नदी कथाएँ भारतवर्ष की पहचान इसकी नदियाँ वर्षों से रही हैं , इनके आस - पास ही इंसानी सभ्यताओं ने जीना सीखा और विकास की नई राह गढ़ी .नदियाँ तब भी कौतूहल का विषय थीं अब भी हैं ।प्राचीन काल में इन नदियों के संरक्षण के लिए इसे धार्मिक मान्यताओं के साथ जोड़कर देखा गया और ये हकीकत भी है क्योंकि इनका उल्लेख विभिन्न वेद पुराणों में मिलता है ।
नदी कथाएँ
भारतवर्ष की पहचान इसकी नदियाँ वर्षों से रही हैं , इनके आस - पास ही इंसानी सभ्यताओं ने जीना सीखा और विकास की नई राह गढ़ी .नदियाँ तब भी कौतूहल का विषय थीं अब भी हैं ।प्राचीन काल में इन नदियों के संरक्षण के लिए इसे धार्मिक मान्यताओं के साथ जोड़कर देखा गया और ये हकीकत भी है क्योंकि इनका उल्लेख विभिन्न वेद पुराणों में मिलता है । कोई स्पष्ट रूप से यह नहीं कह सकता कि कब इनका उद्गम हुआ होगा और क्यों ? फिलहाल मुझे डॉ अर्पिता अग्रवाल जी की नदी कथाएँ पढ़ने का सौभाग्य मिला , जिसमें बहुत रोचक तथ्य है और रोमांच पैदा करती है । इन नदी कथाओं को पढ़ते हुए इनके जीवन पर मंडरा रहे खतरे मुझे डरा रहे हैं वहीं इनके रक्षण को लगे समूह , शासन और महान ब्यक्तित्वों की कोशिशों को नमन करने का भी मन करता है । पर्यावरण संरक्षण करना हम सब का दायित्व है और इसी का प्रमुख अंग नदियाँ होती हैं जो सम्पूर्ण मानवता की जीवनरेखा होती हैं ।
इन नदी कथाओं को जलपुरुष डॉ राजेन्द्र सिंह जी , पद्मश्री डॉ अनिल प्रकाश जोशी , कान्ता कर्दम - राज्यसभा सांसद जी सहित पर्यावरण विभाग के प्रो वाई विमला एवं देवेंद्र सिंह जी की शुभेच्छाएँ और मार्गदर्शन मिला है। मैंने इसमें उल्लिखित कई नदियों के स्नान का लाभ प्राप्त किया है ,इन्हें करीब से देखा - जाना है लेकिन कभी नहीं सोचा की इस तरह कोई शोध होना चाहिए जो नदियों की उत्पत्ति और उसकी महानता को एक साथ पिरो सके , इस दृष्टि से डॉ अर्पिता जी का यह कार्य स्तुत्य है ।
नदी कथाएँ |
नदियों को पढ़ना , उनमें उतरना , और नदी हो जाने में बड़ा फर्क होता है । इसमें उल्लिखित बहुत सी नदियों को पहली बार पढ़ा , जाना । सभी नदियों का अपना एक भौगोलिक महत्व भी है जिसमें सबसे बड़ी भूमिका हिमालय की है । मोक्षदायिनी गंगा के गंगा बनने की कथा रोचक है , इसके कई नाम हैं जो उनके स्थानीय आधार पर रखे गए हैं । रामायण , महाभारत , वेदों , पुराण और अभिज्ञान शाकुन्तलम से लेकर मोहन जोदड़ो एवं सिंधु घाटी सभ्यता तक इसकी प्राचीनता की गाथा कहते हैं । शिव की जटाओं से , ब्रह्मा के आँसू से , सूर्य की पुत्री , यमराज की बहन से लेकर महान तपस्वी भागीरथी एवं कण्व तक का इनकी उत्पत्ति में महान योगदान रहा है । सुन्दरवन का डेल्टा , छठ पूजा की श्रद्धा से लेकर गाँधी जी अस्थियों के प्रवाह इसमें वर्णित हैं । लेखिका ने यहाँ प्रत्येक नदियों को उनके प्रवाह और धार्मिक महत्व के अनुसार कुछ विशेषताओं से जोड़ा है जो उसे पढ़ने के लिए आमंत्रित करते हैं जैसे - साबर हिरणी चाल जैसी चाल वाली , ताँबे सी आभा वाली , कुशिका वंश की चपल बाला , दैत्य के मुँह से निकली और उत्कृष्ट संस्कृति की वाहक ... । कुल 40 नदियों का इसमें उल्लेख है जिसमें गंगा , सिंधु , ब्रह्मपुत्र , सरयू , गंडक , मालिनी , यमुना , बागमति , केन , नर्मदा , पेरियार , कृष्णा , कावेरी ,तुंगभद्रा , शतरूपा , बेतवा , महानदी , कर्मनासा , महानंदा , हिंडन , क्षिप्रा और विलुप्त नदी सरस्वती तथा विलुप्ति के कगार पर खड़ी फल्गु और तमसा का विशेष वर्णन इसकी गूढ़ता को बढ़ाता है ।
यहाँ अर्पिता जी की चिंता लाजिमी भी है क्योंकि नदियाँ मर रही हैं , बिक रही हैं , यहाँ का पानी पीने योग्य नहीं रहा , ये औद्योगिक कचरा , लाशें और तमाम शहरों के गंदे नाले का पानी।ढो रही हैं । तभी तो कोई नदी बिहार का शोक हो जाती है , कोई अपने तटबंधों को तोड़कर बारिश में अपने रौद्र रूप दिखाती है , कोई अपने बाँध से परेशान है कोई नदी अपने तटों पर हो रहे जैव विविधता के नुकसान की भरपाई चाहती हैं लेकिन इसे कौन सुनेगा ? सिवाय गंगा एक्शन प्लान और नमामि गंगे प्रोजेक्ट के । इन दिनों स्वच्छता पर बहुत से प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन इन नदियों को औद्योगिक घरानों के चंगुल से मुक्त कराने सभी लोग किसी भागीरथ के इंतजार में हैं । बोतल बन्द पानी की चिंता सबको है लेकिन उपाय कोई नहीं सूझा रहा क्योंकि विकास की राह में हम कुएँ , बावली बहुत पीछे छोड़ आए हैं और बची खुची रह गई हैं नदियाँ जो हमारे पेयजल की एकमात्र स्रोत हैं । हमने धरती का सीना छलनी कर दिया पानी लगातार हमसे दूर भाग रही है और हम पेयजल संरक्षण छोड़कर दूसरे ग्रह पर पानी तलाशने में लगे हैं ।
वर्तमान में नदियों पर आवगमन शुरू हुआ है जो आर्थिक महत्व का विषय है लेकिन इससे नदियों की जैव विविधता नष्ट होगी । यह पुस्तक सभी शोधार्थियों , सामान्य ज्ञान और पर्यावरणविदों के लिए मार्गदर्शक होगी ।
मेरी अनंत शुभकामनाएं ....।
नदी कथाएँ - डॉ. अर्पिता अग्रवाल ,मेरठ
प्रकाशक - पर्यावरण शोध एवं शिक्षा संस्थान मेरठ उ. प्र .2018
मूल्य - 340/- पृष्ठ - 88
रमेश कुमार सोनी , बसना
(पर्यावरण मित्र , गहिरा गुरुजी पर्यावरण पुरस्कार एवं कुँवर युद्धवीर सिंह छ ग राज्य पुरस्कारों से सम्मानित ) जे पी रोड , एच पी गैस के सामने - बसना , जिला महासमुंद , छत्तीसगढ़
पिन 493554 संपर्क - 7049355476
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