प्रगतिवाद का मुख्य आधार क्या है pragativad par tippani pragativad ka mukhya aadhar kya hai प्रगतिवाद का मुख्य आधार क्या है प्रगतिवादी का मुख्य आधार क्या है प्रगतिवाद का दार्शनिक आधार क्या है प्रगतिवाद के जनक कौन है E. M. Forster के सभापतित्व में पेरिस में Progressive Writers' Association प्रगतिशील लेखक संघ नामक अंतर्राष्ट्रीय संस्था का प्रथम अधिवेशन हुआ था। सन १९३६ ई.में सज्जाद जहीर और मुल्कराज आनंद के प्रयत्नों से भारतवर्ष में भी इस संस्था की शाखा खुली और प्रेमचंद की अध्यक्षता में लखनऊ में उनका प्रथम अधिवेशन हुआ।
प्रगतिवाद का मुख्य आधार क्या है
प्रगतिवाद का मुख्य आधार क्या है प्रगतिवादी का मुख्य आधार क्या है प्रगतिवाद का दार्शनिक आधार क्या है प्रगतिवाद के जनक कौन है pragativad par tippani pragativad ka mukhya aadhar kya hai - भारतीय साहित्य और संस्कृति के मूल में बहुजनहिताय ,बहुजनसुखाय की भावना सदैव विद्यमान रही है।रामायण से लेकर उपनिषदों ,पुराणों ,संस्कृत के महान ग्रंथों में इस लोक कल्याण की भावना को शीर्ष प्राथमिकता दी गयी है।साहित्य के इतिहास से भी स्पष्ट है कि जब कभी इस लोक कल्याण को दबाने या ध्वस्त करने की चेष्टाएँ हुई ,एक प्रबल समन्वयकर्ता ने आकर नए नए मूल्यों के साथ सामाजिक उत्तरदायित्व और कल्याण की भावना प्रतिष्ठित किया है।
तुलसीदास ,कबीर कवि होने के साथ साथ प्रबल समाज सुधारक भी माने जाते हैं। हिंदी का आधुनिक काल यथार्थ के प्रति अत्यधिक आग्रह्कारी सिद्ध हुआ।भारतेंदु युग के लगभग सभी साहित्यकारों ने तत्कालीन समाज के प्रति यथार्थ बोध व्यक्त किया। द्विवेदी युग में राष्ट्रीयता का स्तर सामाजिक जागरूकता का प्रतिबिम्ब बना।छायावाद तक आते आते विज्ञान के बढ़ते हुए अविष्कारों के कारण साहित्य के क्षितिज पर नवीन वैचारिक सोच का प्रादुर्भाव हुआ। छायावादी काव्य में एक ओर वैयक्तिक और अंतर्मुखी प्रवृत्तियाँ ,पलायन ,निराशा ,पराजय आदि भावनाओं को जन्म दे रही थी और दूसरी ओर सामाजिक विषमता ,जीवन मूल्यों की हास्र पराकाष्ठा पर पहुँच रही थी।स्थिति के अनुसार नवीन वैचारिक क्रांति का होना समाज और संस्कृति दोनों के लिए अपेक्षित था।अतः युग की आवश्यकताओं के अनुरूप एक नवीन विचारधारा का जन्म हुआ।
युगीन परिस्थितियों के प्रभाव और छायावादी काव्य प्रवृत्तियों की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप जिस नवीन काव्य चेतना का प्रादुर्भाव हुआ ,उसे प्रगतिवादी काव्यधारा के नाम से अभिहित किया गया।सन १९३५ ई.एम .फॉस्टर E. M. Forster के सभापतित्व में पेरिस में Progressive Writers' Association प्रगतिशील लेखक संघ नामक अंतर्राष्ट्रीय संस्था का प्रथम अधिवेशन हुआ था। सन १९३६ ई.में सज्जाद जहीर और मुल्कराज आनंद के प्रयत्नों से भारतवर्ष में भी इस संस्था की शाखा खुली और प्रेमचंद की अध्यक्षता में लखनऊ में उनका प्रथम अधिवेशन हुआ। तभी से प्रत्यक्ष रूप से हिंदी साहित्य का आभिर्भाव स्वीकार करना चाहिए। इसमें पदार्थ की सत्ता में विश्वास प्रकट कर आधुनिक मानव को आदर्श से दूर ले जाकर वस्तुवादी जीवन दृष्टि प्रदान की। सम्पन्नता और विपन्नता के आधार पर मनुष्य मनुष्य में भेदभाव की दिवार खड़ी करने का भी वह घोर विरोधी है। इसीलिए भौतिकवादी जीवन दृष्टि से अनुप्रेरित साहित्यकार रहस्य और कल्पना के लोक में विचार नहीं करता ,अपितु यथार्थ की ठोस भूमि पर पैर रखता है। उसमें छायावादी भावुकता ,कल्पना ,अतिशयता और चित्रमयी लाक्षणिक भाषा के स्थान पर वैज्ञानिक चिंतन ,बौद्धिक -दृष्टिकोण और सीधी सरल अभिव्यंजना प्रणाली देखने को मिलती है।
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