रही
बादलों की पालकी
बैठी दुल्हन
वर्षा श्रृंगार किए
धरती से मिलने।
बादल छाए
गरजे गगन में
बरसी बूँदे
अंकुरित हो गए
छिपे बीज धरा में।
लहरें उठी
छूने कदम मेरे
शरमा गई
आँचल को समेटा
लौट गई भीतर।
रचनाकार ने अपने जीवन पथ पर जो कुछ भी महसूस किया , जो संवेदनाएं उन को छू सकी उनकी यादों के सहारे लेखनी में रंग देते हुए पलाश को गुलमोहर में बदलने का संदेश देती हैं ताकि मन बगिया सुरभित हो सके । इस खंड में जिंदगी की अवस्थाएँ , नैतिक मूल्यों का टूटना , रिश्तो का दरकना, यादों का मेला एवं आशाओं का दामन थामे सकारात्मक सोच के साथ ताँका रचे गए । आइए देखें इनकी सुंदरता एवं संदेश -
ताजा गुलाब
रखा संभाल कर
वक्त की गाज
सूख गई पत्तियाँ
हवा में बिखराया ।
कैसा भरोसा
किस पर भरोसा
होता ही नहीं
न संत ना इंसान
सब पूरे शैतान।
हो रही आज
नजरों के सामने
हत्याएँ आम
अजन्मी बेटियों के
चुप क्यों बैठे आप ?
खिलते फूल
बांटते हैं खुशबू
यही जीवन
जितना ही बाँटोगे
उतना ही पाओगे।
विविधा खंड के अंतर्गत सुदर्शन रत्नाकर जी ने आम जिंदगी में बाल मजदूरी , किसानों की पीड़ा , महिलाओं का दर्द एवं भिखारियों की समस्या को बड़े ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है । आइए देखें -
सर्द हवाएँ
तन कँपकँपाए
नंगे बदन
माँगता वह भीख
कलेजा फटा जाए।
तपती धरा
गर्म हवा के झोंके
बहता स्वेद
झुलसते बदन
विवश मजदूर।
अभिशप्त है
जीवन किसान का
कभी देखता
प्रचंड सूर्य को तो
सहे बाढ़ के बाण ।
जंगलराज
शेर है दहाड़ते
कुत्ते भौंकते
बिल्ली चूहे की दौड़
बाकी रंगे सियार ।
चुप रहती
सहती हर पीड़ा
कठिन होता
भावनाएँ छुपाना
होठों को सी लेना।
सिर पर बोझ
कठिन है जीवन
गाँव बालाएं
रॉकेट के युग में
पनघट पर जाएँ ।
अब तक की प्रकाशित संग्रहों में से आपका यह संग्रह नूतन प्रयोगों , नयी अनुभूतियों एवं संवेदनाओं लिए जाना जाएगा । हिंदी साहित्य की यह एक अमूल्य निधि है जो संग्रहणीय है , शोध छात्रों तथा नव लेखकों के लिए यह अवश्य ही मार्ग प्रशस्त करेगी ; मुझे उम्मीद है कि यह संग्रह- हवा गाती है सभी को पसंद आएगी।
मेरी बहुत शुभकामनाएं।
"हवा गाती है " हिंदी ताँका संग्रह
रचनाकार - डॉ सुदर्शन रत्नाकर , फरीदाबाद
प्रकाशन - अयन प्रकाशन, नई दिल्ली
प्रथम संस्करण - 2020 मूल्य- ₹220
पृष्ठ - 112
भूमिका - रामेश्वर कांबोज हिमांशु
- रमेश कुमार सोनी
(राज्यपाल पुरस्कृत शिक्षक एवं साहित्यकार )
एचपी गैस के सामने जगदीशपुर रोड बसना पिन- 493554
मोबाइल संपर्क - 94 242 20 20 9
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