वक्त के साथ हिन्दी मीडिया का बदलता अंदाज

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वक्त के साथ हिन्दी मीडिया का बदलता अंदाज नित नव रूप में हिन्दी मीडिया ने लंबा सफर तय किया है। मीडिया के साथ हिन्दी ने भी संचार किया है। माध्यम बदले हैं तो हिन्दी ने भी अपने तेवर बदले हैं। गांधी की दुनिया से लेकर ग्लोबल दुनिया तक जो कुछ बदला है लगभग उसी तरह के परिवर्तन हिन्दी मीडिया में भी दिखाई पड़ते हैं। आज हिन्दी मीडिया की दो स्थितियां सामने हैं: एक पुरातन पंथी और दूसरी नवाचारी।

वक्त के साथ हिन्दी मीडिया का बदलता अंदाज


नित नव रूप में हिन्दी मीडिया ने लंबा सफर तय किया है। मीडिया के साथ हिन्दी ने भी संचार किया है। माध्यम बदले हैं तो हिन्दी ने भी अपने तेवर बदले हैं। गांधी की दुनिया से लेकर ग्लोबल दुनिया तक जो कुछ बदला है लगभग उसी तरह के परिवर्तन हिन्दी मीडिया में भी दिखाई पड़ते हैं। आज हिन्दी मीडिया की दो स्थितियां सामने हैं: एक पुरातन पंथी और दूसरी नवाचारी। एक ओर अपने ही बाबुल की परम्पराओं और रूढि़यों में लिपटी दीन-हीन, वहीं दूसरी ओर, नवाचारी परिसर में चहक-महक रही है जिसकी कूक और खुशबू से पूरी दुनिया गंुजायमान है। बिंदी लगाकर हिन्दी जब चांदनी के साथ फेसबुक पर उतरती है तो गागर में सागर कहावत चरितार्थ होती है। ट्वीटर पर स्वीट हिन्दी के पैर थिरकते हैं तो यूजर्स इसके मोहपाश में बंधे रह जाते हैं। गूगल के साथ ग्लोबल हो चुकी इस नवाचारी हिन्दी में कुछ अंग्रेजी है, कुछ उर्दू, कुछ पंजाबी, कुछ बंगला, कुछ भोजपुरी आदि भाषाओं का काकटेल है। वक्त के साथ कदमताल करने वाली आज की हिन्दी कम्प्यूटर सैवी जरूर है परन्तु इसमें अपनी माटी की सोंधी सुगंध बरकरार है।
हिन्दी मीडिया
हिन्दी मीडिया
भारत बहुसंस्कृति के साथ-साथ भाषा वैविध्य का भी देश है जहां कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी कहावत चरितार्थ होती है। भाषा ही संस्कृति, समाज और जीवन को अभिव्यक्ति प्रदान करती है। भाषा ही अतीत और वर्तमान के मध्य सेतु का कार्य करती है और भविष्य के लिए मार्ग प्रशस्त करती है। भाषा ही नर और वानर का विभेद करती है। जनमाध्यमों में भाषा की अपनी भूमिका होती है। यहां तक कि दृश्य माध्यमों में भी भाषा के बिना दृश्यों को समझना मुश्किल हो जाता है चाहे मुद्रित माध्यम हो या श्रव्य माध्यम, भाषा के प्रयोग में अत्यधिक सावधानी और कुशलता की जरूरत होती है।
जनमाध्यमों में जो भाषा प्रयुक्त होती है उसे व्यापक जनसमुदाय पढ़ता है। हिन्दी भारत की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। यह देश की संपर्क भाषा है। हिन्दी को भाषा के तौर पर देखा जाय तो दुनिया की जबानों की सूची में इसका नंबर छठा है। जनमाध्यमों की वजह से इसका प्रसार क्षेत्र सारे भारत में है। इसे वे लोग भी सुनते हैं और बोलते हैं जिनकी हिन्दी मातृभाषा नहीं हैं।
हिन्दी मीडिया चाहे वो प्रिन्ट हो या इलेक्ट्रानिक, इसी खुली, उदार और समावेशी चरित्र वाली हिन्दी के साथ विकसित हुई है। भारत में मीडिया के विशाल साम्राज्य को खड़ा करने में हिन्दी ने महती भूमिका निभायी है लेकिन इन्हीं भारतीय जनमाध्यमों को लेकर कुछ विद्वजन सशंकित हैं। उनकी मानें तो भारत में उदारीकरण के बाद भारतीय जनमाध्यम और पूर्ववर्ती भारतीय जनमाध्यम में जमीन आसमान का अंतर है। दूसरे शब्दों में कहें तो वर्ष 1990 के दशक को संधिकाल मान सकते हैं जहां से हिंदी जनमाध्यम में विभाजन स्पष्टतः दृष्टिगोचर होता है। यही वो वक्त है जब से मीडिया हो या फिल्में, परिवर्तनकारी लक्षण परिलक्षित होने लगे। इलेक्ट्रानिक मीडिया विशेषतः टीवी न्यूज की भाषा में युगान्तरकारी परिवर्तन तब आया जब आजतक न्यूज कार्यक्रम की कमान सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने संभाली। भारतीय टीवी न्यूज चैनल की भाषा के जनक सुरेंद्र प्रताप सिंह ही थे। उन्होंने टीवी न्यूज को प्रतिस्पर्धात्मक बनाया। समाचार सामग्री के साथ उसके प्रस्तुति पर भी जोर दिया जाने लगा।
भारतीय शहरी मध्य वर्ग हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी अच्छी तरह से बोलता है, लिखता और समझता नहीं है लेकिन अंग्रेजी इसकी वर्गीय उध्र्व गतिशीलता को सहलाती है। इस वर्ग में अपनी पहुंच और प्रभाव का दायरा बढ़ाकर विज्ञापनों की आय में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए हिन्दी मीडिया ने नगर आधारित न्यूज बुलेटिन शुरू किए हैं और नीति के तहत इनकी भाषा अंग्रेजी मिश्रित हिन्दी यानी हिंग्लिश रखी गई है। सिटी न्यूज, सिटी बुलेटिन, सिटी टाइम्स आदि नामों से प्रकाशित/प्रसारित होने वाले इन समाचारों में एंटरटेनमेंट, एजुकेशन, फैशन, फूड, लाइफ स्टाइल, सेलीब्रिटीज आदि से संबंधित सामग्री ऐसी भाषा में परोसी जा रही है जिसमें हिन्दी के वाक्य गठन में अधिसंख्य शब्द अंग्रेजी के हैं। कोविड काल में भी यह देखने को मिल रहा है कि हिन्दी ने कैसे सोशल डिस्टेसिंग, सैनेटाइजर, क्वेरेन्टाइन, आइसोलेशन आदि शब्दों को ज्यों का अपना लिया है।
हिन्दी और अंग्रेजी के मिश्रण से तैयार भाषा ‘हिंग्लिश’ आज सर्वाधिक प्रचलन में है। आम लोगों की भाषा होने की वजह से इस हिंग्लिश को धीरे-धीरे चैनल, अखबार और पत्रिकाएँ भी अपना रही हैं। हाल ही में एक ट्रेंड देखने को मिल रहा है कि गैर हिन्दी भाषी नेता-अभिनेता भी हिन्दी में बोल रहे हैं और बतिया रहे हैं। फेहरिस्त लंबी है, बात वोटों की हो या टीआरपी की, जनता को खुद से जोड़ना हो तो मजबूरी में ही सही भाषा अब उसी की बोली जाए, यह कायदा पक्ष-प्रतिपक्ष को समझ में आने लगा है। 

हिन्दी की क्षमता और प्रभाव में बढ़ोत्तरी गैर-सरकारी क्षेत्र, खासकर मुक्त-बाजार और सूचना प्रसार प्रौद्योगिकी की वजह से है, सरकारी उपक्रमों की वजह से नहीं। बाजार और तकनीक वे बिन्दु हैं जिन पर हिन्दी-कर्मियों को चिंतन करना चाहिए। वह भाषा समृद्ध नहीं हो सकती जो अन्य भाषा  के शब्दों को आत्मसात करने का साहस नहीं रखती। यह गंगाजमुनी संस्कृति ही इसे इतना मोहक व इतना दिलकश बनाती है। 
जन माध्यमों के प्रिंट से इलेक्ट्रानिक-आनलाइन, प्रसारण के श्वेत-श्याम से रंगीन और फिर एनालाग से डिजिटल तकनीक के साथ साथ जनमाध्यमों पर अर्थव्यवस्था का भी प्रभाव पड़ा क्योंकि अर्थ का ही अर्थ है बाकी सब व्यर्थ है। फिर वैश्वीकरण के भूचाल से मीडिया की दुनिया कैसे बची रहती। भारत में वैश्वीकरण के आगमन के साथ सूचना-माध्यमों का भी कलेवर बदला है। हिंदी मीडिया की संस्कृति में आमूल-चूल परिवर्तन देखने को मिला है। वैश्वीकरण के दौर में ही जनमाध्यमों ने चोला ही नहीं बदला अपितु विदेशी जमीन पर भी अपनी पैठ बनाई है। वैश्वीकरण से जहां हिन्दी जनमाध्यमों की कमाई और पैठ बढ़ रही है वहीं हिन्दी भाषा का प्रसार भी तेजी से हो रहा है। 
ऐसे वक्त में जब हिन्दी मीडिया तेजी से कदम पूरे संसार में पसार रही है तो भाषा को लेकर गंभीर होने की जरूरत है। हिन्दी मीडिया की संख्या में भारी इजाफा हुआ है परन्तु अधिकता हमेशा गुणवत्ता नहीं लाती है। हिन्दी न्यूज चैनलों पर खबरों को सनसनीखेज बनाने, बढ़ा-चढ़ाकर बात कहने के तरीके और खबरों के स्तर को गम्भीर रूप से गिराने के आरोपण हैं। टेलीविजन न्यूज मीडिया में लोगों का भरोसा फिर से कैसे बहाल किया जाए, इसके लिए सही भाषा की समझ जरूरी है। चाहे वो बोल्ड हेडलाइन हो, ब्रेकिंग न्यूज हो या न्यूज फ्लैश। जरूरी है कि उसकी भाषा तसवीरों के अनुकूल और बारीक छान-बीन के बाद उसे तथ्यों के अनुरूप ही लिखा जाए। भाषा एक दोधारी तलवार की तरह है। इसका प्रयोग सम्पर्क बनाने में किया जा सकता है और उलझाने में भी।

वेब और सोशल मीडिया पर हिन्दी की फसल खूब लहलहा रही है। यूनिकोड ने तो इंटरनेट पर हिन्दी के भाग्य को एक दिशा और गति सी दी है। नेट पर आज हिन्दी सामग्री का भंडार है। आज का जो सीन बना है, उसे देखकर यही लगता है कि आने वाले समय में इंटरनेट पर हिन्दी का बोलबाला और भी बढ़ने वाला है।भाषा की काॅकटेल परोसने के पीछे प्रमुख वजह यह भी है कि मीडिया एक ऐसी विधा है जो क्लाॅस के लिए न होकर माॅस के लिए होती है। पाठको/श्रोताओ/दर्शकों की रेंज भी विविधतापूर्ण है; चाहे वह ग्रामीण या नगरीय हो या उच्च वेतनभोगी या अल्प, भारतीय या विदेशी आदि। आज वह भाषा सबसे समृद्ध भाषा नहीं है जिसका इतिहास, साहित्य और संस्कृति समृद्ध है बल्कि वह भाषा सबसे समृद्ध है जो वर्तमान परिवेश में अधिक अनुकूल और उपयोग में लाई जाती है।




- डा0 राजेश सिंह कुशवाहा
सहायक आचार्य
जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग
डा0 राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय
अयोध्या, उ0प्र0।
मोबाइल नं0.9415862377 
email id: manurajchandra@gmail.com


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वक्त के साथ हिन्दी मीडिया का बदलता अंदाज नित नव रूप में हिन्दी मीडिया ने लंबा सफर तय किया है। मीडिया के साथ हिन्दी ने भी संचार किया है। माध्यम बदले हैं तो हिन्दी ने भी अपने तेवर बदले हैं। गांधी की दुनिया से लेकर ग्लोबल दुनिया तक जो कुछ बदला है लगभग उसी तरह के परिवर्तन हिन्दी मीडिया में भी दिखाई पड़ते हैं। आज हिन्दी मीडिया की दो स्थितियां सामने हैं: एक पुरातन पंथी और दूसरी नवाचारी।
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