वो पगली लड़की धुंघराले भूरे रंग के बाल, बड़ी-बड़ी आंखें, गोरे रंग वाली वो लड़की जब भी आती थी, उसके होठों पर एक मुस्कुराहट-सी रहती थी। वो एक जिंदादिल लड़की थी, हमेशा बातों को मज़ाक में उड़ा देना उसकी एक आदत थी। लेकिन कभी-कभी वो एकदम गंभीर-सी हो जाती थी, लगता था अपने अंदर कोई दर्द छुपाये रखती थी।
वो पगली लड़की
धुंघराले भूरे रंग के बाल, बड़ी-बड़ी आंखें, गोरे रंग वाली वो लड़की जब भी आती थी, उसके होठों पर एक मुस्कुराहट-सी रहती थी। वो एक जिंदादिल लड़की थी, हमेशा बातों को मज़ाक में उड़ा देना उसकी एक आदत थी। लेकिन कभी-कभी वो एकदम गंभीर-सी हो जाती थी, लगता था अपने अंदर कोई दर्द छुपाये रखती थी।
उसके स्वभाव के जैसा ही उसका नाम था। सरिता। सरिता का अर्थ होता है नदी। सरिता के स्वभाव में भी कभी नदी की तरह ठहराव दिखता था, तो कभी एकदम रौद्र रूप हो जाता था जाने किस बात से इतना बिगड़ जाती थी। उसके चुलबुल स्वभाव के कारण ही सब उसे पगली कहते थे। लेकिन उसे कभी इसका बुरा नहीं लगता था।
सरिता का परिवार एक मध्यम वर्गीय परिवार था। छ: भाई-बहनों में सरिता सबसे बड़ी थी। उसके पिता सरकारी नौकरी में थे, लेकिन परिवार को आय इतनी नहीं थी कि सभी बच्चों की परवरिश आसानी से की जाती। छ: बच्चों में सरिता का एक ही भाई था, बाकी सभी बहनें थी। कभी-कभी सरिता कहती भी थी कि मेरे माता-पिता ने एक बेटे के खातिर इतने बच्चों को क्यों पैदा किया।
सरिता पढ़ने में ज्यादा होशियार नहीं थी। हाई-स्कूल की परीक्षा में ही वह दो बार फेल हो चुकी थी। जब भी
उसका रिजल्ट निकलता तो वह सीधे हमारे घर आ जाती थी। फिर बताती थी कि मैंने मेहनत तो बहुत की थी फिर भी फेल हो गई, तब हम उसे ढांढस बंधाते हुए कहते थे कि कोई बात नहीं इस बार ज्यादा मेहनत करना सफलता जरूर मिलेगी। वैसे सरिता मुझसे उम्र में बड़ी थी। लेकिन फिर भी मुझे वो अपनी सहेली-सी लगती थी। सरिता बाकी चीजों में काफी मेहनती थी। उसे सिलाई, कड़ाई, बुनाई सभी कुछ आता था। उसने मुझे भी ये सब सिखाया था। सरिता के हाथ से काढ़ी गई चादरों, तकिये के कवर आदि की सभी बहुत तारीफ करते थे, और लोग भी उससे अपने मनपसंद की चीजें बनवा लेते थे। वो खाना बनाने में भी निपुण थी। सरिता कभी किसी को ना नहीं कहती थी। हंसते हुए सभी का काम कर देती थी। शायद इसी वजह स उसे सब पगली कहते थे। वैसे भी इंसान अगर अंदर से निश्छल हो तो लोगों को लगता है वो पागल है।
सरिता कभी-कभी हमारे घर आती तो मेरी मां से कहती आंटी कुछ खाने को हो तो खिला दो आज घर पर पूरा खाना नहीं खाया। शायद इसकी वजह यही होती थी कि वो बाकी भाई-बहनों के बारे में भी सोचती थी। सर्वगुण सम्पन्न होते हुए भी सरिता में एक कमी रह गई थी वो थी उसका एक पैर से विकलांग होना। जिसकी वजह से वो काफी गंभीर हो जाती थी। शायद अपनी हंसी में इस दुख को छिपाने की बहुत कोशिश करती थी। वो बताती थी बचपन में पोलियों की वजह से उसका एक पांव टेड़ा सा हो गया है । जिसके कारण उसके चलने में एक लचीलापन सा था। इसी की वजह से वह हमेशा सैंडिल ही पहनती थी।
सरिता ने जब बारहवीं की परीक्षा पास कर ली तो उसकी शादी के लिए रिश्ते आने शुरू हो गये थे। सरिता की मां हमसे भी कहती थी कि मुझे बाकी बच्चों की चिंता नहीं है उनकी शादियां तो हो जायेगी इसी की चिंता है कि इसकी कैसे होगी? ऐसा सुनकर सरिता के चेहरे पर एक उदासी-सी छा जाती थी।
एक बार सरिता गर्मियों की दोपहर को मेरे पास आई, उसकी आंखे काफी सूजी हुई सी लग रही थीं। ऐसा लग रहा था कि जैसे पूरी रात सोई न हो। मैंने उससे पूछा तो उसने बताया कि लड़के वाले उसे देखने के लिए आए थे, सब कुछ सही रहा पर मेरे पैर को देखकर उन्होंने बोला हम सोचकर बताएंगे। ये बोलकर वो रूआंसी होकर बोली मेरे घरवाले इस बात के लिए मुझे ताने मारने लगे हैं। सरिता की बहन भी उससे एक साल ही छोटी थी। जब भी कोई रिश्ता आता तो वो छोटी को पसंद कर लेते पर घरवाले चाहते थे कि पहले सरिता की ही शादी हो नहीं तो लड़की कुंवारी ही रह जायेगी।
काफी समय बाद सरिता हमारे घर आयी और काफी खुश दिखी। हमने उससे पूछा कि क्या बात है आज बहुत खुश है तो वह बोली आंटी मेरा रिश्ता तय हो गया है। हमने पूछा लड़का कहां का है, क्या करता है, दिखने में कैसा है? एक साथ ही अनगिनत सवाल हमने उससे पूछ डाले। उसने बताया कि लड़का बैंक में नौकरी करता है, उसके परिवार वाले भी अच्छे हैं। लेकिन जब हमने उससे पूछा कि वह दिखने में कैसा है तो वह थोड़ा चुप सी हो गयी। फिर हमने उससे मजाक करते हुए पूछा कि अब तो बता दे कि लड़का कैसा है तो वह बोली आंटी लड़का दोनों पैरों से विकलांग है। ये सुनकर हम थोड़ी देर के लिए उसे देखते रह गये।
सरिता बोली कि मेरे लिए इतने रिश्ते आये सभी ने मुझे नकार दिया। मेरे अंदर सिर्फ एक ही कमी थी कि मेरा एक पैर थोड़ा खराब है, तो क्या मैं इससे अपाहिज हो गई। मैं दिमाग स, अपने मन से तो अपाहिज नहीं हूं। मुझमें वो सभी गुण हैं जो एक लड़की में लड़केवाले ढूंढते हैं। फिर वो मुझे देखने के बाद मुझे क्यों नकार देते हैं। इसलिए कि उनके शरीर में कोई ऐसा दोष नहीं है। सरिता लगातार बोलती जा रही थी, और उसके आंखों से आंसू भी बहते जा रहे थे। ऐसा लग रहा था कि वर्षों से उसके अंदर कोई द्वंद चल रहा था, जो आज आंसू बनकर फूट रहा था।
- सुनीता कटारिया (गोस्वामी)
पता- ब्रिज विहार, गाजियाबाद
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