जानकी – छत्तीसगढ़ी उपन्यास दुनिया के सबेच्च बेटी लछमी होथें फेर सबो बेटा नरायन कहाँ हो पाथें कोई भी उपन्यास किसी कथा की वह विस्तृत कथन शैली है जो पाठकों को अपनी रोचकता के साथ अंत तक जोड़े रखती है | इसमें सामाजिक चेतना की सूक्ष्म अभिब्यक्ति के साथ विशद ब्याख्यान हमें देखने को मिलता है । रामनाथ साहू जी का छत्तीसगढ़ी उपन्यास जानकी पढने का सौभाग्य मिला ; छत्तीसगढ़ी में मेरे लिए यह नया अनुभव है , इसमें मैंने उपन्यास विधा की सभी खूबियों को पाया |
जानकी – छत्तीसगढ़ी उपन्यास
दुनिया के सबेच्च बेटी लछमी होथें फेर सबो बेटा नरायन कहाँ हो पाथें
कोई भी उपन्यास किसी कथा की वह विस्तृत कथन शैली है जो पाठकों को अपनी रोचकता के साथ अंत तक जोड़े रखती है | इसमें सामाजिक चेतना की सूक्ष्म अभिब्यक्ति के साथ विशद ब्याख्यान हमें देखने को मिलता है ।
रामनाथ साहू जी का छत्तीसगढ़ी उपन्यास जानकी पढने का सौभाग्य मिला ; छत्तीसगढ़ी में मेरे लिए यह नया अनुभव है , इसमें मैंने उपन्यास विधा की सभी खूबियों को पाया | वर्तमान सामाजिक जीवन की अभिब्यक्ति इस कथा साहित्य में सिलसिले वार आगे बढ़ती है । स्त्री विमर्श का एक सामाजिक यथार्थवाद है जो जीवंत एवं बोधगम्य है । इसकी विषयवस्तु पाठक को बाँधे रखने में समर्थ है कोई चाहकर भी इसे अधूरा नहीं छोड़ सकता , बदलते दृश्यों के बीच उपन्यास अपने आप में छत्तीसगढ़ी भाषा – बोली के साथ पूरा न्याय करते हुए प्रस्तुत हुई है , वहीं दूसरी ओर इसकी प्रमुख नायिका –जानकी के चरित्र को एक आम महिला के साथ जोड़ती है | इसकी भाषा अपने अंचल की बोलियों , मुहावरों और लोकोक्तियों के दृश्यों के साथ – साथ परोसी गयी है , कुछ नये शब्दों से मेरा सामना हुआ जिसने मुझे चौंकाया वे ये हैं – करलठुआ , खोझार , पियाग , डमरू गोली , एवं बहँगर | ये शब्द छत्तीसगढ़ी के जानकारों को भी अचंभित कर सकते हैं क्योंकि इसका प्रयोग सीमित क्षेत्रों में होता है । इसमें की कुछ मुहावरों और लोकोक्तियों को विस्तार से समझना होगा – ‘ दुनिया के सबेच्च बेटी लछमी होथें फेर सबो बेटा नरायन कहाँ हो पाथें | ’ , ‘ अपन करनी .. पार उतरनी ... ’ , ‘ममा घर सुघरायं अउ कका घर दुबराय ’ , ‘ जहाँ के पानी तहाँ जा ...मोर ओनहा सुखा जा ...’ और ‘ मतवार के बेटा मतवार ’ |
जानकी – छत्तीसगढ़ी उपन्यास |
यह उपन्यास जानकी , कमल , आत्माराम , मोंगरा , रतन , रूपा , झरना , सुलोचना एवं प्राची मैडम की भूमिका के साथ बढ़ती है | इसके विषयवस्तु के केंद्र में मद्यपान और उससे होने वाली सामजिक कुरीतियाँ हैं जिससे घरों एवं परिवारों की त्रासदी,बर्बादी की चर्चा है | जानकी उपन्यास का विषय लेखक को उनके आस – पास ही संवेदित किया हुआ लगता है क्योंकि इसकी पृष्ठभूमि में गाँव का दृश्य है जो की इन दिनों छत्तीसगढ़ में एक आम बात है | इस दृष्टि से उपन्यासकार जमीन से जुड़कर काफी निकट से इसको अनुभूत करते हुए इस समस्या के निदान की और अग्रसर होते दिखते हैं |
जानकी उपन्यास नायिका जानकी और नायक कमल की छत्तीसगढ़ी पारंपरिक शादी – ब्याह से शुरू होते हुए रथदुतिया के मेले का आनंद लेते हुए वर्षा ऋतु एवं मित्रता का अद्भुत रूप गजामूंग का सुन्दर वर्णन किया है -
जानकी ल समझत बेर ..........................आन दिन अउ का नई करत होही|[08]
बेंत के छोटे पूंगी ...........खड़खड़िया जुआ घलो ...|[15]
अब हो गय तॅुहर – हमर गजामूंग ... जिनगी भर के सौदा ... |[18]
बच्चों के खेल घोर – घोर रानी का दृश्य के साथ घरेलू खिलौनों के साथ खेलते हुए रतन का यह कहना चौंकाता है – ......अउ ये ... ? बोतल ....|
दीपावली पर्व पर नायिका का यह कहना –‘ ये दिया मन ले घर अंजोर हे फेर असली दिया जेकर आए ले घर अंजोर होना चाहिए वोहर अभी तक घर नई आए सके हे |’ [100]
इस उपन्यास में छत्तीसगढ़ के गाँव की प्रकृति का वर्णन अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करते हैं – ‘ बित्ता , बित्ता करत सुरुज हर पूरा के पूरा अगास ल नाप डरिस| ’ [106] ; धीरे – धीरे ये सुन्दर धरती ल अंधियार के करिया .........वोई भोंगरा हो गय हे |[106] और ‘ सुरुज हर मुठा – मुठा सोनहा ..........ख़मख़म ले ठाढे खेत |’[69] एवं ‘ चौदस के निर्मल चंदा ............फुल के कहर ये हर | [ 07]
भूख की अपनी अलग मर्मान्तक पीड़ा होती है जिसे बखूबी उकेरा गया है –
‘ ये महुआ ला देखव ....................मनखे माते रहिथे |’ [71]
इस उपन्यास की कुछ पंक्तियों ने मन मोह लिया है जिनका यहाँ पर उल्लेख करना उचित होगा , ये सभी अपने – अपने दृश्यों को विशेषतः गति प्रदान करते हैं –
‘ दुनिया ये ... अलग जगह हे ..वोती वोहर अलग तिहार मनावत होही| ‘ [17]
‘ नहीं ... नहीं ...मोर कांस के थारी नहीं .. ये मोर सोन के थारी ...|’ [28]
‘ कमई से मनखे के तौलाई नहीं हो सके कि कोन गरु के कोन हरु ?’ [36]
‘ चंदा ठाढ़ हो गय अगास मं फेर ..............सुन्दर बना देथें |’ [40]
‘ बोपरी ... फेर वोकर लुगरा भर चिराय ..........एकठन उदिम रहिस |’ [56]
इस उपन्यास की नायिका जानकी का ब्याह एक शराबी कमल [ नायक ] से होता है वह अपने आप को भागमानी मानती थी जिसके पास चार टेपरी का खेत होने का उल्लेख है किन्तु समय के साथ वह सब कुछ खो देती है यहाँ तक की उसका पति भी जल्दी मर जाता है और उसके कारण उसे मजदूरी करना पड़ता है बच्चे को पढ़ाने के लिए वह एक स्कूल में काम करते हुए कठपुतली बनाना सीख जाती है , खेतों – घरों में काम करती है उसका हुनर और मेहनत के सब कायल थे , उसकी ममतामयी छबि और समर्पण को स्कूल के वार्षिकोत्सव में सम्मानित किया जाता है | अंत तक उसका साथ सिर्फ उसके गजामूंग निभाते हैं यहाँ तक की उसका बेटा रतन भी शराबी होकर मर जाता है तब जाकर उसने शराबबंदी का जिम्मा उठाया और ठेके में जा जाकर लोगों को शराब पीने से मना करती थी और शराब नही पीने की भीख मांगती है | नारी सशक्तिकरण के केंद्र में जानकी अकेली पड़ गयी है लेकिन उसने कभी पीठ नहीं दिखाई और झिथर्री डोकरी बनकर खुद कठपुतली बने अपने समय का मुकाबला करते रही इस दृश्य को आमतौर पर छत्तीसगढ़ के गाँवों में देखा जा सकता है | इन दिनों अपने आसपास ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ महिलाओं के ग्रूप ने शराबबंदी की कमान संभाले हुए समाज में अनुकरणीय उदहारण प्रस्तुत कर रही हैं |
छत्तीसगढ़ी के इस उत्कृष्ट उपन्यास के लिए रामनाथ साहू जी को बधाई , शुभकामनाएं ; आशा है यह छत्तीसगढ़ी साहित्य में एक बार फिर से मील का पत्थर साबित होगी | पाठकों एवं नवरचनाकारों को इसे पढ़ना चाहिए .... |
शुभकामनाएं |
जानकी – छत्तीसगढ़ी उपन्यास, ISBN-978-93-88867-32-0
उपन्यासकार – रामनाथ साहू
प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर 2020 , पृष्ठ -136 , मूल्य – 200 रु.
समीक्षक – रमेश कुमार सोनी , बसना [छत्तीसगढ़]
- रमेश कुमार सोनी
राज्यपाल पुरस्कृत ब्याख्याता एवं साहित्यकार
जे.पी. रोड , एच.पी. गैस के सामने – बसना
जिला – महासमुंद [ छत्तीसगढ़ ] पिन – 493554
मोबाइल संपर्क – 7049355476
COMMENTS