भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति स्वास्थ्य सेवा को खुद उपचार की ज़रूरत है केंद्र की मोदी सरकार दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना 'आयुष्मान भारत योजना' चला रही है। लेकिन यह योजना तब तक कामयाब नहीं कहला सकती है जबतक समाज के सभी तबके विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों तक इसका फायदा नहीं पहुँचता है।
स्वास्थ्य सेवा को खुद उपचार की ज़रूरत है
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति देश के आम नागरिकों को जिन बुनियादी सुविधाओं की सबसे अधिक आवश्यकता होती है उसमें स्वास्थ्य सुविधा भी प्रमुख है। आज़ादी के बाद से ही केंद्र से लेकर सभी राज्य सरकारों द्वारा इसे प्राथमिकता दी जाती रही है। लेकिन इसके बावजूद आज भी देश में स्वास्थ्य सुविधा की व्यवस्था काफी दयनीय है। देश के कई शहरों के जिला अस्पतालों की हालत इतनी खराब है कि मरीज़ प्राइवेट अस्पताल का रुख करना ज़्यादा बेहतर समझते हैं। साल 2019 के अंतिम सप्ताह में नीति आयोग द्वारा जारी सतत विकास रिपोर्ट के अनुसार देश में स्वास्थ्य सुविधा के क्षेत्र में अब भी बड़े पैमाने पर सुधार की आवश्यकता है। रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण भारत की अपेक्षा उत्तर भारतीय राज्यों में स्वास्थ्य सुविधा की हालत खराब है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार में स्वास्थ्य सुविधा की स्थिती दयनीय है। जहां अन्य राज्यों की अपेक्षा नवजात मृत्यु दर और प्रसव मृत्यु दर बहुत अधिक है।
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड की सूरतेहाल भी स्वास्थ्य के क्षेत्र उत्साहजनक नहीं है। रिपोर्ट में देश के 21 बड़े राज्यों की सूची में उत्तराखंड का स्थान 19वां है। रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 की तुलना में 2017-18 में स्वास्थ्य के क्षेत्र में उत्तराखंड में 5.02 अंक की गिरावट आई है। जो चिंताजनक है। इसका एक उदाहरण सरोवर नगरी के नाम से विश्व विख्यात नैनीताल भी शहर है। जो प्रतिवर्ष लाखों पर्यटकों को अपनी सौन्दर्यता से लाभोर करता है। लेकिन इसी खूबसूरत शहर का एक दूसरा पहलू यह भी है कि यहां की जनता शहर की चरमरायी स्वास्थ्य व्यवस्था से बेहद परेशान है। यह केवल शहर ही नहीं वरन् राज्य के लिए भी एक गंभीर विषय बन चुका है। पचास हजार की आबादी वाले इस शहर के लोगों की स्वास्थ्य व्यवस्था मात्र 2 सरकारी और चंद छोटे प्राईवेट अस्पतालों के भरोसे टिकी हुई है। सरकारी अस्पतालों की स्थिती यह है कि एक डाक्टर को लगभग प्रतिदिन 150 से अधिक मरीजों को देखने के साथ साथ प्रशासनिक कार्यो को भी पूरी करनी होती है।
स्वास्थ्य सेवा |
इसके अलावा सरकारी अस्पताल आधुनिक उपकरणों और नवीन तकनीकि सुविधाओं से भी कोसों दूर हैं। दुर्भाग्यवश यदि किसी मरीज़ की हालत अत्यधिक खराब हो जाए तो उसे शहर से 42 किमी. दूर हल्द्वानी रेफर कर दिया जाता है। पूरी तरह से पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण मरीज़ को आपात स्थिती में रात के दौरान हल्द्वानी पहुँचाना बहुत बड़ी चुनौती होती है, विशेषकर बर्फ़बारी के दौरान जोखिम और भी ज़्यादा हो जाता है। कई बार तो देखा गया है कि बीच मार्ग में ही रोगी दम तोड़ देते है। जैसे तैसे हल्द्वानी पहुंच भी जाएं तो विडम्बना यह है कि मरीज़ को फिर से सारी जांचें करवानी पड़ती हैं जिसमें समय के साथ धन हानि के प्रहार से रोगी को जुझना पड़ता है।
हैरत की बात तो यह है कि मरीज़ के तीमारदारों पर विशेष सेन्ट्ररों में ही जांच करवाने पर जोर दिया जाता है। शहरों की स्थिती ऐसी है तो जरा सोचिए ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिती क्या होगी? क्योंकि राज्य के ऐसे कई गांव हैं जो स्वास्थय केन्द्रों से काफी दूरी पर स्थित हैं, जहां पहुंचने में रोगी को 8 से 10 घण्टे तक लग जाते हैं। कभी-कभी देखने और सुनने में आता है कि मरीज़ों की संख्या अधिक हो जाने पर एक ही बेड पर दो मरीज़ों को लिटा दिया जाता है। मरीज़ और उनके तीमारदारों की तकलीफ यहीं ख़त्म नहीं होती है। बल्कि दवाइयों के लिए भी उन्हें दर दर भटकने पर मजबूर होना पड़ता है। सरकारी मेडिकल स्टोर पर नाममात्र की दवाइयां उपलब्ध होती हैं। अक्सर गंभीर बिमारियों से जुड़ी महंगी दवाइयां निजी मेडिकल स्टोर से खरीदनी पड़ती हैं। हालांकि सरकार द्वारा उपलब्ध जन औषधी केन्द्रों से लोगों को थोड़ी राहत मिली है लेकिन अधिकतर मंहगी दवाइयों के लिए निजी मेडिकल स्टोरों पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
नरेन्द्र सिंह बिष्ट |
नैनीताल शहर की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था का सामना कर चुके स्थानीय निवासी राशिद ज़ुबैरी अपनी आपबीती बताते हुए कहते हैं कि जब उनके घर शिशु का जन्म हुआ, तो जन्म के आधें घण्टें बाद शिशु के गले से गन्दा पानी निकालने की नौबत आ गई। लेकिन नैनीताल के सरकारी अस्पताल में उचित उपकरण उपलब्ध नहीं होने के कारण डाक्टरों ने बच्चे को फ़ौरन हल्द्वानी ले जाने को कहा। ज़ुबैरी बताते हैं कि पैसे की कमी नहीं होने के कारण उनके बच्चे को सही समय पर उचित इलाज मुमकिन हो सका, लेकिन आर्थिक रूप से कमज़ोर ऐसे कई लोग हैं जो समय पर अपने मरीज़ को हल्द्वानी नहीं ले जा सकते हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि नैनीताल के सरकारी अस्पतालों की अपग्रेड करे और जीवनरक्षक उपकरणों से सुसज्जित करे ताकि ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों को भी समय पर उचित इलाज मुहैया हो सके। नैनीताल शहर पर्यटकों की पंसदीदा जगहों में शुमार है जिस कारण प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक नैनीताल आते है। इससे सरकार को बड़ी मात्रा में राजस्व की प्राप्ति होती है। इसके बावजूद शहर में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव चिंता का विषय है, जिसकी तरफ राज्य सरकार को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य केन्द्रों में डाक्टरों की संख्या के साथ साथ नवीन उपकरणों और महंगी दवाईयों की उपलब्धता पर भी विशेष जोर दिए जाने की ज़रूरत है। महंगी और जीवनरक्षक दवाईयों पर से वैट को हटाया जाना चाहिए जिससे मरीजों के जेबों पर जो अतिरिक्त बोझ आता है वो कम हो सके।
सेहतमंद रहना मनुष्य का बुनियादी हक़ है। यह सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए कि समुचित इलाज सभी के लिए उपलब्ध हो सके। विशेषकर सुदूरवर्ती क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता के लिए डॉक्टरों के साथ साथ सक्षम कर्मचारियों और बेहतरीन बुनियादी ढांचे को मज़बूत करने की आवश्यकता है। केंद्र की मोदी सरकार दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना 'आयुष्मान भारत योजना' चला रही है। लेकिन यह योजना तब तक कामयाब नहीं कहला सकती है जबतक समाज के सभी तबके विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों तक इसका फायदा नहीं पहुँचता है। (चरखा फीचर्स)
- नरेन्द्र सिंह बिष्ट
नैनीताल, उत्तराखण्ड
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