मैंने क्या किया

SHARE:

मैंने क्या किया जनवरी का महीना था । घने कोहरे से आसमान ढंका हुआ था । हाड़ को कंपा देने वाली ठंढी हवाएं चल रही थी और शरीर की शिराओं में बहता हुआ खून ठिठुर कर जैसे अकड़ गया था । आज तीन दिनों से, नहीं-नहीं बल्कि यों कहूँ कि नए साल के शुभ आगमन जैसे सर्वप्रथम ये हृदय को चीर देनेवाली ठंढी हवाएं बड़े लाव लश्कर के साथ स्वागत किया था ।

मैंने क्या किया

     
जनवरी का महीना था । घने कोहरे से आसमान ढंका हुआ था । हाड़ को कंपा देने वाली ठंढी हवाएं चल रही थी और शरीर की शिराओं में बहता हुआ खून ठिठुर कर जैसे अकड़ गया था । आज तीन दिनों से, नहीं-नहीं बल्कि यों कहूँ कि नए साल के शुभ आगमन जैसे सर्वप्रथम ये हृदय को चीर देनेवाली ठंढी हवाएं बड़े लाव लश्कर के साथ स्वागत किया था । लेकिन वेलोग जिनके तन पर साबुत कपड़े नहीं हैं, ठंढ से कांपते, थरथराते, अपने अकड़े हुए बाजुओं को बहुत ही मुश्किल के साथ समेटते, अपने बेजान पैरों को किसी तरह जमीन पर टिकाते, बेचारगी किस्मत के साथ आह भरते, थरथराते अधरों से सिसकारी निकालते नए साल का स्वागत किया था । पुरा देश, पुरा शहर, या पुरा पुरा कस्वा नए साल का स्वागत कर रहा था । उन्हें ठंढ डरा नहीं रहा था, कोहरे की भयावहता, उन्हें कंपा नहीं रहा था, बहुत ही आराम से समाज का एक वर्ग जश्न में डुबा था । लेकिन समाज का दूसरा तबका जिसे गरीब, लाचार, बेवस या वंचित कहा जाता है, अपने प्राण पिपासा शरीर को सिर्फ सहेज रहा था । उन्हें हमेशा इंतजार रहता कि कब कोहरा छंटे और चटकीले धुप का दर्शन हो, और सुर्य की रश्मियों से प्राण वायु निकलकर जन जीवन को अपने गोद मे कोमलता के साथ समेट ले । 
     
यह घनघोर रूप से विचलित कर देनेवाला आवाक और बेचारा समय था । हैरान कर देनेवाली बेचारगी, और कायर जड़ता में पुरी तरह डुबा हुआ । घर परिवार की स्थितियां तर्क से परे चली गई थी और आश्चर्य और व्यस्त दिनचर्चाओं की तरह घट बढ रहे थे । हमारी आर्थिक स्थिति अपने अबतक के सबसे मनहूस और अजीबोगरीब दौर से गुजर रही थी । हमारे गांव के कुछ लोग आश्चर्यजनक तरीके से समृद्ध होते जा रहे थे , या आश्चर्यजनक तरीके से गरीब । मेरे बचपन के बहुत सारे मित्र, जिनके साथ मैंने बचपन गुजरा था, सुर्य की गुनगुनी धुप में साथ साथ खेला, एक दुसरे के सुख दुःख में शरीक हुआ था, उनमें से अधिकांश महानगरों में बस गए । समय बिता, दिन, महीने, और साल भी गुजरे, कल तक मामुली से भोजन करने वाले, मैले कुचैले और तंग कपड़े पहनने को विवश, फटेहाल और व्यथित जीवन जीने को अभिशप्त, आज उनका रहन सहन सब कुछ बदल गया । महानगरों की चकाचौंध से वे चौंके नहीं उसके हिसाब से वे स्वयं को पुनःस्थापित किए । गरीबी के दलदल से निकलने की छटपटाहट, पैसे कमाने की खुमारी उन्हें पूरी तरह से बदल चुका था । मामुली और सामान्य सा जीवन जीने वाले, आज पैसे वाले बन गए और दिनोदिन समृद्ध और संपन्न होते चले गए । 
     
लेकिन मैं नहीं बदला । न बदला मेरी मजबुरी, मेरी लाचारी, न दरिद्रता, न बेचारगी, न तंगहाली, कुछ भी तो नहीं
मैंने क्या किया
बदला । आज बीस सालों से जिस स्थिति में था वहीं अपने आपको टिकाए रखने का भरसक प्रयास कर रहा हूँ । हां इस बीस सालों में, मेरे जीवन मे अगर कुछ इजाफा हुआ है तो मेरे तीन बच्चे और उसकी माँ यानी मेरी पत्नी की मौन जिजीविषा की आत्मसंतुष्टि , जो मेरे साथ साथ नियति का रोना रोती हुई, पल पल अपने दुखड़े को तार तार करती और अपने भाग्य को कोसती, एक उदास, हताश, और बदहाल से जीवन जीने को अभिशप्त है । और ये कुछ भी तो नहीं बदल सकते । बीस सालों से जो मैं सपने संजोए हुआ था उसका बलात अपहरण न हो जाए । एक ही तो साध बसाए हुआ था ‘एक बिकता हुआ राइटर बनने का । उभरता हुआ लेखक, जिसे मैं वर्षों से अपने दोस्तों को शेयर करते आ रहा था । लेकिन बीते सालों में मेरा यही मुराद पुरा होते होते तो रहा , अपने लिए पागल, सनकी,और कामचोर का तमगा जरूर हासिल कर लिया था । कारण साफ था और देखने लायक भी । हम सपरिवार जिस मकान में रह रहे थे, वह पुरी तरह से गिर कर बेजान खंडहर का रूप ले चुका था । बहुत ही मेहनत मसकत से मात्र दो कमरा बनवाकर मकान का शक्ल तो दे दिया था लेकिन उसपर छप्पर नहीं था । आज वर्षों से उसे बरसाती ढंककर हम सभी परिवार गुजारा कर रहे थे । बरसात के दिनों में जब मूसलाधार वारिस होने लगता था, हमारे घर में जैसे बाढ़ की विभीषिका की सी स्थिति बन जाता । मेरी पत्नी, मेरे बच्चे उस वक्त स्वयं को सबसे निरीह, लाचार और बेवस समझते, और मैं उस वक्त स्वयं को कोसता---‘मैं जिंदा क्यों हूँ, क्या इसी दिन को देखने के लिए’ । मैं मारे आत्मिक पीड़ा और घर की दयनीय दशा को देखकर स्वयं से लज्जित होता। मेरी पत्नी उस समय करुणा भरी नेत्रों से मेरी ओर ताकती तो मुझमें उससे आंखे मिलाने का साहस नहीं होता । वह मुझे ऐसे घुरती जैसे वह मुझे बुरी तरह से दुत्कार रही हो । मेरे बच्चे जैसे मुझे याचना भरी दृष्टि से देखते हुए सवाल करते---‘पापा घर कब बनाओगे’ । मैं कुछ ग्लानि के साथ उन्हें शायद झुठी सांत्वना देते हुए कहता---‘बस बेटा सब्र करो थोड़े दिनों के बाद सब ठीक हो जाएगा’ ।
     
आए दिन मेरी पत्नी मुझसे लड़ा करती । ताने देते हुए कहती--- “आखिर कौन सा सुख मिला है इस घर में आजतक । मेरी छोड़ो, छोटे छोटे बच्चे हैं घर में , उसे कौन सा सुख दे रहे हो । तीज त्योहार आता है, दशहरा दीपावली आता है, न ढंग के कपड़े, न ढंग का खाना मिलता है । खाने पहनने के लिए तरसते रहते हैं । एक बेटा है, अभी नादान है , मासूम है हर वक्त आस लगाए बैठा है कि कब उसके पसंद के कपड़े मिले । खाने पीने के लिए हमेशा लालायित रहता है । मुहल्ले के दुसरे बच्चे को देख देख कर रोता रहता है । पढ़ाई कर रहा है, कभी कॉपी कलम को तरसता है, कभी किताब को ललचाता रहता है । कैसे बाप हैं आप”। 
      
मैं चुपचाप बस सुनता रहता था । क्या बोलता ? अपनी विवशता पर, अपनी लाचारगी पर खुद को कोसता रहता । आखिर मैं भी कैसा अभागा पिता हूँ जो कम से कम अपने बच्चे को कोई खुशी नहीं दे पा रहा हूँ । मुझे याद है जब भी मेरा पुत्र कुंदन कपड़े, किताब या फीस के लिए कहता मैं अपनी दयनीय दशा पर भावुक हो जाता और बड़े दुलार से कहता---‘बस दो चार दिन में इंतजाम कर दुंगा । अच्छा देखो ! जब मेरा किताब छप जाएगा, बहुत सारे पैसे मिलेंगे । फिर घर भी शानदार बन जाएगा और तुम सबों का मुराद भी पुरा हो जाएगा । फिर तो जो भी खरीदने कहोगे वो तत्काल तुम्हे लाकर दिया जाएगा ।       धीरे धीरे मेरे बच्चे मेरी विवशता और लाचारी को समझने लगे थे । अलबत्ता एक गुण उनमें विकसित हो रहा था, धैर्य के साथ रहने का गुण , मेरी हर बात को सुनकर शांति के साथ अमल करने का गुण । वे आशान्वित थे, भविष्य के लिए । कई बार जब किताबों व अन्य जरूरत के सामान खरीदने के लिए मैं उन्हें पैसे नहीं दे पाता था और जब कुंदन अपनी नई किताब या चप्पलें, या अपने लिए कपड़े खरीद कर लाता तो मैं हताश किंतु चकित भाव से पूछता---“बेटे इसके लिए पैसे कहाँ से लाए” ।
     
कुंदन फीकी मुस्कान के साथ कहता--- “आप बाजार जाते समय खाने के लिए कभी कभार जो पैसे देते थे, उसे मैं जमा करता था , उसी पैसे से मैं ये किताब खरीदा हूँ । आप ज्यादा सोचिए मत । कुछ और पैसे बचे हैं मेरे पास , आपका चप्पल नहीं है मैं कल खरीद कर ला दूँगा “।
     
मैं खुशी से रो ही पड़ता । कैसा नासमझ लड़का है , न खाया न पिया , उस वस्तु को खरीद लाया, जिसे मुझे खरीद कर देना चाहिए था । मैं जानता था कि मेरी बदहाली का असर मेरे बच्चों पर है । मेरी बदहाली को वे खामोसी के साथ स्वीकार करते हैं और परम् संतुष्ट हैं, क्योंकि उनको मुझसे यानी अपने पिता से एक बहुत बड़ी उम्मीद है , अपेक्षा है , उन्हें मुझपर भरोसा है कि हम एक असाधारण इंसान के बच्चे हैं और हमें उनकी तंगहाली और विवशता का उपेक्षा नहीं बल्कि सम्मान करना चाहिए । वे भली भांति इस बात को जान चुके थे कि मैं जो भी कर रहा हूँ उससे भविष्य में एक पहचान और एक अमर कृति का निर्माण होगा जिस पर हमसब को गर्व होगा, लोग सम्मान करेंगे । वे सिर्फ हमारे नहीं बल्कि समाज के, पुरे समुदाय के रचनाकार हैं और हमें उनका साथ देना चाहिए । और यकीनन मुझे मेरे बच्चों का सहयोग मिल रहा था । कभी कभी मुझे खुद पर संदेह होने लगता कि क्या मैं अपने बच्चों कि अपेक्षाओं को पुरा कर पाऊंगा । मैं खुश भी था, कि चलो ये बच्चे अपने भविष्य के लिए उत्साहित हैं और गंभीर भी ।
     
पिछले वर्ष की दिवाली मेरे लिए मनहूसियत लेकर आई थी । गांव के सारे लोग नए कपड़े की खरीददारी, घर की साफ सफाई और अपने-अपने घर की साज सज्जा कर रहे थे । हप्तों से मेरी पत्नी मुझे बार-बार याद दिला रही थी । सभी बच्चे कपड़े के लिए रो रहे थे । इस बात की सुचना मेरे दोनों छोटे बच्चे भी दे चुके थे । मैं भी कपड़े लाने के लिए अपना मौन स्वीकृति देकर बच्चों को आश्वश्त कर दिया था । दिवाली नजदीक था और मेरे पास पैसे नहीं थे । कोई इंतजाम भी नहीं हो पा रहा था । मैं काफी हताश और परेशान था । पता नहीं कितने पर्व त्योहारों में मैं तीनों बच्चे को बहलाते फुसलाते और टालते आ रहा था लेकिन अब उन्हें और टालना मुझे अखर रहा था । दोनों छोटे बच्चों के कपड़े भी तंग थे और जगह जगह फट कर चीथड़ों का रूप ले लिया था । गनीमत था कि स्कूल का ड्रेस अभी सलामत था । मुहल्ले के लोग भी मेरे बच्चों से उपहास उड़ाते--- “कहो राइटर की बेटी , इस दिवाली में नए कपड़े भी नहीं खरीदता तेरा बाप” । और भी कई तरह की बातें करते रहे, और मेरे बच्चे चुपचाप विनम्र भाव से सुनते रहे । और अंत में मेरी बड़ी लड़की ज्योति बोली थी उन लोगों से--- “मेरे पापा गरीब है , पैसे नहीं है , अगर मेरे पास नहीं है तो तुमलोग दोगे क्या, बोलो । शाम को वे दोनों बच्चे सुबकते हुए कहने लगा । दुनिया जहान की बातें । मैं एक उदास सी हंसी हँसते हुए बोला--- ‘बेटी जब मेरे पास ढेर सारे पैसे हो जाएंगे तो देखना बहुत सारे कपड़े खिलौने खरीद दुंगा” । 
     
दूसरे शाम को मैं जैसे ही अपने घर पहुंचा मेरे दोनों छोटे बच्चे मुझे घेर लिया--- “पापा, परसो दिवाली है । कल बाजार से हमारे कपड़े खरीद दो न पहनने के लिए भी अब एक भी कपड़ा नहीं है । चाहे सस्ता ही सही लेकिन ला दो ।“ 
     
“हां बेटे कल जरूर ले दुंगा चिंता मत करो मन लगाकर पढ़ाई करो” मैं दोनों बच्चों को किसी तरह शांत किया । पुनः अपने घर के अंदर एक खोजी दृष्टि डालते हुए पूछा-“कुंदन घर में नहीं है, कहाँ गया है”? 
      
“पता नहीं !” ज्योति सिर हिलाती हुई बोली-“स्कुल से आने के बाद नहीं देखी” ।
      
“वह स्कुल गया था “ मैंने दुबारा पूछा ।
      
“मालुम नहीं है पापा”।
     
 मैं चुपचाप गांव के चौराहे पर निकल गया । मुहल्ले के कुछ लोग पैठे हुए थे । और उनके बीच अगले विधान सभा चुनाव के बारे में चर्चा हो रहा था ।  वहीं पास में कुछ बच्चे अपने खेल में मशगूल थे । थोड़ी देर बाद जब मैं घर आया तो तीनों बच्चे ज्योति, प्रीति और कुंदन पढ़ाई कर रहे थे । मैं भी बच्चों के साथ एक चटाई पर बैठ गया और बड़े प्यार से कुन्दन से पुछा---“कुन्दन आज स्कुल नहीं गया था क्या ?”
      कुन्दन बोला कुछ नहीं , चुपचाप पढ़ाई में मग्न था । उसकी एकाग्रता देख कर कुछ देर तक मैं भी चुप रहा लेकिन पुनः उत्सुकता वश पुछ लिया---“आज क्या होमवर्क मिला है जरा दिखाना तो हमें” । 
     “मैं आज स्कुल नहीं गया था पापा” । कुन्दन रूखे स्वर में बोला ।
     “क्यों, क्यों नहीं गया स्कूल” ? मैनें डांटते हुए पुछा । 
     बच्चा पहले तो सकपकाया फिर उदास स्वर में बोला---“कल सर जी फीस मांग रहे थे, तीन महीने का फीस बाकी है “।
     “कोई बात नहीं, फीस तो हमको न देना है तुमको तो पढ़ाई नहीं छोड़ना चाहिए” । मैं कुछ विवश होते हुए बोला । 
      “कल अपने क्लास में plisment मिला था”। कुन्दन निर्विवाद रूप से बोला । 
      “क्या पलिसमेन्ट या पिटाई के डर से हमें स्कुल छोड़ देना चाहिए । ऐसे स्कुल छोड़ने से सिलेबस छुट जाएगा न । अच्छा छोड़ो, आज दिनभर कहां था “ ।
      वह बोला कुछ नहीं । मुझे अपलक , उदास नेत्रों से देखने लगा । मुझे हैरानी हुआ इतने में मेरी पत्नी आई और आते ही अपने स्वभाव के अनुकूल रामकथा सुरु कर दी---“मैं कब से कह रही हूँ अगर पैसे नहीं जुटते हैं तो स्कुल क्यों नहीं छुड़वा देते । न टैम पर फीस मिलता है , न किताब, न पोशाक , यहां खाने के लिए लाले पड़े हैं , और चले हैं तालीम दिलवाने । “ वह कुछ गुस्सा, कुछ आवेश, कुछ उलाहने के स्वर में बोली ।
      “ये तुम कैसी बातें करने लगी हो, दो तीन महीने का फीस ही तो बकाया हुआ है, कोई बहुत बड़ा आफत तो नहीं आया न । और फीस के लिए तुम क्यों सोचती हो वो सब सोचना मेरा काम है” । मैनें थोड़ा तल्ख भाव से बोला । 
       “सब तो आपही को सोचना है । परसो दिवाली है । दोनों बच्चे हप्ते से कह रहे हैं कपड़े के लिए । जरा बताओ तो कौन सा इंतजाम किए हो “ । वह बिफरते हुए बोली ।
       मैं विवशता के साथ कभी बच्चों को कभी अपनी पत्नी के चेहरे को देखने लगा । मेरी पत्नी गुस्से से मुझे देखते हुए और कुन्दन की ओर इशारा करते हुए बोली---“ये लौंडा आज तीन दिनों से स्कुल नहीं जा रहा है , दिन भर अपने यारों के साथ कहां रहता है, कभी पुछा अपने क्या फीस में कोई कटौती होगा । आपको तो जैसे कोई परवाह ही नहीं है” ।
      मैं बड़े स्नेह के साथ कुन्दन से पुछा---“बेटे तीन दिनों से स्कुल नहीं जा रहा था तो दिन दिन भर करता क्या था”।
     “मैं काम कर रहा था पापा ?” वह बुझे हुए स्वर में बोला ।
     “काम कर रहा था , लेकिन क्यों ? कैसा काम ?” मैं आश्चर्यचकित होकर पुछा ।
     “हां गांव में ही बाथरूम बन रहा है न ! हम तीन लड़के मिलकर गढ्ढा खोदने का काम कर रहे हैं”। वह उदास स्वर में बोला था , बोलते बोलते उसके आंखों में मर्माहत पीड़ा के भाव उत्तर आए । मैं यह सुन कर कि लड़का काम करने जाता है, मैं आत्मिक पीड़ा से कराह उठा था । स्वयं से नफरत भी होने लगा, पछतावा भी होने लगा और लज्जा भी । मैं सोचने लगा, आखिर यह छोटा सा खेलने, खाने, पीने, पढ़ने औऱ बेफिक्री के साथ दिन गुजरने वाला लड़का आज घर की जरूरतों को पुरा करने के लिए , अपने फीस चुकाने के लिए या घर की जिम्मेवारियों को पुरा करने के लिए दुसरे के अधीन काम कर रहा है, क्यों, क्या इसीलिए न कि मैं अपनी जिम्मेवारी को पुरा करने से लाचार हूँ । मैं समय पर बच्चों को फीस नहीं दे सकता, कपड़े नहीं दे सकता, छोटी से छोटी जरूरतों को पुरा नहीं कर सकता । मन अशांत हो गया । बड़े ही दीनता और कृपणता के साथ कुन्दन को समझाते हुए पूछा—“तुम्हें पढ़ाई छोड़कर काम करने की धुन कब से सवार हो गया कुन्दन” ।
     कुन्दन एकदम शांत सुन रहा था और फिर मुझे ऐसे भाव से देखा जैसे हलाल के लिए तैयार बकरा कसाई को देखता हो । उसके आंखों में आँसू बहने लगा । मुझे लगा वह कुछ बोलना चाह रहा है, लेकिन उसके होंठों तक शब्द अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद भी दम तोड़ रहा है । मैं कुन्दन को स्नेह के साथ अपने गोद में खींच लिया और उसके कोमल बालों में उंगली फिराते हुए बोला—“डरो मत बेटे, मैं जानता हूं कि आनन फानन में तुम्हारी कोई भी मांग को पुरा करने में मजबुर हूँ , फिर भी तुम्हे कम से कम पढ़ाई तो नहीं छोड़ना चाहिए, अभी पढ़ाई करते हुए एक-एक दिन तुम्हारे लिए किमती है , कुन्दन” । 
      कुन्दन रोने लगा । रोते हुए वह अपनी कमीज की जेब से एक मुड़ा हुआ लिफाफा निकालकर रख दिया और बोला—“हप्ते दिन से स्कुल में फीस के लिए ,सर का डांट सुन रहा था । मोहन काम पर लगा हुआ था और उसी के कहने पर मैं भी गढ्ढा खोदने लगा । आज काम पूरा होने पर ठीकेदार ने पैसा दिया । आपके पास पैसे नहीं हैं । ज्योति और प्रीति कपड़े के लिए रो रहा है । आपके चप्पल भी टुट चुके हैं । कल बाजार जाकर इन दोनों के लिए कपड़े और अपना चप्पल खरीद लीजिए “।  
      मैं चकित था । उसके एक एक शब्दों में याचना  भी था, प्रार्थना भी था और अपराध बोध भी । लिफाफा खोला लो उसमे कुल बारह सौ रुपये थे । मैं समझ गया कि यह कुन्दन की , मेरे बच्चे की कमाई है, उसके सपनों का बंडल है और मेरी अभाव ग्रस्त जिंदगी का गरिमापूर्ण वरदान है । मेरे आंखों में आंसू आ गए । आज कुन्दन इतनी छोटी उम्र में मेरा पिता बन बैठा था जिसे मेरे टुटे हुए चप्पल का ख्याल था , बच्चों के कपड़ों की चिंता थी और मैं एक पिता होकर भी नादान नासमझ बच्चा बन बैठा था । मैं सोचने लगा, इतनी छोटी सी उम्र में कुन्दन के मन में ये विचार आया कैसे, इसे मैं क्या कहूँ, उसका मौन त्याग कहूं, समर्पण कहूं, सेवा की भावना कहूं या एक पिता के डगमगाते पैरों को साहस के साथ
आगे बढ़ने के लिए एक महान प्रेरणा कहूं । मेरी पत्नी इस सारे दृश्य को देखी तो वह भी तड़प उठी । कुन्दन को गोद मे भरकर रोने लगी । रोते हुए बोली--- “कैसा अभागा है रे तू ! मैं तुम्हे बुरा भला बोलता रहा और तुम चुपचाप अपनी इच्छाओं को मारकर घर गृहस्थी की चिंता में घुलता रहा । मुझे माफ़ कर दो बेटा । मैं बावरी हो गई थी रे । क्या करती, पगली माँ हूँ न । बेटा ! तुम्हे अपनी बहनों की, अपने मम्मी पापा की इतनी चिंता है तुम अपने लिए कुछ भी नहीं खरीदोगे” ? 
     “मुझे तो अभी पढ़ना है माँ । आई पी एस ऑफिसर बनना है, मुझे और कुछ नहीं चाहिए । मुझे आप दोनों आशीर्वाद दीजिए कि मैं अपने सपने को साकार कर पाऊं” ।
     “जरूर, लेकिन आज से सिर्फ तुम अपने पढ़ाई पर ध्यान दोगे । मैं हूँ न कमाने के लिए”। मैं भरे गले से बोला—“बेटे अगर जीवन में बहुत आगे बढ़ना है तो हर विकट परिस्थितियों का मुकाबला करना सीखो , समझौता नहीं” ।
     “जी पापा, आगे से मैं ख्याल रखूंगा” कहकर वह बात को बदलते हुए कहा—“कुछ होम वर्क मिला है स्कुल का उसे सॉल्व करा दीजिए” ।
     “अच्छा लाओ” मैं भावुकता के साथ बोला और बच्चों के साथ बैठ गया ।
   उस रात को मुझे नींद नही आ रहा था । अंदर से एक अजीब प्रकार का बेचैनी महसुस हो रहा था । स्वयं पर पछतावा आ रहा था और गुस्सा भी । आज तक के अपने जीवन में मैनें किया क्या । खुश भी हो रहा था कि कुन्दन छोटे से उम्र में कितना व्यवहार कुशल और जिम्मेवार हो गया था । आज मुझे जिंदगी में पहली बार लग रहा था कि मेरा अबतक का जिंदगी का कद कितना छोटा हो गया था । आज शायद जिंदगी में पहली बार ऐसा हो रहा था, जिसे पढ़ने लिखने का शौक होना चाहिए वह अपने पिता के स्वाभिमान को, उनकी मान मर्यादा का आदर करते हुए गृहस्थी की जिम्मेवारी अपने कंधे पर ले रहा था । मेरे आंखों में आंसु आ गए । मेरा दिल आर्तनाद करने लगा । धीरे से अपने विस्तर से उठा और अपने विस्तर पर बेसुध सो रहे कुन्दन को देखा । उसके मुखमंडल पर कोई शिकन नहीं था, बल्कि गहन संतोष और विनम्रता के उज्ज्वल पुंज थे ।
★★★★★


- सुरेन्द्र प्रजापति
असनी गया (बिहार)
9006248245, 7061821603

COMMENTS

Leave a Reply: 1
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1474,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,38,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,76,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,6,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,10,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,139,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,47,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,17,भीष्म साहनी,8,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,15,यशपाल,15,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,2,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,33,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,269,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,20,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,86,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,431,हिंदी लेख,531,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,182,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,11,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,423,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,679,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,67,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,22,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,11,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,7,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,4,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,51,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: मैंने क्या किया
मैंने क्या किया
मैंने क्या किया जनवरी का महीना था । घने कोहरे से आसमान ढंका हुआ था । हाड़ को कंपा देने वाली ठंढी हवाएं चल रही थी और शरीर की शिराओं में बहता हुआ खून ठिठुर कर जैसे अकड़ गया था । आज तीन दिनों से, नहीं-नहीं बल्कि यों कहूँ कि नए साल के शुभ आगमन जैसे सर्वप्रथम ये हृदय को चीर देनेवाली ठंढी हवाएं बड़े लाव लश्कर के साथ स्वागत किया था ।
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjHODu4EqLwUmLKD3r1VxfcU-ln-iG17aeREyZMFnjbxHg7IukfGBpqNyez4O_SpVRfbej3H_CzgKuIz7e3EuXh0PweLm7KuXm-f3hprlxPdc53onLmDjLfoEcWTcD-esHSFamFirTJOdI2/s320/maine+kya+kiya.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjHODu4EqLwUmLKD3r1VxfcU-ln-iG17aeREyZMFnjbxHg7IukfGBpqNyez4O_SpVRfbej3H_CzgKuIz7e3EuXh0PweLm7KuXm-f3hprlxPdc53onLmDjLfoEcWTcD-esHSFamFirTJOdI2/s72-c/maine+kya+kiya.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2020/03/maine-kya-kiya.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2020/03/maine-kya-kiya.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका