किस्मत या मेहनत काफी समय पहले की बात है की दो मित्र होते हैं और उन दोनों मित्रों में शर्त लगती है कि किस्मत होती है या मेहनत । तब दोनों ने कहा आज़माइश करते हैं कि किस्मत होती है या मेहनत, ऐसा करके दोनों मित्रों में शर्त लगी ,मेहनत के हिमायती ने शर्त रखी की आप यहां से (आबादी क्षेत्र से) दूर कहीं सुनसान क्षेत्र (जंगल) में चले जाओ और वहां जाकर न किसी को आवाज़ देनी है ना किसी को कोई इशारा करना है
किस्मत या मेहनत
काफी समय पहले की बात है की दो मित्र होते हैं और उन दोनों मित्रों में शर्त लगती है कि किस्मत होती है या मेहनत । तब दोनों ने कहा आज़माइश करते हैं कि किस्मत होती है या मेहनत, ऐसा करके दोनों मित्रों में शर्त लगी ,मेहनत के हिमायती ने शर्त रखी की आप यहां से (आबादी क्षेत्र से) दूर कहीं सुनसान क्षेत्र (जंगल) में चले जाओ और वहां जाकर न किसी को आवाज़ देनी है ना किसी को कोई इशारा करना है.....यदि कोई वहां आ कर आपको भोजन करवाएं तो इसका मतलब किस्मत होती नहीं तो मेहनत। दोनों मित्रों के मध्य लगी शर्त के
किस्मत या मेहनत |
इसी दरमियान उस गांव में एक परिवार में काफी समय से अशांति का माहौल था,तो उस परिवार को किसी महाराज ( ज्योतिष) के द्वारा सलाह दी गई की आप घर से अच्छा भोजन बनाकर, गांव से दूर कहीं सुनसान जगह पर जाकर किसी व्यक्ति को भोजन करवाएं तो आपके घर में शांति हो सकती है...... अंधा चाहे दो आंख अर्थात उस परिवार के मुखिया को उस महाराज की सलाह ठीक ही लगी और उसने अपनी पत्नी से अच्छा (स्वादिष्ट )भोजन बनवाया और थाल में लेकर वह जंगल की ओर चल पड़ा .....लेकिन उस व्यक्ति को 1 दिन इंतजार करने के बाद भी उस जंगल में किसी मानव के दर्शन तक भी नहीं हुए और थक-हारकर वह व्यक्ति उस पेड़ के नीचे जा बैठा जिस पेड़ पर किस्मत का हिमायती मित्र किस्मत की आज़माइश पिछले 5 दिनों से कर रहा था, तभी उस पेड़ के नीचे बैठे उस व्यक्ति का सब्र टूटने को हुआ और वह बुदबुदाया कि महाराज ने किस प्रकार की सलाह दी (या टोटका बताया )यहां तो कोई मानव भी नहीं है और उसने सोचा कि मैं इस भोजन को यहीं गिरा कर, वापस जाकर पंडित जी को कहूंगा कि मैंने भोजन करवा दिया .....तो पंडित जी आगे कुछ और उपाय बताएंगे जिससे घर में ....शांति तो हो ही जाएगी। इस प्रकार का सोच कर उसने खड़े होकर थाल में से भोजन को गिराने की स्थिति बनाई और कहने लगा 1...न 2 ....न.. तभी उस पेड़ के ऊपर बैठे किस्मत के हिमायती मित्र को लगा कि 5 दिन के इंतजार करने के बावजूद यहां किसी ने मुझे भोजन नहीं करवाया और यह व्यक्ति जो भोजन लेकर आया है वह भी गिरा कर चला जाएगा। लेकिन उसे अपने मित्र की बात याद आई (शर्त..) ...(मेहनत के हिमायती मित्र ने कहा था कि आपको किसी प्रकार की आवाज या इशारा नहीं करना है)। एक बार तो किस्मत के हिमायती उस मित्र ने चुप रहना ही ठीक समझा ....लेकिन तभी उस पेड़ के नीचे बैठे व्यक्ति ने अंतिम निर्णय कर लिया था और बोलकर कहने लगा भोजन को गिराकर चल देना चाहिए । उसने फिर दोबारा भोजन के थाल ...गिराने की स्थिति बनाई तभी उस पेड़ के ऊपर बैठे किस्मत के हिमायती मित्र ने धीरे से आवाज दी अह.. तो एकबारगी तो उस पेड़ के नीचे भोजन लिए खड़े उस व्यक्ति को लगा की कहीं से कोई आवाज आई है ,व्यक्ति ने( उसने) दाएँ देखा ,बाएँ देखा ,आगे देखा, पीछे देखा लेकिन उसको कहीं भी कोई मनुष्य नजर नहीं आया तब जाकर उसने फैसला कर ही लिया कि भोजन गिरा ही देना चाहिए और एक बार फिर भोजन गिराने की स्थिति बनाई और कहने लगा 1..न 2..न... तभी किस्मत के हिमायती मित्र ने देखा अवसर हाथ से जा रहा है ,5 दिन से मैं भूखा किस्मत की आज़माइश करता रहा ,क्यों ना अवसर को ....लिया जाए ताकि कुछ ऊर्जा (सामर्थ्य) आ जाए और घर तक लौट सकूं। और उसने जोर से आवाज दी अहह... पेड़ के नीचे बैठे व्यक्ति ने तपाक से ऊपर की ओर देखा तो एक व्यक्ति पेड़ पर बैठा हुआ नजर आया, उसने उसको नीचे बुलाया हालचाल पूछे, भोजन करवाया और अपने गंतव्य की ओर चल पड़ा .......। उधर किस्मत का हिमायती मित्र भी अपने दोस्त, (मेहनत के हिमायती )के पास लौटा तो मेहनत के हिमायती मित्र ने अपने मित्र से पूछा बता भाई क्या बात है..... जीवन में किस्मत होती है या मेहनत!! किस्मत के हिमायती मित्र ने कहा :-''भगवान दे है पर दे खेंगारे-खेंगारे!!"" मतलब मनुष्य के जीवन में मेहनत पहले हैं किस्मत बाद में अर्थात पुरुषार्थ से ही किस्मत बदलती है ।
- लिच्छाराम सियोल
व्याख्याता (हिंदी सा.)
रा उ मा वि,लोहारवा
(साभार-बुजुर्गों का सानिध्य)
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