मेरे गांव में राम आज लाॅकडाउन के समय में पूरा देश अपने घरों में बैठा है। चाहे धार्मिकता के कारण अथवा समय व्यतीत करने की दृष्टि से हर कोई रामायण अवश्य देख रहा है। देख हर कोई रहा किन्तु शायद वह मंत्रमुग्धता नहीं हो सकती जितनी तब थी जब रामायण प्रथम बार टेलीविजन पर आई थी।
मेरे गांव में राम
आज लाॅकडाउन के समय में पूरा देश अपने घरों में बैठा है। चाहे धार्मिकता के कारण अथवा समय व्यतीत करने की दृष्टि से हर कोई रामायण अवश्य देख रहा है। देख हर कोई रहा किन्तु शायद वह मंत्रमुग्धता नहीं हो सकती जितनी तब थी जब रामायण प्रथम बार टेलीविजन पर आई थी।
गांव में एक या दो टीवी हुआ करते थे। ठीक समय पर गांव के सभी लोग सुविधानुसार दोनों घरों में एकत्र हो जाया करते। देहली के आगे से सीढ़ियां तो थी, पर नजर नहीं आती थीं। जूते - चप्पलों से भरी सीढ़ियां बड़ी ही रंगबिरंगी दिखाई देती। भीतर का पजारा और भी मनमोहक होता , मैले कुचैले फटे पुराने जैसे भी कपड़े हो हर कोई एक ही भावना के साथ विराजमान होता कि उसने रामायण देखनी है।
ब्लैक इन वहाइट टेलीविजन का का मरोड़ कर शुरू करते तो सबसे पहले चाय सी उबल रही होती, जैसे गुस्से से कह रही हो जगाया क्यों? अब बारी आती ऐंटिने की , ‘‘ हरेन जा...जा... जल्दी जा तो ऐंटिना ठीक कर..... जा ‘‘। छत पर चढ़कर ‘‘ आया........। नहीं....... अब आया....... अभी नहीं....... थेड़ा और घुमा तो...... अब आया.....हां...... आ गया..... जल्दी आ..... आने वाला है रामायण......।
तब टीवी पर आवाज गूंजती टन.... टन... टन...। सब मंत्रमुग्ध से हाथ जोड़े विराजमान टीवी को निहार रहे होते जैसे साक्षात् राम के दर्शन होने वाले हैं।
सीता राम चरित अति पावन ।
मधुर सरस अरु अति मनभावन ॥
पुनि पुनि कितनेहू सुने सुनाये ।
हिय की प्यास भुजत न भुजाये॥
प्रेमाभिभूत , अश्रुपूरित नेत्र राम के दर्शन की ऐसी अंतःकरण को तृप्त कर देने की अनुभूति शायद ही किसी को न होती हो।
जब राम जन्म हुआ तो कक्ष और प्रांगण ‘‘जय श्री राम‘‘ ध्वनि से गुंजायमान हो रहा था। कभी - कभी बहुत अच्छा अंक आ रहा हो तो बिजली चली जाती। कक्ष में शोर । बिजली विभाग को शायद ही कभी इतनी गाली खानी पड़ी हो। ‘‘ ऐ....... बिजुलि काटि है....... रामायण ले नै देखन दि......तुमर भल नै होल....। निराशा भरे नेत्रों से बंद टी0 वी0 को ही निहारते। बच्चे.....बच्चों में तो अलग ही शुरूर छाया रहता।
चंचल गोस्वामी |
पद्मासन, कमर गर्दन सीधी , आंखों बंद और बैठ जाते ब्रहम देव को प्रसन्न करने। ओ.......म..... ब्रहम देव प्रसन्न हो......... ओ.......म..........ब्रहम देव प्रसन्न हो.........। बच्चों को तो यही लगता कि यदि रावण एक एपिसोड में रावण ब्रहमा को प्रसन्न कर सकता है तो वह क्यों नहीं?
वरदान......वरदान में तो केवल बिजली वापस लाने का वरदान मांग लें। कभी - कभी ब्रहमा प्रसन्न भी हो जाते ....., पर प्रतिदिन ऐसा न होता। अब ऐपिसोड पहुंच गया सीता हरण पर। सीता हरण में वाल्मीकी, तुलसीदास,स्वयंभू इत्यादि कवियों ने भी इतनी गाली रावण को न दी होगी जितनी दर्शक दीर्घा ने दी होगी। रावण......तेर भल कर्बै जन हो.......। त्वे तै कबै मुक्ति नै मिल.......। तै भड़ी जाए.......। मर जाए....। और भी बहुत कुछ। जटायू का वध हो अथवा शबरी की प्रतीक्षा हो सम्पूर्ण दर्शक मंडली रो रही होती। राजतिलक का जय घोष जब गुंजायमान हुआ जिसकी गूंज घर की दीवारों में तलक समा गई।
धीरे-धीरे सभी घरों में टी0 वी0 आ गई और वह भाव कम होता सा गया। टब एक नया दौर आरम्भ हुआ। राम कथा गान का मंदिर में प्रतिवर्ष अथवा वर्ष में एक बार रामायण अवश्य गाई जाती। अन्य गायन मंडली को हर बार बुलाना संभव न हो पाता अतः गा्रमीणें ने स्वयं ही हारमोनियम, तबला वादन सीख लिया। सा....रे...ग....म...प....ध....नी.....सां......। अब गांव में ही गूंज उठी थी स्वर लहरियां।
मगल भवन अमंगल हा.......री......., द्रवहु सो दशरथ अजिर बिहा.....री...।
देवी पूजि पद कमल तुम्हा....रे...., सुर नर मु नि सब होय सुखा.....रे....।
एक से दूसरे ने , दूसरे से तीसरे ने, हारमोनयम सीखी हर मंगलवार की रात्रि किसी न किसी घर में सुंदरकांड का पाठ होने लगा। एक लंबे समय तक यह दौर चलता रहा .फिर......फिर हर किसी के पास टी0 वी0 आ चुका था। समय कम हो गया। वर्ष में एक या दो बार रामायण पाठ होने लगा। अब गांव में फोन भी आ गया। की पैड वाला फोन....., फिर स्मार्ट फोन....। अब रामायण वही , कलाकार वही किन्तु आज देखने को आंकलन दृष्टि हेै। रामानन्द सागर ने अच्छा प्रयास किया है, और अच्छा हो सकता था.......। देखो एक ही कलाकार कितने पात्र कर रहा है आदि आदि।
अब हर कोई कलाकार , हर कोई समीक्षक , अग वह प्रेम ,भक्ति भाव नहीं वह तो जय श्री राम ध्वनि के साथ दीवारों में दफन हो गया। किसी कोने में ब्लैक इन व्हाइट टी0 वी0 के साथ धूल फांक रहा होगा।
- चंचल गोस्वामी
ग्राम-सन्न,
पो0 ऑ0- वडडा,पिथौरागढ़
उत्तराखण्ड
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